तिम्र : कोट्योर्द्धकोटी च , यानि लोमानि मानवे ,!
तावत्कालं वसेत्स्वर्गे , भतर याऽनुगच्छति !!-34
व्यालग्राही यथा व्यालं , बला दुद्धरते विलात् ,
एवं स्त्री पतिमुत्य , तेनैव सह मोदते . . 35 .
- पराशर स्मृति अध्याय 4 ,
ब्रह्मपुराण एवं गौतमी माहात्म्य 10 / 76 , 74 .
तत्र सा भर्तृपरमा स्तूयमानाप्सरो गणे : , क्रीडते पतिना सार्ध यावदिंद्राश्चतुर्दश .
ब्रह्मघ्नो वा कृत्घ्नो वा मित्रघ्नो वा भवेत्पतिः , पुनात्यविधवा नारी तमादाय मृता तु या . ।
मृते भर्तरि या नारी समारोहेदहुताशनम् , सारुंधतीसमाचारा स्वर्गलोके महीयते
यावच्चाग्नौ मृते पत्यौ स्त्री नात्मानं प्रदाहयेत् , तावन्न मुच्चते सा हि स्त्री शरीरात्कथंचन .
- याज्ञवल्क्य 1 / 86 ; परमिताक्षरा ,
अपरार्क पृ . 110
शुद्धितत्त्व पृ . 234 .
-अर्थात जो स्त्री पति के संग अनुगमन करती है ( यानी सती होती है ) ,वह साढ़े तीन करोड़ वर्षों , जितने कि मनुष्य के शरीर में लोम हैं, तक स्वर्ग में बसती सर्प को पकड़ने वाला जैसे बिल में से सांप को निकाल लेता है , वैसे ही वह स्त्री भी नरक से अपने पति का उद्धार कर के उस के संग ही स्वर्ग में आनंद भोगती है, वहां वह पति के साथ तब तक खेलती है , जब तक 14 इंद्र रहते हैं , वहीं अप्सराएं उस की प्रशंसा करती हैं, पति चाहे ब्रह्म हत्यारा हो , चाहे कृतघ्न हो , चाहे मित्रघाती हो , यदि उस की पत्नी उस के साथ जीवित जल मरे , तो वह पति को पवित्र बना देती है, मृत पति के साथ जो नारी अग्नि में प्रवेश करती है , वह अरुंधती के समान स्वर्ग में यश पाती है, जब तक नारी मृत पति के साथ नहीं जलती , तब तक उस का शरीर से छुटकारा नहीं अर्थात स्त्री के रूप में अपने जन्म होने को रोकने के लिए उसे सती होना चाहिए,
मृते भर्वरिया नारी समारोहेत्हुताशनम सा भवेतु शुभाचारा , स्वर्गलोक महीयते .
व्यालग्राही यथा व्यालं वबादुद्धरते बिलात् , तथा सा पतिमृद्धृत्य तेनैव सह मोदते .
दक्ष स्मृति अनु . 4
अर्थात पति के मरने पर जो स्त्री अग्नि में भस्म हो कर सती होती है वह शुभ आचरण वाली होती है और स्वर्ग में पूजा को प्राप्त होती है,जैसे सर्प को पकड़ने वाला बिल में से सांप को बल से निकाल लेता है ,वैसे ही वह स्त्री भी अधोगति को प्राप्त हुए अपने पति का उद्धार कर के उसी के साथ स्वर्ग में आनंद भोगती है,
नारी भत्तरमासाद्य यावन्न दहते तनुम् , तावन्न मयुच्यते सा हि स्त्रीशरीरात् कथंचन ,
- विष्णु स्मृति
अर्थात पति में सब तरह से लवलीन हो कर जब तक स्त्री उस के साथ नहीं मरती अथवा अपनी सत्ता को उस में नहीं मिला देती , तब तक उस का न स्त्री शरीर से छुटकारा होता है और न उसे मोक्ष प्राप्ति होती है .
मृते म्रियेत या पत्यै सा स्त्री ज्ञेया पतिव्रता . . 199 . . .
या स्त्री मृत परिष्वज्य दग्धा चेहव्यवाहने ,
सा भर्तृलोकमाप्नोति हरिणा कमला यथा . . 200 . .
साध्वीनामिह नारीणामग्निप्रपतनादृते ,
नान्यो धर्मोऽस्ति विज्ञेयो मृते भर्तरि कुवचित् . . 202 . .
वृद्ध हारीत स्मृति , अ . 11
अर्थात जो स्त्री मृत पति के साथ मर जाती है ,उसे पतिव्रता समझना चाहिए,जो स्त्री मृत पति का आलिंगन कर के अग्नि में प्रवेश करती है ,वह पति लोक को प्राप्त करती है ,जैसे विष्णु के साथ लक्ष्मी ,भली स्त्रियों के पास इस के सिवा और कोई चारा नहीं कि वे मृत पति के साथ आग में कूद पड़े-
तर्क से काटिये अन्धविस्वासों के जाल -पृष्ठ-148,149,150.
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उसे कई प्रकार के परलोक संबंधी प्रलोभन दे कर पति की चिता के साथ ही जीवित जला दिया जाता था-
वेदों में स्पष्ट लिखा है :
इयं नारी पति लोकं वृणाना,
निपद्यत उपत्वा मर्त्य प्रेतम्
धर्म पुराणमनुपालयंती
तस्यै प्रजां द्रविणं चेह धेहि-
(अथर्ववेद 18/3/3 और कृष्ण यजुर्वेद तैति. 6/1/13 ).
अर्थात हे मनुष्य-पति लोक को चाहने वाली यह स्त्री प्राचीन धर्म का पालन करती हुई आप के समीप होती है, इस की प्रजा, संतान और द्रव्य की आप रक्षा करें
तर्क से काटिये अन्धविस्वासों के जाल -पृष्ठ-147-148.
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#सती_प्रथा_का_सच.....
सती प्रथा का मतलब होता है ऐसी प्रथा (परम्परा) जो 'सती' द्वारा चलायी गयी!
शिवपुराण मे एक कथा आती है कि शिव की पत्नी सती के पिता "दक्ष" ने अपने ही दामाद शिव का अपमान किया था! देवी सती अपने पति का अपमान सहन ना कर सकी और हवनकुण्ड मे कूदकर खुद को आग की लपटों से भस्म कर दिया!
पति के सम्मान के लिये सती का यह बलिदान एक परम्परा बन गयी, पुरातनकाल मे जब कोई महिला विधवा होती थी, तब वह अपने पति के साथ ही चिता पर बैठकर जल जाती थी, और पंडे ऐसी महिला का दर्जा देवी 'सती' के बराबर मानते थे!
महाभारत मे पाण्डु की पत्नि माद्री भी पाण्डु के साथ सती हुई थी, और यही से यह क्रूर प्रथा प्रबल हो गयी।
सोचने की बात तो यह है कि दशरथ की पत्नियाँ कौशिल्या, कैकेयी और सुमित्रा दशरथ के साथ सती नही हुई थी!
तो क्या वो 'पतिव्रता' नही थी?
यह प्रथा हिन्दू समाज मे निर्विरोध रूप से सन् 1829 तक चलती रही, इसके बाद अंग्रेजों ने इस पर रोक लगा दी और यह परम्परा लगभग बन्द हो गयी!
इस प्रथा के विरोध मे राजा राममोहन राय और लार्ड विलियम बैटिंक ने बहुत लड़ाई लड़ी!
यह रिवाज निश्चित रूप मे हिन्दू समाज पर कलंक था, पर अब कुछ हिन्दू धर्माधिकारी कहते हैं कि यह प्रथा कभी भी धार्मिक प्रावधान नही थी!
लेकिन गरुणपुराण उन पंडो के झूठ को उजागर कर रहा है!
गरुणपुराण/अध्याय-10 श्लोक-35 से 56 तक मे लिखा है-
"पति की मृत्यु के बाद पतिव्रता नारी को पति के साथ ही परलोकगमन करना चाहिये, महिला लज्जा और मोह त्यागकर श्मशान भूमि मे जाये, चिता की परिक्रमा करके महिला चिता पर चढ़े और अपने पति को गोद मे लिटाये, तथा अग्नि को गंगाजल समान मानकर खुद को पति के साथ भस्म कर ले"
यह सब कितनी बेशर्मी और निर्दयिता के साथ लिखा गया है, जैसे महिला जीवन का कोई महत्व ही नही है!
इस पुराण मे यह कहीं नही लिखा है कि यदि पत्नि पहले मर जाये तो पति उसके साथ चिता पर लेटे, पर पत्नियों के लिये ऐसी बेरहम बातें लिखी है!
अब सवाल यह है कि यदि महिला गर्भवती हो तो भी क्या उसे 'सती' होना चाहिये?
इस पर इसी अध्याय के 41 वें श्लोक मे लिखा है कि महिला पहले प्रसव करके पुत्र पैदा कर दे, उसके बाद उसे 'सती' हो जाना चाहिये!
इसी पुराण 54वें श्लोक मे महिला को डराया भी गया है कि "यदि वह क्षणमात्र होने वाली पीड़ा के कारण सती होने का सुख नही भोगती है तो वो महिला जन्म-जन्मातर तक विरहाग्नि मे जलती रहती है, और जो महिला सती हो जाती है वह 14 इन्द्रों के कार्यकाल तक स्वर्ग मे पति के साथ रमण करती है!
अग्नि केवल महिला के शरीर को जलाती है, पर आत्मा को पीड़ा नही होती! नारी अमृत समान अग्नि मे जलकर पवित्र हो जाती है, और उसके सारे पाप भी नष्ट हो जाते है! यदि महिला ऐसा नही करती तो वह नारी ऋण मे उत्तीर्ण नही होती!"
इस पुराण से यह स्पष्ट हो जाता है कि पंडे महिला को सती होने पर स्वर्ग का लालच देते थे, और इनकार करने पर नर्क की अग्नि का डर दिखाकर उसकी निर्मम हत्या करते थे!
पंडे महिला से कहते थे कि सती होने से तुम्हारे कुल का गौरव बढ़ेगा और अगले जन्म मे शीघ्र ही अपने पति से तुम्हारा मिलन होगा!
बस ऐसी ही बातों से विधवा नारी को सम्मोहित किया जाता था!
सती प्रथा पंडो की क्रूरता का और छोटा सा उदाहरण मात्र है, पंडे पूर्वकाल मे ऐसे दर्जनों जघन्य अपराध धर्म की आड़ मे करते थे!
सती प्रथा का उल्लेख "नारदपुराण अध्याय-7" मे भी है, पर वहाँ जरा सा रहम किया गया है!
नारदपुराण अध्याय-7/52 के श्लोक मे लिखा है-
"बालापत्याश्च गर्भिण्यो ह्यदृष्टऋतवस्तथा।
रजस्वला राजसुते नारोहन्ति चिंता शुभे।।"
अर्थात- जिस महिला की संतान बहुत छोटी हो, जिसकी उम्र इतनी कम हो कि उसे अभी तक माहवारी ना शुरू हुई हो, जो गर्भवती हो, और जिसे माहवारी आ रही हो, उसे पति के साथ चिता पर नही चढ़ना चाहिये।
नारदपुराण ने तो जरा सा दयाभाव भी दिखा दिया है, पर गरुणपुराण तो विधवा को जलाने पर ही उतारू है....
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