रामायण में राम का वास्तविक चरित्र।
राम के बारे में बाबासाहेब कहते हैं कि राम को शराब पीने की मनाही नहीं थी। राम की जननीया अप्सरा, उरगा और किन्नरी थीं जो नृत्य और गीत में कुशल थीं। इस सुंदरता के बीच में बैठकर, मादकता और नृत्य उन्हें खुश कर देते थे और राम उन्हें माला पहनाते थे। (राम और कृष्ण का गौडबंगल, पृष्ठ 14)
इस बारे में वाल्मीकि रामायण देखिए:
राम का जन्म खीर खाने से हुआ।
एक व्यक्ति यज्ञ से बाहर आता है और राजा को खीर देता है। दशरथ की तीनों रानिया वो खीर खा कर गर्भवती हो जाती है। (श्लोक 31) (बालकाण्ड सर्ग 16)
राम ने कथित रूप से यज्ञ का विरोध करने के लिए अपने गुरु विश्वामित्र के कहने पर ताड़का का वध किया। विश्वामित्र कहते हैं ..
हे रघुनंदन (राम) तुम गौओं और ब्राह्मणो का हित करने के लिए इस दुष्ट पराक्रमवाली भयंकर और दुश्चरित्र यक्षी कि हत्या कर डालो. (श्लोक 15) (बालकांड सर्ग 25)
जब बाली और सुग्रीव के बीच युद्ध चल रहा था, तब राम एक पेड़ के पीछे छिप गए और बाली पर तीर चला दिया। घायल बाली राम को कहता है..
मै तो दुसरे के साथ युद्ध मे उलझा हुआ था.उस दशा मे आपने मेरा वध करके यहा कौन सा गुण प्राप्त किया है. (श्लोक 16) (किष्किंधाकांड सर्ग 17)
उत्तरकाण्ड में एक कथा के अनुसार एक ब्राह्मण का पुत्र समय से पहले मर जाता है। ब्राह्मण ने राम से कहा कि एक शूद्र तुम्हारे राज्य में तपस्या कर रहा है इसलिए मेरे बेटे की मृत्यु हो गई है। इस पर राम को शूद्र मिला जो तपस्या करता है। जब उनसे चरित्र के बारे में पूछा जाता है, तो तपस्या खुद को शूद्र कहती है। उसी क्षण राम ने अपनी तलवार निकाली और उस शूद्र के सिर को उड़ा दिया।
रामचंद्रजी ने म्यान से तलवार निकाली और उस से उस का सिर काट डाला (श्लोक 4) (उत्तरकांड सर्ग 76)
शूर्पनखा वहाँ आती है जंहा राम, लक्ष्मण और सीता वनवास में होते हैं। उसका मजाक उड़ाने के लिए, राम लक्ष्मण दोनों उसे अपने विवाहित जीवन के बारे में गलत जानकारी देते हैं, लेकिन जब वह भ्रमित होके सीता पर हमला करती है तो राम कहते है..
इन अनार्यों के साथ परिहास नही करना चाहिए (श्लोक 19)।
इसको किसी अंग से हीन कर देना चाहिए (श्लोक 20)।
महाबली लक्ष्मण ने म्यान से तलवार निकाली और शुर्पणखा के नाक-कान काट दीए (श्लोक 21) (अरण्यकांड सर्ग 18)
जब रावण की हत्या के बाद राम और सीता मिलते हैं, तो राम सीता को कहते हैं ...
तुम्हारे चरित्र मे संदेह का अवसर उपस्थित है फिर भी तुम मेरे सामने खडी हो (श्लोक 17)
रावण तुम्हे अपनी गोद मे उठा कर ले गया, वह तुम पर अपनी दुषित दृष्टी डाल चुका है. ऐसी अवस्था में अपने कुल को महान मानने वाला मैं तुम्हे कैसे ग्रहण कर सकता हूँ। (श्लोक 20) (युद्धकांड,115)
जब राम के व्यवहार के कारण सीता को अग्नि परीक्षा से गुजरना पड़ा, तो राम ने इसे स्वीकार कर लिया। गर्भवती होने पर उसे छोड़ वापस जंगल में चले गए। जब लव और कुश 12 साल के थे, राम सीता को, वाल्मीकि की अनुमति से अपनी पवित्रता साबित करने के लिए कहते हैं। सीता आती है और कसम खाती है...
मै राम के सिवा दुसरे किसी पुरुष का मन से भी चिंतन नहीं करती यदि यह सत्य है तो भगवती पृथ्वी मुझे अपनी गोद मे स्थान दे. (श्लोक 14)
जैसे ही सीता ने शपथ ली, भूतल से एक अद्भुत सिंहासन प्रकट हुआ। (श्लोक 17)
सीता सिंहासन पर बैठीं और रसातल में चली गईं। (श्लोक 20) (उत्तरकाण्ड 97)
उत्तरकाण्ड 106 के अनुसार, राम के पास आए एक अतिथि की हालत लक्ष्मण से टूट जाती है और राम लक्ष्मण को छोड़ देते हैं। दुखी होकर, लक्ष्मण ने सरयू नदी के तट पर जाकर आत्महत्या कर ली। लव और कुश के राज्याभिषेक के बाद, राम भी सरयू नदी में प्रवेश करते हैं। वाल्मीकि के अनुसार ... जैसे ही राम ने सरयू के जल में प्रवेश किया, वे अपने रास्ते पर चलते रहे और वैष्णव तेज से मिले।
पहले सीता रसातल में गईं, फिर लक्ष्मण ने अपने बड़े भाई द्वारा किए गए बलिदान के दु: ख के कारण अपनी सांस रोककर आत्महत्या कर ली। इसके कारण राम ने भी सरयू नदी में डूबकर आत्महत्या कर ली।
ताड़का का वध, शूद्र शंभुका की हत्या, शूर्पनखा पर अत्याचार, सीता के चरित्र पर संदेह, दरबार में स्त्रियों के नाचने और शराब पीने का विचार है रामायण में।
सहायक ग्रंथ:
1. वाल्मीकि रामायण, गीताप्रेस गोरखपुर
2. राम और कृष्ण की गोडबंगल, बाबासाहेब अम्बेडकर, सुगव प्रकाशन, पुणे।
3. रामायण या सीतायन, सुरेंद्र कुमार अज्ञात, सम्यक प्रकाशन, दिल्ली।
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दुनिया का कौन सा सभ्य आदमी अपनी पत्नी के स्तनों का वर्णन अपने छोटे भाई से करेगा? रावण द्वारा सीता अपहरण के बाद राम लक्ष्मण से क्या कहते हैं।
मेरी प्रिया के स्तन दो गोल स्तन जो हमेशा लाल चंदन से चर्चित होने के योग्य थे, रक्त की कीच में सन गए होंगे।
(अरण्यकांड, सर्ग 63, श्लोक 8)
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ये रामानंद सागर ने जब रामायण पर सीरियल बनाया तो वे शंबूक वध वाला किस्सा क्यों छुपा गए,जबकि इसका जिक्र खुद वाल्मीकि ने रामायण में किया है। इसके पीछे भी कोई साजिश है क्या?? क्योंकि देश के एक बड़े हिस्से में इससे विपरीत संदेश जाने का डर रहा होगा. कोई भी इस अमानवीय प्रकरण को वाल्मीकि कृत रामायण म़ें 73 से 76 प्रसंग मे देख सकता है।
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रामायण की एक पात्र कैकेयी का नाम तो सभी ने सुना ही है! कैकेयी को लोग आमतौर पर एक खलनायिका ही समझते हैं, क्योंकि इन्ही की वजह से राम को चौदह वर्ष के लिये वन मे जाना पड़ा था! पर इसके पीछे एक दूसरी कहानी भी है, जिसे कम ही लोग जानते हैं!
हमारे पंडे-पुरोहित बहुत चालाक थे, वो किसी सच्ची बात को दबाने के लिये एक झूठी कहानी गढ़ देते थे! ऐसी ही एक कहानी कैकेयी के साथ भी बनायी गयी।
रामायण के अनुसार एक बार राजा दशरथ देवताओं की सहायता के लिये असुरों से युद्ध करने देवलोक गये तथा उनकी प्रिय रानी कैकेयी भी उनके साथ गयी।
युद्ध के दौरान दशरथ के रथ का धुरा टूट गया, तब समझदार कैकेयी ने धुरे मे अपना हाथ लगाकर रथ को टूटने से बचाया!
युद्ध समाप्त होने के बाद जब दशरथ को यह बात पता चली तो वे कैकेयी की समझदारी से खुश होकर उससे दो वर मांगने को कहने लगे, जिसे कैकेयी ने उचित अवसर पर मांगने को कह दिया था।
रामायण के अनुसार कैकेयी ने यही दो वर मांगकर राम को वनवास भेज दिया, और भरत को राजा बनाने की कुचेष्टा की।
......वैसे सम्भवतः यह एक झूठी कहानी है, वास्तव मे रणक्षेत्र मे महिलाऐं जाती ही नही थी! अगर कैकेयी गयी भी थी तो रथ आसमान मे उड़ रहा था, भला पहिऐ के भीतर अपना हाथ डालने के बाद कैकेयी कहाँ खड़ी थी?
...... भला एक महिला का कोमल हाथ कब तक रथ का धुरा बन सकता था?
--- केवल इस दृष्य की कल्पना ही करो तो अपने आप हंसी छूटने लगती है!
सच्चाई यह है कि कैकेयी कैकेय देश के राजा अश्वपति की पुत्री थी... कैकेयी बहुत सुन्दर थी, और राजा दशरथ उस पर मोहित थे! पर दशरथ पहले से ही विवाहित थे, अतः अश्वपति कैकेयी की शादी दशरथ से करने को तैयार नही थे।
अन्ततः कैकेयी को पाने के लिये दशरथ ने अश्वपति को वचन दिया था कि कैकेयी से जो पुत्र पैदा होगा, मै उसी को राजा बनाऊँगा...
दशरथ के इस वचन से अश्वपति मान गये, और उन्होने कैकेयी की शादी दशरथ से कर दी!
यह कथा पुराणों (खासकर पद्मपुराण) मे मिलती भी है कि किस तरह दशरथ ने भीष्म पितामह के पिता शान्तनु जैसा वर देकर कैकेयी को प्राप्त किया था।
कहते हैं कि "रघुकुल रीति सदा चली आयी, प्राण जाये पर वचन न जायी"
लेकिन यह भी सरासर झूठ ही है! अपने वचनानुसार दशरथ कैकेयी के पुत्र (भरत) को राजा बनाते, पर दशरथ को राम अधिक प्रिय थे, अतः मन ही मन उन्होने राम को राजा बनाने का संकल्प किया!
दशरथ अपना वचन तोड़ रहे थे, इसलिये राम के राज्याभिषेक के समय उन्होने भरत को ननिहाल भेज दिया था, पर कैकेयी ने उनकी एक भी न चलने दी!
जब राम वन मे चले गये, और भरत ननिहाल से वापस आये तो उन्हे पूरे घटनाक्रम को सुनकर बहुत दुःख हुआ, और वो राम को मनाने के लिये सारे मंत्रियों को लेकर वन मे गये। वन मे वशिष्ठ ने राम से कहा कि श्रृष्टि की परम्परा अनुसार ज्येष्ठ-पुत्र ही राजा बनता है, अतः हे राम, आप भी अयोध्या का राज्य ग्रहण करो!
भरत ने भी राम से कहा कि आप वापस लौट चलो, तब जवाब मे राम ने भरत को वह सच बताया, और कहा-
"पुरा भ्रातः पिता नः स मातरं ते समुद्धहन् ।
मातामहे समाश्रौषीद्राज्यशुल्कमनुत्मम् ।।"
(अयोध्याकाण्ड-107/3, चित्र-1)
अर्थात- "हे भरत! पिताजी ने तुम्हारी माता (कैकेयी) से विवाह करते समय ही तुम्हारे नाना को वचन दिया था कि कैकेयी से जन्मा पुत्र ही मेरे बाद राजा बनेगा।"
अब सवाल यह होता है कि जब राम यह सब जानते थे तो फिर वे दशरथ की बात मानकर राजा बनने को तैयार क्यों हुये?
दूसरी बात अगर रघुकुल मे वचन का इतना महत्व था, तो दशरथ ने अपना वचन क्यों तोड़ा?
इन दोनो महापुरुषों (राम और दशरथ) की लाज बचाने के लिये रामकथा के लेखकों ने बेचारी कैकेयी को ही अपराधी बना डाला, जबकि वास्तव मे असली अपराधी तो दशरथ थे!
यहाँ एक बात और ध्यान देने वाली है कि दशरथ के वचनानुसार अयोध्या के राजा केवल भरत बन सकते थे, या फिर भरत स्वतः राज्य त्याग देते, तभी कोई दूसरा राजा बन सकता था।
राम को यह बात भलीभांति मालुम थी, यही वजह है कि जब राम चौदह साल बाद वन से वापस लौटकर अयोध्या आ रहे थे तो उन्होने पहले हनुमान को भरत से मिलने भेजा था। राम ने हनुमान से कहा था कि "हे हनुमते! तुम जाकर भरत से कहना कि मै (राम) वानरराज सुग्रीव तथा अन्य महाबलि मित्रों के साथ वन से वापस आ रहा हूँ। मेरे वापस आने की बात सुनकर भरत की जैसी मुख-मुद्रा हो, उसका अवलोकन करना। भरत के मनोभाव को समझना की मेरे वापस आने से वह खुश है या दुःखी?
इतने दिनों तक समस्त ऐश्वर्य से भरपूर राज्य भोगने से यदि भरत के अन्दर राज्य के लिये जरा भी लालच आया हो तो तुरन्त वापस आकर मुझे बताना, मै फिर राजधानी मे न जाकर कहीं अन्यत्र चला जाऊँगा और तपस्वी जीवन व्यतीत करूँगा।"
(युद्धकाण्ड, सर्ग-125, श्लोक-12-17, चित्र-2)
उपरोक्त उदाहरणों से साफ पता चलता है कि अयोध्या के राज्य पर भरत का ही अधिकार था! कैकेयी ने कुछ भी गलत नही किया था और भरत महान थे जिन्होने स्वयं राज्य त्यागकर राम को राजा बना दिया था।
वाल्मीकि रामायण युद्धकाण्ड सर्ग-128/106 मे लिखा हैं कि श्रीराम ने राजा बनने के बाद अपने भाइयों सहित अयोध्या मे 11 हजार साल तक राज्य किया....
यह बात तो ऐसी है कि जिसे सुनकर दांतो तले अगुँली दबा ले!
क्या कोई मनुष्य 11 हजार वर्ष तक जीवित रह सकता है?
क्या मनुष्यों की आयु कभी इतना होती थी?
वेदों के बाद मनुस्मृति ही सनातनियों की सबसे विश्वसनीय और मान्य धर्मग्रंथ है, अगर इसे प्राचीन संविधान कहें तो अतिशयोक्ति नही होगी!
मनुस्मृति की प्रशंसा देवगुरू वृहस्पति ने भी अपनी पुस्तक वृहस्पति स्मृति संस्कारखण्ड-13/14 मे किया है, उन्होने लिखा है--
"मनुस्मृति विरुद्धा या सा स्मृतिर्न प्रशस्यते।
वेदार्थोपनिबद्धत्वात् प्राधान्यं हि मनोः स्मृतेः।।"
अर्थात- जो स्मृति मनुस्मृति के विरुद्ध है, वह प्रशंसा के योग्य नहीं है। वेदार्थों के अनुसार वर्णन होने के कारण मनुस्मृति ही सब में प्रधान एवं प्रशंसनीय है।
यह तो मनुस्मृति का गुणगान हुआ, अब जरा देखो कि मनुस्मृति मे मनुष्यों की कितनी आयु बताई गयी है!
मनुस्मृति-1/83 मे मनु ने कहा है--
"आरोगाः सर्वसिध्दार्थाश्चतुर्वर्षशतायुषः।
कृते त्रेतादिषु ह्योषामायुर्ह्रसति पादशः।।"
अर्थात- कृतयुग (सतयुग) मे मनुष्य धर्माचरण पूर्वक सब मनोरथ सिद्ध करते हुये निरोग होकर चार सौ वर्ष पर्यन्त जीवित रहते हैं! त्रेता, द्वापर और कलियुग मे धर्म का लोप होने से क्रमशः सौ-सौ वर्ष आयु कम हो जाती है।
मनु ने इस श्लोक मे साफ बताया है कि त्रेतायुग मे मनुष्यों की आयु तीन सौ साल होती थी!
अब इसी त्रेतायुग मे राम थे, फिर भला राम 11 हजार साल कैसे जी गये?
इस पोस्ट पर मै किसी पर कोई आरोप नही लगाऊँगा, बस इतना ही कहूँगा कि वाल्मीकि और मनु मे से कोई एक तो झूठ बोल रहा है, और मेरी साधारण बुद्धि को वाल्मीकि ही झूठे नजर आ रहे हैं!
खैर फेंकना तो हमारे सनातनियों की आदत ही रही है!
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एक भाई मुझे इनबाक्स मे कह रहे हैं कि तुमने राम-बालि प्रसंग पर बहुत पोस्ट लिखे!
तुमने कहा कि राम का यह तर्क सही नही था, वह तर्क सही नही था, तो अब तुम्ही बता दो कि राम और बालि युद्ध मे हुआ क्या था?
अब मै आपसे कहना चाहूँगा कि भाईसाहब आपका सवाल मुझे बुरा नही लगा, दूसरी बात उस समय तो मै था नही जो सच बता दूँ कि क्या हुआ था?
पर जहाँ तक मैने अध्ययन किया है उसके अनुसार मै यह दावे से कह सकता हूँ कि राम ने बालि को पीछे से नही बल्कि योद्धाओं की तरह युद्ध करके सामने से उसके सीने मे तीर मारा था!
इसके कुछ तर्क और प्रमाण भी मै दे सकता हूँ...
सबसे पहली बात तो बालि के पास ऐसी कोई शक्ति थी ही नही कि वो अपने शत्रु की आधी ताकत खींच ले! रामायण मे साफ लिखा है कि बालि को सामने आने वाले योद्धा की आधी ताकत क्षीण हो जाती थी! यह इस बात का प्रतीक है कि बालि लम्बा-चौड़ा और कद-काठी वाला योद्धा था!
दूसरी बात यदि राम के हाथों बालि को पीछे से छुपकर मरवाना था तो सुग्रीव और जामवन्त ने राम की शक्ति का परीक्षण क्यों किया?
सुग्रीव ने साफ ही कहा है कि मै कैसे मान लूँ कि आप बालि को युद्ध मे मार गिराओगे। क्यों राम से सात पेड़ो को एक बाण से कटवाया गया?
आखिर पीछे से तो कोई भी छुपकर मार सकता था..
तीसरी बात जब लंका मे राम और रावण का युद्ध चल रहा था तब रावण राम को शर्मिंदा करने के लिये कहता है कि अरे वो वन-वन भटकते वनवासी तू क्या त्रिलोक-विजयी रावण से युद्ध करेगा! रावण ऐसे ही कही ताने राम को मारता है, पर उसने भी एक बार यह नही कहा कि तुमने बालि को पीछे से मारकर अपने कुल को कलंकित कर दिया!
अगर राम ने ऐसा किया होता तो रावण जरूर यह ताना भी मारता।
चौथी बात जब मेघनाद और लक्ष्मण का युद्ध चल रहा था, तब मेघनाद ने मायावी युद्ध करना प्रारम्भ कर दिया!
इससे क्रोधित होकर लक्ष्मण राम के पास आये और बोले कि हे भइया! वह धूर्त मायावी युद्ध कर रहा है, अतः आप मुझे ब्रह्मास्त्र चलाने की अनुमति दो!
राम ने कहा कि हे लक्ष्मण! ब्रह्मास्त्र जैसे विध्वंसक अस्त्र का प्रयोग कभी यूँ ही नही करना चाहिये, यह अधर्म होगा।
लक्ष्मण बोले कि भइया ये असुर कोई युद्धनीति नही मानते, ये खुद अधर्म करते हैं।
राम ने कहा कि वो चाहे जो करें, पर हमे अनैतिक तरीके से युद्ध नही करना चाहिये।
ऐसा कहकर राम ने लक्ष्मण को ब्रह्मास्त्र चलाने से मना कर दिया! इस बात से साफ पता चलता है कि राम युद्ध मे भी छल-कपट या अनैतिकता का मार्ग नही अपनाते थे! फिर भला वही राम छलपूर्वक बालि को क्यों मारेंगे।
पाँचवीं बात रामायण और रामचरित मानस मे बालि को किष्किंधा का राजा बताया गया है, पर पढ़ने के बाद तो ऐसा लगता है कि पूरे किष्किंधा मे बालि अकेला ही रहता था! न तो उसकी कोई प्रजा थी, और न ही मंत्री तथा सेना!
अब यदि राम ने उसे पीछे से छलपूर्वक मारा तो फिर उसकी सेना या प्रजा ने इसका विरोध क्यों नही किया?
सुग्रीव और राम के खिलाफ किष्किंधा की प्रजा ने विद्रोह क्यों नही किया?
खैर मैने ऊपर जितनी बातें कही ये सब तर्क थे, और लोग तर्क को नही लिखित प्रमाण को मानते है, अतः अब मै ऐसा प्रमाण देता हूँ जो आसानी से झुठलाया नही जा सकता।
वाल्मीकि रामायण (गीताप्रेस) किष्किंधाकाण्ड, सर्ग-19 श्वोक-11-12 मे साफ लिखा है कि जब युद्ध मे राम ने बालि को मार गिराया तो उसकी सेना भाग खड़ी हुई। भागते हुये बन्दरों को रास्ते मे बालि की पत्नि तारा मिली, और बन्दरों से बोली कि यदि राज्य के लोभी उस सुग्रीव ने राम के हाथों अपने ही भाई को मरवा दिया है, तो तुम लोग भाग क्यों रहे हो?
तब बालि के सैनिक वानरों ने कहा कि हे देवी! तुम्हारा पुत्र (अंगद) अभी जीवित है, तुम लौट चलो और अंगद की रक्षा करो! राम के रूप मे स्वयं यमराज आ गये हैं जो बालि को मारकर अपने साथ ले जा रहे हैं।
अगले श्वोक मे वही वानर तारा से कहते हैं कि- "बालि के चलाये हुये वृक्षों और बड़ी-बड़ी शिलाओं को अपने वज्रतुल्य बाणों से विदीर्ण करके राम ने बालि को मार गिराया है"
इस श्वोक मे वानर साफ कहते हैं कि बालि ने राम के ऊपर पेड़ उखाड़कर फेंके, और बड़े-बड़े पत्थरों को भी उनके ऊपर फेंका! पर राम ने अपने बाणों से पेड़ों और पत्थरों को विदीर्ण करके बालि को मार दिया।
अब सवाल यह है कि यदि राम बहेलिये की तरह छुपे थे, तो बालि उन पर पेड़ और पत्थर कैसे फेंक रहा था।
प्रतीक तो ऐसा हो रहा है कि पहले बालि और सुग्रीव का युद्ध हुआ, और जब सुग्रीव परास्त हुये तो राम ने बीच मे आकर बालि से युद्ध किया। बालि ने कहा भी है की युद्ध मेरा और सुग्रीव का था, तो तुम बीच मे क्यों आये?
युद्ध मे जब बालि अस्त्र-शस्त्रहीन हो गया तब उसने राम पर पेड़ और पत्थर फेंके! और अन्ततः राम ने अपने नुकीले तीर उसके सीने मे उतार दिये।
वस्तुतः रामायण मे मिलावट का एक दौर चला! आज भी विद्वान कहते हैं कि रामायण मे हजारों श्लोक मिलावटी है! यहाँ तक की पूरा का पूरा उत्तरकाण्ड मिलावटी ही है!
मिलावट करने वालों ने काफी श्लोकों को हटाया, पर कुछ श्वोकों को हटाने से वो चूक गये।
मिलावत केवल राम के साथ ही नही, कृष्ण के साथ भी हुई है। मै नरसिंहपुराण और विष्णुपुराण से एक नही दर्जनों सबूत दे सकता हूँ कि श्रीकृष्ण ने कभी रासलीला की ही नही! पूरा का पूरा रासलीला प्रकरण ही मिलावट है..
पर यह मेरा नही, धर्म के ठेकेदारों का काम है।
वैसे यह मेरे अध्ययन का अनुभव है, मानना या न मानना आप सबकी इच्छा, पर तर्क और प्रमाण तो यही कह रहे हैं कि राम ने बालि को छुपकर नही मारा था।
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यह तो लगभग सबने पढ़ा ही होगा कि वानरराज बालि के पास एक ऐसी माला थी जिसे पहनने से वह अपने शत्रु का आधा बल खींच लेता था, और उसी से वो अपराजेय हो गया था! यही वजह थी कि राम ने बालि को पेड़ के पीछे से छुपकर मारा था!
मै सोचता हूँ कि आखिर बालि के माले मे ऐसा कौन सा चुम्बक लगा था जिससे वह सामने वाले की आधी शक्ति खीच लेता था?
यह वाकई हास्यास्पद और कुतर्क वाली बात है!
बाल्मीकि रामायण किष्किंधाकाण्ड सर्ग-11 मे बाल्मीकि जी ने लिखा है कि जो शत्रु बालि से युद्ध करने जाता था, बालि के सामने आते ही उसकी आधी शक्ति क्षीण हो जाती थी, पर कहीं ऐसा नही लिखा है कि बालि उसकी शक्ति को खींच लेता था!
वास्तव मे बालि कद-काठी से बहुत हट्टा-कट्टा था! वह अत्यन्त बलवान और गठीले बदन का मालिक था! यह साधारण सी बात है कि यदि कोई अपने से दोगुने लम्बे-चौड़े योद्धा से युद्ध करे तो उसे देखते ही उसकी आधी शक्ति जैसे क्षीण हो जाती है! इसमे खीचने जैसी कोई बात नही थी, बल्कि जो योद्धा बालि से युद्ध करने जाता था, वह बालि के गठीले और ऊँचे शरीर को देखकर ही ऐसा अनुभव करता था कि जैसे उसकी आधी शक्ति क्षीण हो गयी है!
बालि वास्तव मे कितना बलिष्ठ था उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि स्वयं हनुमान और जामवंत भी उससे लड़कर सुग्रीव का राज्य वापस दिलाने मे नाकाम थे! इसीलिए तो इन लोगों ने राम के हाथों धोखे से बालि का वध करवाया!
वैसे राम ने जिस तरह बालि को मारा वह भी किसी घृणित कृत्य से कम नही था!
राम ने केवल सुग्रीव की बात सुनकर बालि को मारने की प्रतिज्ञा कर ली! जबकि धर्मानुसार राम को एक बार बालि से भी बात करनी चाहिये थी, और उसका भी पक्ष सुनना चाहिये था! यही नही राम को प्रयास करना चाहिये था कि दोनो भाइयों मे समझौता करवा देते, सम्भव है कि बालि राम की बात मान जाता!
दूसरी बात जब राम ने बालि को पेड़ के पीछे से छुपकर मारा, तब बालि ने राम को धिक्कारते हुये कहा कि तुम कायर थे, अगर क्षत्रिय थे तो मुझे सामने से युद्ध मे हराते!
तब राम ने जवाब दिया कि- "हे बालि! मै क्षत्रिय हूँ, और धर्मज्ञ राजा भी मृगया (शिकार) मे विभिन्न जानवरों का वध करते थे!
हे बालि! तुम भी शाखामृग (बन्दर) हो, और मैने क्षत्रियों की भांति तुम्हारा शिकार किया है! शिकार चाहे सामने से करें या पीछे से छुपकर... उसमे निन्दा नही, अतः तुम्हारा वध अधर्म नही है"
ये संस्कार थे भगवान श्रीराम के, एक सूरवीर राजा को पहले छुपकर तीर मार दिया और बाद मे सफाई दे दिया कि मैने तो तुम्हारा शिकार किया है!
वाह्ह प्रभु श्रीराम! क्या तर्क दिया आपने, धन्य हो आप।
जिसे मारना था, उसे जानवर घोषित कर दिया और जिस सुग्रीव से आपको काम था उसे सीने से लगाये रखा।
वैसे प्रमाण मांगने वालों को बता दूँ कि उक्त कथा वाल्मीकि रामायण किष्किंधाकाण्ड सर्ग-18 श्लोक-39-42 मे वर्णित है!
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#पहले_राम_आये_या_बुद्ध......
अगर आप किसी भी सनातनी से पूँछो कि धरती पर पहले राम का युग था या बुद्ध का? तो वह झट से जवाब देगा कि राम का.....
यूँ तो हिन्दू राम और बुद्ध दोनो को विष्णु का अवतार मानते है, पर उनका कहना है कि पहले रामावतार हुआ, फिर कृष्णावतार और तत्पश्चात बुद्ध का आगमन हुआ! लेकिन आप कुछ श्रोतो और पौराणिक ग्रंथो का अध्ययन करे तो मामला जरा पेचीदा लगता है!
गौतम बुद्ध ने अपने जीवनकाल मे कभी भी शायद राम का उल्लेख नही किया, या उनके दौर मे राम का अस्तित्व ही नही रहा होगा! पर राम ने अपने मुँह से बुद्ध का नाम लिया है, मतलब राम के समय मे बुद्ध का अस्तित्व था!
हिन्दू बड़ी चालाकी से हमेशा एक साजिश करते हैं, हिन्दुओं को यह पता है कि भारत मे नई चीजों की अपेक्षा प्राचीन चीजों का अधिक महत्व है, इसीलिये जब कभी भी कोई बड़ा मन्दिर बनता है तो पंडे-पुरोहित यह कहकर प्रचारित करते हैं कि यह मन्दिर बहुत पुराना है..द्वापरयुग मे यहाँ पाण्डवों ने पूजा की थी!
हर मन्दिर से इसी तरह की झूठी कहानियाँ जोड़ दी जाती है, ताकि उस मन्दिर का महत्व बढ़ जाये और वहाँ चढ़ावे मे कमी ना आये!
बस ऐसे ही हिन्दूधर्म भी है, पंडे-पुरोहित हिन्दूधर्म को अतिप्राचीन बताते हैं, पर कई बार ऐसा लगता है कि हिन्दूधर्म बौद्धधर्म के बाद खड़ा किया गया! ऐसे ही यह भी प्रतीत होता है कि राम भी बुद्ध के बाद के हैं!
इसका एक उदाहरण बाल्मीकि रामायण मे भी मिलता है।
बाल्मीकि रामायण (गीताप्रेस) अयोध्याकाण्ड सर्ग-109 पृष्ठ-359 पर श्रीराम अपने ही एक हितैषी 'जाबालि' से कहते है कि -"जैसे चोर दण्डनीय होता है, उसी प्रकार वेदविरोधी बुद्ध (बौद्धधर्म को मानने वाला) भी दण्डनीय है!"
यहाँ रामजी ने बौद्धो को दण्ड देने की बात की है! अर्थात राम के समय मे बौद्ध थे, तो यह स्पष्ट है कि राम का अस्तित्व बुद्ध के बाद खड़ा किया गया!
इसी श्लोक मे राम नास्तिकों को भी दण्ड देने की बात करते है और कहते है -"नास्तिकों (चार्वाकी) को भी इसी प्रकार दण्ड देना चाहिये, इसलिये राजा को चाहिये कि नास्तिक को भी चोर की भाति दण्ड दें"
रामायण का यह प्रसंग एक और सवाल खड़ा करता है कि राम क्या वाकई अयोध्या मे ही पैदा हुये, या राम का चरित्र कहीं बाहर (विदेश) से आयात किया गया!
क्योकि बुद्ध के बाद कोई भी इतिहासकार अयोध्या मे राम के जन्म की बात स्वीकार नही करेगा!
दूसरी बात राम को नास्तिकों से भी घृणा थी, अर्थात राम के समय मे नास्तिक थे!
इसमे जरा भी संदेह नही है कि तथागत बुद्ध एक आध्यात्मिक गुरू थे, और भारतीयों पर उनका गहरा प्रभाव था! कहीं ऐसा तो नही कि उनके प्रभाव को कम करने के लिये राम नाम का एक फर्जी पात्र पंडो द्वारा खड़ा किया गया।
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अगर राम का नाम लिख देने से पत्थर पानी मे तैर रहे थे तो फिर वानरो और भालुओं पर भी राम-राम लिखकर समुद्र मे उतार देना चाहिये था! यदि राम नाम के प्रभाव से पत्थर नही डूबे तो फिर वे भी न डूबते और ऐसे ही समुद्र पार कर लेते तथा पुल बांधने की जरूरत भी न पड़ती।
अगर नल और नील जिस चीज को छूकर पानी मे फेंक देते थे वो डूबती नही थी, तो फिर वानरों और भालुओं को भी नल-नील छूकर समुद्र मे फेंक देते और वो भी बिना डूबे समुद्र पार कर लेते।
सोचो.. यदि राम के पास ऐसे दो-दो विकल्प थे तो उन्हे क्या जरूरत थी पुल बनाने की?
पहली बात जो लोग समझते हैं कि राम-राम लिखने से पत्थर पानी मे नही डूबे थे, तो यह केवल किदवंती मात्र है!
इस बात के कहीं भी कोई प्रमाण नही है, यह गंजेड़ी-भंगेड़ी बाबाओं द्वारा बनायी गयी गप्प है जो अब बहुत प्रचलित हो गयी है।
दूसरी बात नल-नील के छूने वाली है, जो तुलसीदास की दिमागी उपज है! बाबा तुलसी ने रामचरित मानस सुन्दरकाण्ड-59 मे लिखा है-
"नाथ नील नल द्वौ भाई।
लरिकाई रिषि आसिष पाई।।
तिन्ह के परस किएँ गिरि भारे।
तरिहहिं जलधि प्रताप तुम्हारे।।"
अर्थात- समुद्र राम से कहता है कि हे नाथ! आपकी सेना मे नल और नील दो भाई है, जिन्हे लड़कपन मे क्रोध मे आकर एक ऋषि ने आशिर्वाद दिया था कि उनके स्पर्श से भारी पहाड़ भी जल मे डूबेंगे नही।
बस तुलसीदास की यह काल्पनिक बात इतनी प्रचारित हुई कि लोगो ने सोचा भी नही कि क्या यह सम्भव है?
क्या ऐसा हो सकता है कि कोई ठोस वस्तु पानी मे डालो और वह डूबे नही?
असल मे तुलसीदास जबरन राम को भगवान और चमत्कारी पुरुष बनाने पर उतारू थे, और यह सब उसी कड़ी का एक हिस्सा था। लेकिन सच मे ऐसा कुछ भी नही हुआ था..
वाल्मीकि ने रामायण युद्धकाण्ड सर्ग-22 श्लोक-45-70 मे साफ लिखा है कि न तो कोई पत्थर तैरा और न ही किसी पत्थर पर राम का नाम लिखा गया।
वाल्मीकि लिखते है कि समुद्र ने राम से कहा कि सौम्य! आपकी सेना मे जो नल नामक वानर है, वह विश्वकर्मा का औरसपुत्र है और शिल्पकर्म मे अपने पिता जैसा ही निपुड़ है!
यहाँ यह समझना चाहिये कि नल को एक इंजीनियर जैसा बताया जा रहा था, जिनके पास शिल्पकर्म की योग्यता थी।
फिर राम ने नल से पुल बांधने के बारे मे पूँछा कि क्या यह सम्भव है?
नल ने कहा कि प्रभु मै समुद्र पर पुल बांधने मे समर्थ हूँ, अतः सब वानर आज ही कार्य प्रारम्भ कर दे।
अब जरा श्लोक-55-57 ध्यान से पढ़े! यहाँ लिखा है कि वानर बड़े-बड़े पत्थरों और वृक्षों को उखाड़कर समुद्र मे डाल रहे थे। वे साल, अश्वकर्ण, धव, बाँस, कुटज, अर्जुन, ताल, तिलक, तिनिश, बेल, छितवन, कनेर, आम और अशोक आदि वृक्षों से समुद्र पाटने लगे।
इन तीनों श्लोकों मे साफ दर्शाया गया है कि पत्थरों और विभिन्न प्रकार के पेड़ों से वानर समुद्र पाट रहे थे!
वैसे हमे यह भी ज्ञात रहना चाहिये कि ये कोई आज की नही बल्कि साढ़े सात हजार साल पुरानी घटना है! तब से लेकर अब तक दुनिया की भौगोलिक स्थिति बहुत बदली है।
सम्भवतः उस समय समुद्र इतना गहरा न रहा होगा, क्योंकि वैज्ञानिक भी मानते हैं कि समुद्र का जलस्तर पहले की अपेक्षा ऊपर हुआ है, और अभी भी लगातार बढ़ रहा है! शायद उसी का परिणाम है कि द्वारिका जैसे नगर समुद्र मे डूब गये, और जिसके अवशेष अभी भी समुद्र मे हैं।
वाल्मीकि आगे लिखते है कि कुछ वानर सूत पकड़े थे तो कुछ नापने के लिये दण्ड पकड़े थे तथा वे काष्ठों द्वारा भिन्न-भिन्न स्थानों पर पुल बांध रहे थे।
वे वानर दानवों की तरह पहाड़ उठाकर समुद्र मे फेंक रहे थे और इसी तरह उन्होने पहले दिन चौदह योजन, दूसरे दिन बीस योजन, तीसरे दिन इक्कीस योजन, चौथे दिन बाइस योजन तथा पांचवे दिन तेइस योजन पुल बनाया! इस तरह सारे वानरों ने मिलकर पाँच दिनों मे सौ योजन लकड़ी और पत्थर का पुल बनाया। लेकिन पूरे रामायण मे वाल्मीकि ने यह कहीं नही लिखा है कि पत्थर तैर रहे थे, या वानरों ने पत्थर पर राम का नाम लिखा।
ये सब झूठी और अप्रमाणिक बातें हैं, जो केवल राम का महिमा-मण्डन करने के लिये गढ़ी गयी।
सच यही है कि राम कोई ईश्वर नही थे, वह भी सामान्य मनुष्यों जैसे ही एक मानव थे।
हाँ.. जो लोग अभी भी तुलसीदास को बुद्धिमान समझते हैं, मै उन्हे तुलसीदास से भी बड़ा मूर्ख मानती हूँ।
महापंडित राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखी पुस्तक वोल्गा से गंगा तक पेज 161 और 162 के अनुसार पुष्यमित्र शुंग ही राम है l
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राम ने बामन जाति को धन दान करके वनवास जाने का फैसला किया,
राम ने लक्ष्मण से कहा, मैं चाहता हूं कि ब्राह्मणों के पास मेरे पास मौजूद धन को साझा करें, वशिष्ठ और अन्य ब्राह्मणों के ब्राह्मण बच्चों को बुलाओ, मैं धन और सम्मान वितरित करके जंगल में जाऊंगा (अयोध्या कांड 31, श्लोक 35,36,37)
राम ने लक्ष्मण से ब्राह्मणों को रत्न, माणिक, हजारों गाय, सोने के सिक्के दान करने के लिए कहा।
यजुर्वेदी ब्राह्मणों से सवारी, दास, नौकरानी, रेशमी वस्त्र दान करने के लिए कहते हैं, और कहते हैं कि जब तक ब्राह्मण देवता संतुष्ट नहीं हो जाते तब तक सभी धन को राजकोष से हटा दें।
अगले राम गर्ग ने गोत्री ब्राह्मणों को हजारों गायों का दान दिया, और पूछा कि तुम और क्या चाहते हो, मेरा सारा धन ब्राह्मणों का है, ब्राह्मणों को दान देने से मेरी सफलता बढ़ती है। (अयोध्या कांड 32, श्लोक 13,14,15,16,36,41,42)
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