राम का जन्म कौशलया के द्वारा खीर खाने और एक रात घोड़े के पास रहने से हुआ था।
आप जानते हैं कि अश्वमेध यज्ञ क्या है। जिसमें रानी को घोड़े पर बिठाया जाता था। अश्वमेध यज्ञ राजा दशरथ द्वारा किया गया था। इस बलिदान का उल्लेख बालकाण्ड के संता 14 में मिलता है।
300 पशुओं और राजा दशरथ के महान घोड़े को बलि के लिए बांध दिया गया था (श्लोक 32)
रानी ने कुशलता से घोड़े की परिक्रमा की और तीन बार तलवार से स्पर्श किया (33)
धर्म का पालन करने की इच्छा करते हुए, उसने कुशलता से एक रात घोड़े के पास बिताई (34)
बाद में 36, 37, 38 श्लोकों में यह उल्लेख किया गया है कि आहुति दी गई थी।
इस यज्ञ के बाद, पुत्रेष्टि यज्ञ क्या गया। इस यज्ञ के कारण तीनों रानियाँ खीर खा कर गर्भवती हो गईं। बालकाण्ड सर्ग 16 देखें।
एक महान व्यक्ति बलिदान से प्रकट हुआ (श्लोक 11)
प्रकट पुरुष ने दशरथ से कहा..
यह देवताओं द्वारा बनाई गई खीर है जो बच्चों को जन्म देती है और धन और स्वास्थ्य को बढ़ाती है (श्लोक 19)।
इस खीर को उसकी पत्नियों को खिलाने से वह गर्भवती हो जाएगी (20)
राजा की तीनों रानियाँ इसे खाकर गर्भवती हो गईं (31)।
(देखें गीताप्रेस गोरखपुर, वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड 14 श्लोक 1 से 38 और बालकाण्ड, श्लोक 16 से 32)
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भागवत पुराण में मंत्र का पानी पीने से स्त्री को गर्भ धारण करवाना।
ब्रह्मपुराण मे लिखा है कि मोरनी मोर के आंसू पीकर गर्भ धारण करती है, क्योकि मोर ब्रह्मचारी होता है!
अब मै महाभारत से एक ऐसी ही बात बता रहा हूँ.....
कश्यप ऋषि की तेरह पत्नियाँ थी, उन्होने ही समस्त जीव-जन्तुओं को जन्म दिया था (इस पर मैने पूर्व मे पोस्ट की थी) उनकी दो पत्नियो के नाम कद्रु और विनता थे....
कद्रु से सांप और विनता से अरुण तथा गरुण का जन्म हुआ था!
कश्यप ऋषि की ये दोनो पत्नियाँ जब गर्भवती हुई तो इन्होने बच्चो को जन्म नही दिया, बल्कि कद्रु ने एक हजार और विनता ने दो अंडे दिये थे....... उन अंडो को दासियों ने प्रसन्न होकर गर्म बर्तन मे रख दिया जिसमे से कद्रु के हजार नाग,सांप और तक्षक पैदा हुये!
पर विनता के अंडे मे से बच्चे नही निकले तो उन्होने जल्दबाजी मे खुद एक अंडा फोड़ दिया, जिसमे वरुण देव थे.....
वरुण को बहुत गुस्सा आया... और बोले कि तुमने मुझे समय से पहले अंडा फोड़कर बाहर निकाला इसलिये मै तुम्हे श्राप देता हूँ सैकड़ो वर्षो तक तुम अपनी सौतन की नौकरानी रहोगी....
अब जरा विचार करो कि अगर महिलाऐं उस काल अंडे देती थी और बच्चा अंडे से निकलकर माँ श्राप देता था, तो मोरनी वाली बात भी आश्चर्यजनक नही हो सकती।
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एक बार विष्णु जी ने किसी बात पर नाराज होकर लक्ष्मीजी को घोड़ी बनने का श्राप दे दिया..... फिर क्या था पलक झपकते ही लक्ष्मी घोड़ी बन गयी!
विष्णु ने निवारण के लिये कहा कि जब तुम एक पुत्र को जन्म दोगी तो फिर से अपने वास्तविक स्वरूप मे आ जाओगी!
लक्ष्मी जी घोड़ी बनकर सुपर्णाक्ष नामक स्थान पर आ गयी, और सोचने लगी कि मै जब तक पुत्र को जन्म नही दूँगी तब तक श्रापमुक्ति नही मिलेगी, पर पुत्र होगा कैसे?
यही विचार करके उन्होनेे शिवजी को ध्यान लगाया.....
भगवान शिव समझ गये कि जब तक पुत्र नही होगा ये बेचारी घोड़ी ही बनी रहेगी.......
पर पुत्र होगा कैसे?
ये यहाँ है, और विष्णु वैकुण्ठ मे..... लक्ष्मी किसी दूसरे घोड़े के साथ मुँह काला करना नही चाहती थी....
यही सोचकर शिव ने विष्णु को फटकार लगायी, शिव की बात मानकर विष्णु शीघ्र घोड़ा बनकर लक्ष्मी के पास पहुँचे और फिर दोनो के संसर्ग से लक्ष्मी ने एक पुत्र को जन्म दिया!
इस पुत्र का नाम "एकवीर" रखा और यही आगे चलकर क्षत्रियों के हैहयवंश जन्मदाता बना।
अब सवाल यह है कि क्या यह कहानी सच है? अगर सच है तो विष्णु कैसे भगवान है जो खुद की पत्नि और समृद्धि की देवी लक्ष्मी को घोड़ी बना देते है!
क्या खुद को गौरवशाली समझने वाले हैहयवंशी क्षत्रिय घोड़ी से पैदा हुऐ?
क्या हिन्दुओं के सर्वमान्य परमेश्वर विष्णु इतने निर्लज्ज थे कि घोड़ा/घोड़ी बनकर पुत्र पैदा करते थे?
ये कथा कई प्रश्न पैदा कर रही है, जिस पर आप भी विचार कर सकते हो! वैसे पुराणों मे लिखी हर कथा को महंत और कथावाचक लोग नाच-गाकर बताते हैं, पर इस कथा को पंडे-पुरोहित दबाकर ही रखते हैं! मै चाहता हूँ कि इस कथा के माध्यम से आप सब धर्माधिकारियों से सवाल करो कि विष्णु कैसे भगवान थे जो खुद की पत्नि को घोड़ी बनाते थे और दूसरे (जलंधर) की पत्नि (वृन्दा "तुलसी" ) से छल करते थे!
श्रोत:- देवीपुराण/छठा स्कन्ध (अध्याय-18, पृष्ठ संख्या- 442)
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आज आधुनिक समय मे विज्ञान ने भले ही इतनी तरक्की कर ली है, फिर भी मानव के अण्डकोष (Testis) का प्रत्यार्पण शायद ही कभी हुआ हो!
अण्डकोष जन्म के समय से ही पुरुष शरीर का महत्वपूर्ण अंग होता है!
यह पुरुषत्व का प्रमाण होता है, और शरीर मे उत्तेजना हेतु द्रव का निर्माण करता है! यह चमड़े की एक सिकुड़ी थैली जैसी होती है, जिसमे दो स्क्रोटम होते है!
यह स्क्रोटम दो भागो मे बटा होता है, जो लिंग (Penis) के अगल-बगल नीचे की और होता है!
पुरुष का बायाँ अण्डकोष दायें से थोड़ा अधिक लटका रहता है, और ये स्क्रोटम ठंड मे सिकुड़ जाते हैं, जबकि उत्तेजना के समय ऊपर की और आ जाते है!
जब मनुष्य प्रजनन करता है तो उसके दो अंग बहुत महत्वपूर्ण होते है!
पहला अण्डकोष, और दूसरा लिंग!
अण्डकोष का काम होता है कि वह पहले पुरुष को उत्तेजित करने के लिये हारमोन्स तैयार करता है, और बाद मे शुक्राणु (Sperm) बनाता है!
लिंग इन्ही शुक्राणुओं को स्त्री के योनिमार्ग से गर्भाशय तक पहुँचा देता है, और स्त्री गर्भवती हो जाती है!
अब आप सोच रहे होंगे कि मै ये सब क्यों बता रहा हूँ, तो इससे ही जुड़ा मेरे पास एक धार्मिक प्रश्न है!
रामायण के अनुसार जब देवराज इन्द्र ने गौतम ऋषि का वेष बनाकर उनकी पत्नि अहिल्या से दुष्कर्म किया, तब ऋषि गौतम ने उन्हे श्राप दिया था कि- "हे इन्द्र! मै तुम्हे श्राप देता हूँ कि तुम्हारा अण्डकोष कटकर भूमि पर गिर जाऐं"
ऋषि के श्राप से इन्द्र अण्डकोष विहीन हो गये, देवताओं के लिये यह बड़ी शर्म की बात थी कि उनके राजा के पास अण्डकोष ही नही था!
सारे देवताओं ने एक उपाय खोजा और देवराज को एक भेड़े (Sheep) का अण्डकोष लगा दिया!
यह वैदिककाल की पहली सफल अण्डकोष सर्जरी थी, जिसमे एक मनुष्य को एक जानवर का अण्डकोष प्रत्यार्पण किया गया!
अब सवाल यह है कि इन्द्र और उनकी पत्नि शचि की दो संतान थी, पुत्र जयन्त और पुत्री जयन्ती!
अब अगर इन्द्र ने भेड़ वाले अण्डकोष से प्रजनन किया तो उनकी संतान भेड़ जैसी पैदा होनी चाहिये थी, क्योकि भेड़ का अण्डकोष भेड़ के ही DNA वाले शुक्राणु (Sperm) पैदा करेगा!
दूसरा सवाल देवता इतने शक्तिशाली थे कि संसार मे कोई भी कार्य उनके लिये असम्भव नही था, फिर देवराज को क्या जरूरत थी कि वो भेड़े का अण्डकोष इस्तेमाल करें...
मेरा आशय देवी-देवताओं का मजाक बनाना नही है, मै केवल यह बताना चाहता हूँ कि धर्मग्रंथों मे लिखी बातें 80% झूठी है, इस पर विश्वास करने का कोई ठोस प्रमाण नही है!
यह सारा वृतान्त बाल्मीकि रामायण/बालकाण्ड, सर्ग-49 पृष्ठ सं०-123 पर लिखा गया है!
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वेदों मे दो देवताओं का वर्णन मिलता है जिन्हे 'अश्विनीकुमार' कहा जाता है!
यह वही अश्विनीकुमार है जिन्होने पाण्डु की दूसरी पत्नि माद्री से 'नियोग' करके "नकुल और सहदेव" को पैदा किया था! ये अश्विनीकुमार पुराणों मे सूर्य के पुत्र माने गये हैं, पर इनके जन्म की कथा भी बड़ी रोचक है!
"ब्रह्मपुराण" हिन्दूधर्म का प्रथम पुराण है, जो सबसे पहले लिखा गया और जिसे सारे पुराणों से अधिक प्रमाणिक माना जा सकता है! इसी ब्रह्मपुराण के "गारुड़तीर्थ और गोवर्धनतीर्थ की महिमा" अध्याय मे एक कथा आती है....
सूर्यदेव की पत्नि का नाम ऊषा था, ऊषा बहुत सुन्दर और पतिव्रता थी तथा सूर्य से उसने दो पुत्र मनु और यम को जन्म दिया था, इसके अलावा उनकी एक पुत्री यमुना भी थी!
ऊषा यूँ तो सूर्यदेव से बहुत प्रेम करती थी, पर कई बार उससे सूर्य का तीव्र ताप सहन नही होता था! वह चाहती थी कि कुछ दिनों के लिये सूर्य से दूर कही शीतल जगह पर विश्राम करने चली जाये, पर उसे यह भी मालुम था कि सूर्य उसके बिना रह नही पायेगे, और व्याकुल होकर खोजने लगेगे!
एक दिन ऊषा ने एक उपाय निकाला, उसने अपने ही जैसी एक दूसरी महिला "छाया" को अपनी माया से बनाया और उसे समझाया कि तुम मेरी जगह सूर्य की प्रेयसी बनकर रहो, तथा मेरी आज्ञा से मेरे पति (सूर्य) की सेवा और मेरे बच्चों का पालन करो, और हाँ... यह भेद किसी से प्रकट मत करना!
छाया को ऐसा आदेश देकर, उसे अपने ही कक्ष मे छोड़कर ऊषा सूर्य से दूर चली गयी! उसने सोचा कि सूर्य छाया को देखकर उसे ही समझेगे और ढ़ूढ़ेगे नही!
शाम को जब सूर्यदेव भ्रमण से वापस आये तो वो न जाने कैसे छाया को देखकर यह पहचान लिया कि यह मेरी पत्नि ऊषा नही है, अतः वो व्यग्र होकर ऊषा को खोजने लगे!
इधर ऊषा उत्तरकुरू नामक स्थान पर आयी और "घोड़ी" का रूप बनाकर तप करने लगी! सूर्यदेव ऊषा को खोजते हुये उसी स्थान पर पहुँचे, और घोड़ी बनी ऊषा को देखकर पहचान गये तथा खुद भी घोड़ा बनकर उसके पास गये! ऊषा घोड़े को देखकर उसकी नियत भांप गयी, और पर-पुरुष की आशंका से वह भागकर गौतमी नदी के तट पर आ गयी! सूर्यदेव घोड़ा बनकर उसका पीछा करते हुये वहाँ भी पहुँच गये, और तब उन्होने घोड़ीरूपी ऊषा को बताया कि मै तुम्हारा पति सूर्य हूँ!
इसके बाद घोड़ीरूपी ऊषा ने घोड़ारूपी सूर्य से समागम किया तथा उसी के परिणाम-स्वरूप दोनो अश्विनीकुमारों का जन्म हुआ!
अब जरा सोचना कि घोड़ी बनी ऊषा मनुष्य जैसे पुत्रों को जन्म कैसे दे सकती है?
दूसरी बात क्या जानवर-योनि मे देवों को सहवास करने मे अधिक आनन्द आता था, जो वो ऐसा प्रयोग करते थे?
तीसरी बात यदि वो ऐसा करते ही थे तो पौराणिक-लेखकों को क्या जरूरत थी इसे लिखने की?
हाँ.... चौथी बात मेरी तरफ से, पढ़ो और आनन्द लो, क्योंकि इसे पढ़ने के बाद पोर्न-मूवी देखने की भी इच्छा नही होगी!
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