वैदिक आर्यों का धर्म बर्बर और अश्लील ।
वैदिक आर्यों का धर्म बर्बर और अश्लील था मानव बली उनके धर्म का अंग था और उसे नरमेध यज्ञ कहा जाता था,इसका यजुर्वेद संहिता,यजुर्वेद ब्राह्मण, सांख्यायन और वैतानसूत्र में सविस्तार वर्णन है, प्राचीन आर्य लिंग पूजा करते थे, लिंग पूजा को स्कम कहते थे , जो आर्य धर्म का अंग थी जैसा कि अथर्ववेद के मंत्र 10 .7 में वर्णित है।
एक और अश्लीलता प्रथा थी ,जिसने प्राचीन आर्य धर्म को विकृत किया हुआ था ,वह था अश्वमेध यज्ञ अथवा घोड़े की बलि,अश्वमेध यज्ञ का एक आवश्यक हिस्सा यह था कि मेधित ( मृत अश्व ) का लिंग यजमान की मुख्य पत्नी की योनि में ब्राह्मणों द्वारा पर्याप्त मंत्रोच्चार करते हुए डाला जाता था।। वासनेयी संहिता का एक मंत्र 23 .18 प्रकट करता है कि रानियों के बीच इस बात के लिए प्रतिस्पर्धा रहा करती थी कि घोड़े से योजित होने का श्रेय किसे प्राप्त होता है ?
जो इस विषय में और अधिक जानना चाहते हैं , वे यजुर्वेद की महीधर की टीका में और विस्तार से पढ़ सकते हैं, जहां वह इस वीभत्स अनुष्ठान का पूरा विवरण देते हैं जो आर्य धर्म का अंग थी.
आर्य संस्कृति क्या .?.आर्य एक जुआरी प्रजाति के थे ? आर्य सभ्यता के प्रारंभकाल में जुआ एक विज्ञान के रूप में विकसित हो चुका था,यहां तक कि कई तकनीकी शब्द भी गढ़े गए , हिंदू चार युगों को मृत , त्रेता , द्वापर और कलि के नाम से जानते हैं , जिसके अनुसार इतिहास का काल -विभाजन किया गया था दरअसल ये आर्यों द्वारा जुए में खेले जाने वाले दांव थे सबसे सौभाग्यशाली दांव कृत कहलाता था और दुर्भाग्यपूर्ण दांव को कलि कहते थे, त्रेता और द्वापर इनके बीच के थे, यह बात नहीं थी कि प्राचीन आर्यों में घूतक्रीड़ा भली - भांति विकसित थी, अपितु बाजियां भी ऊंची -ऊंची हुआ करती थीं, बड़ी -बड़ी धनराशि की बाजियां भी हुआ करती थीं, ऐसी बड़ी -बड़ी बाजियां तो अन्यत्र भी थीं , परंतु आर्यों से बढ़कर नहीं थीं।
आर्य जुए में अपने राज्य, यहां तक कि पत्नियों को भी दांव पर लगा दिया करते थे, राजा नल अपना राज्य ही हार बैठे थे, पांडव इससे भी बढ़कर थे, उन्होंने न केवल अपना राज्य बल्कि अपनी पत्नी द्रौपदी तक को दांव पर लगा दिया और दोनों को हार गए केवल धनवान आर्य ही जुआ नहीं खेलते थे बल्कि यह बहुतेरों का व्यसन था, प्राचीन आर्यों में घूतक्रीड़ा इतनी व्याप्त थी कि धर्मसूत्रों ( शास्त्रों ) के लेखकों को राजाओं को सलाह देनी पड़ती थी कि कठोर नियम बनाकर उस पर नियंत्रण की सख्त जरूरत है.
आर्यों में मैथुन के संबंध में स्वच्छन्दता विद्यमान थी, एक समय था ,जब वे विवाह को स्त्री - पुरुष के बीच स्थायी नहीं मानते थे, यह महाभारत से स्पष्ट है , जहां पांडुपत्नी कुंती पांडु के यह कहने पर कि वह किसी अन्य से पुत्र प्राप्त करें , वह बताती है कि उसको पहले ही एक पुत्र की प्राप्ति हो चुकी है,
ऐसे भी उदाहरण हैं कि बहन -भाई , मां - बेटे , पिता - पुत्री और नाना , दादा - पौत्रियों तथा नातिनों के बीच शारीरिक संबंध थे, स्त्रियों में स्वच्छंदता थी, यह खुली स्वच्छंदता थी, जहां कई पुरुष एक स्त्री को भोगते थे और उस पर किसी का निजी अधिकार नहीं था ऐसी स्त्रियां गणिकाएं कहलाती थीं, आर्यों की स्त्रियों में स्वच्छंद मान्यता और भी थी,बइसके अनुसार एक स्त्री कई पुरुषों से बंधी होती थी और प्रत्येक का दिन निर्धारित होता था, वह स्त्री वारांगना कहलाती थी, यही वजह थी कि वेश्यावृत्ति खूब फली -फूली हुई थी और सार्वजनिक मैथुन का प्रचलन था, परंतु यह प्रथा प्राचीन आर्यों में थी, प्राचीन आर्यों में पशुगमन ( मैथुन ) भी प्रचलित था और ऐसे महारथियों में अधिकांशतः कुछ सम्मानित ऋषि सम्मिलित थे।
प्राचीन आर्य मद्यसेवी ( शराबी ) भी थे, मदिरा उनके धार्मिक कृत्यों का अनिवार्य अंग थी, वैदिक देवता मदिरा पीते थे , दैवी मदिरा सोम कहलाती थी क्योंकि आर्यों के देवता ही मद्यपान करते थे , इसलिए आर्यों को मदिरापान में कोई नैतिक संकोच की बात नजर नहीं आती थी, दरअसल शराब पीना आर्यों का धार्मिक कर्तव्य था आर्यों में इतने सोम यज्ञ होते थे कि कोई बिरला दिन ही मद्यपान से बच पाता होगा, सोम - यज्ञ केवल तीन उच्च वर्गो - ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्यों तक सीमित था,बइसका अर्थ यह नहीं कि शूद्र मदिरापान से मुक्त थे, उनके लिए सोमपान निषिद्ध था , वे सुरा पीते थे जो घटिया पेय था, घटिया शराब बाजार में मिलती थी,केवल आर्य पुरुषों को ही शराब की लत नहीं थी बल्कि उनकी स्त्रियों को भी यह लत थी।
कौशीतकि गृह्यसूत्र 1 . 11 - 12 में परामर्श दिया गया है कि चार अथवा आठ ऐसी स्त्रियां जो विधवा न हों ,भोजन के साथ मदिरापान कर , विवाह - संस्कार की पूर्व रात्रि में नृत्य के लिए बुलाई जाएं, नशीली शराब पीने की प्रवृत्ति केवल गैर - ब्राह्मण स्त्रियों तक ही सीमित नहीं थी, ब्राह्मण स्त्रियों में भी उसकी आदतें थीं, मदिरापान कोई पाप नहीं , बल्कि एक व्यसन था जोकि आर्यों की एक सम्मानजनक प्रथा थी-
"डा.बी.आर.अम्बेडकर"
बा .अ .सं .वा .ख - 8 -पृ -117 - 118- 296.
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1...पेड़ की आड़ में छिपकर बाली का बध करने वाले "राम "को हम अपना आराध्य देव नहीं मान सकते.
2...जिसके भाई लक्ष्मण ने शुर्पनखा के नाक कान काट डाले थे उस" राम" को वे अपना आराध्य देव नहीं मान सकते.
3...दो दो बार अग्नि परीक्षा लेकर भी सीता को त्याग देने वाले "राम" को वे अपना आराध्य देव नहीं मान सकते.
4...तपस्या कर रहे संबूक को केवल इसलिए कि वह शूद्र था और तपस्या कर रहा था उसे मार डालने वाले "राम"' को वे अपना आराध्य देव नहीं मान सकते.
1...पूतना नाम की स्त्री को बचपन में ही जान से मार डालने वाला" कृष्ण" उनका भगवान् नहीं हो सकता है.
2...स्नान कर रही गोपियों के कपडे उठा ले जाने वाला और उन्हें नग्नावस्था में ही बाहर आने के लिए मजबूर करने वाला "कृष्ण"उनका भगवान् नहीं हो सकता है.
3...रुक्मिणी का त्याग कर राधा के साथ रमण करनेवाला "कृष्ण" उनका भगवान् नहीं हो सकता है.
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