वर्षा एक घोड़े का मूत्र है।
उसका शरीर हिलाना मेघका गर्जन है. वह जो मुत्र त्याग करता है वही वर्षा है
(बृहदारण्यकोपनिषद,नशंकर-भाष्य, गीताप्रेस पृष्ठ 40)
तेरे मुत्र द्वार को में खोल देता हूं जैसे झिल का पानी बन्ध को खोल देता है । तेरे मूत्र मार्ग को खोल दिया गया है जैसे जल से भरे समुद्र का मार...
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