Tuesday, 18 August 2020

शुद्र।

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शुद्र के वेदवाठ सुनने पर पिघला सीसे और जस्ते से उसके कान भर दिये जाय, वेद के अक्षर उच्चारण पर उसकी जीभ
काट ली जाए तथा वेद मंत्र धारण करने (याद करने) पर उसका शरीर काट डाला जाए। (गौतम धर्मसुत्र 3-2-4) 



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शूद्र खरीदे या न खरीदे, उससे एक नौकर का काम करवाएं क्योंकि ब्रह्मा ने उसे ब्राह्मणों की सेवा करने के लिए बनाया हैI (मनुस्मृति अध्याय 8, श्लोक 413)

 
 
 
 
 
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 घर आने वाला मेहमान ब्राह्मण है तो केवल वही भगवान है और सेवा का हकदार है। अन्य पात्रों में अतिथि नहीं है ।
'अतिथि देवो भव' (तैतिरिया उपनिषद् 1/11) भी उसी चरित्र से संबंधित है न कि सभी मनुष्यों के लिए ।  मनुस्मृति में अन्य पात्रों के साथ व्यवहार करने के बारे में जानकारी मिलती है।
 
 नचिकेता नाम का एक ब्राह्मण यम के घर जाता है। तीन दिन के लिए यम बाहर हैं। जब तीन दिन बाद यम लौटे, तो उनकी पत्नी ने उन्हें बताया, अग्नि देवता ब्राह्मण अतिथि के रूप में घर आते हैं (काठोपनिषद 1/1/7)
 
यम की पत्नी ने यम से कहा कि अगर वह ब्राह्मण अतिथि की सेवा नहीं करेगा तो क्या होगा। ब्राह्मणों की महिमा सुनकर, यम ने ब्राह्मण अतिथि की पूजा शुरू कर दी। यम के अभाव में नचिकेता ब्राह्मण तीन दिन तक भूखे रहे, यम ने उसे तीन मांग मांगने की अनुमति दी । (काठोपनिषद 1/1/9)
 



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क्षत्रिय वैश्य शूद्र ब्राह्मण के घर आये तो उसे मेहमान नहीं माना जाता। (मनुस्मृति 3/110).
क्षत्रिय घर आये तो ब्राह्मण पहले खाना खाए फिर क्षत्रिय को दे। (मनुस्मृति 3/111).
वैश्य शूद्र जब घर आये तो उसे अपने सेवकों के साथ खिलाओ । (मनुस्मृति 3/112)

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शूद्र पुरुष का बलिदान पुरुषार्थ यज्ञ

यजुर्वेद में 31 वें अध्याय में पुरुषार्थ यज्ञ का उल्लेख है। जिसके अनुसार यज्ञ करते समय एक व्यक्ति की बलि दी जाती थी। इस बारे में जानकारी उवट टिप्पणी और महीधर टिप्पणी में मिलती है। लेकिन यह बलिदान केवल एक निश्चित चरित्र के व्यक्ति को दिया गया था। वह आदमी शूद्र है।

यजुष संहिताओ के अनुसार, एक शूद्र पुरुष की बलि दी जाती थी। देखें;
(वैदिक कोश, चौखम्बा कृष्णदास अकादमी, वाराणसी, पृष्ठ 522)





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.... पुष्करो नटः । 
बराटो मेदचाण्डालो दाशः श्वपचकोलिकाः । 
एतेऽन्त्यजा समाख्याता ये चान्ये च गवाशनाः ll
एषां संभाषणात् स्नानं दर्शनादर्कवीक्षणम् ॥
 ( वेदव्यास - स्मृतिः , 1 / 12-13 ) 
चर्मकार ( चमार ) , भट , भिल्ल , रजक , पुष्कर , नट , विराट , मेद , चांडाल , दाश , श्वपच , कोलिक आदि जो भी जातियां ' गवाशना ' : ( गोमांस खाने वाली ) हैं , वे सब ' अंत्यज ' ( अछूत ) हैं , इनसे अगर बात करें तो बाद में स्नान करें और इन्हें यदि देख लें तो आंखें सूर्य की ओर गड़ाएं ताकि वे शुद्ध हो सकें .

बौद्धान् पाशुपतांश्चैव लोकायतिकनास्तिकान् । 
विकर्मस्थान् द्विजान् स्पृष्ट्वा सचैलो जलमाविशेत ॥ 
यदि कोई किसी बौद्ध आदि से छू जाए तो पहने हुए कपड़ों सहित स्नान करे. यह आदेश एक ग्रन्थ में न होकर अनेक ग्रंथों में अंकित किया गया है ,यथा - अपरार्क , पृ . 923 ; स्मृतिचन्द्रिका 1 , पृ . 118 ; याज्ञवल्क्य स्मृति 3/30 की मिताक्षरा ; वृद्धहारीत , 9/359 , 363 व 364 . 

यदि कोई शूद्र वेद का मंत्र सुन ले तो उसके कानों में लाख या रांगा पिघलाकर डाल दें ; यदि वह किसी वेदमंत्र का उच्चारण करे तो उसकी जीभ काट दी जाए तथा यदि वह किसी वेदमंत्र को याद कर ले तो उसका शरीर चीर दिया जाए .
यथा अथ हास्य वेदमुपशृण्वतस्त्रपुजतुभ्यां श्रोत्रप्रतिपूरणमुदाहरणे जिह्वाच्छेदो धारणे शरीरभेदः ( गौतम धर्मसूत्र 2/3/4 ) 
  
ध्यान रहे बाद में संस्कृत भाषा भी शूद्रों के लिए वर्जित घोषित कर दी गई थी. इसलिए प्राचीन संस्कृत नाटकों में कोई भी शूद्र पात्र संस्कृत नहीं बोलता क्योंकि- दशरूपकम् ( 6 / 64-65 ) जैसे ग्रंथों का आदेश है कि नाटक में कुलीन व उच्चजातीय पुरुषों की भाषा ही संस्कृत हो ; अधमजातियों के पात्रों की भाषा प्राकृत हो तथा अत्यंत अधम , जैसे चांडाल आदि , पात्रों की भाषा पैशाची या मागधी होनी चाहिए.

तद् य इह रमणीयचरणा अभ्याशो ह यत्ते रमणीयां योनिमापयेरन् ब्राह्मणयोनि वा क्षत्रिययोनि वा वैश्ययोनिं वाथ य इह कपूयचरणा अभ्याशो ह यत्ते कपूयां योनिमापोरञ् श्वयोनि वा सूकरयोनि वा चण्डालयोनि वा । ( छान्दोग्य उपनिषद् , 5/10/7 )   
अर्थात- : जो अच्छे आचरण वाले होते हैं वे शीघ्र ही उत्तम योनि को प्राप्त होते हैं, वे ब्राह्मणयोनि ,क्षत्रिययोनि अथवा वैश्ययोनि को प्राप्त करते हैं तथा जो अशुभ आचरण वाले होते हैं , वे तत्काल अशुभ योनि को प्राप्त करते हैं ,वे कुत्ते की योनि ,सूअर की योनि अथवा चाण्डाल की योनि को प्राप्त करते हैं.

चातुर्वयं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः 
( गीता 4/19 )- 
 इस जाति-पाँति को और चातुर्वर्ण्य व्यवस्था को मैंने अर्थात ' अवतार कृष्ण नें व्यक्ति के गुणों व कर्मों के आधार पर बनाया है.

:- बुद्धिज्म : विविध आयाम.

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यों तो भारत में हजारो सालो से शुद्रो -दलितों का जो आर्थिक -सामाजिक -शारीरिक शोषण होता रहा है उस से शायद ही कोई इंकार कर सके। खास कर दलित जिन्हें अछूत कहा जाता है उनकी हालत तो और भी बदतर स्थिति में थी ( कंही -कंही तो आज भी वाही स्थिति है )

उनकी बस्तियां गाँव से बहार होती थी , मरे हुए जानवर , चूहे , सवर्णों द्वारा छोड़ा गया भोजन , खेत में फसल काटने के बाद खेत की मिटटी में मिले अन्न जिन्हें मिटटी में मिल जाने के कारण उठाना मुश्किल होता था, दलित उन अन्नो को बीन कर अपने भोजन का इन्तेजाम करता था ।

 इसी तरह उसे शिक्षा प्राप्त करने का भी अधिकार नहीं था ,सारे अन्याय अत्याचार जो की किसी भी धर्म के मानाने वाले अपने ही अनुयायियों पर नहीं कर सकते वो सब अछूतों पर होते रहे ।  इन अन्यायों के खिलाफ समय समय पर कई महापुरुष आते रहे  विरोध करते रहे परन्तु पिछले कुछ वर्षो से आश्चर्यजनक रूप से एक नई प्रकार की हवा चली है , वो की , अब कुछ लोग शुद्र -दलितों  को शोषित ही नहीं मान रहे हैं। 

बल्कि वो यंहा तक कहते हैं की शुद्र -दलित ही अपनी दुर्दशा कारण है सवर्ण तो उन्हें शिक्षा , बराबरी का हक , आदि देना चाहते थे पर दलित ही निक्कमे निकले । मिन्दिरों में ब्रह्मण तो दलितों को आने देता था पर दलित ही मंदिर में नहीं आना कहते थे ,सवर्ण तो उन्हें अपने साथ रखन चाहता था पर दलित ने खुद अपनी बस्तिया अलग बसाई ,सवर्ण तो उन्हें अपने गले लगाना चाहता था पर दलित खुद सवर्णों की लाठियां खाने का शौक था , 

इसप्रकार से विभिन्न प्रकार के उल्टा आरोप लगया जाता है । ऐसे लोगो को मैं बच्चा  या अज्ञानी तो नहीं कहूँगा बल्कि शातिर दिमाग वाला  , जिन्हें ये डर  है की अब चुकी दलित भी ऊपर उठ रहा है , बराबरी कर रहा है ( सविधान , आरक्षण के बदौलत ) कल वो अपने ऊपर हुए जुल्मो का हिसाब मांगेगा  तब सवर्ण क्या  कहेंगे? इसी लिए लोग तरह तरह के प्रपंच फैलाके उल्टा दोष दलितों पर डालने की कोशिश कर रहे हैं ।

मैं आगे भूमिका न बना के सीधे आपको वैदिक काल में ले चलता हूँ और दिखाता हूँ की उस काल में शुद्रो की क्या स्थिति थी  और शुद्र का क्या अर्थ होता है ।

 छांदोग्य उपनिषद  में  ऋषि रैक्व और जानश्रुति प्रकरण आता है जिसमें ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के लिए राजा  जानश्रुति बहुत सा दान( अपनी लड़की भी ) रैक्व को देने ले जाता है और रैक्व उसे “शूद्र”  कहता है , जबकि जनश्रुति क्षत्रिय होता है ।

तस्या ह मुखोमुपोदगृहणन्नुवाचाssजह्रेमा: शुद्रनेनैवा मुखेनालपयिस्यथा इति ( छांदोग्य उपनिषद 4 /2/5 )

 इसपर शंकराचार्य जी अपने भाष्य में शुद्र का अर्थ के लिए कहते हैं और शायद सारे भारतीय धर्म शास्त्रों में पहली बार शुद्र शब्द के अर्थ पर प्रकाश डाला है बो कहते हैं “

ननु राजोसौं ……………शुद्रत्याहेती( छान्दोग्य उपनिषद पर शंकर भाष्य , 4 /3 /3 )

 यंहा शुद्र शब्द का अर्थ के लिए कहते हैं की जो शोको से घिरा हो , जिसकी हालत दयनीय हो ।

यानि उस समय शुद्र उसे कहते थे जिसकी हालत दयनीय हो , जो शोको से घिरा हो, यानि शुद्र वर्ण की हालत उस समय भी दयनीय थी ।

अब प्रश्न दूसरा आता है , लोग कहते हैं की हिन्दू धर्म ग्रंथो में सिर्फ वर्ण व्यवस्था  है जातिवाद नहीं , पर मैं कहूँगा की बिना धर्म ग्रन्थ के सहारे जातिवाद पैदा हो ही नहीं सकता , वर्ण व्यवस्था में सबसे शिखर पर बैठे वर्ण ने धर्मशास्त्रो के सहारे ही जातिवाद का निर्माण किया ताकि समाज को और बांटा जा सके और उनका प्रभुत्व बरक़रार रहे ।

देखिये  किस प्रकार जातिवाद है धर्म ग्रंथो में –

 वद्रिर्को  नापितो गोप आशाप: कुम्भकारक :
वाणी किरात कायस्थ मालाकार कुटुम्बिन:
चर्मकारो भटो भिल्लो रजक: पुष्करो नट:
…………………………दर्शानाकर्विक्षणम ( व्यासस्मृति , अध्याय 1 , श्लोक 11-13)

 अर्थात – बढई , नाइ ,  आशाप , कुम्हार, वणिक ,किरात , कायस्थ, माली, चर्मकार , धोबी, भट , पुष्कर, चंडाल,दाश,कोल ,भील, नट , कुटुबी , ये सब और गौमांस खाने वाले अन्य  “अंत्यज” कहलाते हैं। इन में से किसी पर भी द्रष्टि पड़ जाये तो सूर्य की ओर  देखना चाहिए , इन से बातचीत हो जाये तो स्नान करना चाहिए । तब द्विज( सवर्ण) शुद्ध होता है ।

इसी प्रकार की बात मनुस्मृति में भी कही गयी है पर लेख लम्बा होने के कारण उसे नहीं लिख रहा हूँ । पर ये उदहारण उनके लिए है जो कहते हैं की धर्म शास्त्रों में केवल वर्णव्यवस्था थी।

 तीसरा प्रश्न आता है की दलित केवल आरक्षण की मलाई खाने के लिए ही अपने को दलित घोषित करते हैं ,नहीं तो दलित और सवर्ण बराबर हैं। ऐसे प्रश्न करने वाले पूरी सच्चाई नहीं जानते हैं , यूँ तो भारत मे दलितों-आदिवासियों का  हिन्दू धर्म त्याग देना और इसाई -बौध-मुस्लिम बन जाना  जाना  एक आम बात है पर यदि कोई सामूहिक रूप से ( लगभग दस हजार ) धर्म परिवर्तन करे तो ये साधारण घटना नहीं है ।

ऐसी ही घटना अप्रेल 1981 में तमिल नाडू के मिनाक्षी पुरम में हुयी थी जंहा लगभग 10000 दलितों ने सामूहिक रूप से अपना धर्म परिवर्तन कर के मुस्लिम बने थे । ये घटना आजादी के बाद के इतिहास की सबसे बड़ी घटना थी जब दलितों ने इतनी बड़ी संख्या में अपना धर्म परिवर्तन किया । 

गौरतलब है की ये घटना आजादी के चौतीस साल  बाद घटी जब आरक्षण पूरी तरह से लागु हो चूका था , और ये दलित आरक्षण का लाभ भी ले रहे थे  फिर ऐसा क्या हुआ की इन्हें हिन्दू से मुस्लिम बनाना पड़ा जबकि ये जानते थे की धर्म परिवर्तन करने के बाद ये हिन्दू नहीं रहेंगे और आरक्षण का लाभ भी नहीं ले पाएंगे । 

कुछ लोग कहेंगे की मुस्लिमो ने इन्हें आर्थिक लालच दिया होगा , ऐसा बिलकुल नहीं था धर्मपरिवर्तन करने वालो में कई धनवान दलित भी थे जो सरकारी नौकरी कर रहे थे या खुद का कारोबार था उन्हें आर्थिक रूप से कोई लालच नहीं था ।

 

जब इन दलितों से पुछा गया की आप लोग धर्मपरिवर्तन क्यों कर  हैं तब उन्होंने बताया की हिन्दू धर्म में  सवर्ण उन्हें सम्मान से जीने नहीं देते , उनसे घृणा करते हैं और तरह तरह के अत्याचार करते थे । 

सवर्णों ने दलितों का अपने गाँव के रस्ते से गुजरने तक पर पाबंदी लगा रखी थी । उन्हें मुख्य सड़क पर आने के लिए सात किलोमीटर का सफ़र करना पड़ता था जबकि यदि वो सवर्णों के गाँव से जाते तो केवल दो किलोमीटर की दुरी थी , उन्हें दूर दुसरे रस्ते से जाना पड़ता था ।

ऐसे ही सवर्णों के अत्याचारों से तंग आके मध्यकाल में भी  दलितों द्वारा धर्म परिवर्तन होते रहे हैं, इस्लाम में तो 85% दलित हैं जिन्होंने इस्लाम कबूल किया – एक रिपोर्ट पढ़िए –

भारत के अधिकतर मुसलमानों के पूर्वज अनुसूचित जातिऔर पिछड़े वर्ग के हिंदू थे, जिन्होंने कालांतर में इस्लाम धर्म अपना लियाऔर मुसलमान बन गए। आंध्र प्रदेश के मुस्लिम समुदाय में ‘सामाजिक औरशैक्षणिक वर्ग की पहचान‘ पर तैयार की गई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है 

कि देशके 85 फीसदी मुसलमानों के पूर्वज हिंदू थे जो अनुसूचित जातियों या पिछड़ेतबकों से संबंध रखते थे। इन लोगों ने विभिन्न समयों पर इस्लाम ग्रहण करलिया।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सलाहकार पी.एस. कृष्णनद्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में मुसलमानों और देश में उनकी सामाजिक, आर्थिक स्थिति की तस्वीर पेश की गई है। उन्होंने कहा कि हिंदुओं का मुसलमानबनना समय समय पर चलता रहा…

 खासकर मध्यकाल में इसने और अधिक गति पकड़ ली।कृष्णन की रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदुओं में जातिवाद की कठिनव्यवस्था ने इन लोगों के मुसलमान बनने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन लोगों ने छुआछूत और भेदभाव से बचने के लिएइस्लाम को अपनाया। उनके लिए इस्लाम कबूल करना एक राहत की बात थी। 

दक्षिणभारत में कुछ समुदायों के लोगों ने ईसाई धर्म ग्रहण कर लिया। आंध्र प्रदेशमें 98 प्रतिशत ईसाई हिंदू अनुसूचित जाति मूल के हैं। पंजाब में इन लोगोंने सिख धर्म अपनाया।

इसलिए मेरे सवर्ण बंधुओं यदि आरक्षण वाकई मलाई है तो फिर क्यों दलित और और कुछ पिछड़ी जातियां इस मलाई के कटोरे पर लात मार के धर्मपरिवर्तन कर रही है?

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तेरे मुत्र द्वार को में खोल देता हूं जैसे झिल का पानी बन्ध को खोल देता है । तेरे मूत्र मार्ग को खोल दिया गया है जैसे जल से भरे समुद्र का मार...