कूर्मपुराण अध्याय-37 मे लिखी कथा।
"एक बार भगवान शिव खुद भी नंग-धड़ंग होकर और साथ मे भगवान विष्णु को भी एक सुन्दर महिला बनाकर उन्हे भी नग्न-अवस्था मे लेकर देवदारू नामक वन मे विचरण करने लगे। उसी वन मे कई ऋषियों के आश्रम भी थे तथा उन ऋषियों की पत्नियाँ और उनके युवा पुत्र तथा पुत्रबधुऐं निवास करती थी। वन मे विचरण करते-करते शिव और स्त्री-रूपधारी विष्णु नंगे बदन ही उन ऋषियों के आश्रम के पास पहुँच गये।
दोनो को नग्न अवस्था मे देखकर ऋषियों के पुत्र और बहुऐ स्तब्ध हो गयी! शिव नग्न-स्थिति मे भी इतने सुन्दर दिख रहे थे कि ऋषियों की जवान पुत्रबधुऐं कामातुर हो उनसे जाकर लिपट गयी और उनका आलिंगन करने लगी। विष्णु भी स्त्रीरूप मे अपना जलवा बिखेर रहे थे, उनके गदराऐ सुंदरता को देखकर तमाम ऋषिपुत्र भी विष्णु के चरणों मे जाकर गिर गये और उनसे प्रणय की याचना कर लगे।
अभी यह खेल चल ही रहा था कि अचानक तमाम ऋषिगण भी वहाँ आ गये और उन्होने जब अपने पुत्रों और बहुओं को इस तरह वासनाग्रस्त स्थिति मे देखा तो अत्यन्त क्रोध किया। क्रोध मे आकर उन ऋषियों ने विष्णु और शिव दोनो को अनेक प्रकार के श्राप दिये पर उनके सारे श्राप निष्फल होकर रह गये। अतः क्रोध मे आकर उन ऋषियों ने नग्न शिव और स्त्री-रूपधारी विष्णु को मारकर उस वन से भगा दिया।
अब दोनो देवदारू वन से घायल (ऋषियों की मार से) होकर वशिष्ठ के आश्रम मे आ गये! वशिष्ठ की पत्नि अरुन्धती ने दोनों देवों का बहुत स्वागत किया तथा उनके घावों पर औषधि भी लगायी। अभी घायल विष्णु और शिव का वशिष्ठ के आश्रम मे उपचार चल ही रहा था कि अचानक वशिष्ठ के शिष्यगण कहीं से आ गये और आश्रम मे नग्न महिला-पुरुष के जोड़े को देखकर उन्हे डंडे, ढ़ेलों तथा मुक्कों से मारने लगे। उन मुनियों ने क्रोध मे आकर शिव से कहा 'हे दुर्मते! तुम अपने इस लिंग को उखाड़ फेंको'। शिवजी ने कहा कि यदि आप लोगों को मेरे लिंग के प्रति द्वेष उत्पन्न हो गया है तो मै वैसा ही करता हूँ।
ऐसा कहकर शिव ने अपना लिंग उखाड़कर फेंक दिया! उनके लिंग फेंकते ही सबकुछ अदृश्य हो गया और चारो तरफ अंधेरा छा गया! सूर्य का तेज मंद हो गया, समुद्र सूखने लगे और धरती कांपने लगी। अब सारे ऋषिगण परेशान होकर ब्रह्माजी के पास गये और बोले कि हे देव! दारूवन मे एक अति सुन्दर नग्न पुरुष आया था जो हमारी पत्नियों और बहुओं को दूषित कर रहा था, तथा उसके साथ एक सुन्दर महिला भी थी, जो हमारे पुत्रों को अपनी ओर आकर्षित कर रही थी! हम लोगों ने उसे विविध प्रकार के श्राप दिये, पर जब हमारे सारे श्राप निष्फल हो गये तब हम लोगो ने उसे बहुत मारा और उस पुरुष के लिंग को नीचे गिरा दिया। लिंग के नीचे गिरते ही सभी प्राणियों मे भय प्रदान करने वाला भीषण उत्पात मच गया! हे ब्रह्मदेव! वह स्त्री और पुरुष आखिर कौन थे?"
अब इसके आगे लम्बी कहानी है कि ब्रह्मा ने बताया कि वे साक्षात महादेव और विष्णु थे, और फिर ऋषियों ने अपने पाप का प्रायश्चित करने के लिये उनके कटे हुये लिंग के समान एक दूसरा लिंग बनाकर अपने पुत्रों, पत्नियों तथा बहुओं सहित वैदिक-रीति से शिव की अराधना की और फिर सब कुछ पहले जैसा ठीक हो गया।
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पुराण लिखने वालों की सबसे बड़ी करतूत यह थी कि उन्हे जिस महापुरुष के माता-पिता का नाम नही पता होता था वो उसे ऐसी-ऐसी जगह से पैदा कर देते थे कि पढ़ने वाला भी बेहोश हो जाये!
कई बार ऐसा होता है कि सभी महामानवों के माँ-बाप का नाम ज्ञात नही होता, जैसे कि अभी भी कबीर और साँईबाबा के माता-पिता का नाम ज्ञात नही है....
ठीक ऐसे ही पुरातनकाल मे ब्रह्मा, विष्णु और शिव के माँ-बाप का नाम पता नही था!
पुराणों के लेखकों ने इस समस्या का भी हल निकाल लिया, और इन देवताओं को जहाँ-तहाँ से पैदा करवाना शुरू कर दिया!
जैसे शिवपुराण के अनुसार शिव एक बार अपने टखने पर अमृत मल रहे थे, तभी वहीं से विष्णु पैदा हो गये!
पद्मपुराण और विष्णुपुराण के अनुसार विष्णु के ललाट से शिव का जन्म हुआ, और इसी पुराण के अनुसार विष्णु की नाभि से कमल निकला तथा उसी कमल से ब्रह्मा पैदा हुये!
देवी पुराण के अनुसार इन तीनों को ही आदिशक्ति देवी ने पैदा किया।
अब नयी जानकारी मिली है कूर्मपुराण से..
कूर्मपुराण-10/22के अनुसार-
"तदा प्राणमयो रुद्रः प्रादुरासीत् प्रभोर्मुखात् ।
सहस्त्रादित्यसंकाशो युगान्तदहनोपमः।।"
अर्थात- प्रभु (विष्णु) के मुख से हजारों सूर्य के समान प्रलयकारी शिव पैदा हुये।
आगे 23वें श्लोक मे लिखा है कि पैदा होते ही जोर-जोर से रोने के कारण उनका नाम 'रुद्र' पड़ा!
अब सोचो इतनी बड़ी अवैज्ञानिक बात...
मतलब हद है यार.... ग्रंथ के नाम पर कुछ भी चिपका देते थे!
अरे भाई, विष्णु जी के मुँह मे कौन सी बच्चेदानी थी जो वहाँ से कोई पैदा होगा?
ये तो ऐसा लिखते थे, कि चमत्कार भी एक बार शर्म से लाल हो जाये!
अभी यही शान्ति नही मिली थी, इसी पुराण इसी 10/20 मे लिखा है-
"क्रोधाविष्टस्य नेत्राभ्यां प्रापतन्नश्रुबिन्दवः।
ततस्तेभ्योऽश्रुबिन्दुभ्यो भूताः प्रेतास्तथाभवन् ।।"
अर्थात- क्रोध के कारण ब्रह्माजी की आँखों से आंसू की बूँद गिरी, और उस आंसुओं से सब भूत-प्रेत पैदा हो गये, तथा उन्हे देखकर क्रोध और शोक से ब्रह्माजी ने अपने प्राण त्याग दिये!
अब लो... यहाँ ब्रह्मा ने आसुओं से भूत-प्रेत पैदा कर दिये, और शर्म से ब्रह्मा मर भी गये!
फिर दूसरे ब्रह्मा कहाँ से आये भाई?
अब सोचो कि कैसे-कैसे विद्वान थे, पूर्वकाल मे?
क्या कभी सोचा है कि शिव और विष्णु एक ही काल मे थे?
शिव के बारें मे शोध करने वालों का मानना था कि शिव और विष्णु समकालीन नही थे! शिव विष्णु से काफी प्राचीन थे, सोचो कि जिस दौर मे विष्णु रेशमी वस्त्र पहनते थे, उसी दौर मे शिव बाघ की खाल पहनते थे!
शोधकर्ताओं का मानना है कि शिव का निवास स्थान भूटान के आस-पास था, तब ये क्षेत्र हिमालय की तराइयों मे फैला था और भूटान का प्राचीन नाम भूतान या भूतस्थान था, और वहाँ के जनजातियों के मुखिया होने की वजह से शिव को "भूतनाथ" भी कहा जाता था!
शिव किराट जाति से सम्बन्ध रखते थे, जो आज अनुसूचित जनजाति (ST) मे आती है!
यह सभी को पता है कि शिव अनार्य देवता थे, पर बाद मे आर्यों ने उन्हे भी देवता मान लिया!
सच है कि पुराणों मे ऐसे-ऐसे पाखण्ड लिखे हैं जो हिन्दू-समाज को शर्मसार कर दे, पर पता नही क्यों हिन्दू इन पुराणों का विरोध करने के बजाये इनका समर्थन करते हैं!
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