Tuesday, 1 September 2020

मनु।


मनुस्मृति का वास्तविक रचनाकार सुमति भार्गव है।
मनुस्मृति को ईश्वरीय कृति कहा जाता है, यह कहा जाता है कि इसे स्वयंभू (अर्थात ब्रम्हा) नें मनु को सुनाया था और बाद में मनु नें इसे मनुष्यों को बताया,यह दावा स्वयं मनुस्मृति में किया गया है। प्राचीन भारतीय इतिहास में मनु की आदरसूचक संज्ञा थी, इस संहिता को गौरव प्रदान करने के उद्देश्य से मनु को ही इसका रचयिता कह दिया गया, 

भृगु की इस कृति का वास्तविक नाम मनु की धर्म संहिता है, भृगु का नाम इस संहिता के प्रत्येक अध्याय के अंत में जोड़ दिया गया है, इसमें हमें इस संहिता के लेखक के परिवार के नाम की जानकारी मिलती है,लेखक का व्यक्तिगत नाम इस पुस्तक में नहीं बताया गया है, जबकि कई लोगों को इसका ज्ञान था, लगभग चौथी शताब्दी में नारदस्मृति के लेखक को मनुस्मृति के लेखक का नाम ज्ञात था, नारद के अनुसार सुमति भार्गव नाम के एक व्यक्ति था, जिसने मनुसंहिता की रचना की, सुमति भार्गव कोई काल्पनिक नाम नहीं है, बल्कि यह कोई एक ऐतिहासिक व्यक्ति रहा होगा, इसका कारण यह है कि मनुस्मृति के महान टीकाकार मेघातिथे का यह मत था कि मनु निश्चित ही कोई व्यक्ति था, इस प्रकार मनु नाम दरअसल सुमति भार्गव का एक छद्म नाम था और वह ही इसका इसका वास्तविक रचयिता था,इसके अलावा न तो कोई ब्रम्हा था और न ही कोई मनु था।

:- डा.बी.आर.अम्बेडकर- बाबासाहब अम्बेडकर सम्पूर्ण वाङ्गमय- खण्ड- 7- पृष्ठ -150-151, बाबासाहब अम्बेडकर के विचार-पृष्ठ- 368.

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9 .225 जो मनुष्य विधर्म का पालन करते हैं . राजा को चाहिए कि वह उन्हें अपने साम्राज्य से निष्कासित कर दे.
9 .226 राजा के साम्राज्य में रहने वाले छद्मवेश में ये डाकू अपने कुकृत्यों से संघात जगत को अनवरत हानि पहुंचाते हैं. 12 .95 वे सभी परम्पराएं और वे सभी दर्शन की हेय पद्धतियां ,जो वेद पर आधारित नहीं हैं, मृत्यु के बाद कोई फल नहीं देतीं क्योंकि उनके बारे में यह घोषित है कि वे अंधकार पर आधारित हैं.
12 .96 वे सभी सिद्धान्त जो वेद से विमुख हैं ,उत्पन्न होते और शीघ्र ही मिट जाते हैं ,वे व्यर्थ हैं और झूठे हैं क्योंकि वे नवीन हैं अर्थात् इस समय के रचे हुए हैं.

मनु के शब्दों में विधर्मी बौद्ध धर्मावलंबी हैं और वेदों से भिन्न आधुनिक युग का दर्शन जिसे निस्सार कहा गया है , बौद्ध धर्म है। मनुस्मृति के एक अन्य टीकाकार कुल्लुक भट्ट स्पष्ट रूप से कहते हैं कि मनु के इन श्लकों में विधर्मियों से तात्पर्य बौद्ध धर्मावलंबियों और बौद्ध धर्म से है।

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इसी प्रकार इस देश को गुलाम रखने में ब्राह्मण ग्रंथों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उदाहरण के लिए- ऐतरेय ब्राह्मण (3/24/27) - वही नारी उत्तम है जो पुत्र को जन्म दे। (35/5/2/47) पत्नी एक से अधिक पति ग्रहण नहीं कर सकती, लेकिन पति चाहे कितनी भी पत्नियां रखे। आपस्तब (1/10/51/52) बोधयान धर्म सूत्र (2/4/6) शतपथ ब्राह्मण (5/2/3/14) जो नारी अपुत्रा है उसे त्याग देना चाहिए। तैत्तिरीय संहिता (6/6/4/3) पत्नी आजादी की हकदार नहीं है। शतपथ ब्राह्मण (9/6) केवल सुन्दर पत्नी ही अपने पति का प्रेम पाने की अधिकारिणी है। बृहदारण्यक उपनिषद् (6/4/7) यदि पत्नी सम्भोग के लिए तैयार न हो तो उसे खुश करने का प्रयास करो। यदि फिर भी न माने तो उसे पीट-पीट कर वश में करो। मैत्रायणी संहिता (3/8/3) नारी अशुभ है। यज्ञ के समय नारी, कुत्ते व शूद्र को नहीं देखना चाहिए। अर्थात् नारी और शूद्र कुत्ते के समान हैं। (1/10/11) नारी तो एक पात्र (बरतन) समान है। महाभारत (12/40/1) नारी से बढ़कर अशुभ कुछ नहीं है। इनके प्रति मन में कोई ममता नहीं होनी चाहिए। (6/33/32) पिछले जन्मों के पाप से नारी का जन्म होता है । मनुस्मृति (100) पृथ्वी पर जो भी कुछ है वह ब्राह्मण का है। मनुस्मृति (101) दूसरे लोग ब्राह्मणों की दया के कारण सब पदार्थों का भोग करते हैं। मनुस्मृति (11-11-127) मनु ने ब्राह्मण को संपत्ति प्राप्त करने के लिए विशेष अधिकार दिया है। वह तीनों वर्णों से बलपूर्वक धन छीन सकता है अथवा चोरी कर सकता है। मनुस्मृति (4/165 - 4/166) जान बूझकर क्रोध से जो ब्राह्मण को तिनके से भी मारता है वह इक्कीस जन्मों तक बिल्ली योनि में पैदा होता है। मनुस्मृति (5/35) जो मांस नहीं खाएगा वह इक्कीस बार पशु योनि में पैदा होगा । मनुस्मृति (64 श्लोक) अछूत जातियों के छूने पर स्नान करना चाहिए। गौतम धर्म सूत्र (2-3-4) यदि शूद्र किसी वेद को पढ़ते सुन ले तो उसके कानों में पिंघला हुआ शीशा या लाख डाल देनी चाहिए। मनुस्मृति (8/21-22) ब्राह्मण चाहे अयोग्य हो उसे न्यायाधीश बनाया जाए नहीं तो राज मुसीबत में फंस जाएगा। मनुस्मृति (8/267) यदि कोई ब्राह्मण को दुर्वचन कहेगा तो वह मृत्युदण्ड का अधिकारी हैं। मनुस्मृति (8/270) यदि कोई ब्राह्मण पर आक्षेप करे तो उसकी जीभ काट कर दण्ड दें। मनुस्मृति (5/157) विधवा का विवाह करना घोर पाप है। विष्णु स्मृति में स्त्री को सती होने के लिए उकसाया गया है तो ‘शंख स्मृति’ में दहेज देने के लिए प्रेरित किया गया है। ‘देवल स्मृति’ में किसी को भी बाहर देश जाने की मनाही है। ‘बृहदहरित स्मृति’ में बौद्ध भिक्षु तथा मुण्डे हुए सिर वालों को देखने की मनाही है। ‘गरुड़ पुराण’ पूरे का पूरा अंधविश्वास का पुलिंदा है जिसमें ब्राह्मण को गाय दान करने तथा उसके हाथ मृतकों का गंगा में पिण्डदान करने के लिए कहा गया है।  

 (पुस्तक - हिस्ट्री एण्ड स्टडी आफ दी जाट्स)


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मनु का दंड विधान वर्णवाद पर आधारित।

मनु ने न केवल बहुजनों को शिक्षा और सम्पत्ति के अधिकार से वंचित किया बल्कि उनके लिये कठोर दंड विधान भी बनाया,मनु का दंड विधान जाति पर आधारित था,एक ही अपराध के लिए ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य तथा शूद्र के लिये अलग -अलग दंड का प्रावधान था, ब्राह्मण को मृत्युदंड से पूर्णतया मुक्त रखा गया,भले ही वह कईयों की हत्या कर दे, मनु के अनुसार कोई भी राजा किसी भी ब्राह्मण का वध कभी नहीं करेगा, चाहे उसने कितने ही भयंकर अपराध किए हो ( मनु . 8 /35 ), इस पृथ्वी पर ब्राह्मण वध के समान कोई दूसरा पाप नहीं है , अत : राजा ब्राह्मण के वध का विचार मन में भी कभी ना लाये ( मनु - 8/581 ), राजा आर्थिक दण्ड की राशि ब्राह्मण को दे ( मनु - 8/336 ), कोई शूद्र ब्राह्मणी स्त्री के साथ व्यभिचार करे तो उसका लिंग कटवाकर राजा उसकी सारी सम्पत्ति ले ले , वैश्य को इसी अपराध के लिए एक वर्ष की कारावास और सारी संपत्ति से बदेखल कर दंड दे, परन्तु इसी अपराध के लिए क्षत्रिय और ब्राह्मण को सिर्फ 1 हजार पण का आर्थिक दंड दे कर छोड़ दे - ( मनु - 8/ 374 / 383 ) ब्राह्मण की संपत्ति राजा कभी न ले ( मनु 9/189 ), शूद्र ऊँचे वर्ण की आजीविका कभी न अपनावे , ऐसा करने पर राजा उसकी संपत्ति ब्राम्हण को दान कर उसे देश से निष्कासित कर दे ( मन - 1 /96 ), अगर कोई शूद्र अहंकारवश ब्राह्मण को उपदेश दे तो राजा उसके मुंह और कान में खौलता हुआ तेल डलवाये ( मनु - 8 /272 ), शूद्र यदि ब्राह्मण की निन्दा करे , कठोर वचन कहे तो उसकी जिव्हा काट कर फेंक देनी चाहिए क्योंकि वह जन्म से ही नीच है।
                
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सुमति भार्गव ने इस संहिता की रचना ईसा पूर्व 170 और ईसा पूर्व 150 के मध्य में की और इसका नाम जान -बूझकर मनुस्मृति रखा।। वर्तमान मनुस्मृति से पूर्व दो अन्य ग्रंथ भी विद्यमान थे, इनमें से एक ग्रंथ मानव अर्थशास्त्र, मानव राजशास्त्र अथवा मानव राजधर्म शास्त्र के नाम से बताया जाता था , एक अन्य पुस्तक मानव - गृह्य - सूत्र के नाम से जानी जाती थी, 

9.225 . जो मनुष्य विधर्म का पालन करते हैं .... राजा को चाहिए कि वह उन्हें अपने साम्राज्य से निष्कासित कर दें.
9.226 . राजा के साम्राज्य में रहने वाले छद्मवेश में ये डाकू अपने कुकृत्यों से संभ्रात जगत को अनवरत हानि पहुंचाते हैं,
5.89-जल से तर्पण उन लोगों ( आत्माओं ) को अर्पित नहीं किया जाएगा जो ( निर्धारित अनुष्ठानों की अवहेलना करते हैं और जिनके लिए यह कहा जाता है कि ) उनका जन्म व्यर्थ ही हुआ है, ऐसे लोगों का भी तर्पण नहीं किया जाएगा जो जातियों के अवैध समागम से उत्पन्न हुए हैं, उन लोगों का भी तर्पण नहीं किया जाएगा ,जो संन्यासी ( विधर्मी वर्गों के लोग ) हैं और उन लोगों का भी तर्पण नहीं किया जाएगा जिन्होंने आत्महत्या की है,
5.90 . विधर्मी पंथ में सम्मिलित हो गई महिलाओं की आत्माओं का जल-तर्पण नहीं किया जाएगा.
4.30 . वह ( गृहस्थ ) वचन से भी विधर्मी तार्किक ( जो वेद के विरुद्ध तर्क करे )को सम्मान न दे. 
12.95 -वे सभी परंपराएं और वे सभी दर्शन हेय हैं जो वेद पर आधारित नहीं हैं, मृत्यु के बाद उनका कोई फल नहीं मिलता क्योंकि उनके विषय में यह घोषित है कि वे अंधकार पर आधारित हैं.
12.96 . वे सभी ( सिद्धांत ) जो ( वेद ) से विमुख हैं ,उत्पन्न होते हैं और ( शीघ्र ही ) मिट जाते हैं,वे व्यर्थ और झूठे हैं क्योंकि वे आधुनिक समय के रचे हुए हैं.
 
मनु के शब्दों में विधर्मी बौद्ध धर्मावलंबी है और वेदों से भिन्न आधुनिक युग का दर्शन जिसे निस्सार कहा गया है , वह बुद्ध -धम्म है, मनुस्मृति के एक अन्य टीकाकार कुल्लुक भट्ट स्पष्ट रूप से कहते हैं कि मनु के इन श्लोकों में विधर्मियों से तात्पर्य बौद्ध धर्मावलंबियों और बुद्ध - धम्म से है।

1.93 . ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने के कारण ,ज्येष्ठ होने से और वेद के धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही संपूर्ण सृष्टि का स्वामी है.
1.96 . समस्त सृष्टि में प्राणधारी जीव श्रेष्ठ हैं,प्राणियों में बुद्धिजीवी श्रेष्ठ हैं ,बुद्धिजीवियों में मनुष्य श्रेष्ठ हैं और मनुष्यों में ब्राह्मण श्रेष्ठ हैं.
1.100 . पृथ्वी पर जो कुछ भी है वह सब ब्राह्मणों का है अर्थात् ब्राह्मण अच्छे कुल में जन्म लेने के कारण इन सभी वस्तुओं का स्वामी है.
1.101 . ब्राह्मण अपना ही खाता है ,अपना ही पहनता है ,अपना ही दान करता है तथा दूसरे व्यक्ति ब्राह्मण की कृपा से ही इन सबका भोग करते हैं. 
10.3 . जाति की विशिष्टता से , उत्पत्ति -स्थान की श्रेष्ठता से , अध्ययन एवं व्याख्यान आदि द्वारा नियम के धारण करने से और यज्ञोपवीत -संस्कार आदि की श्रेष्ठता से ब्राह्मण ही सब वर्गों का स्वामी है .
11.35 . ब्राह्मण के बारे में यह योषित है कि वह विश्व का सर्जक ,दंडदाता और अध्यापक है  इसलिए वह सभी सृजित मानवों का उपकारक है ,कोई भी व्यक्ति उसे अहितकारी नहीं कह सकता और न उसके विरुद्ध कठोर शब्दों का प्रयोग कर सकता है,मनु ने ब्राह्मणों को असंतुष्ट करने के विरोध में राजा को यह चेतावनी दी है.
9.313 . ( राजा ) को घोरतम विपत्ति में भी ब्राह्मणों को क्रुद्ध होने के लिए उत्तेजित नहीं करना चाहिए क्योंकि ब्राह्मण क्रोधित होने पर उस राजा को ,उसकी सेना ,हाथियों ,घोड़ों ,और वाहनों को नष्ट कर सकते हैं,मनु ने इससे आगे कहा है -
11.31 . नियमों के ज्ञाता ब्राह्मण को किसी दुखदायी आघात की स्थिति में भी राजा से शिकायत करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह अपनी शक्ति द्वारा ही उस व्यक्ति को दंड दे सकता है. 
11.32 . ब्राह्मण की व्यक्तिगत शक्ति केवल उसी पर निर्भर करती है,वह उस राजकीय शक्ति से प्रबल होती है ,जो दूसरे व्यक्तियों पर निर्भर है, इस प्रकार ब्राह्मण अपनी शक्ति से ही अपने शत्रुओं का दमन कर सकता है।

:-प्राचीन भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति- 158-159-160-161-162.

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मनुवाद का अमानवीय काला कलंक ...

अध्याय-१

[१] पुत्री, पत्नी, माता या कन्या, युवा, व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक)
[२] पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद (गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं। किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५)
[३] संपति और मिल्कत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी 'दास' हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मालिक उसका पति, पूत्र या पिता हैं। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६)
[४] ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं। तुलसीदास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं। 'ढोर,गवार और नारी, ताडन के अधिकारी' (मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९)
[५] असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८)
[६] स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यग्यकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-'नारी नर्क का द्वार') (मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७)
[७] यग्यकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियो से किसी ब्राह्मण भी ने भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो ने किए हुए सभी यग्य कार्य अशुभ होने से देवो को स्वीकार्य नही हैं। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६)
[८] मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो, स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली। (अध्याय-२ श्लोक-२१४)
[९] स्त्री पुरुष को दास बनाकर पदभ्रष्ट करने वाली हैं। (अध्याय-२ श्लोक-२१४)
[१०] स्त्री एकांत का दुरुपयोग करने वाली। (अध्याय-२ श्लोक-२१५)
[११] स्त्री संभोग के लिए उमर या कुरुपताको नही देखती। (अध्याय-९ श्लोक-११४)
[१२] स्त्री चंचल और ह्रदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं। (अध्याय-२ श्लोक-११५)
[१३] स्त्री केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली, वासनायुक्त, बेईमान, इर्षाखोर, दुराचारी हैं। (अध्याय-९ श्लोक-१७)
[१४] सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए ? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं.

- स्त्रीओ को जीवन भर पति की आग्या का पालन करना चाहिए। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५)

- पति सदाचारहीन हो, अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसे देव की तरह पूजना चाहिए। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४)


अध्याय-२

[१] वर्णानुसार करने के कार्य :
- महा तेजस्वी ब्रह्मा ने सृष्टी की रचना के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को भिन्न-भिन्न कर्म करने को तय किया हैं।

- पढ्ना, पढाना, यज्ञ करना-कराना, दान लेना यह सब ब्राह्मण को कर्म करना हैं। (अध्यायः१:श्लोक:८७)

- प्रजा रक्षण, दान देना, यज्ञ करना, पढ्ना यह सब क्षत्रिय को करने के कर्म हैं। (अध्यायः१:श्लोक:८९)

- पशु-पालन, दान देना, यज्ञ करना, पढ्ना, सूद (ब्याज) लेना यह वैश्य को करने का कर्म हैं। 
(अध्यायः१:श्लोक:९०)

- द्वेष-भावना रहित, आनंदित होकर उपर्युक्त तीनो-वर्गो की नि:स्वार्थ सेवा करना, यह शूद्र का कर्म हैं। 
(अध्यायः१:श्लोक:९१)

[२] प्रत्येक वर्ण की व्यक्तिओ के नाम कैसे हो ? :
- ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक - उदा. शर्मा या शंकर
- क्षत्रिय का नाम शक्ति सूचक - उदा. सिंह
- वैश्य का नाम धनवाचक पुष्टियुक्त - उदा. शाह
- शूद्र का नाम निंदित या दास शब्द युक्त - उदा. मणिदास,देवीदास। (अध्यायः२:श्लोक:३१-३२)

[३] आचमन के लिए लेनेवाला जल :
- ब्राह्मण को ह्रदय तक पहुचे उतना।
- क्षत्रिय को कंठ तक पहुचे उतना।
- वैश्य को मुहं में फ़ैले उतना।
- शूद्र को होठ भीग जाये उतना, आचमन लेना चाहिए। 
(अध्यायः२:श्लोक:६२)

[४] व्यक्ति सामने मिले तो क्या पूछे ? :
- ब्राह्मण को कुशल विषयक पूछे।
- क्षत्रिय को स्वाश्थ्य विषयक पूछे।
- वैश्य को क्षेम विषयक पूछे
- शूद्र को आरोग्य विषयक पूछे। 
(अध्यायः२:श्लोक:१२७)

[५] वर्ण की श्रेष्ठा का अंकन :
- ब्राह्मण को विद्या से।
- क्षत्रिय को बल से।
- वैश्य को धन से।
- शूद्र को जन्म से ही श्रेष्ठ मानना यानी वह जन्म से ही शूद्र हैं।
 (अध्यायः२:श्लोक:१५५)

[६] विवाह के लिए कन्या का चयन :
- ब्राह्मण सभी चार वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं।
- क्षत्रिय - ब्राह्मण कन्या को छोडकर सभी तीनो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं।
- वैश्य - वैश्य की और शूद्र की ऎसे दो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं।
- शूद्र को शूद्र वर्ण की ही कन्याये विवाह के लिए पंसद कर सकता हैं यानी शूद्र को ही वर्ण से बाहर अन्य वर्ण की कन्या से विवाह नही कर सकता। (अध्यायः३:श्लोक:१३)

[७] अतिथि विषयक :
- ब्राह्मण के घर केवल ब्राह्मण ही अतिथि गिना जाता हैं और वर्ण की व्यक्ति नही
- क्षत्रिय के घर ब्राह्मण और क्षत्रिय ही ऎसे दो ही अतिथि गीने जाते थे।
- वैश्य के घर ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तीनो द्विज अतिथि हो सकते हैं
- शूद्र के घर केवल शूद्र ही अतिथि कहेलवाता हैं और कोइ वर्ण का आ नही सकता। 
(अध्यायः३:श्लोक:११०)

[८] पके हुए अन्न का स्वरुप :
- ब्राह्मण के घर का अन्न अम्रुतमय
- क्षत्रिय के घर का अन्न पय (दुग्ध) रुप।
- वैश्य के घर का अन्न जो है यानी अन्नरुप में।
- शूद्र के घर का अन्न रक्तस्वरुप हैं यानी वह खाने योग्य ही नही हैं।
(अध्यायः४:श्लोक:१४)

[९] शव को कौन से द्वार से ले जाए ? :
- ब्राह्मण के शव को नगर के पूर्व द्वार से ले जाए।
- क्षत्रिय के शव को नगर के उतर द्वार से ले जाए।
- वैश्य के शव को पश्र्चिम द्वार से ले जाए।
- शूद्र के शव को दक्षिण द्वार से ले जाए।
 (अध्यायः५:श्लोक:९२)

[१०] किस के सौगंध लेने चाहिए ? :
- ब्राह्मण को सत्य के।
- क्षत्रिय वाहन के।
- वैश्य को गाय, व्यापार या सुवर्ण के।
- शूद्र को अपने पापो के सोगन्ध दिलवाने चाहिए।
 (अध्यायः८:श्लोक:११३)

[११] महिलाओ के साथ गैरकानूनी संभोग करने हेतू :
- ब्राह्मण अगर अवैधिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो सिर पे मुंडन करे।
- क्षत्रिय अगर अवैधिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो १००० भी दंड करे।
- वैश्य अगर अवैधिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये और १ साल के लिए कैद और बाद में देश निष्कासित।
- शूद्र अगर अवैधिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये, उसका लिंग काट लिआ जाये।
- शूद्र अगर द्विज-जाती के साथ अवैधिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो उसका एक अंग काटके उसकी हत्या कर दे। 
(अध्यायः८:श्लोक:३७४,३७५,३७९)

[१२] हत्या के अपराध में कौन सी कार्यवाही हो ? :
- ब्राह्मण की हत्या यानी ब्रह्महत्या महापाप (ब्रह्महत्या करने वालो को उसके पाप से कभी मुक्ति नही मिलती)
- क्षत्रिय की हत्या करने से ब्रह्महत्या का चौथे हिस्से का पाप लगता हैं।
- वैश्य की हत्या करने से ब्रह्महत्या का आठ्वे हिस्से का पाप लगता हैं।
- शूद्र की हत्या करने से ब्रह्महत्या का सोलह्वे हिस्से का पाप लगता हैं यानी शूद्र की जिन्दगी बहुत सस्ती हैं।
 (अध्यायः११:श्लोक:१२)...



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#विरोधाभासी_मनु

मनुस्मृति कितनी पुरानी पुस्तक है यह तो मै शायद नही बता सकता, पर इतना जरूर कह सकता हूँ कि यह ग्रंथ रामायण और महाभारत से प्राचीन है!

मनुस्मृति मे कहीं भी राम और कृष्ण का कोई उल्लेख नही है, परन्तु रामायण के किष्किंधाकाण्ड मे राम ने स्वयं मनुस्मृति की प्रशंसा की है, तो महाभारत के शान्तिपर्व और अनुशासन पर्व मे भीष्म पितामह ने इस ग्रंथ का गुणगान किया है!

मनुस्मृति निश्चित ही किसी काल मे सनातन धर्म की सबसे मान्य पुस्तक थी, लेकिन इस किताब मे मनु ने कई श्लोक ऐसे लिखे हैं, जो उन्ही के अन्य श्लोकों का ठीक उलट है!

आइऐ, कुछ ऐसे ही श्लोकों पर नजर डालते हैं-
मनुस्मृति-3/56 मे मनु ने नारियों के सम्मान मे यह बड़ी बात कही है-

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।।"
अर्थात- जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवताओं का वास होता है, और जहाँ नारियाँ कष्ट पाती है, वहाँ समृद्धि नही होती!

यहाँ तो मनु ने बड़ी उत्तम बात लिखी, पर नौवां अध्याय शुरू होते ही मनु कहते हैं कि नारियों को स्वतंत्रता मत दो, नारियां कामुक होती है!

यही नही मनु ने अध्याय-8/371 मे लिखा है-
"भर्तारं लङ्घयेद्या स्त्री ज्ञाति गुणदर्पिता।
तां श्वाभिः खादयेद्राजा संस्थाने बहुसंस्थिते।।"
अर्थात- अपनी सुन्दरता और बाप-दादा के धन पर यदि स्त्री घमण्ड करे तो उसे सबके सामने कुत्ते से नोचवा डालें।

जरा सोचो कि पहले नारियों को पूजने की बात करने वाले मनु अब कुत्ते से नोचवाने की सलाह दे रहे है!

मनु का दूसरा विरोधाभास यह है कि उन्होने अध्याय-9/104 मे कहा है कि-
"ऊर्ध्वं पितुश्च मातुश्च समेत्य भ्रातरः समम् ।
भजेरन्पैतृकं रिक्थमनीशास्ते हि जीवतोः।।"
अर्थात- माता-पिता की मृत्यु के बाद सभी भाई धन-सम्पत्ति को बराबर-बराबर बांट लें, माता-पिता के जीते जी उन्हे धन बांटने का कोई अधिकार नही। 

इस श्लोक मे मनु पैतृक सम्पत्ति मे सभी भाइयों को बराबर को अधिकार बता रहे हैं, पर इसका ठीक अगला ही श्लोक उन्होने  लिखा और मनु अध्याय-9/105 मे लिखते हैं-

"ज्येष्ठ एव तु गृह्णीयान्पित्र्यं धनमशेषतः।
शेषास्तमुपजीवेयुर्यथैव पितरं तथा।।"
अर्थात- भाइयों मे जो सबसे श्रेष्ठ हो, वो पिता की सम्पूर्ण धन-सम्पत्ति को ग्रहण करे, शेष भाई उसे पितातुल्य मानकर उसके अधीन रहें! 

अब ये पागलपन देखो.... पहले तो उन्होने सम्पत्ति मे सभी भाइयों का बराबर अधिकार बताया, पर अगले ही श्लोक मे कहा कि सारी सम्पत्ति बड़े भाई की है!

आगे मनु  ने मनुस्मृति-8/123-124 मे लिखा है कि राजा केवल क्षत्रिय,वैश्य और शूद्र को दण्ड दे, क्योंकि स्वायम्भायु मनु ने जो दण्ड विधान बताया है, वह केवल इन्ही तीन वर्णों के लिये है, ब्राह्मण के लिये नही।

लेकिन कुछ आगे बढ़ते ही मनु की अक्ल फिर ठिकाने आयी और इसी आठवें अध्याय के श्लोक-337/338 मे मनु लिखते हैं कि यदि शूद्र चोरी करे तो उससे आठ गुना, वैश्य करे तो सोलह गुना, क्षत्रिय करे तो बत्तीस गुना और ब्राह्मण करे तो उसे चौंसठ गुना या एक सौ अट्ठाइस गुना दण्ड दें!

मनु केवल इतने ही विरोधाभासी नही थे! मनु के अनुसार मांस नही खाना चाहिये, अतः मांस खाने से रोकने के लिये मनु ने लोगों को डराया है और मनुस्मृति-5/55 मे लिखा है-
"मांस भक्षयिताऽमुत्र यस्य मांसमिहाद्म्यहम् ।
एतन्मांसस्य मांसत्व प्रवदन्ति मनीषिणः।।"
अर्थात- जो मनुष्य इस लोक मे जिसका मांस खाता है, परलोक मे वह उसका भी मांस खाता है, यही मांस का मांसत्व है।

लेकिन इसी अध्याय मे उन्होने मांस खाना अनिवार्य भी कहा है!
इसी अध्याय के श्लोक-5/35 मे मनु कहते हैं-
"नियुक्तस्तु यथान्यायं यो मांसं नात्ति मानवः।
स प्रेत्य पशुतां याति संभावनेकविंशशतिम् ।।"
अर्थात- जो विधि नियुक्त होने पर भी मांस नही खाता, वह मरने के बाद इक्कीस जन्म तक पशु होता है!

सोचों! कि मनु कैसे आदमी थे, पहले कह रहे हैं कि मांस नही खाओगे तो पशुयोनि मे जाओगे, और बाद बता रहे हैं कि तुम जिसका मांस खाओगे, वो तुम्हारा भी मांस खायेगा!

मनु ने इतनी ही नही, और भी कई विरोधाभासी बातें कही हैं, जैसे-
मनु ने मनुस्मृति-10/65 मे लिखा है-
"शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम।"
अर्थात- अपने कर्मो से ब्राह्मण शूद्र और शूद्र ब्राह्मणत्व को प्राप्त होता है!

पर इसी अध्याय के श्लोक 10/73 मे मनु लिखते हैं कि ब्राह्मण और शूद्र कभी समान नही हो सकते, अर्थात यहाँ उन्होने वर्ण-परिवर्तन को नकार दिया है।

मनु के ऐसा लिखने के पीछे  क्या कारण हो सकते है-

क्या वो बड़े भुलक्कड़ थे, पीछे क्या लिखा है, उसे भूलकर आगे ठीक उसका विपरीत लिख देते थे!

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मनुस्‍मृति का सबसे ज्‍यादा आपत्तिजनक अध्याय

मनुस्‍मृति का सबसे आपत्तिजनक पहलू यह है कि इसके अधयाय 10 के श्‍लोक संख्‍या 11 से 50 के बीच समस्‍त द्विज को छोड़कर समस्‍त हिन्‍दू जाति को नाजायज संतान बताया गया है। 

मनु के अनुसार नाजायज जाति दो प्रकार की होती है।

अनुलोम संतान – उच्‍च वर्णीय पुरूष का निम्‍न वर्णीय महिला से संभोग होने पर उत्‍पन्‍न संतान

प्रतिलाेम संतान – उच्‍च वर्णीय महिला का निम्‍न वर्णीय पुरूष से संभोग होने पर उत्‍पन्‍न संतान


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(भाग 1 )
 मनुस्मृति में  ब्राह्मणों द्वारा बनाए गए नियम 

25 दिसंबर 1927 को डॉ अंबेडकर ने पहली बार मनुस्मृति में दहन का कार्यक्रम किया था।

 उनका कहना था कि भारतीय समाज में जो कानून चल रहा है। वह मनुस्मृति के आधार पर है। यह एक ब्राम्‍हण, पुरूष सत्‍तात्‍मक, भेदभाव वाला कानून है। इसे खत्म किया जाना चाहिए इसीलिए वे मनुस्मृति का दहन कर रहे हैं।

आईये  जाने आ‍खिर मनुस्‍मृति में ऐसा है क्‍या?

(1) नीच वर्ण का जो मनुष्य अपने से ऊँचे वर्ण के मनुष्य की वृत्ति को लोभवश ग्रहण कर जीविका – यापन करे तो राजा उसकी सब सम्पत्ति छीनकर उसे तत्काल निष्कासित कर दे।10/95-98

(2) ब्राह्मणों की सेवा करना ही शूद्रों का मुख्य कर्म कहा गया है । इसके अतिरक्त वह शूद्र जो कुछ करता है , उसका कर्म निष्फल होता है।10/123-124

(3) शूद्र धन संचय करने में समर्थ होता हुआ भी शूद्र धन का संग्रह न करें क्योंकि धन पाकर शूद्र ब्राह्मण को ही सताता है। 10/129-130

(4) जिस देश का राजा शूद्र अर्थात पिछड़े वर्ग का हो , उस देश में ब्राह्मण निवास न करें क्योंकि शूद्रों को राजा बनने का अधिकार नही है। 4/61-62

(5) राजा प्रातःकाल उठकर तीनों वेदों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मणों की सेवा करें और उनके कहने के अनुसार कार्य करें। 7/37-38

(6) जिस राजा के यहां शूद्र न्यायाधीश होता है उस राजा का देश कीचड़ में धँसी हुई गाय की भांति दुःख पाता है। 8/22-23

(7) ब्राह्मण की सम्पत्ति राजा द्वारा कभी भी नही ली जानी चाहिए, यह एक निश्चित नियम है, मर्यादा है, लेकिन अन्य जाति के व्यक्तियों की सम्पत्ति उनके उत्तराधिकारियों के न रहने पर राजा ले सकता है। 9/189-190

(8) यदि शूद्र तिरस्कार पूर्वक उनके नाम और वर्ण का उच्चारण करता है, जैसे वह यह कहे देवदत्त तू नीच ब्राह्मण है, तब दस अंगुल लम्बी लोहे की छड़ उसके मुख में कील दी जाए। 8/271-272

(9) यदि शूद्र गर्व से ब्राह्मण पर थूक दे, उसके ऊपर पेशाब कर दे तब उसके होठों को और लिंग को और अगर उसकी ओर अपान वायु निकाले तब उसकी गुदा को कटवा दे।  8/281-282

(10) यदि कोई शूद्र ब्राह्मण के विरुद्ध हाथ या लाठी उठाए, तब उसका हाथ कटवा दिया जाए और अगर शूद्र गुस्से में ब्राह्मण को लात से मारे, तब उसका पैर कटवा दिया जाए। 8/279-280

(11)इस पृथ्वी पर ब्राह्मण–वध के समान दूसरा कोई बड़ा पाप नही है। अतः राजा ब्राह्मण के वध का विचार मन में भी लाए। 8/381

(12) शूद्र यदि अहंकारवश ब्राह्मणों को धर्मोपदेश करे तो उस शूद्र के मुँह और कान में राजा गर्म तेल डलवा दें। 8/271-272

(13) शूद्र को भोजन के लिए झूठा अन्न, पहनने को पुराने वस्त्र, बिछाने के लिए धान का पुआल और फ़टे पुराने वस्त्र देना चाहिए ।10/125-126

(14) बिल्ली, नेवला, नीलकण्ठ, मेंढक, कुत्ता, गोह, उल्लू, कौआ किसी एक की हिंसा का प्रायश्चित शूद्र की हत्या के प्रायश्चित के बराबर है अर्थात शूद्र की हत्या कुत्ता बिल्ली की हत्या के समान है। 11/131-132

(15) यदि कोई शूद्र किसी द्विज को गाली देता है तब उसकी जीभ काट देनी चाहिए, क्योंकि वह ब्रह्मा के निम्नतम अंग से पैदा हुआ है।

(16) निम्न कुल में पैदा कोई भी व्यक्ति यदि अपने से श्रेष्ठ वर्ण के व्यक्ति के साथ मारपीट करे और उसे क्षति पहुंचाए, तब उसका क्षति के अनुपात में अंग कटवा दिया जाए।

(17) ब्रह्मा ने शूद्रों के लिए एक मात्र कर्म निश्चित किया है, वह है – गुणगान करते हुए ब्राह्मण , क्षत्रिय और वैश्य की सेवा करना।

(18) शूद्र यदि ब्राह्मण के साथ एक आसन पर बैठे, तब राजा उसकी पीठ को तपाए गए लोहे से दगवा कर अपने राज्य से निष्कासित कर दे।

(19) राजा बड़ी-बड़ी दक्षिणाओं वाले अनेक यज्ञ करें और धर्म के लिए ब्राह्मणों को स्त्री, गृह शय्या, वाहन आदि भोग साधक पदार्थ तथा धन दे।

(20) जान बूझकर क्रोध से यदि शूद्र ब्राह्मण को एक तिनके से भी मारता है, वह 21 जन्मों तक कुत्ते-बिल्ली आदि पाप श्रेणियों में जन्म लेता है।

(21) ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न होने से और वेद के धारण करने से धर्मानुसार ब्राह्मण ही सम्पूर्ण सृष्टि का स्वामी है।
शूद्र लोग बस्ती के बीच में मकान नही बना सकते। गांव या नगर के समीप किसी वृक्ष के नीचे अथवा श्मशान पहाड़ या उपवन के पास बसकर अपने कर्मों द्वारा जीविका चलावें ।

(22) ब्राह्मण को चाहिए कि वह शूद्र का धन बिना किसी संकोच के छीन ले क्योंकि शूद्र का उसका अपना कुछ नही है। उसका धन उसके मालिक ब्राह्मण को छीनने योग्य है।

(23) राजा वैश्यों और शूद्रों को अपना अपना कार्य करने के लिए बाध्य करने के बारे में सावधान रहें, क्योंकि जब ये लोग अपने कर्तव्य से विचलित हो जाते हैं तब वे इस संसार को अव्यवस्थित कर देते हैं ।

(24) शूद्रों का धन कुत्ता और गदहा ही है। मुर्दों से उतरे हुए इनके वस्त्र हैं। शूद्र टूटे-फूटे बर्तनों में भोजन करें। शूद्र महिलाएं लोहे के ही गहने पहने।

(25) यदि यज्ञ अपूर्ण रह जाये तो वैश्य की असमर्थता में शूद्र का धन यज्ञ करने के लिए छीन लेना चाहिए ।

(26) दूसरे ग्रामवासी पुरुष जो पतित, चाण्डाल, मूर्ख और धोबी आदि अंत्यवासी हो, उनके साथ द्विज न रहें। 

(27) लोहार, निषाद, नट, गायक के अतिरिक्त सुनार और शस्त्र बेचने वाले का अन्न वर्जित है।

(28) शूद्रों के साथ ब्राह्मण वेदाध्ययन के समय कोई सम्बन्ध नही रखें, चाहे उस पर विपत्ति ही क्यों न आ जाए।

(29) स्त्रियों का वेद से कोई सरोकार नही होता। यह शास्त्र द्वारा निश्चित है। अतः जो स्त्रियां वेदाध्ययन करती हैं, वे पापयुक्त हैं और असत्य के समान अपवित्र हैं, यह शाश्वत नियम है।

(30) अतिथि के रूप में वैश्य या शूद्र के आने पर ब्राह्मण उस पर दया प्रदर्शित करता हुआ अपने नौकरों के साथ भोज कराए।

(31) शूद्रों को बुद्धि नही देनी चाहिए। अर्थात उन्हें शिक्षा ग्रहण करने का अधिकार नही है। शूद्रों को धर्म और व्रत का उपदेश न करें।

(32) जिस प्रकार शास्त्र विधि से स्थापित अग्नि और सामान्य अग्नि, दोनों ही श्रेष्ठ देवता हैं , उसी प्रकार ब्राह्मण चाहे वह मूर्ख हो या विद्वान दोनों ही रूपों में श्रेष्ठ देवता है।

(33) शूद्र की उपस्थिति में वेद पाठ नहीं करनी चाहिए।
ब्राह्मण का नाम शुभ और आदर सूचक, क्षत्रिय का नाम वीरता सूचक, वैश्य का नाम सम्पत्ति सूचक और शूद्र का नाम तिरस्कार सूचक हो।

(34) दस वर्ष के ब्राह्मण को 90 वर्ष का क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र पिता समान समझ कर उसे प्रणाम करे।

(35) 
न शूद्रराज्ये निवसेन्नाधार्मिकजनावृते ।

न पाषण्डिगणाक्रान्ते नोपसृष्टेऽन्त्यजैर्नृभिः ॥

(मनुस्मृति, अध्याय 4, श्लोक 61)

अर्थ – (व्यक्ति को) शूद्र से शासित राज्य में, धर्म-कर्म से विरत जनसमूह के मध्य, पाखंडी लोगों से व्याप्त स्थान में, और अन्त्यजों के निवासस्थल में नहीं वास नहीं करना चाहिए।

(36)
न शूद्राय मतिं दद्यान्नोच्छिष्टं न हविष्कृतम्।

न चास्योपदिशेद्धर्मं न चास्य व्रतमादिशेत्॥

(मनुस्मृति, अध्याय 4, श्लोक 80)

अर्थ – किसी प्रयोजन की सिद्धि को ध्यान में रखते हुए दिया जाने वाला उपदेश शूद्र को न दिया जाये। उसे जूठा यानी बचा हुआ भोजन न दे और न यज्ञकर्म से बचा हविष्य प्रदान करे। उसे न तो धार्मिक उपदेश दिया

मनु के इन कानूनों से अनुमान लगाया जा सकता है कि शूद्रों, अतिशूद्रों और महिलाओं पर किस प्रकार और कितने अमानवीय अत्याचार हुए हैं।

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जब मै धार्मिक पाखण्डों पर लेख लिखता हूँ तो कई धार्मिक मुझसे कहते हैं कि- "तुम नास्तिक हो, और अगर ईश्वर को नही मानते तो यह बताओ कि दुनिया मे पहले मुर्गी आयी, या पहले अण्डा आया"

वैसे तो विज्ञान इस मूर्खतापूर्ण सवाल का जवाब दे चुका है, पर मै धार्मिकों को धार्मिकस्तर का ही जवाब देता हूँ!

मनुस्मृति मे लिखा है कि ब्रह्मा का जन्म एक अण्डे से हुआ!
वर्षों तक ब्रह्माजी अण्डे मे रहे, फिर अण्डे को फोड़कर बाहर आये...
यह सब वैसा ही है, जैसे आज मुर्गी का चूजा अण्डे को निकलता है!

मनुस्मृति का यह श्लोक देखो-
"यत्तत्कारणमव्यक्तं नित्यं सदसदात्मकम् ।
तद्विसृष्टः स पुरुषो लोके ब्रह्मेति कथ्यते।।
तस्मिन्नण्डे स भगवानुषित्वा परिवत्सरम् ।
स्वयमेवाऽऽत्मनो ध्यानात्तदण्डमकरोद् द्विधा।।"
                                        (मनुस्मृति-1/11-13)

अर्थात- सम्पूर्ण सृष्टि के कारण, अव्यक्त, नित्य, सत्-असत् स्वरूप से जो पुरुष उत्पन्न हुआ, उसे संसार 'ब्रह्मा' कहता है! अपने से वर्षो पर्यन्त उस अण्डे मे रहकर, ब्रह्मा ने स्वयं अपने ही ध्यान से उस अण्डे का दो खण्ड कर दिया।

अब जरा धार्मिक लोग मुझे यह बताऐं कि ब्रह्मा जिस अण्डे से पैदा हुये, उस अण्डे को किसने दिया?
शिव अथवा विष्णु ने...
क्योंकि लगभग तमाम पुराण यही कहते हैं कि ब्रह्मा से पहले सृष्टि मे केवल शिव और विष्णु ही थे! इसका जवाब जो धार्मिक महापुरुष देगा, वही मुझसे "पहले मुर्गी या पहले अण्डे" सवाल पूँछे।



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मनुस्मृति में कुछ हास्यास्पद नियम

बहुत से लोग केवल मनुस्मृति के बारे में जानते हैं कि इसमें स्त्री-विरोधी और शूद्र-विरोधी श्लोक हैं लेकिन जब आप 2685 श्लोकों की पूरी मनुस्मृति को देखते हैं तो आपको पता चलता है कि इसमें कई अजीब नियम भी हैं

बकरी और बकरी बांधने की रस्सी को पार नहीं करना चाहिए, पानी में अपना प्रतिबिंब नहीं देखना चाहिए।
(मनुस्मृति 4/38)

यदि आप मिट्टी, गाय, भगवान की मूर्ति, ब्राह्मण देखते हैं, तो आपको उनके दाहिनी ओर जाना चाहिए
(मनुस्मृति 4/39)

अपनी पत्नी के साथ खाना मत खाओ, उसे झिड़कते हुए.....
(मनुस्मृति 4/43)

एक ही कपड़े (सिर्फ धोती या पैंट) पर भोजन न करें, पूरी तरह से नंगा नहाएं, खड़े होकर पेशाब न करें, वायु अग्नि ब्राह्मण सुर्य गाई को देख के पेशाब न करें
(मनुस्मृति 4 / 45,46,47,48)

अपने सिर पर एक कपड़ा रखें और शांति से शौचालय में जाएं, दिन हो या शाम आपको दक्षिण की ओर स्थित शौचालय में जाना चाहिए, रात में आपको उत्तर की ओर स्थित शौचालय में जाना चाहिए, यदि अंधेरा अधिक है, तो वे किसी भी दिशा में बना सकते हैं। गाय ब्राह्मण, सूर्य........
(मनुस्मृति 4 / 49,50,51,52)

 घर पर अकेले न सोएं, मासिक धर्म वाली महिला से बात न करें
 (मनुस्मृति 4/57)

खाने से पहले अपने पैर धो लें, गीले पैरों के साथ भोजन करना जीवन को लम्बा खींचता है
 (मनुस्मृति 4/76)

अमावस्या पर पढ़ाने पर गुरु की मृत्यु होती है, चतुर्दशी पर पढ़ाने से शिष्य की मृत्यु होती है
(मनुस्मृति 4/114)

गुरु, राजा, ब्राह्मण (आचार्य), गाय की छाया पर कदम रखकर भगवान की छवि को पार नहीं किया जाना चाहिए
(मनुस्मृति 4/130)

तो यह है कि हम देख सकते हैं कि 21 वीं सदी में मनुस्मृति एक पुरानी कॉमेडी पुस्तक है

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मूत्र द्वार।

तेरे मुत्र द्वार को में खोल देता हूं जैसे झिल का पानी बन्ध को खोल देता है । तेरे मूत्र मार्ग को खोल दिया गया है जैसे जल से भरे समुद्र का मार...