Tuesday, 18 August 2020

गणपति, वराह का जन्म।

गणपति विज्ञान विरोधी चरित्र है।

गणपति एक प्रसिद्ध देवता हैं, लेकिन चार पुराणों में उनके बारे में चार अलग-अलग काल्पनिक कहानियां हैं। 


शिवपुराण
ऐसा कहा जाता है कि पार्वती ने अपने क्षेत्र के एक जागरूक व्यक्ति को स्नान के लिए एक द्वारपाल के रूप में गुफा के द्वार पर खड़ा कर दिया। थोड़ी देर बाद शंकर वहाँ आया लेकिन दरवाजे में खड़े लड़के ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। इससे शंकर और गणपति के बीच भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें शंकर ने गणपति का सिर उड़ा दिया। जब पार्वती को इस घटना के बारे में पता चला, तो उन्होंने पूरी सृष्टि को नष्ट करने का फैसला किया। पार्वती को प्रसन्न करने के लिए, भगवान शिव ने शिशु हाथी का सिर गणपति से जोड़ा। इस प्रकार गणपति का वर्तमान स्वरूप सभी के सामने आया।
(शिव पुराण, रुद्रसंहिता, चतुर्थ, अध्याय ३)

 


वराहपुराण
ब्रह्मा सहित सभी देवता एक विषय पर सलाह के लिए शंकर के पास आए। किसी कारण से, शंकर देवताओं पर हँसे, और उनकी हँसी ने एक बच्चे को जन्म दिया। बच्चा इतना सुंदर था कि पार्वती बच्चे पर मोहित हो गई और अकेले में उसे देखने लगी। पार्वती के इस व्यवहार को देखकर शंकर क्रोधित हो गए और उन्होंने बालक को शाप दिया कि तुम्हारा चेहरा हाथी के समान होगा। यह भगवान शिव का श्राप था जिसने बच्चे को क्रोधित कर दिया था।
(वराहपुराण, अध्याय 23)


ब्रह्मवैवर्तपुराण
शनिदेव को उनकी पत्नी ने उनके साथ यौन संबंध बनाने के लिए कहा था।  अपनी इच्छा पूरी न करने के कारण, पत्नी ने शनिदेव को शाप दिया कि जो भी उसकी आँखों पर पड़ेगा, वह जल जाएगा। इस श्राप के कारण, एक बार भगवान गणेश की नजर गणपति पर पड़ी, उनका सिर टूट गया और गोलोक (कृष्ण धाम) में गिर गया। यह देखकर पार्वती रोने लगीं। फिर विष्णु एक चील पर बैठ गए और एक जंगल में गए जहां सुदर्शन चक्र ने एक हाथी का सिर उड़ा दिया और गणपति पर सिर रख दिया।
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, गणपति खण्ड / 12)


पद्मपुराण
पार्वती ने अपने शरीर पर उबटन से एक व्यक्ति का चित्र बनाया और एक हाथी के समान चेहरा बनाया। पार्वती उन्हें अपना पुत्र मानती थीं। यही पुत्र आगे चलकर गणपति बना।
(पद्मपुराण, सृष्टिखंड, अध्याय ३४)


पुत्र को कीचड़ से बाहर करना, पुत्र को उबटन से बनाना, पुत्र को हँसी से बाहर निकालना, दही से सिर फोड़ना आदि। उपरोक्त सभी कहानियाँ विज्ञान विरोधी और अंधविश्वासी हैं।

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शिव पुराण से यह सिद्ध होता है कि पार्वती ने अपने शरीर के मैल से गणपति की रचना की थी।


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शिव जी को पता नहीं पता था की गणेश जी उनके पुत्र हैं और बगैर जाने गणेश जी के सर को भस्म कर दिया।
(देवी पुराण अध्याय 35 श्लोक 19,20 )



बताओ भगवान को ही ज्ञान नहीं है।

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गणेश।

महाभारत को आश्वमेधिक पर्व ,अध्याय 92 में स्पष्टतः कहा गया है कि यज्ञ वेद के आधीन हैं ,देवता यज्ञ के आधीन हैं ,यज्ञ ब्राह्मण के आधीन हैं ,इसीलिए ब्राह्मण ही देवता हैं-
वेदाधीनाः सदा यज्ञाः यज्ञाधीनास्तु देवताः देवताः ब्राह्मणाधीनास्तमास्त विप्रस्तु देवताः । ।

महाभारत के बारे में कहा जाता है कि इसके लेखक गणेश हैं और इसे बोलकर लिखवाने वाले व्यास जी हैं, कौन हैं ये गणेश ? ये किसके पुत्र हैं ,कहां के रहने वाले हैं तथा इन्हें इतना महत्त्व क्यों दिया गया है ? " गणेश और उनकी उपासना ने श्रोत वाङ्मय में बहुत पीछे स्थान पाया,संहिताओं में उनका कहीं उल्लेख नहीं मिलता,श्रुति में 33 देवों की बारंबार चर्चा होती है ,किंतु इनमें स्पष्टतया गणेश नहीं हैं,किसी भी वैदिक देव सूची में गणेश का किसी भी नाम से अंतर्भाव नहीं होता,जिन स्थलों में ' गणपति ' शब्द के आने से गणेश का बोध हो सकता था,वहां हम देखते हैं कि गणेश का अर्थ नहीं लिया जा सकता,प्रामाणिक ग्रंथ भी यहाँ बतलाते हैं कि यह मंत्र गणेश विषयक नहीं है,ऐतरेय ब्राह्मण जिसका संबंध ऋग्वेद से है ' गणपति ' नाम के विषय में कहता है ( 1 - 12 ) कि वह ब्राह्मणस्पति या बृहस्पति का वाचक है,वेदों में तो गणेश जी हमको नहीं मिलते, परंतु पुराणों में सर्वत्र उनकी चर्चा है, तंत्र में तो उनके ऐसे -ऐसे विग्रह देखने को मिलते हैं , जिनके सामने चकित रह जाना पड़ता है. बद्धदेव के समय ये देवसूची में थे या नहीं ,यह कहना कठिन है, परंतु गणेश का नाम कहीं नहीं लिया गया है,महावीर स्वामी ने भी गणेश का नाम नहीं लिया है, विद्यावारिधि चंद्रिकाप्रसद जिज्ञासु का भी यही कहना है कि " वेद की चारों संहिताओं में गणेश का न कहीं नाम है और न चर्चा इसी तरह प्रमुख 10 उपनिषदों में भी किसी में गणेश का नाम नहीं है गणेश के लिए एक स्वतंत्र ' गणपत्युपनिषद ' की रचना की गई है,जैसे वेदों और उपनिषों में गणेश का नाम नहीं है,उसी तरह बौद्ध त्रिपिटक में भी गणेश की चर्चा नहीं है,इससे यह बात साफ हो जाती है कि तथागत बुद्ध के समय तक गणेश जी नहीं थे,तथा पारवती से गणेश की महिमा पुराण में मिलती है ,जो बुद्ध के बहुत बाद में लिखे गए हैं,इन पुराणों में लिखा मिलता है कि शिव ने सती तथा पार्वती से विवाह किया था लेकिन " इन दोनों शादियों में शंकर जी द्वारा सती तथा पार्वती के गर्भ से कोई भी संतान उत्पन्न न हो सकी पार्वती को संतान न होने का भारी दु:ख रहता था,उन्होंने अनेक प्रकार के उपाय संतान प्राप्ति के लिए किए ,बड़े -बड़े घोर तप भी किए ,पर सब निष्फल रहे,यह सब होते हुए भी शिव के चार साक्षात पुत्र माने जाते हैं " इन्हीं में से एक गणेश हैं ,जो पार्वती के मैल का पुतला बना कर उसे द्वार रक्षक का काम सौंपा गया था,शिव ने अपने त्रिशूल से उसका गला काट दिया,पार्वती को जब पता चला, तो वह बड़ी दु:खी हुई,उनके दुःख को दूर करने के लिए एकदंत हाथी का सिर काट कर उसे मैल के पुतले के सिर पर रख मंत्र से जोड़ दिया ,जो सूंड वाला गणेश कहलाया.

यह कहानी केवल हिंदुओं तथा अन्यों को बेवकूफ बनाने के लिए है,जब मंत्रों से हाथी का लगा  सिर मेल का पुतला जीवित हो सकता था ,तो वही कटा सिर लगाकर क्यों नहीं जीवित किया ? " पुराणों या गणेश पुराण में गणेश के संबंध में जो विवरण मिलता है ,वह 90 प्रतिशत औपन्यासिक है,उसमें कहीं लिखा है ,गणेशजी की उत्पत्ति पार्वती के देह के मैल से हुई ; कहीं लिखा महादेव पार्वती ने बहुत काल तक पुत्र के लिए श्रीकृष्ण का व्रत किया और कृष्ण के वरदान से गणेश की उत्पत्ति हुई ; कहीं लिखा है कि मालिनी राक्षसी पार्वती की देह से उबटन खाकर गर्भवती हो गई थी और उसके गर्भ से गणेश की उत्पत्ति हुई और जन्म के समय गणेश की पांच सूड़े थीं ,जिनमें चार काट दी गई : कहीं लिखा है कि जन्म के समय गणेश जी मानवाकृति के सुंदर बालक थे, परंतु शनि देवता की दृष्टि पड़ते ही उनका सिर उड़ गया ,तब हाथी का सिर काट कर जोड़ दिया गया ; कहीं लिखा है कि शिव पार्वती कामातुर हो हाथी और हथिनी का रूप धरकर वन में विहार करने लगे ,इसी के फल से हाथी सूंड वाले मुँह का बच्चा पैदा हुआ हुआ ,दरअसल गणेश के उत्पत्ति ये सभी कहानियां परस्पर विरोधी तथा अस्वाभाविक हैं-क्रमशः

गीता विवेचन-पृष्ठ-178.
विश्वधर्म दर्शन-पृष्ठ-242.
शिव तत्व प्रकाश-पृष्ठ-77.
शिवजी के चार विलक्षण बेटे-पृष्ठ-2.
शिव तत्व प्रकाश-पृष्ठ-78.
भारत की गुलामी में गीता की
भूमिका - पृष्ठ-25-26-27.


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भागवत पुराण के अनुसार, ब्रह्मा की नाक से वराह अर्थात सुवर का जन्म हुआ था।
 

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गणेश जी को आमतौर पर #तार्किक लोग #काल्पनिक ही मानते हैं, ऊपर से #पुराणों मे गणेश के बारे मे जितनी कथाऐं लिखी हैं, वे इस बात की और भी पुष्टि कर देती हैं कि गणेश एक #काल्पनिक चित्रण के अलावा और कुछ नही हैं!

मैने पहले भी गणेश के बारे मे पोस्ट किया था! अब मैने लगभग चार #पुराणों मे #गणेश को लेकर अलग-अलग कथाऐं पढ़ी हैं।

सबसे पहली कथा #शिवपुराण रुद्रसंहिता चतुर्थखण्ड अध्याय-3 मे लिखी है। कथानुसार एक बार जब पार्वती स्नान कर रही थी तो उन्होने एक पुत्र की #कामना करके अपने शरीर के मैल से एक चेतन पुरुष का निर्माण किया और उसे अपनी #पहरेदारी के लिये गुफा के मुहाने पर खड़ा कर दिया।
थोड़े समय बाद जब शिवजी कहीं से घूमकर वापस आये और गुफा मे जाने लगे तो दरवाजे पर खड़े बालक ने उन्हे रोक दिया।
इसके बाद शिव और गणेश मे भयंकर युद्ध हुआ, तथा #क्रोध मे आकर शिव ने #गणेश का सिर काट दिया।
जब पार्वती को अपने पुत्र के सिर कटने की घटना पता चली तो उन्होने क्रोध मे आकर सृष्टि के विनाश करने का निर्णय लिया, और फिर पार्वती को शान्त करने के लिये शिवजी ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया। और इस तरह से गणेश का वर्तमान-रूप सामने आया। (चित्र-1-5)

गणेश से जुड़ी दूसरी कथा #वराहपुराण अध्याय-23 मे आती है--
एक बार ब्रह्मा समेत समस्त देवता किसी विषय पर सलाह लेने के लिये शिव के पास आये! उन देवताओं की किसी बात पर शिव को हंसी आ गयी और उनकी हंसी से एक मनोहर बालक का जन्म हो गया! वह बालक इतना सुन्दर था कि उस बालक की #सुन्दरता देखकर पार्वती उस पर #मोहित हो गयी, और एकटक उसे निहारने लगी!
शिव को लगा कि मुझसे ही जन्मा बालक इतना आकर्षक है कि मेरी पत्नि उस पर #मोहित हो गयी है! शिव ने सोचा "स्त्री स्वाभाव चंचल होता ही है, और मेरी पत्नि भी लोकलाज त्याग कर इस पर मुग्ध हो गयी है"
बस... शिव को बड़ा क्रोध आया और उन्होने उस बालक को श्राप दिया कि- "हे कुमार! तुम्हारा मुख हाथी के मुख जैसा हो जाये और पेट भी लम्बा हो जाये"
शिव के श्राप से बालक गजमुख हो गया, और बाद मे यही बालक गणेश हुये। (चित्र-6-8)

गणेश से जुड़ी तीसरी कथा #ब्रह्मवैवर्तपुराण गणपतिखण्ड-12 मे आती है, जो निम्न है-
एक बार शनिदेव की पत्नि ने उन्हे अपने साथ सहवास करने के लिये कहा, पर शनिदेव ने उसकी इच्छापूर्ति न की, अतःउनकी पत्नि ने उन्हे श्राप दिया कि "आज के बाद तुम जिसकी तरफ भी देखोगे, वह जलकर भस्म हो जायेगा"
इसी श्राप के दुःख से द्रवित होकर #शनिदेव_कैलास पर आये! कैलास पर पार्वती अपने पुत्र गणेश को गोद मे लेकर लाड-प्यार कर रही थी! पार्वती ने जब शनिदेव को उदास देखा तो उनसे उदासी का कारण पूँछा।
#शनिदेव ने सारी कथा पार्वती को बता दी और कहा कि हे माते! इसी श्राप के कारण मुझे अन्य देवता अक्सर बहुत चिढ़ाते हैं कि तुम्हारी नजर जहाँ पड़ती है, वहाँ सब अमंगल ही होता है!
पार्वती ने #शनिदेव का विषाद सुना और उनसे कहा कि ऐसा कुछ नही होगा, हे शनैश्चर! आप मेरी (पार्वती) और मेरे पुत्र गणेश की तरफ देखो!
पार्वती के कहने पर #शनिदेव ने जैसे ही गणेश को देखा, उनकी तीक्ष्ण नजरों से गणेश का सिर कटकर गोलोक (कृष्ण का धाम) मे जा गिरा, और धड़ #लहुलुहान होकर वहीं तड़पने लगा!
यह देखकर पार्वती सीना पीटकर रोने लगी।

तब #विष्णु ने सोचा कि कहीं कुछ अनहोनी न हो जाये अतः वे गरुण पर सवार होकर एक वन मे गये और आनन-फानन मे एक हथिनी के बच्चे का सिर सुदर्शन से काट लाये तथा उसी सिर को गणेश के धड़ से जोड़ दिया, और उन्हे जीवित कर दिया। (चित्र-9-11)

गणेश की चौथी कथा #पद्मपुराण सृष्टिखण्ड अध्याय-34 मे लिखी है! इस कथा के अनुसार एक बार पार्वती ने अपने शरीर मे लगे #उबटन से एक पुरुष की आकृति बनायी और उसका मुँह हाथी के मुख के समान ही बनाया। बाद मे #पार्वती ने इस बालक को पुत्र कहकर पुकारा, और यही बालक आगे चलकर सब देवों के पूज्य गणेश हुये। (चित्र-12-13)

अब मैने आप लोगों को गणेश से सम्बन्धित चार #पुराणों से चार अलग-अलग कथाऐं बतायी!
#शिवपुराण जहाँ कहता हैं कि शिव ने बालक का सिर काटकर उसे हाथी का सिर चिपका दिया तो वाराहपुराण कहता है कि शिव ने सिर काटा नही बल्कि श्राप देकर गजमुख कर दिया।
#ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार शनिदेव के दृष्टिपात से सिर कट गया और विष्णु ने हाथी का सिर जोड़ दिया, और सबसे अधिक गजब तो #पद्मपुराण ने किया! इस पुराण ने तो बताया कि पार्वती ने हाथी के मुख जैसा ही पुत्र बनाया था।

इन कथाओं का निष्कर्ष यही निकलता है कि गणेश सचमुच #पौराणिकों की कल्पना है, और विज्ञान के दौर मे ऐसी बेडौल कल्पना को पूजना किसी बेवकूफी से कम नही है।

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