पुराणों मे ऐसे कई प्रकरण मिल जायेंगे जब किसी राजा या अन्य को संतान न होने पर ऋषियों से यज्ञ-हवन करवाने या आशिर्वाद प्राप्त करने से संतानोत्पत्ति हो जाती थी। रामायण काल मे देखा जाये तो राम और उनके चारों भाइयों का जन्म भी ऐसी ही पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाने से हुआ था। महाभारत काल मे तो कर्ण, पाँचों पाण्डव, पाण्डु, धृतराष्ट्र और विदुर समेत कई महापुरुष देवताओं या ऋषियों के आशिर्वाद से ही पैदा हुये हैं। प्राचीनकाल मे सनातनियों मे नियोग प्रथा आम बात थी। पूर्वकाल मे जब किसी महिला को अपने पति से संतान नही पैदा होता था तो वह किसी ऋषि या देवता से नियोग करके संतान पैदा करती थी। आगे चलकर इसी प्रथा को मनु ने धार्मिक नियम बना दिया था।
मनु ने मनुस्मृति-9/59 मे लिखा है-
"देवराद्वा सपिण्डाद्वा स्त्रिया सम्यङ् नियुक्तया।
प्रजेप्सिताधिगन्तव्या सन्तानस्य परिक्षये।।"
अर्थात- अपने पति और गुरूजनों की आज्ञा से संतान न होने पर स्त्री देवर या सपिण्ड से अभीष्ट (नियोग करके) संतान पैदा करे!
नियोग प्रथा का वर्णन मनुस्मृति मे मिलता है पर मनु भी इसे "पशु-धर्म" ही मानते थे।
मनु ने मनुस्मृति-9/65-66 मे लिखा है-
"विवाह के वेदोक्त मंत्रों मे नियोग और विधवा विवाह का कही वर्णन नही है। यह पशुधर्म है और विद्वान ब्राह्मणों ने इसकी निन्दा की है। मानव समाज मे बेन राजा के समय मे यह पशु-धर्म प्रचलित हुआ।"
यदि यज्ञ करने से या आर्शिवाद देने से पुत्र पैदा करने मे सक्षम थे तो मनु ने नियोग जैसी बकवास प्रथा को क्यों आगे बढ़ाया? बात साफ है कि युग कोई भी रहा हो, बिना स्त्री-पुरुष के समागम से संतान कभी भी पैदा नही होती थी। वास्तव मे सच्चाई यही है कि पुराणों और रामायण/महाभारत मे जितने भी महापुरुष मंत्रोच्चारित फल अथवा खीर पीने से, या देवताओं अथवा ऋषियों (ब्राह्मणों) के आशिर्वाद से पैदा हुये हैं, वे सब नियोग द्वारा ही जन्मे हैं।
■■■
नियोग और ( सनातन ) हिन्दू धर्म (देवर, जेठ, ससुर, ताऊ, चाचा, मामा सबके संग संभोग)
नियोग का अर्थ
वेदादि शास्त्रों में पति द्वारा संतान उत्पन्न न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा नियमबद्ध उपाय है जिसके अनुसार स्त्री अपने देवर, जेठ, ससुर, ताऊ, चाचा, मामा सबके संग संभोग अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है। यदि पति जीवित है तो वह व्यक्ति स्त्री के पति की इच्छा से केवल एक ही और विशेष परिस्थिति में दो संतान उत्पन्न कर सकता है। इसके विपरीत आचरण राजदंड प्रायश्चित् के भागी होते हैं। हिन्दू प्रथा के अनुसार नियुक्त पुरुष सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए।
इसी विधि के द्वारा पांडु राजा की स्त्री कुन्ती और माद्री आदि ने नियोग किया । महाभारत में वेद व्यास विचित्रवीर्य व चित्रांगद के मर जाने के पश्चात् उन अपने भाइयों की स्त्रियों से नियोग करके अम्बिका से धृतराष्ट्र और अम्बालिका से पांडु और दासी से विदुर की उत्पत्ति की थी।नीचे तथ्यों पर आधारित नियोग विषय पर सभी शंकाओं का प्रश्नों का उत्तर दिया गया है।
क्या प्राचीन काल में नियोग व्यवहार का प्रयोग होता था?
निस्संदेह होता था महाभारत/पुराण/स्मृति में नियोग के प्रमाण भरे पड़े है।
महाभारत में नियोग
व्यासजी का काशिराज की पुत्री अम्बालिका से नियोग- महाभारत आदि पर्व अ 106/6
वन में बारिचर ने युधिस्टर से कहा- में तेरा धर्म नामक पिता- उत्पन्न करने वाला जनक हूँ- महाभारत वन पर्व 314/6
उस राजा बलि ने पुन: ऋषि को प्रसन्न किया और अपनी भार्या सुदेष्णा को उसके पास फिर भेजा- महाभारत आदि पर्व अ 104
कोई गुणवान ब्राह्मण धन देकर बुलाया जाये जो विचित्र वीर्य की स्त्रियों में संतान उत्पन्न करे- महाभारत आदि पर्व 104/2
उत्तम देवर से आपातकाल में पुरुष पुत्र की इच्छा करते हैं- महाभारत आदि पर्व 120/26
परशुराम द्वारा लोक के क्षत्रिय रहित होने पर वेदज्ञ ब्राह्मणों ने क्षत्रानियों में संतान उत्पन्न की- महाभारत आदि पर्व 103/10
पांडु कुंती से- हे कल्याणी अब तू किसी बड़े ब्राह्मण से संतान उत्पन्न करने का प्रयत्न कर- महाभारत आदि पर्व 120/28
पुराणों में नियोग
किसी कुलीन ब्राह्मण को बुलाकर पत्नी का नियोग करा दो, इनमे कोई दोष नहीं हैं- देवी भगवत 1/20/6/41
व्यास जी के तेज से में भस्म हो जाऊगी इसलिए शरीर से चन्दन लपेटकर भोग कराया- देवी भगवत 1/20/65/41
भीष्म जी ने व्यास से कहा माता का वचन मानकर , हे व्यास सुख पूर्वक परे स्त्री से संतान उत्पत्ति के लिए विहार कर- देवी भागवत 6/24/46
पति के मरने पर देवर को दे- देवर के आभाव में इच्छा अनुसार देवे – अग्नि पुराण अध्याय 154
राजा विशाप ने स्त्री का सुख प्रजा के लिए त्याग दिया। वशिष्ट ने नियोग से मद्यंती में संतान उत्पन्न की- विष्णु पुराण 4/4/69
रामायण में नियोग
वह तू केसरी का पुत्र क्षेत्रज नियोग से उत्पन्न बड़ा पराकर्मी – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/28
मरुत ने अंजना से नियोग कर हनुमान को उत्पन्न किया – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/15
राम द्वारा बाली के मारे जाने पर उसकी पत्नी तारा ने सुग्रीव से संग किया – गरुड़ पुराण उतर खंड 2/52
मनुस्मृति के प्रमाण
आपातकाल में नियोग भी गौण हैं- मनु 9/58
नियोग संतान के लोभ के लिए ही किया जाना चाहिए- ब्राह्मण सर्वस्व पृष्ट 233
टिप्पणी :- (देवर अर्थात द्वितीय वर) आज भी प्रचलित है।
■■■
नियोग क्या है जाने उसके नियम।
नियोग, मनुस्मृति में पति द्वारा संतान उत्पन्न न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा उपाय है जिसके अनुसार स्त्री अपने देवर अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है। यदि पति जीवित है तो वह व्यक्ति स्त्री के पति की इच्छा से केवल एक ही और विशेष परिस्थिति में दो संतान उत्पन्न कर सकता है। इसके विपरीत आचरण प्रायश्चित् के भागी होते हैं। हिन्दू प्रथा के अनुसार नियुक्त पुरुष सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए। इसी विधि द्वारा महाभारत में वेद व्यास के नियोग से अम्बिका तथा अम्बालिका को क्रमशः धृतराष्ट्र तथा पाण्डु उत्पन्न हुये थे।
नियोग प्रथा के नियम
=============:
१. कोई भी महिला इस प्रथा का पालन केवल संतान प्राप्ति के लिए करेगी न कि आनंद के लिए।
२. नियुक्त पुरुष केवल धर्म के पालन के लिए इस प्रथा को निभाएगा। उसका धर्म यही होगा कि वह उस औरत को संतान प्राप्ति करने में मदद कर रहा है।
३. इस प्रथा से जन्मा बच्चा वैध होगा और विधिक रूप से बच्चा पति-पत्नी का होगा, नियुक्त व्यक्ति का नहीं।
४. नियुक्त पुरुष उस बच्चे के पिता होने का अधिकार नहीं मांगेगा और भविष्य में बच्चे से कोई रिश्ता नहीं रखेगा।
५. इस प्रथा का दुरूपयोग न हो, इसलिए पुरुष अपने जीवन काल में केवल तीन बार नियोग का पालन कर सकता है।
६. इस कर्म को धर्म का पालन समझा जायेगा और इस कर्म को करते समय नियुक्त पुरुष और पत्नी के मन में केवल धर्म ही होना चाहिए, वासना और भोग-विलास नहीं। नियुक्त पुरुष धर्म और भगवान के नाम पर यह कर्म करेगा और पत्नी इसका पालन केवल अपने और अपने पति के लिए संतान पाने के लिए करेगी।
७. नियोग में शरीर पर घी का लेप लगा देते हैं ताकि पत्नी और नियुक्त पुरुष के मन में वासना जागृत न हो।
महाभारत में नियोग
=============:
महाभारत में धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर नियोग से पैदा हुए थे जिसमे ऋषि वेद व्यास नियुक्त पुरुष थे। बाद में, पाण्डु संतान देने में असमर्थ होने के कारण, पाँचों पांडव नियोग से पैदा हुए थे जिसमे प्रत्येक नियुक्त पुरुष अलग-अलग देवता थे।
कला और संस्कृति पर प्रभाव
=============:
मराठी फिल्म अनाहत नियोग प्रथा पर आधारित है जिसका निर्देशन अमोल पालेकर ने किया है। हिंदी फिल्म एकलव्य: द रॉयल गार्ड नियोग प्रथा पर आधारित है जिसमें अमिताभ बच्चन का पात्र अपने कर्तव्य और अपने नियोग से हुये लड़के (सैफ़ अली ख़ान) के बीच बंट जाता है।
१९८९ की फिल्म, ऊँच-नीच में एक संन्यासी (कुलभूषण खरबंदा) अपने गुरु के आदेश पर एक औरत से नियोग करता है।
क्या `नियोग´ जैसी शमर्नाक व्यवस्था ईश्वर ने दी है
=============:
हिन्दू धर्म में विधवा औरत और विधुर मर्द को अपने जीवन साथी की मौत के बाद पुनर्विवाह करने से वेदों के आधार पर रोक और बिना दोबारा विवाह किये ही दोनों को `नियोग´ द्वारा सन्तान उत्पन्न करने की व्यवस्था है। एक विधवा स्त्री बच्चे पैदा करने के लिए वेदानुसार दस पुरूषों के साथ `नियोग´ कर सकती है और ऐसे ही एक विधुर मर्द भी दस स्त्रियों के साथ `नियोग´ कर सकता है। बल्कि यदि पति बच्चा पैदा करने के लायक़ न हो तो पत्नि अपने पति की इजाज़त से उसके जीते जी भी अन्य पुरूष से `नियोग´ कर सकती है। हिन्दू धर्म के झंडाबरदारों को इसमें कोई पाप नज़र नहीं आता।
क्या वाक़ई ईश्वर ऐसी व्यवस्था देगा जिसे मानने के लिए खुद वेद प्रचारक ही तैयार नहीं हैं?
ऐसा लगता है कि या तो वेदों में क्षेपक हो गया है या फिर `नियोग´ की वैदिक व्यवस्था किसी विशेष काल के लिए थी, सदा के लिए नहीं थी । ईश्वर की ओर से सदा के लिए किसी अन्य व्यवस्था का भेजा जाना अभीष्ट था।
अब सवाल है कि कौन सी व्यवस्था अपनी जाये ? इसका सीधा सा हल है पुनर्विवाह की व्यवस्था
जी हाँ, केवल पुनर्विवाह के द्वारा ही विधवा और विधुर दोनों की समस्या का सम्मानजनक हल संभव है।
नियोग और हिन्दू धर्म ग्रन्थ
=============:
क्या नियोग व्याभिचारी प्रथा है ?
नियोग
=============:
नियोग का अर्थ – वेदादि शास्त्रों में पति द्वारा संतान उत्पन्न न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा नियमबद्ध उपाय है जिसके अनुसार स्त्री अपने देवर अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है। यदि पति जीवित है तो वह व्यक्ति स्त्री के पति की इच्छा से केवल एक ही और विशेष परिस्थिति में दो संतान उत्पन्न कर सकता है। इसके विपरीत आचरण राजदंड प्रायश्चित् के भागी होते हैं। हिन्दू प्रथा के अनुसार नियुक्त पुरुष सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए।
इसी विधि के द्वारा पांडु राजा की स्त्री कुन्ती और माद्री आदि ने नियोग किया । महाभारत में वेद व्यास विचित्रवीर्य व चित्रांगद के मर जाने के पश्चात् उन अपने भाइयों की स्त्रियों से नियोग करके अम्बिका से धृतराष्ट्र और अम्बालिका से पांडु और दासी से विदुर की उत्पत्ति की थी।नीचे तथ्यों पर आधारित नियोग विषय पर सभी शंकाओं का प्रश्नों का उत्तर दिया गया है । ध्यान पूर्वक पढ़े ।
शंका 1 क्या नियोग करना धर्म हैं?
=============:
जिस किसी भी आस्तिक व्यक्ति ने वैदिक सिद्धान्तों का व्यापक अध्ययन किया है वह कर्म को तीन प्रकार का मानता है।
1. धर्म 2. अधर्म, 3. आपद्धर्म।
1. धर्म – वह सब कर्म जिनके करने से पुण्य और जिनके न करने से पाप होता है। जैसे सन्ध्या (सुबह शाम परमात्मा का ध्यान स्मरण) करना, सुपात्र को दान देना, वाणी से सत्य, प्रिय और पहितकारी बोलना, सुख दुःख और हानि लाभ में समान रहना आदि।
2. अधर्म- उन कर्मो का नाम है जिनके करने से पाप और जिनके न करने से पुण्य होता है जैसे शराब पीना, जुआ खेलना, चोरी, डकैती करना, ठगना, गाली देना, अपमान करना, निरापराध को दण्ड देना आदि।
3 .आपद्धर्म – वे सभी कर्म जिनको सामान्य स्थितियों में करना अच्छा नहीं कहा जाता परन्तु जिनको आपदा अथवा संकट में करना पाप कर्म नहीं कहलाता हैं। जैसे शल्य चिकित्सक द्वारा प्राण रक्षा के लिए मनुष्य के शरीर पर चाकू चलाना, देश कि सीमा पर शत्रु के प्राणों का हरण करना, जंगल में नरभक्षी शेर का शिकार करना, सुनसान द्वीप पर प्राण रक्षा के लिये माँस आदि ग्रहण करना आदि।
विवाह धर्म का अंग है, व्याभिचार अधर्म का अंग है ठीक वैसे ही नियोग आपद्धर्म का अंग है।
शंका 2 . नियोग का मूल उद्देश्य क्या हैं
=============:
एक साधारण से प्रश्न पर विचार करें। यदि आपसे पूछा जाए कि आप रोटी, चावल, दाल, सब्जी, दूध, दही आदि कब खाते हैं तो आप कहेंगे “प्रतिदिन” । अब यदि आप से पूछा जाए कि कुनैन आप कब खाते हैं तो आप कहेंगे कि “केवल मलेरिया में” । क्या कड़वी कुनैन भी खाने की चीज है । परन्तु मलेरिया में हम न खाने वाली वस्तु को भी खाते हैं ताकि हमारी जान बच जाए। जैसे रोटी चावल आदि सामान्य जीवन का अंग है ठीक इसी तरह विवाह भी सामान्य जीवन का अंग है । जैसे न खाने वाली कुनैन भी आपत्ति में खाना उचित होता है इसी तरह सामान्य जीवन का अंग न होते हुए भी आपत्ति काल में नियोग सही होता है।
सभी आक्षेपकों ने नियोग को अनैतिक कहा और इसकी निन्दा की। परन्तु किसी ने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि नियोग मूलतः समाज व्यवस्था का सन्तुलन रखने और व्याभिचार को बचाने के लिए ही एक आपद्धर्म है।
जैसे स्वस्थ व्यक्ति को दवा की जरूरत नहीं है वैसे ही सामन्य रूप से संतान उत्पन्न होने पर भी नियोग की जरूरत नहीं है । जैसे कुछ परिस्थितियों मे दवा के बिना शरीर मर जाता है या स्थायी रूप से विकृत /अक्षम हो जाता है वैसे ही बिना नियोग के व्याभिचार से समाज विकृत हो जाता है। जैसे चिकित्सा के कुछ नियम हैं (जैसे दवा की मात्रा /पथ्य/अपथ्य) वैसे नियोग के भी कुछ नियम हैं । जैसे बिना नियम के दवाई लाभ के स्थान पर हानि करती है वैसे ही बिना नियम पालन के नियोग समाज को हानि पहुंचाता है।
नियोग का केवल और केवल एक ही प्रयोजन हैं असक्षम व्यक्ति के लिए संतान उतपन्न करने के लिए, विधवा अथवा जिसका पति उपलब्ध न हो उसे संतान उत्पन्न करने के लिए जिससे उसका जीवन सुचारु प्रकार से व्यतीत हो सके, समाज में मुक्त सम्बन्ध पर लगाम लगाकर, उसे नियम बद्ध कर व्यभिचार को बढ़ने से रोकने के लिए।
शंका 3. नियोग और व्याभिचार में क्या अन्तर हैं
=============:
जैसे बिना विवाहितों का व्याभिचार होता है वैसे बिना नियुक्तों का व्याभिचार कहाता है । इससे यह सिद्ध हुआ कि जैसे नियम से विवाह होने पर व्याभिचार न कहावेगा तो नियमपूर्वक नियोग होने से व्याभिचार न कहावेगा ।
फिर भी बहुत से लोग आलोचना करते हुए कहते हैं कि व्याभिचार और नियोग एक समान हैं। दोनों में कोइ अन्तर नहीं है। इसलिए नियोग भी पाप और अधर्म है। जैसे अपराधी किसी को चाकू से घायल करता है या कोई भी अंग काटता है तो वह अपराध है क्योंकि उसमें कोई नियम और विधि नहीं है। परन्तु जब एक शल्य चिकित्सक किसी रोगी का कोइ अंग चाकू से काटता है तो वह नियम से करता है । भले ही वह चाकू से रोगी को चोट पहुंचा रहा है परन्तु वह चाकू का प्रयोग नियम और चिकित्सा विधि के अनुसार रोग़ी के हित के लिए करता है। इसी प्रकार व्याभिचार और वेश्यागमन का कोइ नियम नहीं है और समाज के लिए हानिकारक है। परन्तु नियोग विधि और नियमों से बंधा हुआ है और समाज के हित में है।
शंका 4. नियोग विषय पर महर्षि दयानन्द के क्या विचार हैं
=============:
ॠग्वेदादि भाष्य भूमिका के नियोग प्रकरण में महर्षि दयानन्द जी लिखते हैं –
“इसी प्रकार से विधवा और पुरूष तुम दोनो आपत्काल में धर्म करके सन्तान उत्पत्ति करो और उत्तम-उत्तम व्यवहारों को सिद्ध करते जाओ। गर्भ हत्या या व्याभिचार कभी मत करो। किन्तु नियोग ही कर लो। यही व्यवस्था सबसे उत्तम है।”
इस वाक्य से अर्थ निकलता है
-1. नियोग आपद्धर्म है क्योंकि नियोग केवल आपत्काल मे किया जाता है ।
2. व्याभिचार और गर्भपात अधर्म/महापाप है इसलिए व्याभिचार और गर्भपात नहीं करना चाहिए।
3. नियोग व्यभिचार और गर्भपात जैसे महापापों से बचने का उपाय है।
नोट : अधिक जानकारी के लिए सत्यार्थ प्रकाश में नियोग विषय को पढ़े।
शंका 5. क्या प्राचीन काल में नियोग व्यवहार का प्रयोग होता था
=============:
महाभारत/पुराण/स्मृति में नियोग के प्रमाण भरे पड़े है । देखिये >>>
महाभारत में नियोग
व्यासजी का काशिराज की पुत्री अम्बालिका से नियोग- महाभारत आदि पर्व अ 106/6
वन में बारिचर ने युधिस्टर से कहा- में तेरा धर्म नामक पिता- उत्पन्न करने वाला जनक हूँ- महाभारत वन पर्व 314/6
उस राजा बलि ने पुन: ऋषि को प्रसन्न किया और अपनी भार्या सुदेष्णा को उसके पास फिर भेजा- महाभारत आदि पर्व अ 104
कोई गुणवान ब्राह्मण धन देकर बुलाया जाये जो विचित्र वीर्य की स्त्रियों में संतान उत्पन्न करे- महाभारत आदि पर्व 104/2
उत्तम देवर से आपातकाल में पुरुष पुत्र की इच्छा करते हैं- महाभारत आदि पर्व 120/26
परशुराम द्वारा लोक के क्षत्रिय रहित होने पर वेदज्ञ ब्राह्मणों ने क्षत्रानियों में संतान उत्पन्न की- महाभारत आदि पर्व 103/10
पांडु कुंती से- हे कल्याणी अब तू किसी बड़े ब्राह्मण से संतान उत्पन्न करने का प्रयत्न कर- महाभारत आदि पर्व 120/28
पुराणों में नियोग (मैं पुराणों को प्रामाणिक नहीं मानता किंतु प्राचीन शास्त्रों से देखकर कुछ इतिहासिक बातें भी इनमें ब्राह्मणों ने लिखी है)
किसी कुलीन ब्राह्मण को बुलाकर पत्नी का नियोग करा दो, इनमे कोई दोष नहीं हैं- देवी भगवत 1/20/6/41
व्यास जी के तेज से में भस्म हो जाऊगी इसलिए शरीर से चन्दन लपेटकर भोग कराया- देवी भगवत 1/20/65/41
भीष्म जी ने व्यास से कहा माता का वचन मानकर , हे व्यास सुख पूर्वक परे स्त्री से संतान उत्पत्ति के लिए विहार कर- देवी भागवत 6/24/46
पति के मरने पर देवर को दे- देवर के आभाव में इच्छा अनुसार देवे – अग्नि पुराण अध्याय 154
राजा विशाप ने स्त्री का सुख प्रजा के लिए त्याग दिया। वशिष्ट ने नियोग से मद्यंती में संतान उत्पन्न की- विष्णु पुराण 4/4/69
रामायण में नियोग
=============:
वह तू केसरी का पुत्र क्षेत्रज नियोग से उत्पन्न बड़ा पराकर्मी – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/28
मरुत ने अंजना से नियोग कर हनुमान को उत्पन्न किया – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/15
राम द्वारा बाली के मारे जाने पर उसकी पत्नी तारा ने सुग्रीव से संग किया – गरुड़ पुराण उतर खंड 2/52
मनुस्मृति के प्रमाण
=============:
आपातकाल में नियोग भी गौण हैं- मनु 9/58
नियोग संतान के लोभ के लिए ही किया जाना चाहिए- ब्राह्मण सर्वस्व पृष्ट 233
टिप्पणी :- (देवर अर्थात द्वितीय वर) आज भी प्रचलित है।
यदि राजा बीमार या बृद्ध हो तो अपने मातृकुल तथा किसी अन्य गुणवान सामंत से अपनी भार्या में नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न करा ले- कौटिलीय शास्त्र 1/17/52
शंका 6. क्या आधुनिक समाज में नियोग का व्यवहारिक प्रयोग होता हैं
=============:
निस्संदेह होता हैं, आजकल नियोग को sperm donation अर्थात वीर्य दान कहा जाता हैं। यह मुख्य रूप से उन दम्पत्तियों द्वारा प्रयोग किया जाता हैं जिनमें पुरुष संतान उत्पन्न करने में असक्षम होता हैं।
चिकित्सकों द्वारा उत्तम कोटि का वीर्य महिला के शरीर में स्थापित किया जाता हैं जिससे उसे संतान हो जाये।
मुख्य रूप से भाव वही हैं केवल माध्यम अलग हैं।
नियोग के मुख्य प्रयोजन को समझे बिना व्यर्थ के आक्षेप करना मूर्खता हैं । अभी भी अगर कोई इसी प्रकार से अनर्गल प्रलाप करना चाहता हैं तो वह सबसे बड़ा मुर्ख हैं। कुछ अज्ञानी लोग स्वामी दयानंद व वैदिक शास्त्रों पर नियोग विषय को लेकर आक्षेप करते है। ऐसे लोगों का दोष केवल इतना ही हैं कि नियोग के विषय में उन्हें कुछ भी ज्ञान नहीं हैं । इस विषय में अधूरी जानकारी होने के कारण वे वैदिक शास्त्रों के मूल उद्देश्य को समझ नहीं पाते हैं और व्यर्थ वितंडा करते हैं।
■■■
नियोग और ( सनातन ) हिन्दू धर्म (देवर, जेठ, ससुर, ताऊ, चाचा, मामा सबके संग संभोग)
नियोग का अर्थ
वेदादि शास्त्रों में पति द्वारा संतान उत्पन्न न होने पर या पति की अकाल मृत्यु की अवस्था में ऐसा नियमबद्ध उपाय है जिसके अनुसार स्त्री अपने देवर, जेठ, ससुर, ताऊ, चाचा, मामा सबके संग संभोग अथवा सम्गोत्री से गर्भाधान करा सकती है। यदि पति जीवित है तो वह व्यक्ति स्त्री के पति की इच्छा से केवल एक ही और विशेष परिस्थिति में दो संतान उत्पन्न कर सकता है। इसके विपरीत आचरण राजदंड प्रायश्चित् के भागी होते हैं। हिन्दू प्रथा के अनुसार नियुक्त पुरुष सम्मानित व्यक्ति होना चाहिए।
इसी विधि के द्वारा पांडु राजा की स्त्री कुन्ती और माद्री आदि ने नियोग किया । महाभारत में वेद व्यास विचित्रवीर्य व चित्रांगद के मर जाने के पश्चात् उन अपने भाइयों की स्त्रियों से नियोग करके अम्बिका से धृतराष्ट्र और अम्बालिका से पांडु और दासी से विदुर की उत्पत्ति की थी।नीचे तथ्यों पर आधारित नियोग विषय पर सभी शंकाओं का प्रश्नों का उत्तर दिया गया है।
क्या प्राचीन काल में नियोग व्यवहार का प्रयोग होता था?
निस्संदेह होता था महाभारत/पुराण/स्मृति में नियोग के प्रमाण भरे पड़े है।
महाभारत में नियोग
व्यासजी का काशिराज की पुत्री अम्बालिका से नियोग- महाभारत आदि पर्व अ 106/6
वन में बारिचर ने युधिस्टर से कहा- में तेरा धर्म नामक पिता- उत्पन्न करने वाला जनक हूँ- महाभारत वन पर्व 314/6
उस राजा बलि ने पुन: ऋषि को प्रसन्न किया और अपनी भार्या सुदेष्णा को उसके पास फिर भेजा- महाभारत आदि पर्व अ 104
कोई गुणवान ब्राह्मण धन देकर बुलाया जाये जो विचित्र वीर्य की स्त्रियों में संतान उत्पन्न करे- महाभारत आदि पर्व 104/2
उत्तम देवर से आपातकाल में पुरुष पुत्र की इच्छा करते हैं- महाभारत आदि पर्व 120/26
परशुराम द्वारा लोक के क्षत्रिय रहित होने पर वेदज्ञ ब्राह्मणों ने क्षत्रानियों में संतान उत्पन्न की- महाभारत आदि पर्व 103/10
पांडु कुंती से- हे कल्याणी अब तू किसी बड़े ब्राह्मण से संतान उत्पन्न करने का प्रयत्न कर- महाभारत आदि पर्व 120/28
पुराणों में नियोग
किसी कुलीन ब्राह्मण को बुलाकर पत्नी का नियोग करा दो, इनमे कोई दोष नहीं हैं- देवी भगवत 1/20/6/41
व्यास जी के तेज से में भस्म हो जाऊगी इसलिए शरीर से चन्दन लपेटकर भोग कराया- देवी भगवत 1/20/65/41
भीष्म जी ने व्यास से कहा माता का वचन मानकर , हे व्यास सुख पूर्वक परे स्त्री से संतान उत्पत्ति के लिए विहार कर- देवी भागवत 6/24/46
पति के मरने पर देवर को दे- देवर के आभाव में इच्छा अनुसार देवे – अग्नि पुराण अध्याय 154
राजा विशाप ने स्त्री का सुख प्रजा के लिए त्याग दिया। वशिष्ट ने नियोग से मद्यंती में संतान उत्पन्न की- विष्णु पुराण 4/4/69
रामायण में नियोग
वह तू केसरी का पुत्र क्षेत्रज नियोग से उत्पन्न बड़ा पराकर्मी – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/28
मरुत ने अंजना से नियोग कर हनुमान को उत्पन्न किया – वाल्मीकि रामायण किष कांड 66/15
राम द्वारा बाली के मारे जाने पर उसकी पत्नी तारा ने सुग्रीव से संग किया – गरुड़ पुराण उतर खंड 2/52
मनुस्मृति के प्रमाण
आपातकाल में नियोग भी गौण हैं- मनु 9/58
नियोग संतान के लोभ के लिए ही किया जाना चाहिए- ब्राह्मण सर्वस्व पृष्ट 233
टिप्पणी :- (देवर अर्थात द्वितीय वर) आज भी प्रचलित है।
फिलहाल आज ये परिथ्तीती नहीं है आज यह कुरितियो के प्रति समाज के लोगो कि आखे खोलने हेतु लेख हैं ✍️✍️
■■■
वेद की आज्ञा है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्णस्थ स्त्री और पुरुष दस से अधिक संतान उत्पन्न न करें, क्योंकि अधिक करने से संतान निर्बल, निर्बुद्धि और अल्पायु होती है। जैसा कि उक्त मंत्र से स्पष्ट है कि नियोग की व्यवस्था केवल विधवा और विधुर स्त्री और पुरुषों के लिए नहीं है बल्कि पति के जीते जी पत्नी और पत्नी के जीते जी पुरुष इसका भरपूर लाभ उठा सकते हैं। (4-143)
आ घा ता गच्छानुत्तरा युगानि यत्र जामयः कृराावन्नजामि।
उप बर्बृहि वृषभाय बाहुमन्यमिच्छस्व सुभगे पति मत्।
(ऋग्वेद 10-10-10)
भावार्थ ः ‘‘नपुंसक पति कहता है कि हे देवि! तू मुझ से संतानोत्पत्ति की आशा मत कर। हे सौभाग्यशालिनी! तू किसी वीर्यवान पुरुष के बाहु का सहारा ले। तू मुझ को छोड़कर अन्य पति की इच्छा कर।’’
इसी प्रकार संतानोत्पत्ति में असमर्थ स्त्री भी अपने पति महाशय को आज्ञा दे कि हे स्वामी! आप संतानोत्पत्ति की इच्छा मुझ से छोड़कर किसी दूसरी विधवा स्त्री से नियोग करके संतानोत्पत्ति कीजिए।
अगर किसी स्त्री का पति व्यापार आदि के लिए परदेश गया हो तो तीन वर्ष, विद्या के लिए गया हो तो छह वर्ष और अगर धर्म के लिए गया हो तो आठ वर्ष इंतजार कर वह स्त्री भी नियोग द्वारा संतान उत्पन्न कर सकती है। ऐसे ही कुछ नियम पुरुषों के लिए हैं कि अगर संतान न हो तो आठवें, संतान होकर मर जाए तो दसवें और कन्या ही हो तो ग्यारहवें वर्ष अन्य स्त्री से नियोग द्वारा संतान उत्पन्न कर सकता है। पुरुष अप्रिय बोलने वाली पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री से नियोग का लाभ ले सकता है। ऐसा ही नियम स्त्री के लिए है। (4-145)
प्रश्न सं0 149 में लिखा है कि
अगर स्त्री गर्भवती हो और पुरुष से न रहा जाए और पुरुष दीर्घरोगी हो और स्त्री से न रहा जाए तो ऐसी स्थिति में दोनों किसी से नियोग कर पुत्रोत्पत्ति कर ले, परन्तु वेश्यागमन अथवा व्यभिचार कभी न करें। (4-149)
लिखा है कि नियोग अपने वर्ण में अथवा उत्तम वर्ण और जाति में होना चाहिए। एक स्त्री 10 पुरुषों तक और एक पुरुष 10 स्त्रियों तक से नियोग कर सकता है। अगर कोई स्त्री अथवा पुरुष 10वें गर्भ से अधिक समागम करे तो कामी और निंदित होते हैं। (4-142)
विवाहित पुरुष कुंवारी कन्या से और विवाहित स्त्री कुंवारे पुरुष से नियोग नहीं कर सकती।
पुनर्विवाह और नियोग से संबंधित कुछ नियम, कानून, ‘शर्ते और सिद्धांत आपने पढ़े जिनका प्रतिपादन स्वामी दयानंद ने किया है और जिनको कथित लेखक ने वेद, मनुस्मृति आदि ग्रंथों से सत्य, प्रमाणित और न्यायोचित भी साबित किया है। व्यावहारिक पुष्टि हेतु कुछ ऐतिहासिक प्रमाण भी कथित लेखक ने प्रस्तुत किए हैं और साथ-साथ नियोग की खूबियां भी बयान की हैं। इस कुप्रथा को धर्मानुकूल और न्यायोचित साबित करने के लिए लेखक ने बौद्धिकता और तार्किकता का भी सहारा लिया है। कथित सुधारक ने आज के वातावरण में भी पुनर्विवाह को दोषपूर्ण और नियोग को तर्कसंगत और उचित ठहराया है। आइए उक्त धारणा का तथ्यपरक विश्लेषण करते हैं।
ऊपर (4-134) में पुनर्विवाह के जो दोष स्वामी दयानंद ने गिनवाए हैं वे सभी हास्यास्पद, बचकाने और मूर्खतापूर्ण हैं। विद्वान लेखक ने जैसा लिखा है कि
दूसरा विवाह करने से स्त्री का पतिव्रत धर्म और पुरुष का स्त्रीव्रत धर्म नष्ट हो जाता है परन्तु नियोग करने से दोनों का उक्त धर्म ‘ाुद्ध और सुरक्षित रहता है।
क्या यह तर्क मूर्खतापूर्ण नहीं है ? आख़िर वह कैसा पतिव्रत धर्म है जो पुनर्विवाह करने से तो नष्ट और भ्रष्ट हो जाएगा और 10 गैर पुरुषों से यौन संबंध बनाने से सुरक्षित और निर्दोष रहेगा ?
अगर किसी पुरुष की पत्नी जीवित है और किसी कारण पुरुष संतान उत्पन्न करने में असमर्थ है तो इसका मतलब यह तो हरगिज़ नहीं है कि उस पुरुष में काम इच्छा (कमेपतम) नहीं है। अगर पुरुष के अन्दर काम इच्छा तो है मगर संतान उत्पन्न नहीं हो रही है और उसकी पत्नी संतान के लिए किसी अन्य पुरुष से नियोग करती है तो ऐसी स्थिति में पुरुष अपनी काम तृप्ति कहाँ और कैसे करेगा ? यहाँ यह भी विचारणीय है कि नियोग प्रथा में हर जगह पुत्रोत्पत्ति की बात कही गई है, जबकि जीव विज्ञान के अनुसार 50 प्रतिशत संभावना कन्या जन्म की होती है। कन्या उत्पन्न होने की स्थिति में नियोग के क्या नियम, कानून और ‘शर्ते होंगी, यह स्पष्ट नहीं किया गया है ?
जैसा कि स्वामी जी ने कहा है कि अगर किसी स्त्री के बार-बार कन्या ही उत्पन्न हो तो भी पुरुष नियोग द्वारा पुत्र उत्पन्न कर सकता है।
यहाँ यह तथ्य विचारणीय है कि अगर किसी स्त्री के बार-बार कन्या ही उत्पन्न हो तो इसके लिए स्त्री नहीं, पुरुष जिम्मेदार है। यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि मानव जाति में लिंग का निर्धारण नर द्वारा होता है न कि मादा द्वारा।