सत्यकाम जबाल की कथा लगभग सभी को मालुम है! कई लोग इस कथा को उदाहरण-स्वरूप भी बताते हैं कि किस तरह एक गणिका-पुत्र जबाल ऋषि बन गये थे। वैसे यह कथा छान्दोग्योपनिषद चतुर्थखण्ड मे लिखी है! इस कथा को एक झूठ के साथ बताया जाता है कि सत्यकाम की माँ जबाला गणिका (वैश्या) थी। वास्तव मे जबाला गणिका नही थी, वह शादीशुदा थी और बहुत सारे अथितियों की सेवा-टहल करती थी।
जब सत्यकाम अपनी माँ से पूँछते हैं कि माँ मेरा गोत्र क्या है? तब जबाला कहती है कि हे पुत्र! मै अपने पति के घर आये बहुत सारे अतिथियों की सेवा करने वाली परिचायिका थी, और उन्ही जवानी के दिनों मे मैने तुम्हे जन्म दिया था! अतः मुझे नही मालुम कि तुम्हारा गोत्र क्या है?
अब इस कथा का गीताप्रेम वाले चाहे जितना लीपापोती करके भाष्य करें, पर सच यही था कि जबाला को यह पता ही नही था कि उसने किस पुरुष के संसर्ग से सत्यकाम को पैदा किया था। और तो और जबाला यह सारे कर्म तब से करती थी, जब उसके पति जीवित भी थे।
ऐसी ही एक कथा महाभारत के उधोगपर्व (अध्याय-103 से 123 तक) मे माद्री की आती है! माद्री राजा ययाति के कुल से थी, फिर भी उसे एक के बाद एक कई ऋषियों के साथ सहवास करना पड़ता है, और जब सारे ऋषियों का मन माद्री से भर जाता है तो वे उसे पुनः राजा ययाति को वापस लौटा देते हैं।
एक अन्य कथा महाभारत के "आदिपर्व" मे महर्षि उतथ्य की आती है, जो ऋषि अंगिरस के कुल के थे। महर्षि उतथ्य की पत्नि ममता बहुत सुन्दर थी, और उतथ्य का छोटा भाई वृहस्पति (जो देवऋषि माने गये हैं) ममता पर आसक्त था। एक दिन जब ममता घर मे अकेली थी तो वृहस्पति ने मौका देखकर ममता से सम्भोग करना चाहा, जिस पर ममता ने यह कहकर मना कर दिया कि " अभी मै गर्भवती हूँ, अतः आप प्रतिक्षा करो"
सोचने वाली बात यह है कि यहाँ ममता ने वृहस्पति को फटकारा नही, और न ही यह कहा कि यह अनैतिक है। केवल इंतजार करने के लिये कहा! इससे ऐसा लगता है कि ममता और वृहस्पति के बीच अनुचित सम्बन्ध रहे होंगे! हालांकि वृहस्पति ममता के इस अर्ध-इनकार से भी इतने नाखुश हुये कि उन्होने ममता को श्राप दे दिया कि तेरा पुत्र अंधा पैदा होगा। हुआ भी वही, ममता के पुत्र ऋषि दीर्घतमा अंधे ही पैदा हुये। वैसे, यहाँ यह भी जान लेना चाहिये कि खुद वृहस्पति की पत्नि तारा को इनके ही शिष्य चन्द्र उठा ले गये थे, और उससे सहवास करके "बुध" नामक पुत्र को पैदा किया था। आगे चलकर इसी गुरूपत्नि-पुत्र बुध से चंद्रवंशीय क्षत्रियों की उत्पत्ति हुई।
पूर्वकाल मे ऋषि किस कदर कामान्ध होते थे, इसका एक उदाहरण डा० अम्बेडकर ने अपनी बहुचर्चित किताब "रिडल इन हिन्दुइज्स" के पृष्ठ-298 पर उल्लेख किया है! अम्बेडकर ने लिखा है कि पूर्वकाल मे यदि कोई ऋषि यज्ञ कर रहा होता था, और यदि उसी समय वह किसी स्त्री से संभोग करना चाहता था तो ऋषि यज्ञ को अधूरा छोड़कर एकांत मे जाने के बजाए यज्ञ-मण्डप मे ही खुलेआम उस स्त्री से मैथुन कर सकता था। बाद मे इस घृणित-कृत्य को भी "वामदेव व्रत" नामक धार्मिक विधान बना दिया गया, और कालान्तर मे यही 'वाममार्ग' कहलाया।
रंगीन-ऋषियों की सूची और भी लम्बी है, जिसमे पराशर, कर्दम, विभण्डक और दीर्घतमा के नाम मुख्य हैं.
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वैदिककाल मे ऋषि-मुनि चाहे जितना ही तपस्वी क्यों न थे, पर वे महिलाओं के जाल मे जरूर फंस जाते थे। यानि भले ही वे दावा करते थे कि हमने काम, क्रोध, मोह और लोभ, सब पर विजय पा ली है, पर सुन्दर महिला देखते ही उनका भी लंगोट गीला होने लगता था।
एक ऐसी ही कथा रामायण-काल मे घटित हुई है। त्रेतायुग मे एक महाऋषि थे जिनका नाम ऋंग था। ये ऋंग रामजी के बहनोई और दशरथ के जमाता थे। (वाल्मीकि रामायण बालकाण्ड, सर्ग-9, श्लोक-11, चित्र-1)
जैसा कि सबको पता ही है कि राजा दशरथ के चार पुत्रों के अलावा एक पुत्री शांता भी थी। (वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड, सर्ग-11/3-5, चित्र-2)
दशरथ ने अपनी पुत्री शांता को अपने निःसंतान मित्र रोमपाद को दे दिया था! एक बार रोमपाद से कोई पापकर्म हो गया और उनके राज्य मे अकाल पड़ गया। राजा रोमपाद ने अपने तमाम ऋषियों और पुरोहितों को बुलाकर अकाल से निवारण का उपाय पूँछा! तब पुरोहितों ने बताया कि यदि ऋषि ऋंग को आप अपने महल मे बुलाकर उनका सत्कार करें और अपनी पुत्री शांता का वैदिकरीति से उनसे विवाह कर दें, तो आपके राज्य मे वर्षा जरूर होगी। राजा पुरोहितों की बात मानकर तैयार हो गये, पर अब समस्या यह थी कि ऋंगऋषि सदैव वन मे ही रहते थे, और कभी नगर मे आते ही नही थे। फिर भला राजा उन्हे नगर मे कैसे लेकर आते? तब पुरोहितों ने कहा कि यदि राज्य की सुन्दर वैश्याओं को ऋंगऋषि के आश्रम के आसपास भेजा जाये तो उनके सम्मोहन से ऋषि ऋंग जरूर पीछे-पीछे नगर तक आ जायेगें। राजा रोमपाद को यह योजना उचित लगी, और उन्होने इसी योजना पर वैश्याओं को अमल करने का निर्देश दे दिया।
अब मै यहाँ जरा आपको बता दूँ कि ऋंग इतने तपस्वी और प्रतापी ऋषि थे कि उनके कहीं आगमन मात्र से वर्षा हो सकती थी। राजा दशरथ के राज्य मे वशिष्ठ, वामदेव और जाबाल जैसे विद्वान के होते हुये भी यही ऋंग ऋषि ने दशरथ का पुत्र-कामेष्टि यज्ञ करवाया था! मतलब ऋंग वामदेव, जाबाल और वशिष्ठ से भी अधिक विद्वान और तपस्वी थे। अब इतने विद्वान और तपस्वी ऋषि को फांसने के लिये राजा रोमपाद ने वैश्याओं का सहारा लिया, और आश्चर्य की बात है कि अपनी समस्त इन्द्रियों पर अंकुश रखने का दम्भ भरने वाले ये ऋषि भी वैश्याओं के लटके-झटके मे फंस गये!
रोमपाद की योजनानुसार जब वैश्याऐं ऋंग के आश्रम के पास गयी तो उन्हे देखते ही ऋंग के मुँह मे पानी आ गया। और जब वैश्याऐं आश्रम से वापस नगर लौटने लगी तो ऋषिऋंग भी उनके पीछे-पीछे नगर तक चले आये। (चित्र-3,4 पढ़े)।
इसके बाद की कथानुसार फिर रोमपाद के राज्य मे बारिश हुई और ऋंग का विवाह शांता से हो गया। बाद मे इन्ही ऋंग के सामर्थ्य से दशरथ ने राम तथा तीन अन्य प्रतापी पुत्रों को प्राप्त किया।
विभण्डक, विश्वामित्र, पराशर और ऋंग जैसे कई ऋषि आपको मिल जायेंगे जो सुन्दर नारी देखते ही लार टपकाने लगते थे।
श्रृंग्य, श्रृंग व श्रृंगी अलग-अलग रामायनों में अलग-अलग ऋषि होते हैं और इनकी कहानियाँ भी अलग-अलग हैं। किसी में श्रृंग्य दशरथ के तीन रानियों के साथ सम्भोग करता है, किसी में घोडे से, किसी में खीर तो किसी में सेब खिलाकर गर्भवती करता है। इसके मूल भावार्थ में तीनों रानियों के साथ सहवास करता है। तीन रानियों के अलावा एक नौकरानी व अन्य कहानी में अंजनी को भी गर्भवती करता है। परन्तु धार्मिक कथा-कहानियों में सम्भोग बलात्कार, रेप सहवास जैसे शब्द इस्तेमाल नही किये जाते हैं। दशरथ का मित्र लोमपाद तो किसी में रोमपाद है मूल God Pan है जो रोमन माइथोलोजी है।
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#महाभारत_कथा
अलग अलग ग्रंथ-किताबों की अलग-अलग कथा-कहानियों में अधिकांश देवी-देवताओं की तरहं अप्राकृतिक व असामाजिक तरीके से पैदा होने वालों की तरहं कृपि व कृपाचार्य के पैदा होने के मामले में भी दो कथा-कहानियां मिलती हैं-
01. प्रथम कहानी के अनुसार महर्षि शरद्वान की तप-स्याह भंग करने के लिए इंद्र ने #जानपदी नामक एक तवायफ (अप्सरा) भेजी थी। खूबसूरत हसीन और उसकी मादक अदाएं देखकर महर्षि शरद्वान अपना जप तप छोडकर उस पर फिदा हो गये थे। महर्षि शरद्वान व हसीना जानपदी के सहवास से जानपदी ने अपने गर्भ से जुडवा बच्चे पैदा किये।
शरद्वान व जानपदी ने अपना नाम बदनाम होने के डर से' अपने नवजात बच्चों को जंगल में फैंक दिया था। हस्तिनापुर के राणा शांतनु ने जब बच्चों को जंगल में' लावारिस हालत में पडा देखा तो राणा इन बच्चों को उठाकर अपने महल ले गया और उनका नाम 'कृप' तथा 'कृपि रखकर पालन पोषण किया ।
02. दूसरी कहानी के अनुसार शरद्वान गौतम घोर तपस्वी थे। उनकी तप-स्याह देखकर इंद्र चिंता में पड गया। इन्द्र ने उसकी तप-स्याह भंग करने के लिए 'जानपदी' नामक एक तवायफ को उनके आश्रम में भेजा।
बला की खूबसूरत जानपदी की मादक अदाएं, मतवाली चाल व नाच गाना देखकर शरद्वान का' लंगोट में ही शीघ्रपतन हो गया। उसके वीर्य की पिचकारी सरकंडे उपर गिरी तो सरकंडे के दो भाग हो गये। वीर्य की बौछार सरकंडे पर गिरने से एक सरकंडे में एक कन्या और दूसरे सरकंडे के हिस्से में एक लडका पैदा हुआ। जब राणा शांतनु ने दोनों बच्चों को वहाँ लावारिस हालत में पडे हुए,देखा तो वह दोनों बच्चों को उठाकर अपने घर ले गया और 'कृपि और 'कृप' रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया।
कृप की बहन कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ और इनके मिलन से घोडे के मुंह वाला व पैदा होते ही घोडे की आवाज निकालने वाला अश्वथामा नामका एक बेटा पैदा हुआ। जबकि कृप ही बड़े होकर कृपाचार्य बने।
#द्रोणाचार्य के पैदा होने की कथा-कहानी*
03.. एक बार भरद्वाज मुनि एकांत जंगल में यज्ञ कर रहे थे। जब वे गंगा नदी के किनारे मटरगस्ती कर रहे थे तो उसने छुपकर घृतार्ची नाम की एक तवायफ को नंगी हालत में स्नान करते हुए और गंगा नदी से बाहर निकलते हुये देख लिया। एकांत जंगल में खूबसूरत व एक जवान अकेली लडकी को देखकर भरद्वाज के मन में उस तवायफ के साथ सैक्स करने की इच्छा बढ गई। घृतार्ची को अपनी बाहों में पकडने से पहले ही भरद्वाज का वीर्य शीघ्रपतन होकर उसके लंगोट में' डिस्चार्ज होने लगा तो भरद्वाज ने अपना वीर्य अपने कमंडल (द्रोण) में भर लिया। उसी कमंडल में द्रोण पैदा हुआ।
इनके अलावा अनेक ऋषि मुनि मनुओं ने अपने अपने वीर्य का जोहर दिखाने में' कभी-भी पीछे नही रहे हैं। जिनमें प्रमुख ऋषि-मनु मुनि देव निम्नलिखित बताए गये हैं।
04. ऋषि पराशर व सत्यवती के अवैध सम्बन्ध से वेदव्यास पैदा। सत्यवती ने अपने खानदान की मूंछ कटने के डर से वेदव्यास को जंगल में लावारिस छोड दिया
05. पवन व अंजनी के अवैध सम्बन्ध से हनुमान पैदा हुए, अपने खानदान कि नाक कटने के डर से अंजनी ने हनुमान को जंगल में लावारिस छोड दिया।
06. मालकिन पारवती के मन में मैल आने से और शिव की गैरहाजरी में' अपने गण से सम्बन्ध बनाए तो गण के अंश से मलेश उर्फ गणेश पैदा हुए।
07. ऋष्यश्रष्यंग व बच्चे पैदा करने में लाचार दशरथ की तीन रानियों के सम्बंध से राम लक्ष्मण शत्रुघन व भरत पैदा हुए,
08. वेदव्यास और अम्बा अम्बिका व नौकरी के नाजायज़ सम्बन्ध से धृतराष्ट्र, पांडु व विदुर पैदा करवाए गये।
09. ब्रह्मा के वीर्य की बौछार जगह जगह और जानवरों पर गिरने से 86 हजार ऋषि मुनि मनु पैदा हुए,
10. घोडा (विष्णु) व घोडी (लक्ष्मी) के मिलन से हैहयी वंशीधारी पैदा हुए और हयीग्रीव से ग्रंथ-किताबों के राणा-राव-राजा व रघुवंशी यदुवंशी कुरुवंशी पांडुवंशी पैदा हुए,
11. विश्व-अमित्र व तवायफ मेनका के नाजायज़ शारीरिक सम्बन्ध से' भरतवंशी की मां शकुंतला पैदा हुई और शकुंतला व दुष्यंत के नाजायज़ सम्बन्ध से भरत पैदा हुआ।
12. बारत के सर्वप्रथम राणा वेन के बेटे महाराणा पृथु ने' गाय के साथ सहवास किया तो गाय ने खुश होकर, पृथु के बेटे को बछडे के रूप में मनु महादेव को पैदा किया।
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वेन-वेण और निषाद
वसुंधरा (धरती जमीन) पर सबसे पहले महाराणा बनने वाले वेन और वेण की कहानियों में काफी समानताएं हैं, जबकि दोनों अलग-अलग धर्म के माने गये हैं। पर इन्हें हिंदु धर्म के नाम पर विभिन्न वंशीधारी हिंदुओं के पुरखे कहा जाता है और अधिकांश इनकी औलादें बनने में गर्व भी महसूस करती हैं।
पुराने-जमाने के किताब-ग्रंथों में वेन और वेण नाम के अलग-अलग सुल्तान पढने को मिलते हैं। ऋषि-मुनियों द्वारा मारे गये' शहं-शाह वेण और बाद-शाह वेन की बाजु से' इन्होंने पृथु नाम के अलग-अलग महारावल पैदा कर दिये थे। वेण व वेन" पृथ्वी पर पहले मर्यादा पुरुषोत्तम माने जाते हैं।
संस्कृत भाषा में नाचने-गाने वाले नचनैया मनु-ष्य को वेन या वेण कहा जाता है ' अंड्ग का पूत, पृथु का बेटा तथा मनु के दादा का नाम वेन था।
नचनैया वेण किसी तरहं से महाराणा बनने में कामयाब हो गया, अलग-अलग कहानियों में' शहं-शाह वेण ने अपनी रियासत में यज्ञ हवन बंद करवाने की घोषणा कर दी।
जिससे ऋषि-मुनि बहुत नाराज व दुःखी हुए, इन्होंने घास का तिनका फेंककर महाराजा वेण की हत्या कर दी, जब रियासत में कोई बाद-शाह नही रहा तो ऋषि-मुनियों ने मरे हुए वेण की जांघ को मसल मसल कर' एक ठिगना (गिट्टा) कदकाठी व चौडे मुंह वाला निषाद पैदा किया, उसके बाद वेण की बाजु को' रगड़ रगड़कर कर' उन्होंने पृथु नामका सुल्तान पैदा किया।
महारावल पृथु की रियासत में अकाल पडने पर पृथ्वी से बनी गाय के साथ उसने सहवास किया' तब गाय ने मनु नाम के एक बच्चे को जन्म दिया। इसलिए पृथु को पृथ्वी और हिंदु धर्म के हिंदुओं की मां भी कहा जाता है।
पद्म पुराण के अनुसार महाराणा वेण अच्छे ढंग से राजपाट चलाने लगा' पर बाद में वह जैन-नास्तिकता में फंस गया, यह भी कहा जाता है कि महाराव पृथ्वी ने वर्ण-व्यवस्था में भी गड़बड़ी फैलाई।
इन्हीं कहानियों के आधार पर' अलग-अलग धर्म के ऋषि-मुनियों ने घोडा-घोडी, सूअर-सूअरी, बंदर-बंदरी आदि जानवरों से सम्भोग करवाते हुए, विभिन्न रघुवंशी यदुवंशी, भरतवंशी, पांडुवंशी, कौरव वंशी, बंदरवंशी, सूर्यवंशी, चंद्रवंशी आदि वंशीधारी पैदा करने में कामयाब हो गये..
सोर्स कोशपूराण p 633.974, 975,
ऋषि-मुनि वी. शिवराम आप्टे, साल 1890, चौथ संस्करण से संकलित एवं संस्कृत, परिष्कृत, शुद्धिकृत यानि रिफाइंड
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ऋषि श्रृंग्य और शांता
"ऋष्यश्रृंग" या "श्रृंगी ऋषि" वाल्मीकि रामायण व अन्य ग्रंथ-किताब में एक कलाकार (पात्र) है' जिसने बादशाह #दशरथ द्वारा औलाद पाने के लिए घोडे की बलि (अश्वमेध) यज्ञ तथा यज्ञ करवाया था। वह विभण्डक ऋषि का बेटा तथा कछुए (कश्यप) ऋषि का पोता बताया जाता है। उनके नाम को लेकर यह उल्लेख है कि उनके माथे पर सींग (संस्कृत भाषा में श्रृंग) होने की वजह से उनका यह नाम पड़ा था।
अलग-अलग कथा-कहानियों में ऋष्यश्रृंग्य एक #त्रेता युग में तो दुसरा #द्वापर के महाभारत काल के पश्चात जो पैदा हुए उसे शमीक ऋषि की औलाद बताई जाती है। विभण्डक ऋषि अपने बेटे ऋष्यश्रृंग्य का ब्याह अंगदेश के एक राणा लोमपाद व दूसरा राजा रोमपाद द्वारा गोद ली गयी #शान्ता से सम्पन्न हुआ जो शहंशाह दशरथ की मनहूस कन्या थीं।
इसी तरहं महाराण रावण की बेटी सीता, शांतनु के बेटे व वासुदेव की औलादें किसी न किसी कारणवश मनहूस बताई गयी हैं।
पूराने जमाने में देवता व तवायफें (अप्सरायें) बिना किसी पुष्पक विमान के भारत की धरती के जनलोक में आते-जाते रहते थे। ब्रहमा के सौतले (मानस) पूत ऋर्षि कछुआ (कश्यप) थे। उनका बेटा महर्षि #विभण्डक थे। अन्य कहानियों की तरहं उनके तप-स्याह करते रहने से देवता डर गये थे। जिसके कारण इन्द्र को अपनी कुर्सी (गद्दी) डगमगाती हुई दिखाई देने लगी।
विश्वामित्र की तरहं विभण्डक की तपस्या भंग करने के लिए #इन्द्र ने दिल (उर) को अपने बस में करने वाली (उर-वशी) अपनी एक खूबसूरत तवायफ (अप्सरा) #उरवशी को विभंडक के पास भेजा। उर्वशी खूबसूरत हीरणी बनकर विभंडक के आसपास मंडराने लगी। कोई अन्य महिला का उपाय न देखकर, विभंडक अपने बुढापे में हिरणी (उर्वशी) के चक्कर में पड गया, जिससे महर्षि के शरीर व दिमाग की गर्मी (तप) बढने लगी और दोनों के सहवास से हिरणी (उर्वशी) ने ऋष्यश्रंग्य नाम के एक बेटे को पैदा किया।
बच्चे के सिर पर हिरण का सींग था। किसी किसी कथा-कहानी में बकरे व हिरण के मुंह व पैर खुर के रुप में बताए गये हैं। सिर पर सींग होने के कारण उसका नाम श्रृंग्य पड़ा । बालक को जन्म देने के बाद कंजरी उर्वशी का काम पूरा हो गया और वह अपने बच्चे को विभंडक के पास छोडकर वेश्यालोक (वेश्यालय, कोठा, अपसराखाना, तवायफखाना इंद्रगढ इंद्रलोक इंद्रसभा इंद्रप्रस्थ इंद्रपूरी) में वापस लौट गई। उर्वशी द्वारा दिए गये" इस धोखे से ऋर्षि विभण्डक इतने परेशान हो गये कि उसने सारी नारी जाति से ही नफरत सी हो गई।
उन्होंने अपनी औलाद श्रृंग्य को मां, बाप तथा गुरू तीनों का प्यार दिया और तीनों की कमी पूरी की। उनके ठिकाने (आश्रम, डेरा) में किसी भी नारी व मादाओं का प्रवेश वर्जित था और वे अपने अपने बेटे का पालन पोषण करते रहे। इसलिए श्रृंग्य ने अपने पिता के अलावा अन्य किसी भी इंसान व महिला को न जानता था और ना ही देखा था।
एक अन्य जनश्रुति कहानी के अनुसार एक बार महर्षि विभाण्डक झप्पड (तालाब, झील) में नहा रहा था' तब इन्द्र द्वारा भेजी गई' अप्सराहरु उर्वशी को देखा तो उर्वशी उसके दिल में बस गयी और उर्वशी से सहवास करने की चाहत में ही उनका वीर्य लंगोट से निकल कर पानी की धारा में बह गया। उसी समय एक हिरणी (मृगी) के रूप में उरवशी घासफूस चर रही थी और उसने पानी के साथ-साथ विभंडक का वीर्य पी लिया। इस कारण कुछ महिनों के बाद उर्वशी ने सींग वाले एक बेटे को पैदा किया। उस विचित्र बच्चे को जन्म देकर वह गाली (शाप, बद-दुआ) से आजाद (मुक्त) होकर वह अपने वेश्याओं के लोक में चली गई।
ब्राहमण देवता व इनके पक्षधर देवताओ की हेराफेरी (छलकपट) से मजबूर होकर विभण्डक तप और क्रोध करने लगे थे। जिसके कारण उन दिनों वहां की रियासत में भयंकर सूखा पड़ा था। अंगदेश के राजा लोमपाद/ रोमपाद/ चित्ररथ ने अपने मंत्रियों व पंडे-पुजारियों से बातचीत की। ऋषिश्रृंग्य अपने पिता विभण्डक से भी अधिक वेद-पूराणों के जानकार बन गया था।
पंडे-पुजारियों ने अंगराज रोम-पाद उर्फ लोम-पाद को सलाह दी कि ऋर्षि ऋष्यश्रृंग्य को अंग देश (अंगकोर) में लाने पर ही अंगदेश में अकाल व भुखमरी खत्म हो पायेगी। एक बार जब महर्षि विभण्डक कहीं विदेश गये हुए थे तो इसी मौके की तलाश में बैठे अंगराज ने ऋष्यश्रृंग्य को रिझाने व पटाने के लिए, अंगदेश की कमसीन व खूबसूरत देवदासियां तथा सुन्दर कन्याओं का सहारा लिया और उन्हें ऋष्यश्रृंग्य के पास भेज दिया।
उनके आश्रम के पास एक आलीशान कैम्प भी लगवा दिया था। सावन की घटा में सुन्दर हसीनाओं ने तरह-तरह के सैक्सी हाव-भाव करते हुए, नाच गाना किया और ऋष्यश्रृंग्य मुनि को रिझाने लगी। उन्हें तरह-तरह के खान-पान तथा पकवान उपलब्ध कराये गये। श्रृंग्य मुनि अब इन सुन्दरियों के मदमस्त अदाओं व उनकी बाहों में गिरफ्त में आ चुके थे। महर्षि विभण्डक के आने के पहले वे सुन्दरियां वहा से पलायन कर चुकी थीं। अन्य कहानी में तवायफें उसे नाव में बिठाकर अंगदेश ले जाती हैं।
ऋष्यश्रृंग्य अब चंचल मन व कामुक स्वभाव वाले हो गये थे, उसे हर पल अपने आंखों के सामने वधू ही वधू (स्त्री नारी लक्ष्मी) नजर आने लगी थीं। उसके बाप विभंडक के कहीं बाहर जाते ही वह छिपकर उन सुन्दिरियों के शिविर में स्वयं पहुच जाते थे। समय को अनुकूल देखकर रोमपाद की भेजी गई सुन्दरियों ने ऋष्यश्रृंग्य मुनि को अपने साथ अंग देश भगा ले जाने मे सफल हो गई। वहां उनका बड़े हर्ष औेर उल्लास से स्वागत किया गया। ऋष्यश्रृंग्य के वहाँ पहुँचते ही अंग देश में मूसलाधार बरसात होने लगी और किसान खेतीबाडी करने व चरवाहे पशु चराने में जुट गये। जबकि बरसात की वजह से अंगदेश में दलदल (केदार) ही दलदल (केदार) के दर्शन होने लगे।
इधर अपने आश्रम में ऋष्यश्रृंग्य को ना पाकर ऋर्षि विभण्डक को हैरानी हुई। उन्होने अपने योग के दम से सारा पता लगा लिया। अपनी औलाद को वापस लाने तथा अंगदेश के राजा को सजा देने के लिए ऋर्षि विभण्डक अपने आश्रम से अंगदेश के लिए निकल पड़े।
अंगदेश (ख्मेर कम्बोडिया) के राणा रोम-पाद उर्फ लोम-पाद तथा अयोद्धापति शहंशाह दशरथ दोनों दोस्त थे। ऋषि विभण्डक की बद-दुआ (गाली, शाप, श्राप) से बचने के लिए रोमपाद ने' पादने में देर नही लगाई और उसने बादशाह दशरथ की बच्ची शान्ता को अपनी सौतेली ( पोश्या , मानस) बेटी (छोरी) का दर्जा देते हुए, फटाफट उसकी शादी ऋष्यश्रृंग्य से करवा दी।
महर्षि विभण्डक द्वारा अंगदेश में अपने बेटे ऋष्यश्रृंग्य व अपने बेटे की बीवी शांता के साथ देखने पर महर्षि विभण्डक का क्रोध दूर हो गया। विभंडक को यकीन हो गया था कि उसकी प्रेमिका उरवशी की तरहं उसके बेटे की लुगाई (पत्नी बीवी) शांता अपने खसम (हसबैंड) ऋष्यश्रृंग्य को छोडकर कहीं नही जायेगी
दूसरी तरफ अयोद्धा के आलमपनाह दशरथ की बीवियों के कोई औलाद पैदा नहीं हो रही थी। उन्होने अपनी यह चिन्ता महर्षि वशिष्ठ से कह सुनाई। महर्षि वशिष्ठ ने बादशाह दशरथ को ऋष्यश्रृंग्य के द्वारा घोडे की बलि (अश्वमेध) तथा औलाद पैदा करने हेतु (पुत्रेष्ठी) हवन (यज्ञ) करवाने का सुझाव दिया। जिसे सुनकर राणा अकबर की तरहं भागते हुए शहंशाह दशरथ ऋष्यश्रृंग्य के डेरे में पहुंच गये और उन्हें हवन करने के लिए राजी किया राणा दशरथ ने तरह-तरह से ऋष्यश्रृंग्य की चापलूसी की। अपने द्वितीय श्रेणी के सुसरा (ससुर स्वसुर) जी की दयनीय हालात देखकर ऋष्यश्रृंग्य को उन पर तरस आ गया। ऋष्यश्रृंग्य ने वेदों के अनुसार विधिवत् रूप से हवन करते हुए, जब घोडे की बलि देने के दौरान एकांतवास में" खीर खिलाने के बहाने बादशाह की तीनों महारानियों के साथ मिलन किया तो शांतनु की पत्नी व नौकरानी की तरहं तीनों रानियों के पैर भारी हो गये। ( प्रेगनेट गर्भवती होना)
रूद्रायामक अयोध्याकाण्ड 28 में मख स्थान की महिमा इस प्रकार कहा गया है –
कुटिला संगमाद्देवि ईशान्ये क्षेत्रमुत्तमम्।
मखःस्थानं महत्पूर्णा यम पुण्यामनोरमा।।
स्कन्द पुराण के मनोरमा महात्य में मखक्षेत्र को इस प्रकार महिमा मण्डित किया गया है-
मखःस्थलमितिख्यातं तीर्थाणामुत्तमोत्तमम्।
हरिष्चन्ग्रादयो यत्र यज्ञै विविध दक्षिणे।।
महाभारत के बनपर्व में यह आश्रम #चम्पा (वियतनाम) नदी के किनारे बताया है। वियतनाम के पूवोत्तर क्षेत्र के पर्यटन विभाग ने इस आश्रम को थाइलैंड की #अयोध्या में होना बताया है।
ऋष्यश्रृंग् के द्वारा तीनों रानियों के योनिकुंड में अपने लिंग के माध्यम से क्षीर (वीर्य) की आहुति देने के परिणाम स्वरूप शहंशाह दशरथ को राम, लक्ष्मण, भरत तथा शत्रुघ्न नामक चार औलादें हुई थी।
राजा दशरथ और कौशल्या /कैकयी की बेटी का नाम शांता था। माना जाता है कि एक बार अंगदेश (कम्बोडिया) के शाह रोम-पाद उर्फ लोम-पाद और उनकी रानी #वर्षिणी अयोद्धा आए:थे। उनके भी कोई औलाद नहीं थी। बातचीत के दौरान राजा दशरथ को जब यह बात मालूम हुई तो उन्होंने कहा, मैं अपनी मनहूस बेटी शांता को" आपकी औलाद के रूप में दूंगा। सनातन धर्म के सनातन काल में गोदनामा करने की कोई लिखा पढी नही होती थी और ऋषि-मुनियों व राणा-राव द्वारा अपनी औलाद को कहीं भी फेंकने व किसी को देने की छूट थी
यह सुनकर लोमपाद और उसकी बीवी वर्षिणी बहुत खुश हुए। उन्हें शांता के रूप में एक बेटी मिल गई। उन्होंने बहुत स्नेह से उसका पालन-पोषण किया और राणा जनक की तरहं माता-पिता के सभी ड्यूटी निभाई।
एक दिन राजा रोमपद अपनी बेटी से बातें कर रहे थे। तब द्वार पर एक ब्राह्मण आया और उसने राजा से प्रार्थना की कि वर्षा के दिनों में वे खेतों की जुताई में शासन की ओर से मदद प्रदान करें। भारत के प्रधान की तरहं राव रोम-पाद को यह सुनाई नहीं दिया और वे अपनी बेटी के साथ बातचीत करते रहे।
दरवाजे पर आए शहर के ब्राहमण भिखारी की याचना न सुनने से ब्राहमण को दुख हुआ और वे राजा रोमपाद का राज्य छोड़कर चले गए। वे इंद्र के भक्त थे। अपने भक्त की ऐसी अनदेखी पर इंद्र देव राजा रोमपद पर नाराज हो गए और उन्होंने मूसलाधार बारिश नहीं की। अंगदेश में नाम मात्र की मानसून की बरसात हुई और कहीं बाढ आ गई। इससे खेतों में खड़ी फसलें मुर्झाने और बाढ से डूबने लगीं
इस संकट की घड़ी में राणा रोम-पाद ऋष्यश्रृंग्य के पास गए और उनसे उपाय पूछा। ऋषि ने बताया कि वे इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ करें। ऋषि ने यज्ञ किया और मूलाधार बरसात से वहाँ के खेत-खलिहान पानी से भर गए। इसके बाद प्रजापात्य वैवाहिक विधि से ऋष्यश्रृंग्य का शांता के साथ विवाह हो गया और वे सुखपूर्वक रहने लगे।
सींग वाले ऋष्यश्रृंग्य राजमहल की विलासिता को त्यागकर पुनः वन में चले गए और वहीं मर गये।
श्रृंगी वंश:- दूसरों की बीवियों से बच्चे पैदा करने वाले' ऋष्यश्रृंग्य की घरवाली शांता के गर्भ से उनके एक बेटा का जन्म हुआ जिसका नाम शांत-श्रंगी रखा गया। ऋषि श्रृंग ने अपने बेटे को विधिवत ब्रह्मचर्य का पालन कराते हुए स्वयं वेदों का अध्ययन कराया, जिससे वह श्रेष्ठ वेदवेत्ता #श्रंग्य ऋषि के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ब्रह्मचारी होने के बावजूद सारंग्य ने आठ बेटे किए, जिनमें उग्र, वांम, भीम और वासदेव तो मरते दम तक ब्रह्मचर्य व्रत धारण कर जन्नतवासी हो गये #वत्स धौम्य देव, वेद दृग तथा बेद-बाहु ने ब्रह्मचर्य पूर्वक वेदों को पढने के बाद शादी की।
वत्स के वंश में मीमांसा दर्शन रचयिता महामुनि जैमिनी हुए। जैमिनी के वंश में शांति देव और शांतिदेव के कुल में #कौडिन्य नाम के ऋषि हुए। कौडिन्य का अंगिरा नाम भी प्रसिद्ध हुआ। कौडिन्य ऋषि के कुल में #शमीक नाम के ऋषि और शमीक ऋषि से तेजस्वी (#द्वापर #महाभारत काल के पश्चात) ऋष्यश्रृंग्य (द्वितीय) पैदा हुए। ऋष्यश्रृंग्य का बेटा #शांडिल्य ऋषि हुए। इनके यहाँ सात बेटों ने जन्म लिया। पजिनके नाम ज्ञानेश्वर, वाराधीश, भीमेश्वर, गोबिंद, दुग्धेश्वर, अनिहेश्वर और जयेश्वर हुए, इन सातों के 24 औलाद पैदा हुई। इनके द्वारा ही मुनिबनिये व मनुब्राहमणों केअधीन मानसिक व शारीरिक गुलामी करने वाले विभिन्न जाति के लोग व इनके 52 गोत्रों की व्यवस्था लागू हुई।
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ओशो का मानना था कि पौराणिक ऋषियों को भी सुन्दर स्त्रियों की लालसा थी, कई बार इनकी स्त्रियाँ इनसे उम्र मे काफी छोटी होती थी!
एक बात ध्यान रखना कि काम को सामान्यतः कोई जीत नही पाया, न तो ऋषि-मुनि और न ही इनकी पत्नियाँ!
यह तो सबको पता ही है कि देवगुरू वृहस्पति की पत्नि तारा और चन्द्रदेव (चन्द्रमा) के बीच अनैतिक सम्बन्ध थे, और इन दुराचार से 'बुध' नाम का एक पुत्र भी पैदा हुआ था!
ऐसी ही एक और ऋषिपत्नि थी "अहिल्या"
अहिल्या ऋषि गौतम की पत्नि थी, जो बहुत सुन्दर थी!
अहिल्या की सुन्दरता पर स्वयं देवराज इन्द्र भी फिदा थे! कहते हैं कि एक बार इन्द्र और चन्द्र ने मिलकर गौतम ऋषि को बेवकूफ बनाया!
गौतम ऋषि प्रतिदिन सुबह मुर्गे की बांग सुनकर नहाने जाते थे, और इसी का लाभ लेकर चन्द्र ने एक दिन समय से पहले ही मुर्गा बनकर बांग दे दी!
गौतम ऋषि धोखे मे आकर नहाने चले गये, मौका पाकर इन्द्र गौतम का वेष बनाकर अहिल्या के पास आये ट्वेन्टी-ट्वेन्टी खेलकर भाग निकले...
जिससे क्रोधित होकर गौतम ऋषि ने अहिल्या को श्राप देकर पत्थर बना दिया, क्योंकि उसने अपने पति के रूप मे आये इन्द्र को पहचानने मे भूल की!
हांलाकि यह कहानी सच नही है, सच तो यह है कि अहिल्या ने स्वयं इन्द्र के साथ संसर्ग किया था!
यह सच है कि चन्द्र मुर्गा बनकर बोले थे, पर इन्द्र ने अहिल्या से छल नही किया था!
बाल्मीकि रामायण/बालकाण्ड सर्ग-48/17-21 मे साफ लिखा है कि जैसे ही गौतम ऋषि स्नान करने अपनी कुटिया से निकले, देवराज इन्द्र अन्दर आ गये!
इन्द्र ने अहिल्या से कहा- हे देवी! मे देवराज इन्द्र हूँ, मैने तीनों लोकों मे तुमसे सुन्दर स्त्री नही देखी! तुम अद्वितीय रूपवती हो, मै तुमसे रतिक्रिया (सम्भोग) करना चाहता हूँ!
इन्द्र चालाक थे, उन्हे मालूम था कि महिलाऐं अपनी प्रशंसा सुनना बहुत पसन्द करती है....
इन्द्र के मुँह से अपने रूप की प्रशंसा सुनते ही अहिल्या के पाँव जमीन पर नही रहे, वो सोचने लगी कि "हाय,, मै इतनी सुन्दर हूँ कि स्वयं देवराज मुझसे प्रणय के लिये विनती कर रहे है, मेरे अहो भाग्य!"
और फिर अहिल्या तैयार हो गयी!
जब इन्द्र ने गौतम ऋषि की कुटिया मे भरपूर 'बरसात' कर ली, तब अहिल्या से बोले कि- 'हे देवी! मुझे बहुत आनन्द आया, मै अब संतुष्ट हुआ'
अहिल्या ने कहा कि मै भी आपसे तृप्त हुई, पर इससे पहले की मेरे पति आ जाये, आप यहाँ से चले जाओ।
कहते हैं कि हाथी पालना तो आसान होता है, पर उसका चारा देना मुश्किल है!
ऋषि-मुनि अधेड़ अवस्था मे भी सुन्दर कन्याओं से शादी कर लेते थे, पर क्या वो अपनी पत्नियों को खुश रख पाते थे, यह बड़ा प्रश्न था! और अहिल्या की घटना भी यही बताती है।
चलो अगर एक बार मान भी लें कि इन्द्र ने अहिल्या से छल किया, और अहिल्या इन्द्र को पहचान ही नही पायी तो फिर क्यों गौतम ऋषि ने अहिल्या को श्राप दिया?
फिर तो उस दिन केवल अहिल्या ही नही, गौतम ऋषि भी छले गये थे!
गौतम ऋषि ब्रह्मज्ञानी थे, और इतना तपोबल था कि किसी को श्राप देकर पत्थर बना सकते थे, पर उस समय इनका तपोबल कहाँ चला गया था, जब ये चन्द्रमा की नकली बांग को असली मुर्गे की आवाज समझ बैठे!
अगर गौमत जैसे दिव्यऋषि को यह ज्ञान नही हो पाया कि चन्द्रमा उन्हे छल रहा है, तो अहिल्या कैसे जान पायेगी कि इन्द्र मेरे पति के रूप मे आये हैं!
गौतम ऋषि का अहिल्या को श्राप देना सर्वथा अनुचित था! अहिल्या इन्हे भी तो श्राप दे सकती थी, कि तुम धोखे मे आकर आधी रात को नहाने क्यों गये। और अगर महर्षि बाल्मीकि की बात सत्य है तब भी गौतम ऋषि ही दोषी है, अगर वो अहिल्या को संतुष्ट रखते तो शायद वो इन्द्र के प्रस्ताव को न स्वीकार करती!
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समुद्र पी जाने वाले ऋषि अगस्त्य का नाम तो लगभग सभी ने सुना है, पर शायद कम ही लोग जानते हैं कि ऋषि अगस्त्य पैदा कैसे हुये?
चलिये हम बता रहे हैं-
एक बार राजा निमि और ऋषि वशिष्ठ मे किसी बात को लेकर विवाद हो गया, फिर दोनो ने एक-दूसरे को शरीर-हीन होने का श्राप दे दिया और श्रापवश दोनो ही शरीर-विहीन हो गये....
तत्पश्चात वशिष्ठ अपने पिता ब्रह्माजी के पास गये और उनसे पुनः शरीर प्राप्ति का उपाय पूँछने लगे! ब्रह्मा ने कहा कि आप वरूणदेव के वीर्य मे प्रवेश कर जाओ, फिर तुम अयोनिज रूप से पुनः शरीर पा जाओगे और जो वायुरूप मे विचरण कर रहे हो उससे मुक्ति मिल जायेगी!
ब्रह्मा की आज्ञा से वशिष्ठ वरुण के वीर्य मे प्रविष्ठ कर गये!
एक दिन की बात है, उर्वशी बड़े सुन्दर वस्त्र पहनकर वरुण के निकट से गुजर रही थी! उर्वशी के रूप-रंग को देखकर वरुण काम पीड़ित हो गये और उसके पास जाकर समागम करने की विनती करने लगे!
उर्वशी ने कहा कि हें वरुणदेव! आज तो यह सम्भव नही हैं... आज मैने आपसे पहले मित्रदेव को समागम करने के लिये हाँ कर दिया है! अभी मै उन्ही के पास जा रही हूँ, आज मेरा शरीर उनके लिये है, आप किसी और दिन अपनी इच्छापूर्ति कर लेना!
वरुण ने कहा कि मै आज तड़प रहा हूँ, और तुम किसी और दिन की बात कर रही हो! मुझसे कामाग्नि सही नही जा रही है.....हे उर्वशी! मेरी विनती स्वीकार कर लो।
पर उर्वशी न मानी और बोली कि मैने आज मित्रदेव को वचन दे दिया है, वो आपसे पहले ही मेरे पास आये थे!
तब वरुण देव ने कहा कि उर्वशी तुम मेरी मदद करो, मै किसी घड़े मे अपना वीर्य-त्याग करना चाहता हूँ!
उर्वशी ने कहा कि हाँ, आज यही ठीक रहेगा!
फिर उर्वशी एक घड़ा लायी, और वरुण देव ने उसी घड़े मे अपना वीर्यपात करके अपनी हवस शान्त की!
इसके बाद जब उर्वशी मित्रदेव के पास पहुँची तो मित्रदेव क्रोध से लाल हो गये, और बोले, रे दुराचारिणी! तू अभी तक किससे नैना-चार कर रही थी?
मै कब से तेरी प्रतिक्षा कर रहा हूँ, और तू किसी और से व्यभिचार कर रही थी, जबकि तूने मुझे आज अपने आप को समर्पित करने का वचन दिया था!
उर्वशी ने मित्रदेव को बहुत समझाया, पर मित्रदेव न माने, और वो भी उसी मटके मे वीर्यपात करके चले गये!
थोड़े दिन बाद वरुण के वीर्य से वशिष्ठ और मित्रदेव के वीर्य से अगस्त्य ऋषि का जन्म हुआ!
अगस्त्य ऋषि कुम्भ (मटके) से पैदा हुये थे इसलिये इनका एक नाम 'कुम्भज' भी है!
अब जरा सोचो कि मटके मे ऐसा कौन सा पदार्थ होता था कि जिसमे वीर्य गिराने से बच्चे का जन्म हो जाता था!
महाभारत के अनुसार गांधारी के सौ पुत्र भी मटके से ही पैदा हुये थे!
आखिर कुम्हार मटका पानी रखने के लिये बनाते थे, या उसमे वीर्यपात करके अयोनिज संतान पैदा करने के लिये।
प्रमाण मांगने वालों के लिये मै बता दूँ कि यह पूरी कथा वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड सर्ग-56-57 से ली गयी है।
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(आदिपर्व 122)
Thank u sir for exposed Hinduism.
ReplyDeleteSir can I find it's english
ReplyDeletetranslate?
Can I get a English translation of this ?
ReplyDeleteBsdk kuch bhi likhte ho
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