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महाभारत में कृष्ण की 16,000 रानियाँ
कृष्ण की 16,000 रानियों का उल्लेख न केवल पुराणों में बल्कि महाभारत में भी मिलता है।
भगवान कृष्ण ने शिव-पार्वती से वरदान मांगे। जिस पर उन्हीने कहा...
तुम्हे सोलह हजार रानीया होगी, उनका तुम्हारे प्रती प्रेम रहेगा, तुम्हे अक्षय धनधान्य कि प्राप्ती होगी बंधु-बांधवो कि ओर से तुम्हे प्रसन्नता होगी,
मै तुम्हारे इस शरीर को सदा कामनीय बने रहने का वर देती हूँ!
(महाभारत, अनुशासनपर्व 15, श्लोक 7/8, हिंदी अनुवाद रामनारायणदत्त शास्त्री, पृष्ठ 5507)
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कृष्ण ने हाथ से पकडकर राधा को बगल मे ले लिया. उसके कपडे ढीले कर दिये और चतुर्विध चुंबन किया (श्लोक 148).
चुमने से होठों का रंग तथा लिपटने से पत्रावली नष्ट हो गयी (श्लोक 149).
नये समागम से राधा रोमांचित हो गयी (श्लोक 151).
कामशास्त्र को जानने वाले श्रीकृष्ण ने 8 प्रकार से भोग किया (152).
कामयुद्ध कि समाप्ती पर तिरछी नजर वाली राधा मुस्कराने लगी(श्लोक 159).
वह राधा रात को हमेशा कृष्ण से भोग करती रही (श्लोक 178).
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, श्रीकृष्ण जन्मखंड,अध्याय 15)
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"ऋग्वेद" के मण्डल-01 के सूक्त-101,130 व मण्डल-08 के सूक्त-96 के 13,14,15,17 वें मंत्र-गायत्री परिवार की पुस्तक में जबकि यही विश्व बुक्स में 8 वे मंडल के 85 वें सूक्त का 13,14,15,17 वां मंत्र में वर्णित है कि "कृष्ण नामक असुर की गर्भवती स्त्रियों को इंद्र ने मारा, कृष्ण नामक असुर की काली खाल उतारकर उसे अंशुमती (यमुना) नदी के किनारे मारा व भस्म कर दिया। शीघ्र गति वाले व दस हजार सेनाओं को साथ लेकर चलने वाले कृष्ण नामक असुर व उसकी वधकारिणी सेनाओं को इंद्र ने अपनी बुद्धि से ढूंढकर मानव हित हेतु नाश कर डाला। अंशुमती नदी के किनारे गुफा में घूमने वाले कृष्ण असुर जो दीप्तिशाली सूर्य के समान जल में स्थित है को मारने हेतु इंद्र मरुतों का आह्वान करते हैं। तेज चलने वाले कृष्ण असुर को अंशुमती नदी के किनारे जो दीप्तिशाली बनकर रहता था बृहस्पति की मदद से इंद्र ने उसकी काली व आक्रमण हेतु आ रही सेनाओं का वध किया। इंद्र ने कृष्ण असुर को नीचे की ओर मुंह करके मारा व शत्रुओं की गायें प्राप्त की।"
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#ब्रह्मवैवर्तपुराण_या_कामशास्त्र
(#केवल_वयस्क_हेतु_पोस्ट)
ब्रह्मवैवर्तपुराण ने अश्लीलता की सारी हदे पार कर दी है, ऊपर से लिखने वाले ने कहा है कि:-
"चतुर्णमपि वेदानां पाठादपि वरम् फलम" (कृष्णजन्म खण्ड अध्याय-133)
अर्थात- चारो वेद पठने से अधिक फल यह पुराण पढ़ने से होगा।
अब जरा अश्लीलता देखो-
ब्रह्मा विश्वम् विनिर्माय सावित्र्यां वर योषिति।
चकार वीर्यधानम् च कामुक्या कामुको यथा।।
सा दिव्यं शतवर्ष च घृत्वा गर्भ सुदुःसहम् ।।
सुप्रसूता च सुषुवे चतुर्वेदान्मनोहरात् ।।
(ब्रह्मखण्ड अध्याय-9/1-2)
अर्थात-ब्रह्मा ने विश्व का निर्माण कर सावित्री मे उसी प्रकार वीर्यदान किया जैसे एक कामुक पुरुष कामुक स्त्री से करता है, तब सावित्री ने दिव्य सौ वर्षो के बाद चारो वेदों को जन्म दिया!
अब जरा विचार करो कि इस पुराण ने वेद भी सावित्री के गर्भ से पैदा किया है! खैर ये तो ब्रह्मा की इज्जत उतारी गयी, अब जरा विष्णु को भी देखो लो........
प्रकृतिखण्ड अध्याय-8/29 मे लिखा है कि विष्णु ने वाराह रूप मे पृथ्वी से सम्भोग किया और बेचारी पृथ्वी बेहोश हो गयी! इसलिये पृथ्वी विष्णु की पत्नि कही गयी!
पृथ्वी का प्रातःस्मरणीय श्लोक भी यही कहता है:-
समुद्रवसने देवि पर्वतस्तन मण्डिते।
विष्णुपत्नि नमस्तुभ्यम् पादस्पर्ष क्षमस्व मे।।
इस श्लोक मे भी धरती को "विष्णुपत्नि" कहा गया है!
हालाकि विष्णु को यही नही छोड़ा और तुलसी (वृन्दा) से भी सहवास का दोषी बताया।
"शङ्खचूङस्य रूपेण जगाम तुलसी प्रति।
गत्वा तस्यां मायया च वीर्यधानं चकार।।"
(प्रकृतिखण्ड-20/12)
अर्थात- तुलसी भी जान गयी थी कि मेरे पति का रूपधारण करके कोई अन्य पुरुष (विष्णु) मेरे साथ सहवास कर रहा है!
शिव को भी इस पुराण ने नही छोड़ा, शिव का सती के साथ अश्लील वर्णन इस पुराण मे है!
सती के मरने के बाद भी जो श्लोक लिखे गये जरा उस पर नजर डालो-
"अधरे चाधरं दत्वा वक्षो वक्षसि शङ्कर:।
पुनः पुनः समाश्लिपुनर्मूछामवाप सः।।"
अर्थात- अधरो पर अधर और वक्ष पर वक्ष कर शंकर ने उस मृतक शरीर का आलिंगन किया!
अब जब ब्रह्मा,विष्णु और शिव नही बचे तो भला कृष्ण कहाँ से बचते! इस पुराण ने कृष्ण की इज्जत उतारने मे कोई कसर नही छोड़ी।
जरा इस पुराण के प्रकृतिखण्ड का कुछ श्लोक देखिये-
"करे घृत्वा च तां कृष्णः स्थापयामास वक्षसि।
चकार शिथिल वस्त्रं चुम्बन च चतुर्विधम् ।।
बभूव रतियुद्धेन विच्छिन्नां क्षुद्रघण्टिका।
चुम्बननोष्ठेंरागश्च ह्याश्लेषेण च पत्रकम् ।।
मूर्छामवाप सा राधा बुपुधेन दिवानिषम् ।।"
अर्थात- कृष्ण ने राधा का हाथ पकड़कर वक्ष से लगा लिया,और उसके वस्त्र हटाकर चतुर्विध चुम्बन किया! फिर जो रतियुद्ध हुआ उससे राधा की करधनी टूट गयी और चुम्बन से होठों का रंग उड़ गया, तथा इस संगम से राधा मूर्छित हो गयी और उसे रात-दिन तक होश नही आया।
यही नही कृष्ण जन्मखण्ड (अध्याय-106/22) मे लिखा है कि- "कुब्जा मृता संभोगद्वाससा रजकोमृतः"
यहाँ रुक्मि कृष्ण से कहता है कि "तुमने कुब्जा से ऐसा सम्भोग किया कि वह बेचारी मर ही गयी"
कुब्जा के साथ जन्मखण्ड (अध्याय-72) मे और भी कई अश्लील श्लोक है जिसमे नाना प्रकार के सम्भोग का वर्णन है, जिसे मै संकोचवश लिख भी नही सकता! हाँ कृष्ण जन्मखण्ड अध्याय-27/83 श्लोक भी कम अश्लील नही है-
"प्रजग्मुर्गोपिका नग्नाः योनिमाच्छाद्व पाणानि"
यहाँ बताते हैं कि गोपिकाऐं अपनी हाथ से योनि को ढ़ककर पानी के बाहर निकली! वैसे इस अध्याय के सारे श्लोक अति अश्लील है, जिसे लिखना सम्भव नही।
खैर कृष्ण का गुणगान तो और भी है, जन्मखण्ड (अध्याय-3/59-62) मे लिखा है कि गोलोक मे कृष्ण विरजा नाम की एक महिला से सहवास कर रहे थे, तभी राधा ने पकड़ लिया और फटकारते हुये कहा कि- "हे कृष्ण तू पराई औरत मे व्यभिचार करते हो, तुम चंचल और लम्पट हो, तुम मनुष्यो की भाँति मैथुन करते हो! तुम मेरे सामने से चले जाओ, और तुम्हे श्राप देती हूँ कि तुम्हे मनुष्य योनि मिले"
पुराणकर्ता यही नही रुके, गणपतिखण्ड (अध्याय-20/44-46) मे इन्द्र और रम्भा के सम्भोग का ऐसा वृतान्त है कि कोई पोर्न फिल्मकार भी शर्म से लाल हो जाऐ!
ब्रह्मखण्ड (अध्याय-10/85-87) मे विश्वकर्मा और घृताची के सम्भोग का अतिअश्लील वर्णन है, आगे इसी अध्याय के श्लोक-127-128 मे एक ब्राह्मणी से अश्विनीकुमार के बालात्कार ऐसा वर्णन है कि कोई कामशास्त्र भी फीका पड़ जाऐ।
यह पूरा पुराण ही अश्लीलता से भरपूर है, मैने केवल उतना ही लिखा जो सभ्यसमाज के सामने परोसा जा सकता है, कई प्रकरण तो ऐसे है कि जिसे मै चाहकर भी नही लिख सकता।
अब आप लोग स्वयं निर्णय करे कि यह कोई धर्मग्रन्थ है या अश्लील कामवासना की किताब, इस पुराण मे बड़ी चतुराई के साथ देवताओं की इज्जत उतारी गयी है, पर आज भी पंडे इस पुराण को सिर रखकर घूमते हैं!
नोट-मैने सारे तथ्य प्रमाण के साथ लिखे हैं, फिर भी अगर किसी की भावना को ठेस लगे तो अग्रिम क्षमाप्रार्थी हूँ.... पर हाँ! कमेन्ट तर्क से करें, अन्यथा सीधा ब्लाक किया जायेगा।
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पुराणों मे जिस महापुरुष की सर्वाधिक इज्जत उतारी गयी है वह है "श्रीकृष्ण"
श्रीकृष्ण से पौराणिक न जाने क्यों इतने चिढ़े थे कि उनके साथ-साथ उनके परिवार वालों पर भी आक्षेप लगाने से नही चूके...
पहले रासलीला की अश्लीलता से कृष्ण को बदनाम किया, फिर उनके पुत्र साम्ब से उनकी तमाम पत्नियों के सम्बन्ध बताकर उनके परिवार पर भी लांक्षन लगा दिया!
मत्स्यपुराण जहाँ स्पष्ट कहता है कि कृष्ण के पुत्र साम्ब के सम्बन्ध उनकी पत्नियों से थे, तो वही वराहपुराण अध्याय-120 मे लिखा है कि एक बार नारद कृष्ण के पास आये और बोले कि प्रभु मै आपको एकान्त मे कुछ बताना चाहता हूँ। आपके नवयुवक पुत्र साम्ब से आपकी पत्नियों को क्षोभ है, और वो उसको देखकर भी क्षुब्ध हो जाती है!
हे प्रभु! इस कारण सत्यलोक मे आपकी बड़ी निन्दा हो रही है!
नारद ने यह भी कहा कि आप अगर चाहो तो साम्ब और अपनी पत्नियों को बुलाकर इसका परीक्षण भी कर लो...
कृष्ण ने नारद की बात मान ली, और अपनी पत्नियों तथा साम्ब को अपने पास बुलाया! इसके बाद कृष्ण ने देखा कि उनकी पत्नियाँ उनके सामने ही साम्ब को देखकर मतवाली होने लगी!
फिर क्रोध मे आकर कृष्ण ने अपने ही पुत्र साम्ब को श्राप दिया कि तू अभी रूपहीन हो जाये, तुझे कुष्ठरोग हो जाये।
यही कथा जरा विस्तार से भविष्यपुराण (हिन्दी साहित्य प्रकाशन, प्रयाग) ब्रह्मपर्व, अध्याय-73 श्लोक-8-46 मे मिलती है!
एक दिन की बात है, नारद ने कृष्ण से कहा कि हे प्रभु! आपकी 16 पत्नियां आपके ही पुत्र साम्ब से प्रेम करती है।
कृष्ण ने सोचा कि नारद की बात तो झूठ नही हो सकती! वैसे भी स्त्रियों का मन चपल होता ही है, अतः मुझे इसका परीक्षण करना चाहिये।
एक दिन श्रीकृष्ण अपनी तमाम पत्नियों के साथ सरोवर मे जलक्रीडा कर रहे थे! कृष्ण ने पहले खुद भी मदिरा पिया और बाद मे अपनी पत्नियों को भी मदिरा पिलाया! इसके बाद जब स्त्रियां मद्यपान से बेसुध हो गयी, तब नारद ने साम्ब से आकर कहा-
हे कुमार! तुम्हे श्रीकृष्ण बुला रहे हैं, तुम अभी सरोवर के पास जाओ।
साम्ब बिना कुछ सोचे सरोवर के पास पहुँच गया, जहाँ कृष्ण और उनकी पत्नियाँ मद्यपान करके क्रीड़ा कर रही थी।
साम्ब सरोवर पर पहुँचा, और रूपवान साम्ब को देखकर कृष्ण की पत्नियों की योनि तर (भीग) हो गयी, और जब वो खड़ी हुई तो उनका वीर्य (रज) स्खलित हो गया, तथा कुछ बूँदे पत्तों पर गिर पड़ी!
यह देखकर कृष्ण क्रोधित हो गये और उन्होने अपनी पत्नियों को श्राप दिया कि तुमने मुझे त्यागकर पर-पुरुष की कामना की! मै तुम सबको श्राप देता हूँ कि तुम्हे पतिलोक और स्वर्ग से भ्रष्ट होकर चोरों को अधीन रहना पड़ेगा, और वैश्यावृत्ति भी करनी पड़ेगी।
कृष्ण ने साम्ब को भी कुरूप होने और कुष्ठरोगी होने का श्राप दे दिया!
कृष्ण के श्राप के कारण ही जब श्रीकृष्ण स्वर्गवासी हुये, तब अर्जुन से चोरों ने लड़कर कृष्ण की पत्नियों का हरण कर लिया था!
अब जरा स्वयं विचार करें कि लिखने वाले ने इस पुराण मे किस तरह चुनकर अश्लील शब्दों का इस्तेमाल किया है!
कहानी यहीं नही खत्म होती है, आगे भी कृष्ण ने कहा है कि तुम लोग वैश्या बनकर जब प्रतिदिन अपने ग्राहक मे मेरा ही चिंतन करके उसे संतुष्ट करोगी, तब मरणोपरान्त तुम्हे स्वर्ग की प्राप्ति होगी!
ऐसी ही न जाने कितनी अश्लील बातें इस पुराण मे लिखी है। लोग पुराणों का कितना आदर करते हैं यह तो मै नही जानता, पर मै पुराणों का सदैव खण्डन करता रहूँगा।
कम से कम मेरे प्रयास से किसी की चेतना जागे और इस पुराण-मण्डली को आग लगाना शुरू कर दे।
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कृष्ण ने 16100 स्त्रियो से विवाह किया
(विष्णु पुराण अध्याय 31)
शिव पार्वती ने कृष्ण को वरदान दिया, तुम्हे 16000 रानिया होगी,
तुम्हारा शरीर सदा कमनिय बना रहेगा
(म्हणजेच सेक्स पावर चांगली राहील)
(महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 15)
श्री कृष्ण अपने सोलह हजार पत्नियों को एक साथ रमाते थे अर्थात् रमण (संभोग, स्त्री-प्रसंग, रति-क्रिया, समागम) करते थे। सभी पत्नियां ये विचार करके स्वयं को भाग्यशाली समझती थी कि सभी पत्नियों में मैं ही अपने कृष्ण को सबसे ज्यादा प्यारी अर्थात् प्रिय हूं और जब ये सभी सोलह हजार पत्नियां खुद को दर्पण (शीशे) में देखती तो अपने स्तन (छाती, कुच, दूध) पर कृष्ण के नखक्षत (नाखून के निशान) और अपने होंठों (अधरों) पर दांतों के निशान (दंतक्षत) देखती तो सभी सोलह हजार पत्नियां बहुत ही खुश होती थीं। [श्री हरिवंश महापुराण, २/८८/१३-१७]
( हरिवंश 2/88/13-17)
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