Thursday, 3 September 2020

अन्तरवर्ण विवाह।


ब्राह्मणवाद ने प्रतिलोम विवाहों अर्थात् उच्च वर्ण की स्त्री और निम्न वर्ण के पुरुष के बीच विवाहों पर रोक लगा दी, वह वर्गों के बीच आपसी संबंध को समाप्त करने और उन्हें अलग - अलग करने और उनमें एक -दूसरे के प्रति समाज विरोधी भावना पैदा करने की दिशा में एक शक्तिशाली कदम था, लेकिन जहां एक ओर प्रतिलोम विवाहों द्वारा अंतःसम्बंधों का द्वार बंद कर दिया गया वहीं दूसरी ओर अनुलोम विवाह द्वारा अंतःसम्बंधों का द्वार खुला रखा गया, उसको बंद नहीं किया गया, जैसा कि सोपानी कृत असमानता विषयक खंड में उल्लेख किया गया है, ब्राह्मणवाद ने अनुलोम विवाह , अर्थात उच्च वर्ण के पुरुष और निम्न वर्ण की स्त्री के बीच विवाह जारी रखा, यूँ तो अनुलोम विवाह बहुत अच्छा नहीं कहा गया और यह सिर्फ एक ओर जाने का द्वार था , इसमें दूसरी ओर से नहीं आ सकते थे, फिर भी यह एक -दूसरे को मिलाने वाला द्वार था जिसके माध्यम से वर्गों को एक -दूसरे से बिलकुल अलग -थलग होने से रोकना संभव था,लेकिन ब्राह्मणवाद के घिनौने-प्रतिलोम विवाह का प्रभाव यह हुआ, कि उच्च वर्ण की माताओं के बच्चे निम्न वर्ण के कहलाएंगे जो उनके पिता का वर्ण होगा, अनुलोम विवाह पर इसका प्रभाव उलटा होगा, निम्न वर्ण की माताओं के बच्चे उच्च वर्ण के कहलाएंगे, जो उनके पिता का वर्ण होगा.
  
फलस्वरूप मनु ने प्रतिलोम विवाह को पूर्णतया रोक दिया और इस प्रकार निम्न वर्ण में उच्च वर्ण के आने पर कड़ाई से रोक लगा दी, यह चाहे कितना भी खेदजनक क्यों न हो परंतु जब तक अनुलोम विवाह और पितृ -सावर्ण्य के नियमों का पालन व्यवहार में होता रहा तब तक कोई ज्यादा नुकसान नहीं हुआ, इन दोनों ने मिलकर एक बहुत ही उपयोगी पद्धति का निर्माण किया, अनुलोम विवाह -पद्धति ने परस्पर संबंध को बनाए रखा और पितृ - सावर्ण्य नियम ने उच्च वर्गों की स्वयं को सुगठित रखने में मदद की, वे निम्न वर्गों में जा नहीं सकते थे लेकिन वे विभिन्न वर्गों की माताओं से जन्म लेते रहे, ब्राह्मणवाद विभिन्न वर्गों के बीच संबंध के इस द्वार को खुला रखने का इच्छुक नहीं था,यह उसे बंद कर देने पर तुला बैठा था,उसने इसे ऐसी रीति से किया जो प्रतिष्ठाजनक नहीं है,सीधा और सच्चा रास्ता अनुलोम विवाह को रोक देना था,लेकिन ब्राह्मणवाद ने ऐसा नहीं किया,उसने अनुलोम विवाह -पद्धति को जारी रखा,उसने बस यह किया कि शिशु की स्थिति का निर्णय करने वाले नियम को पूर्णतया बदल दिया, उसने पितृ -सावर्ण्य नियम के स्थान पर मातृ -सावर्ण्य नियम लागू कर दिया, जिससे शिशु की स्थिति उसकी मां की स्थिति के आधार पर निर्धारित की जाने लगी, इस परिवर्तन से विवाह पारस्परिक सामाजिक संपर्क का वह साधन नहीं रह गया जो वह मुख्य रूप से था, इससे उच्च वर्ण के पुरुष अपने बच्चों के प्रति अपने उत्तरदायित्व से सिर्फ इसलिए मुक्त हो गए कि ये बच्चे निम्न वर्ण की मां से पैदा हुए थे, इसने अनुलोम विवाह को सिर्फ भोग, निम्न वर्णों को सताने और अपमानित करने और उच्च वर्णों को निम्न वर्ण की स्त्रियों के साथ कानूनी रूप में वेश्या कर्म करने का एक साधन बना दिया और व्यापक सामाजिक दृष्टि से इसने वर्गों को पूरी तरह अलग- थलग कर दिया, वर्गों में परस्पर यही अलगाव हिंदू समाज के लिए अभिशाप हो गया है,और अमानवीय चातुर्वर्ण्य व्यवस्था लागू हो गयी,और इसे निचले स्तर तक लागू किया गया जिसके विध्वंसक परिणाम सामने आए ।

:-प्राचीन भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति - 212 -213


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