स्वकीयाम च सुताम ब्रम्हा, विष्णु देवा स्वमातरम
भगनी भगवान शम्भूरगृतीतवाम, श्रेष्ठताम गात
- भविष्य पुराण प्रतिसर्ग-खंड 4 ,अध्याय 18 ,श्लोक -23
अर्थात ब्रम्हा अपनी पुत्री को , शिव अपनी बहन को, विष्णु अपनी माता को पत्नी बनाकर ही श्रेष्ठता को प्राप्त हुए हैं.
ऋग्वेद के दसवें मंडल सूक्त 10 मंत्र 1 से 15 तक यम और यमी दो सगे भाई बहनों के प्रेम प्रसंग का विस्तृत वर्णन है, ऋग्वेद में पिता द्वारा पुत्री की इज्जत लूटने का कई जगह वर्णन है-
पिता दुहि तुरगर्भ माधात -
ऋग्वेद-1-,164-33.
अर्थात पिता ने पुत्री को गर्भ स्थापित किया.
पितामत्र दुहितः सेकम्रजन-
ऋग्वेद-3-31-1
अर्थात पिता ने पुत्री में वीर्य सींचा.
महानिर्वाण तंत्र लिखता है-
मात्र योनि क्षिपेत लिंगम, भगनिया स्तन मर्दनम
गुरुर मूर्धनया पदम दत्वा, पुनर्जन्म न विधते
अर्थात- माँ की योनि में लिंग प्रविष्ट करो,बहन के स्तन को मसलो -तो ऐसा करने से गुरु पद की प्राप्ति होती है, और पुनर्जन्म नहीं होता है.
कालितंत्र लिखता है-
मात्र योनि परित्यज्य, विहरेतु सर्वेशु योनिशु-
अर्थात मां की योनि को छोड़कर सभी योनियों में भ्रमण करो, अर्थात मां को छोड़कर चाहे बहन बेटी ही क्यों न हो उनके साथ विहार करो.
सत्यार्थ प्रकाश में स्वामी दयानंद सरस्वती लिखते हैं-कि संतान की इच्छुक स्त्री ग्यारह पुरुषों तक से यौन संबंध स्थापित कर सकती है.
रुद्र यामल तंत्र में तो मूलनिवासी स्त्रियों की इज्जत लूटने वाले व्यक्ति को तो स्वर्ग का रास्ता दिखाया गया है-
रजस्वला पुष्करम तीर्थ चांडाली तू काशिका ।
चर्मकारी तू परायागह स्याद्रज की मथुरा मता ।
अयोध्या वर वधु प्रोक्ता माया तू नापित स्त्रियः ।
अर्थात -रजस्वला स्त्री के साथ संभोग करना पुष्कर तीर्थ के समान है,चांडाल स्त्री के साथ सम्भोग करना काशी तीर्थ के समान है, चमारिन के साथ संभोग करना प्रयागराज तीर्थ के समान है, धोबन के साथ संभोग करना मथुरा तीर्थ के समान है, वैश्या के साथ संभोग करना अयोध्या तीर्थ के समान है, और नाई स्त्री के साथ संभोग करना हरिद्वार तीर्थ के समान है.
स्त्री, शूद्रों विद्या न धियताम
अर्थात स्त्री और शूद्रों को शिक्षा मत दो.
रामचरित मानस में नारी अपमान नस्लभेद का परिणाम-पृष्ठ-29-30-31
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