Tuesday, 18 August 2020

मांस भक्षण।

■■■

नियुक्तस्तु यथानयायं यो मांस नात्ति मानवः।
स प्रेत्य पशुतां याति सम्भवानेकविंशतिम।।
-मनु स्मृति अध्याय 5 ,श्लोक 35
अर्थात -जो मनुष्य श्राद्ध और मधुपर्क में नियुक्त हुआ मांस नही खाता है वह मरकर इक्कीस जन्म तक पशु होता है।
.
इससे पहले के श्लोक यानि 18वें श्लोक में मनु जी कहते हैं कि -सेही, शल्य,गोधा, गैंडा ,कछुआ,खरगोश ये पांच नखो में और ऊंट को छोड़ कर एक और के दांत वाले भक्षण योग्य कहे गए हैं।
.
कई लोग कह सकते हैं कि मनुस्मृति बाद की रचना है ,अति प्राचीन कहे जाने वाले ऋग्वेद में मांस खाने का वर्णन नहीं है ।किंतु यह सत्य नहीं है, सायण भाष्य ऋग्वेद ,मंडल 10, सूक्त 29 ,मन्त्र 3 में बैल के मांस खाए जाने का वर्णन है -
.
इंद्र की पुत्रवधू ने कहा - है इंद्र! यजमान पत्थरो की सहायता से तुम्हरे लिए सोमरस तैयार करते हैं ।तुम सोमरस पीते हो , यजमान बैल का मांस पकाते हैं और तुम उसे खाते हो ।उस समय यजमानों द्वारा बुलाये जाते हो'
.
इंद्र ऋग्वेद का प्रमुख देवता है और उसके खाने के लिए बैल का मांस पकाया जा रहा है।
.
इन दिनों कुछ हिन्दुओ द्वारा मांस खाना बेशक बुरा समझा जाता है किंतु प्राचीन काल में मांस खाना निषेध नहीं था बल्कि मांस खाना धार्मिक कृत्यों में शामिल था ।धर्मिक कृत्यों में पशुबलि आम थी ।
.
तो कुछ हिन्दुओ ने मांस खाना क्यों छोड़ा ? खासकर ब्राह्मणों ने....

उसका कारण था जैन धर्म का बढ़ता प्रभाव , पशुबलि जैन धर्म में निषेध थी, जीव हत्या को जैन धर्म में घोरतम पाप कहा गया है । जैसे जैसे जैन धर्म का प्रभाव बढ़ा तो उससे मुकाबला करने के लिए वैदिक धर्म ने भी कठोरता से पशुबलि और मांस खाने का प्रचलन बंद कर दिया , यह ऐसा था वादिता का मुकाबला अतिवादिता से।




■■■
कुत्ते का मांस खाना।

मनुस्मृति अध्याय 10 में श्लोक 106 के अनुसार, ऋषि वामदेव कुत्ते का मांस खाना चाहते थे। श्लोक 108 के अनुसार, ऋषि विश्वामित्र भूख लगने पर कुत्ते का मांस खाते थे।


मनु ने मनुस्मृति-10/105-108 मे लिखा है कि पूर्वकाल मे ऋषि विश्वामित्र और वामदेव ने भूख से अपने प्राणों की रक्षा करने के लिये कुत्ते के भांस का भक्षण किया, फिर भी वे पापरहित बने रहे।


■■■
मनुस्मृति।





■■■
चरक संहिता सूत्र अध्याय 27 श्लोक 78,79,80
 

चरक संहिता में यक्ष्मा रोग (टीबी) के लिए मोर का मांस खाने की सलाह दी जाती है । इस किताब में और भी कई अजीब उपाय हैं ।


■■■
■■■

बकरी के अंडकोष को खाने से 100 महिलाओं के साथ यौन संबंध बनाने की क्षमता

सुश्रुत संहिता विभिन्न स्थानों में विभिन्न जानवरों के मांसाहारी का समर्थन करती है और इसके लाभ बताए गए हैं। सुश्रुत संहिता में देखें यह श्लोक…।

पिप्‍प्‍लीलवणोपेते बस्ताण्डे क्षीरसर्पिषि 
साधिते भक्ष्‍येमद्यस्‍तु स गच्‍छेत् प्रमदाशतम
अर्थात : दूध से निकाले घी में पिप्‍पली और लवण के साथ बकरे के अंडकोषों को अंड सिद्ध करके जो पुरूष खाता है वो एक सौ स्त्रीयो से रमण कर सकता है।
(सुश्रुत संहिता : चिकित्सा स्थानम 26/20) 

 प्राचीन शास्त्रों में, समागम और रमन सेक्स के लिए वैकल्पिक शब्द हैं।

◆◆◆

मनु स्मृति में न केवल मांस भक्षण का उल्लेख और संकेत है, बल्कि मांस भक्षण की स्पष्ट अनुमति दी गई है। मनुस्मृति में मांस भक्षण की अनुमति के साथ मांस भक्षण की उपयोगिता और महत्व भी बताया गया है –

यज्ञे वधोऽवधः। (मनु0, 5-39)
भावार्थ – यज्ञ में किया गया वध, वध नहीं होता।

या वेदविहिता हिंसा नियतास्ंिमश्चराचरे।
अहिंसामेव तां विद्याद्वेदाद्धर्मो हि निर्बभौ।। (मनु0, 5-44)
भावार्थ – जिस हिंसा का वेदों में विधान किया गया है, वह हिंसा न होकर अहिंसा ही है, क्योंकि हिंसा, अहिंसा का निर्णय वेद करता है।

एष्वर्थेषु पशून्हिसन्वेदतत्त्वार्थविद्द्विजः।
आत्मानं च पशुं चैव गमयत्युत्तमां गतिम्।।(मनु0, 5-42)
भावार्थ – वेद-कर्मज्ञ द्विज यज्ञ-कर्म में पशु वध करता है तो
वह पशु-सहित उत्तम गति को प्राप्त करता है।

उष्ट्रवर्जिता एकतो दतो गोऽव्यजमृगा भक्ष्याः। (मनु0, 5-18)
भावार्थ- ऊंट को छोड़कर एक ओर दांतवालों में गाय, भेड़, बकरी और मृग भक्ष्य अर्थात्खा ने योग्य हैं।

‘वभिर्हतस्य यन्मांसं ‘ाुचि तन्मनुरब्रवीत।
क्रव्याöिश्च हतस्यान्यैश्चाण्डालाद्यैश्च दस्युभिः।। (मनु0, 5-134)
भावार्थ- मनु के अनुसार, कुत्तों द्वारा पकड़े गए मृग, ‘ोरों द्वारा खाया गया कच्चा मांस, चांडाल व चोरों द्वारा मारे गए मृग का मांस शुद्ध है।

दौ मासौ मत्स्यमांसेन त्रीन्मासान् हारिणेन तु।
औरभ्रेणाथ चतुरः ‘ााकुनेनाथ पत्र्च वै।। (मनु0, 3-269)
भावार्थ- विधि-विधान के द्वारा प्रदत्त मछली के मांस से मानव-पितर दो महीने तक, मृग के मांस से तीन महीने तक, भेड़ के मांस से चार महीने तक, पक्षियों के मांस से पांच महीने तक तृप्त संतुष्ट होते हैं।

“ाण्मासांश्छागमांसेन पार्षतेन च सप्त वै।
अष्टावैणेस्यमांसेन रौरवेण नवैव तु।। (मनु0, 3-270)
भावार्थ- बकरे, चित्रमृग, भेड़ व रूरूमृग के मांस से क्रमशः सात,
आठ और नौ महीने तक मानव- पितर तृप्त-संतुष्ट रहते हैं।

दशामासांस्तु तृप्यन्ति वराहमहिषामिषैः।
‘ाशकूर्मयोस्तु मांसेन मासानेकादशैव तु।। (मनु0, 3-271)
भावार्थ- सूअर और भैंस के मांस से मानव-पितर दस महीने तक संतृप्त
रहते हैं और खरगोश व कछुए के मांस से ग्यारह महीने तक।


■■■


मैंने बचपन में राजा रंतिदेव कि कहानी पढ़ी थी ! जिसके अनुसार उसकी पाकशाला में रोज दो हजार गाये कटती थी ! वक़्त के साथ ये कहानी भूल गया लेकिन गौआतंकियों ने जो आतंक इस वक़्त देश में फैलाया है, उसे देखकर फिरसे ये जानने कि कोशिश कि है कि आखिर गौमाँस का इतिहास कितना पुराना है और गौरक्षा के लिए "गौआतंकियों को असली हमला, समस्या कि जड़ पर करना चाहिए" तो आखिर इसकी जड़ कहाँ है ? और कहीँ ये भी लिखा गया है या नहीं की गौमाँस खाना पाप है -

राज्ञो महानसे पूर्व रन्तिदेवस्य
वै द्विजद्वे सहस्रे तु वध्येते
पशूनामन्वहं तदा अहन्यहनि वध्येते
द्वे सहस्रे गवांतथासमांसं ददतो ह्रान्नं
रन्तिदेवस्य नित्यशः अतुला
कीर्तिर भवन्नृप्स्य द्विजसत्तम 
(महाभारत, वनपर्व 208 199/8-10)
अर्थात राजा रंतिदेव की रसोई के लिए दो हजार पशु काटे जाते थे ! प्रतिदिन दो हजार गायें काटी जाती थीं मांस सहित अन्न का दान करने के कारण राजा रंतिदेव की अतुलनीय कीर्ति हुई !

महाभारत में हि लिखा है -
गौगव्येन दत्तं श्राद्धे तु संवत्सर मिहोच्यते
(अनुशासन पर्व, 88/5 )
अर्थात गौ के मांस से श्राद्ध करने पर पितरों की एक साल के लिए तृप्ति होती है !

ऐसा नहीं था कि वैदिक समय में गौ पवित्र नहीं था ,उसकी पवित्रता के ही कारण यजुर्वेद में यह व्यवस्था दी गई है कि गोमांस खाना चाहिए”
(धर्मशास्त्र विचार, मराठी, पृ 180 )

गौआतंकियों कि सबसे पवित्र पुस्तक मनुस्मृति में लिखा है-
उष्ट्रवर्जिता एकतो दतो गोव्यजमृगा भक्ष्याः
(मनुस्मृति 5/18 )
ऊँट को छोडकर गाय, भेड, बकरी और मृग भक्ष्य अर्थात खाने योग्य है !

कुछ और धर्मग्रंथों को देखे तो -
ऋग्वेद - (10,16,92) में लिखा है कि- 
"जो गाय अपने शरीर को देवों के लिए बली दिया करती है, जिन गायों की आहुतियाँ सोम जानते है, हे इंद्रा ! उन गायों को दूध से परिपूर्ण और बच्चेवाली करके हमारे गोश्त  के लिए भेज दें !

ऋग्वेद - (10,85,13) मे घोषित किया गया है -
"एक लड़की की शादी के अवसर पर बैलों और गायों की बलि की जाती हैं !

ऋग्वेद - (6/17/1) में कहा गया है कि -
"इंद्र ने गाय, बछड़ा, घोड़े और भैंस का मांस खाने के लिए उपयोग किया !"

महर्षि याज्यवल्क्या ने षत्पथ ब्राह्मण (3,1,2,21) में कहा है -
"मैं गो-मांस ख़ाता हूँ, क्योंकि यह बहुत नर्म और स्वादिष्ट है !"

आपास्तंब गृहसूत्रां (1,3,10) मे कहा गया हैं -
"एक अतिथि के आगमन पर, पूर्वजों की 'श्राद्ध' के अवसर पर और शादी के अवसर पर गाय को बलि किया जाना चाहिए !"

हिंदू धर्म के सबसे बड़े प्रचारक स्वामी विवेकानंद की पुस्तक- "द कम्प्लीट वर्क ऑफ़ स्वामी विवेकानंद" के खण्ड 3, पृष्ठ 536 में इस प्रकार कहा -
"तुम्हें जान कर आश्चर्या होगा है कि प्राचीन हिंदू संस्कार और अनुष्ठानों के अनुसार, एक आदमी एक अच्छा हिंदू नही हो सकता जो गोमांस नहीं खाए !"

महात्मा गांधी अपनी पुस्तक 'हिंदू धर्म' के पृष्ठ 120 में कहते हैं -
"मैं जानता हूँ कि विद्वान हमें बताते हैं की गाय बलिदान वेदों में उल्लेख किया है !

शाकाहार का प्रचार करने वालों और माँसाहार को पाप समझने वालों के लिए गुगली -
हिन्दू विधि ग्रन्थ मनुस्मृति पेशे खिदमत है -
मनुस्मृति (अध्याय - 5, पद्य - 30) कहता है-
"खाने योग्य पशुओं के माँस खाने मे कोई पाप नहीं है, ब्रह्मा ने भक्षण और खाद्य दोनों का निर्माण किया है !"
मनुस्मृति (अध्याय - 5,पद्य - 35) में उल्लेख है:-
"(श्राद्ध और मधुपर्क में) तथा विधि नियुक्ति होने पर जो मनुष्य गौ माँस नहीं खाता वह मरने के इक्कीस जनम तक पशु होता है।"




■■■

जो मांस नहीं खाएगा वह 21 बार पशु योनी में पैदा होगा-मनुस्मृति (5/35)
: है, जिसमें लिखा गया है कि किसी भी स्त्री के विधवा होने पर उसके बाल काट दो, सफेद वस्त्र पहना दो और उसे खाने को केवल इतना दिया जाए कि वह मात्र जीवित रह सके अर्थात उस अबला विधवा नारी को हड्डियों का पिंजर मात्र बना दिया जाए।
इसके अनुसार किसी विधवा को पुनर्विवाह करना पाप माना गया है। याद रहे, ऐसे ही पुराणों की शिक्षाओं के कारण हमारे देश में वेश्यावृति और सति प्रथा ने जन्म लिया था। इसी प्रकार कुछ अन्य ब्राह्मणवादी ग्रंथों ने औरतों व दलितों के साथ घोर अन्याय करने की शिक्षा दी और हकीकत यह है कि इसी अन्याय के कारण भारतवर्ष को एक बहुत लंबी गुलामी का सामना करना पड़ा। उदाहरण के लिए……..
मनुस्मृति(100) के अनुसार पृथ्वी पर जो कुछ भी है, वह ब्राह्मणों का है।
……मनुस्मृति(101) के अनुसार दूसरे लोग ब्राह्मणों की दया के कारण सब पदार्थों का भोग करते हैं।
…..मनुस्मृति (11-11-127) के अनुसार मनु ने ब्राह्मणों को संपत्ति प्राप्त करने के लिए विशेष अधिकार दिया है। वह तीनों वर्णों से बलपूर्वक धन छीन सकता है अर्थात चोरी कर सकता है।
…..मनुस्मृति (4/165-4/१६६) के अनुसार जान-बूझकर क्रोध से जो ब्राह्मण को तिनके से भी मारता है, वह 21 जन्मों तक बिल्ली की योनी में पैदा होता है। …..मनुस्मृति (5/35) के अनुसार जो मांस नहीं खाएगा, वह 21 बार पशु योनी में पैदा होगा।
……मनुस्मृति (64 श£ोक) के अनुसार अछूत जातियों के छूने परपर स्नान करना चाहिए।
……गौतम धर्म सूत्र(2-3-4) के अनुसार यदि शूद्र किसी वेद को पढ़ते सुन लें तो उनके कान में पिघला हुआ सीसा या लाख डाल देनी चाहिए।
……मनुस्मृति (8/21-22) के अनुसार ब्राह्मण चाहे अयोग्य हो, उसे न्यायाधीश बनाया जाए वर्ना राज्य मुसीबत में फंस जाएगा। इसका अर्थ है कि भूत पुर्व में भारत के उच्चत्तम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश श्री अलतमस कबीर साहब को तो रखना ही नही चाहिये था !
……मनुस्मृति (8/267) के अनुसार यदि कोई ब्राह्मण को दुर्वचन कहेगा तो वह मृत्युदंड का अधिकारी है।
……मनुस्मृति (8/270) के अनुसार यदि कोई ब्राह्मण पर आक्षेप करे तो उसकी जीभ काटकर दंड दें।
…..मनुस्मृति (5/157) के अनुसार विधवा का विवाह करना घोर पाप है।
विष्णुस्मृति में स्त्री को सती होने के लिए उकसाया गया है !
….. शंख स्मृति में दहेज देने के लिए प्रेरित किया गया है।
….. देवल स्मृति में तो किसी को भी बाहर देश जाने की मनाही है।
……बृहदहरित स्मृति में बौद्ध भिक्षु व मुंडे हुए सिर वालों को देखने की मनाही है।
….ऐतरेय ब्राह्मण(3/24/27) के अनुसार वही नारी उत्तम है, जो पुत्र को जन्म दे। (35/5/2/४7) के अनुसार पत्नी एक से अधिक पति ग्रहण नहीं कर सकती, लेकिन पति चाहे कितनी भी पत्नियां रखे ।
…..आपस्तब (1/10/51/ 52), बोधयान धर्मसूत्र (2/4/6), शतपथ ब्राह्मण (5/2/3/14) के अनुसार जो स्त्री अपुत्रा है, उसे त्याग देना चाहिए।
……तैत्तिरीय संहिता(6/6/4/3) के अनुसार पत्नी आजादी की हकदार नहीं है।
…….शतपथ ब्राह्मण (9/6) के अनुसार केवल सुंदर पत्नी ही अपने पति का प्रेम पाने की अधिकारी है।
……बृहदारण्यक उपनिषद् (6/4/7) के अनुसार अगर पत्नी संभोग करने के लिए तैयार न हो तो उसे खुश करने का प्रयास करो। यदि फिर भी न माने तो उसे पीट-पीटकर वश में करो।
….मैत्रायणी संहिता(3/8/3) के अनुसार नारी अशुभ है। यज्ञ के समय नारी, कुत्ते व शूद्र को नहीं देखना चाहिए अर्थात नारी व शूद्र कुत्ते के समान हैं। (1/10/11) के अनुसार नारी तो एक पात्र(बर्तन) के समान है।
……महाभारत(12/40/1) के अनुसार नारी से बढक़र अशुभ कुछ भी नहीं है। इनके प्रति मन में कोई ममता नहीं होनी चाहिए।
-नुज़हत नाज़नीन खान की फेसबुक पोस्ट से प्राप्त लेख
नोट-लेख मे मौजूद जानकारी/तथ्यों की पुष्टि ‘तीसरी जंग’ नहीं करता है और न ही तीसरी जंग का उक्त लेख से कोई संबंध है|






No comments:

Post a Comment

मूत्र द्वार।

तेरे मुत्र द्वार को में खोल देता हूं जैसे झिल का पानी बन्ध को खोल देता है । तेरे मूत्र मार्ग को खोल दिया गया है जैसे जल से भरे समुद्र का मार...