सिंधुघाटी सभ्यता के विनाश की कहानी ऋग्वेदिक आर्यो की जुबानी।
विश्व की उत्कृष्ट सिंधुघाटी सभ्यता के विनाश का कारण ऋग्वेदिक आर्य थे जिसे आर्यों नें अपनें धर्मग्रंथ "वेदों" में लिखकर रखा हैं, आर्यों के वेद और कुछ नहीं बल्कि विदेशी आर्य और सिंधुघाटी सभ्यता के सृजनकर्ता अनार्य के बीच हुए नरसंहार और विध्वंस के लिखित दस्तावेज हैं आर्यो को डर था कि आने वाली सदियों में उनके इस कुकृत्य को कोई जान न जाय इसीलिये उन्होंने अन्य किसी को वेदों के पढ़ने पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया, वेदों का पन्ना पन्ना इस अमानवीय अत्याचार की खुली गवाही दे रहा है-जानिए कैसे-
वेदों में आर्य इंद्र के जिन विरोधियों का बार बार जिक्र किया गया है उन्हें दस्यु तथा दास कहकर संबोधित किया गया है, आर्यो नें इन्ही सिंधुघाटी सभ्यता के मुलनिवाशियों दस्यु तथा दासों को लंबे संघर्ष के बाद उन्हें पराजित कर पूर्णतया नष्ट कर दिया गया और सिंधुघाटी सभ्यता को सदैव के लिये दफन कर दिया गया इसी दमनात्मक अत्याचार की कहानी आज भी वेदों में लिखित है-
ऋग्वेद-V-29-10-
प्रन्यच्चक्रैमवृह: सूर्यस्य कुत्सात्यान्य द्वरिवो यातबैअक: !
अन्नासो दस्युवं रमृणो वधेनि दुर्योंण आब्रणाड़ मृघृवाच: !!
अर्थात- है इंद्र तूने सूर्य के एक चक्र को पृथक किया तथा कुत्स को धन देने के लिए दूसरा चक्र बनाया, तूने छोटी नाक वाले दस्युओं को शस्त्र से मारा तथा संग्राम में बोलने वालों को भी मारा. (अनार्य द्रविड़ दस्युओं को वेदों में काले चपटी नाक वाले बताया गया है).
ऋग्वेद -lV- 16-13-
त्वं विप्ररुम मृगयं शूशुवान्स मृजिशवनेवैद्नाय रंधी: !
पंचाशत कृष्णा निवप: सहस्रसात्कम न पुरौ जरिमाविदर्द: !!
अर्थात हे इंद्र विदथि के पुत्र ऋजिश्वी के लिए तूने विपरुम तथा अति बलशाली मृगया को मारा, तूने पांच हजार काले वर्ण के असुरों को भी मारा, तथा जैसे लोग जीर्णशीर्ण कपड़ों को फाड़ डालते हैं उसी तरह तूने शत्रुओं के नगरों को तोड़ डाला.
ऋग्वेद-l-138-8-
हे इंद्र तूने ज्ञानी मनुष्य के लिए नियम तोड़ने वाले को दण्ड दिया तथा काली त्वचा वाले शत्रुओं (दस्युओं) को विनष्ट किया.
ऋग्वेद-Vll-5-3-
त्वद भिया विश आर्यन्नर्सिर्की रसमना जहतीर्भोजनानि !
वैस्वानर पूरवे शोशुचान: पुरो यदगनें दर्यन्नदीदै: !!
अर्थात -है अग्ने, जब तूने पुरु राजा के लिए प्रज्वलित होकर शत्रु के नगरों को जला दिया,तो भयभीत हो शत्रु की काले रंग की प्रजा भोजनादि त्यागकर भाग उठी.
ऋग्वेद-lX-41-1-
प्रये गावो न भूर्णा यस्तवेषा आयासो अक्रमु: ! घ्नंत: क्रभणामप त्वचम !!
अर्थात हे स्तोता, काले रंग के असुरों को मारकर विचरण करने वाले जल के समान द्रव्य तेजयुक्त निष्पन्न सोम की भली प्रकार स्तुति करो.
इस प्रकार ऋग्वेदिक आर्यों नें अपनें शत्रुओं दस्यु और दासों को काले रंग का बताया है। ऋग्वेद में स्वयं लिखा गया है कि सोम, अदिति, इंद्र के आर्य अनुयायियों को सिंधुघाटी सभ्यता (भारत) के काले लोगों के साथ लड़ना पड़ा, यहां इससे एक बात और साफ हो जाती है कि नार्डिक आर्य गौर वर्ण के थे, जबकि अनार्य दस्यु तथा दासों का रंग काला था,यही वजह है ईरानियों नें भारत के लोगों को काला (हिन्दू) कहा है.
ऋग्वेद-Vl-18-13-
व्यानवस्य तृतसवे गयं भा अंजेशम पुरं मृघ्रवाचं
अर्थात इंद्र नें अपनी शक्ति से दस्युओं के नगरों को तोड़ डाला और अनुपुत्र तुत्सु को दे दिया,इसलिए हे इंद्र हम पर अब ऐसी कृपा करो कि हम इन मृघृवाचों पर विजय पा सकें.
ऋग्वेद-X-12-8- स्पष्ट कहा गया है, कि हम दस्युओं के बीच रहते हैं ये दस्यु यज्ञ नहीं करते, और किसी में भक्ति नहीं रखते, इनकी रीतियाँ ही प्रथक हैं, ये मनुष्य कहलाने योग्य नहीं हैं, इसलिए शत्रुओं का नाश करने वाले हे इंद्र इनका नाश कीजिये-
(यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि नार्डिक आर्यों नें सिंधुघाटी सभ्यता के अनार्यो को मृघ्रवाच भाषा वाला बताया है यह वही द्रविण भाषा है जो आर्यो के समझ में नहीं आती थी).
जिस प्रकार उत्तर भारत की आर्य भाषाओं का संबंध हिंदी, पंजाबी तथा बंगाली से है ठीक उसी प्रकार दक्षिण भारत की द्रविण भाषाओं तमिल,मलयालम,तथा कन्नड़ आदि का सम्बंध उस भाषा से है, जो सिंधुलिपि में लिखी जाती थी, इस हकीकत नें सारी दुनियाँ को हकीकत में डाल दिया और बतला दिया कि सिंधुघाटी सभ्यता के सृजन में जिन लोगों का हाथ था, वे आज के द्रविणो के ही पूर्वज द्रविण थे, जिनका रंग काला,छोटा कद,
घुंघराले बाल,छोटी चपटी नाक तथा वे आर्यों द्वारा न समझी जाने वाली द्रविण भाषा बोलते थे,जिनका दस्यु तथा दासों के रूप में ऋग्वेद में बार बार वर्णन आया है,जिनका आर्यों के साथ लगातार युद्ध हुआ था।
:- सिंधुघाटी सभ्यता के सृजनकर्ता शूद्र और वणिक- पृष्ठ--57-58-59-60.
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