Friday, 27 November 2020

भविष्यपुराण, तैमूरलंग, अकबर, बुद्ध

जब भी मै यह लिखता हूँ कि पुराणों मे लिखी बातें सवर्था झूठ हैं जिनका सत्य से कोई लेना देना नही है, तब हमारे पौराणिक भाई आकर कहते हैं कि-
"पुराणों मे लिखा समझना तुम्हारे दिमाग के बाहर है।
 पुराण अलंकृत तरीके से लिखे गये है।
 पुराण पढ़ने के लिये एक योग्यता चाहिये, और वह योग्यता तुम्हारे पास नही है"
बस ऐसे ही अनर्गल तर्क देकर पौराणिक लोग पुराणों का बचाव करते हैं, पर मै आज एक ऐसी बात लिख रहा हूँ जिस पर यही लोग अपनी योग्यता दिखाऐं और मुझे सत्य समझाऐं....

भविष्यपुराण (गीताप्रेस कोड-584) प्रतिसर्गपर्व चतुर्थखण्ड (पृष्ठ-343) पर तैमूरलंग द्वारा भारत पर आक्रमण की कथा लिखी है।
यहाँ लिखा है कि तैमूरलंग ने भारत पर आक्रमण करके यहाँ के देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तोड़ डाली, और पुजारियों से कहा कि तुम लोग मूर्तिपूजक हो, तुम लोग शालग्राम को विष्णु (भगवान) मानते हो जबकि यह एक पत्थर है। ऐसा कहकर वह शालग्राम की तमाम मूर्तियाँ ऊँट पर लदवाकर अपने देश तातार (उजबेकिस्तान के पास का क्षेत्र) लेकर चला गया और वहाँ उसने उन मूर्तियों का सिंहासन बनवाया तथा उस पर बैठने लगा!
शालग्राम की ऐसी दुर्दशा देखकर तमाम देवता दुःखी होकर इन्द्र के पास गये और बोले कि हे देवराज! अब आप ही कुछ करो। फिर क्रोध मे आकर इन्द्र ने अपना वज्र तातार देश की ओर खीचकर मारा! वज्र के प्रहार से तैमूरलंग का राज्य टुकड़े-टुकड़े हो गया और तैमूरलंग अपने सभी सभासदों समेत मृत्यु को प्राप्त हो गया।

मतलब यह पुराण कह रहा है कि तैमूरलंग का वध इन्द्र ने किया था।
अब जरा यह सोचो कि यदि इन्द्र इतने बड़े लठैत थे, तो जब बाबर के कहने पर मीरबाकी राममन्दिर तोड़ रहा था तब वे क्या कर रहे थे?

इस कथा से यह स्पष्ट होता होता है कि पुराणों मे कितना झूठ लिखा है! वास्तव मे जैसे इन्द्र ने तैमूरलंग को मारा, वैसे ही दुर्गा ने महिषासुर को मारा होगा और वैसे ही विष्णु ने भी तमाम राक्षसों को मारा होगा!
अब चूँकि तैमूरलंग नाम का पात्र इतिहास मे था, अतः कुछ दशकों बाद पंडों-पुरोहितों को यह प्रचार करने मे अधिक तकलीफ नही होगी कि तैमूर को इन्द्र ने ही मारा था!
हाँ... हो सकता है कि इसमे समय लगे, पर कभी न कभी इसका प्रचार जरूर शुरू होगा।

वास्तव मे पुराणों मे जितने पात्रों का वर्णन है, वे पात्र तो रहे होंगे, पर उनसे जुड़ी कथाऐं इन्द्र और तैमूरलंग की कथा जितनी ही सच होगी।

अब जो लोग मुझे कहते हैं कि पुराणों मे अलंकरण है, उसे समझना आसान नही! वे लोग जरा इस कथा को आसान करके मुझे समझा दें।


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अकबर और बीरबल की कहानियाँ तो सभी ने सुनी होगी, पर कम ही लोग जानते हैं कि अकबर पूर्वजन्म का कौन था?

               जिस तरह पुराणों मे राम और कृष्ण का बखान किया गया है और उनके पूर्वजन्म के बारे मे लिखा गया है, उसी तरह अकबर की भी प्रशंसा की गयी है तथा उसके पूर्वजन्म के बारे मे भी लिखा है।
       
               संक्षिप्स भविष्यपुराण (गीताप्रेस, गोरखपुर) के प्रतिसर्गपर्व के चतुर्थखण्ड (पृष्ठ-373-374, चित्र-1-3) की एक कथा मे लिखा है कि अकबर पूर्वजन्म का ब्राह्मण था और वो भी शंकराचार्य के गोत्र का, पर एक भूल के कारण वह इस जन्म मे म्लेच्छ (मुसलमान) बनकर पैदा हुआ! पर पूर्वजन्म का ब्राह्मण होने की वजह से उनके कर्म महान ही रहे...
           कथानुसार, प्रयाग (इलाहाबाद) मे एक मुकुन्द नामक ब्राह्मण अपने बीस शिष्यों के साथ तप करता था, पर जब उसे पता चला कि म्लेच्छ बाबर ने भारत मे आकर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ नष्ट कर दी, तो उसने दुःखी होकर अपने सभी शिष्यों के साथ आत्मदाह कर लिया, और यही मुकुन्द ब्राह्मण अगले जन्म मे अकबर बनकर पैदा हुआ।
                   
                     एक तपस्वी ब्राह्मण म्लेच्छ-योनि मे कैसे पैदा हुआ, इसके पीछे भी एक कथा है?
         एक बार जब मुकुन्द ब्राह्मण गाय का दूध पी रहा था तो उसने अज्ञानता-वश दूध के साथ गाय का रोम (बाल) भी पी लिया था, इसी दोष के कारण वह अगले जन्म मे म्लेच्छ बनकर पैदा हुआ। और इसी मुकुन्द ब्राह्मण के बीस चेले अगले जन्म मे बीरबल और तानसेन वगैरह बनकर उसकी सहायता के लिये जन्मे थे।

                         अब इस कथा मे यह भी बताया गया है कि मुकुन्द ब्राह्मण का नाम इस जन्म मे अकबर क्यों पड़ा?
         असल मे जब अकबर का जन्म हुआ तो हुमायूँ को एक भविष्यवाणी हुई कि "तुम्हारा पुत्र बड़ा प्रतापी और भाग्यशाली होगा, यह अक् (अकस्मात) वर (वरदान) की प्राप्ति के साथ पैदा हुआ है, इसीलिये इसका नाम 'अकबर' होगा।

                    खैर, यह तो सम्पूर्ण कथा थी, पर अब इस पौराणिक कथा के पीछे छुपे ब्राह्मणी पाखण्ड और झूठ को समझते हैं!

        ------ पहली बात तो अकबर के नामकरण की जो बात इस पुराण मे लिखी है, तो शायद डपोरशंख पंडों को पता नही होगा कि अकबर का असली नाम "जलालुद्दीन" था! अकबर तो अरबी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है "महान"
         बादशाह अकबर उदार-हृदय का था, और इसीलिये उसे अकबर कहा जाता था।

             ------ दूसरी बात इसमे लिखा है कि हुमायूँ को आकाशवाणी हुई थी, तो विचार करो कि यह कितनी झूठी बात है?
       अबुल फजल ने भी "अकबरनामा" लिखी है, जो अकबर की ही जीवनी है, पर इसमे आकाशवाणी जैसा तो कोई उल्लेख नही है। इससे पता चलता है कि पौराणिक ब्राह्मण झूठ की झड़ी थे!  आप इसी से समझ लो कि इसी तरह से ही इन्होने कंस को कृष्ण के पैदा होने की भी आकाशवाणी करवाई होगी, जैसे यहाँ अकबर के जन्म पर करवा दी।

              ------ तीसरी बात, कहते हैं कि गाय के रोम-रोम मे देवताओं का वास होता है, फिर भूलवश गाय का एक रोम पी जाना कैसे दोष हो गया?
ऐसे तो फिर बहुत सारे लोग म्लेच्छ बनकर पैदा होने वाले हैं, और फिर यदि गाय का रोम भक्षण करने से अगले जन्म मे गाय-भक्षण करने वाला बनकर पैदा होना है तो गाय पालने का क्या फायदा?

            ------ चौथी बात, जब मुकुन्द ब्राह्मण ने बाबर के उपद्रव की वजह से आत्मदाह किया था तो अगले जन्म मे उसी बाबर के कुल मे पैदा होना जरा अजीब लग रहा है! और यदि गाय के रोम-भक्षण की वजह से मुकुन्द ब्राह्मण मुस्लिम बना तो उसके चेले किस अपराध की वजह से अगले जन्म मे अब्दुल रहीम खान-ए-खाना, फैजी, मुल्ला दो-प्याजा और अबुल फजल आदि बनकर पैदा हुये?

            वास्तव मे पुराणों मे लिखी राम, कृष्ण, शिव, दुर्गा और विष्णु की भी कहानियाँ मुकुन्द ब्राह्मण की कहानी की तरह कोरी गप्प है। और इन देवी-देवताओं के चमत्कार की जो बातें लिखी हैं, वह भी पूर्णतः कल्पना मात्र है।
ब्राह्मणों ने बड़ी चतुराई से ऐसी ही गप्प कहानियाँ गढ़कर भोले-भाले लोगों को बेवकूफ बनाया और उनका शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण किया।

                 वैसे यह मुकुन्द ब्राह्मण की कथा बाद मे अकबर-विरोधियों के लिये काफी परेशानी खड़ी करेगी। भारत मे एक वर्ग ऐसा भी है जो अकबर को महान नही मानता तथा उसे क्रूर और कामी बताकर उसका विरोध करता है, लेकिन इस पुराण मे अकबर की प्रशंसा की गयी है। अब अकबर के समर्थक इस कथा का अचूक-अस्त्र जैसा प्रयोग कर सकते हैं, क्योंकि मूर्खतावश ब्राह्मणों ने अकबर को ऐतिहासिक के साथ-साथ पौराणिक-पात्र भी बना दिया है।




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#पंडो_की_पोल_खोलता_भविष्यपुराण

भविष्यपुराण मे जितनी पुनर्जन्म की झूठी बातें लिखी है शायद किसी और पुराण मे नही होगी....

भविष्यपुराण निश्चितरूप से तब लिखा गया जब भारत मे दूसरे धर्मो का प्रभाव बढ़ रहा था, और हिन्दूधर्म खतरे मे था!
इसका उदाहरण यह है कि जब इस्लाम भारत मे प्रभाव मे आया तो उसका असर कम करने के लिये भविष्यपुराण मे मोहम्मद साहब को "म्लेच्छ" लिख दिया गया।

इसी भविष्यपुराण (गीताप्रेस) प्रतिसर्गपर्व चतुर्थखण्ड पृष्ठ-372 पर लिखा है कि- "2700 वर्ष कलियुग बीतने के बाद बलि के द्वारा भेजा गया #मय" नामक असुर धरती पर आया, और शाक्यगुरू बनकर गौतमाचार्य नाम से दैत्यपक्ष को बढ़ाने लगा, और जो उसका शिष्य होता वह 'बौद्ध' कहा जाता!
जब दस करोड़ आर्य 'बौद्ध' हो गये तब अग्निवंशी राजाओं ने #चतुर्वेद के प्रभाव से 'बौद्धो' को हराया तथा पुनः भारत मे आर्यो का राज स्थापित किया"

इस पुराण मे "मय" असुर #गौतम_बुद्ध को कहा गया है! यह शायद उस समय की बात है जब भारत मे बौद्धधर्म चरम पर था, इसीलिये इस पुराण मे "बौद्धो" को दैत्यपक्षी कहा गया है!
यह पुराण यह भी मानता है कि एक समय भारत मे दस करोड़ बौद्ध थे!
अब सवाल यह भी है कि फिर आखिर इतने सारे "बौद्ध" आखिर कहाँ चले गये?

इस पुराण के लेखक मुगल सम्राट औरंगजेब से भी बहुत चिढ़े थे, इसीलिये उन्होने भविष्यपुराण के इसी खण्ड के पृष्ठ-376 पर औरंगजेब को #अन्धक नामक दैत्य का अवतार लिखा है!

अब सबसे बड़ा सवाल तो यह है कि विष्णुपुराण गौतम बुद्ध को विष्णु का अवतार बताता है, तो भविष्यपुराण उन्हे एक असुर का अवतार कैसे बता रहा है!
मतलब जब विष्णुपुराण लिखा गया तब परिस्थिति कुछ और थी, तब पौराणिक पंडो को लगा कि बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित करके बौद्धधर्म पर भी कब्जा कर लेंगे और बौद्धो से बुद्ध को भी छीन लेंगे....  पर जब होशियार बौद्धो के आगे उनकी ना चली और बौद्धधर्म अलग शाखा बन गया तो इन्होने द्वेषवश तथागत बुद्ध को भविष्यपुराण मे 'असुर' लिख दिया!

एक बात यह भी सोचने वाली है कि इसी प्रतिसर्गपर्व के तृतीयखण्ड के पृष्ठ-330 पर आल्हा के भाई ऊदल को श्रीकृष्ण का अंशावतार बताया गया है, जबकि इतने प्रभावशाली और समाज को नई दिशा दिखाने वाले गौतम बुद्ध को असुर का अवतार लिखा गया!

यह सच है कि पुराणों मे बहुत सारा झूठ लिखा है, पर इनका गहराई से अध्ययन किया जाये तो ये हमारे इतिहास के कई रहस्यों से पर्दा भी उठाते है, और भविष्यपुराण का प्रतिसर्गपर्व भी ऐसा ही रोचक खण्ड है!


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पौराणिक पंडे-पुरोहित हमेशा ही इस बात को लेकर असमंजस मे रहे हैं कि वे गौतम बुद्ध को स्वीकार करें या न करे?
पुराणों के अध्ययन से भी यह बात पता चलती है कि गौतम बुद्ध को लेकर पौराणिकों मे सदैव दो मत रहे हैं। कुछ पौराणिक चाहते थे कि बुद्ध को विष्णु का अवतार बनाकर हिन्दूधर्म का ही अंग घोषित कर दे, और कुछ बुद्ध से काफी चिढ़े थे तो उनके लिये अपशब्द ही बोलते थे।
वायुपुराण, विष्णुपुराण और नरसिंहपुराण ने खुले तौर पर बुद्ध को विष्णु का अवतार माना तो भविष्यपुराण ने बुद्ध को आसुरी-स्वरूप घोषित कर दिया।

भविष्यपुराण (गीताप्रेस कोड-584) प्रतिसर्गपर्व चतुर्थखण्ड (पृष्ठ सं-372) मे लिखा है कि "2700 साल कलियुग बीत जाने के बाद बलि नामक असुर के द्धारा भेजा गया 'मय' नामक असुर धरती पर आया! वह असुर शाक्यगुरू बनकर दैत्यपक्ष को बढ़ाने लगा और जो उसका शिष्य होता उसे 'बौद्ध' कहा जाता। उसने तमाम तीर्थों पर मायावी यन्त्रों को स्थापित कर दिया था, जिससे जो भी मानव उन तीर्थों पर जाता वह 'बौद्ध' हो जाता। इससे चारों तरफ बौद्ध व्याप्त हो गये और दस करोड़ आर्य बौद्ध बन गये।"

इस पुराण मे जिस "मय" असुर का वर्णन है, वह कोई और नही बल्कि गौतम बुद्ध है! इस पुराण मे बुद्ध को मानने वाले बौद्धों को "दैत्यपक्षी" कहा गया है।

भविष्यपुराण के इस कथन से यह स्पष्ट है कि पौराणिकों को बुद्ध से किस कदर चिढ़ थी कि उन्हे दैत्य ही घोषित कर दिया। जबकि इसके पूर्व के पुराणों ने बुद्ध को विष्णु का अवतार माना है।

नरसिंहपुराण अध्याय-36 श्लोक-9 मे लिखा है-
"कलौ प्राप्ते यथा बुद्धो भवेन्नारायणः प्रभुः"
अर्थात- कलियुग प्राप्त होने पर भगवान नारायण बुद्ध का रूप धारण करेंगे।

इसी नरसिंहपुराण मे एक अन्य स्थान पर बुद्ध को राम का ही वंशज तथा सूर्यवंशी भी बताया गया है। इस पुराण के 21वें अध्याय मे लिखा है कि राम के पुत्र लव, लव के पुत्र पद्म, पद्म के पुत्र अनुपर्ण, अनुपर्ण के पुत्र वस्त्रपाणि, वस्त्रपाणि के पुत्र शुद्धोधन और शुद्धोधन के पुत्र गौतम बुद्ध हुये।
अर्थात राम की छठवीं पीठी मे बुद्ध पैदा हुये थे।

वैसे अगर इसे पूर्ण सच मान लिया जाये तो फिर राम का समय आज से लगभग तीन हजार साल के आसपास का ही होता है! यदि बुद्ध अब से ढ़ाई हजार साल पहले थे तो उनके छः पूर्वज अधिकतम छः सौ साल और पूर्व होगे, जो लगभग ईसा से 1100 सौ वर्ष पूर्व का हो सकता है!
अब यह गणना इतनी कम है, अतः सनातनी इसे मानने से तुरन्त इनकार कर देंगे।
यहाँ मै आपको एक बात और बता दूँ कि नरसिंहपुराण हिन्दूधर्म के 18 पुराणों मे नही आता। यह एक उपपुराण है, अतः अधिकांश लोग यही मानते हैं की इसमे मिलावट नही है।

अब सोचना यह है कि यदि इतने पुराणों मे बुद्ध को विष्णु का अवतार कहा गया है तो सबसे अन्त मे लिखे गये भविष्यपुराण मे उन्हे असुर क्यों कहा गया?

इसी भविष्यपुराण प्रतिसर्गपर्व के तृतीयखण्ड मे आल्हा के भाई ऊदल को कृष्ण का अवतार कहता है, पर इतने बड़े समाज-सुधारक तथागत बुद्ध को असुर बताता है।


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मूत्र द्वार।

तेरे मुत्र द्वार को में खोल देता हूं जैसे झिल का पानी बन्ध को खोल देता है । तेरे मूत्र मार्ग को खोल दिया गया है जैसे जल से भरे समुद्र का मार...