' महाभारत गप्पों का भंडार है क्या महाभारत में ये गप्पें भी इतिहास में शामिल है।
गप्प नंबर एक : यह गप्प महाभारत के आदि पर्व अध्याय 194 से 197 के आधार पर दी जा रही है -युद्ध के दौरान अर्जुन के बेटे अभिमन्यु का देहांत हो गया ,तो महाराज युधिष्ठिर बहुत दु:खी हुए,बहुत रोए इतने में व्यास जी उनके पास पहुंचे और नारद से कुछ वृत्तांत सुना कर तसल्ली देने लगे और एक वृत्तांत इस प्रकार सुनाया -महाराज ! महाराजा शशबिंदु की एक लाख रानियां थीं और हर एक रानी की पेट से एक हजार पुत्र जन्में ( कुल मिलाकर इस महाराजा के 10 करोड़ पुत्र हुए ) तब महाराज ने एक यज्ञ किया और उसमें अपना हर एक बेटा एक -एक ब्राह्मण को दान में दे दिया,हर एक बेटा सानें का एक कवच ( जिरह बक्तर ) पहना हुआ था,हर एक बेटा स्वयं बड़े -बड़े यज्ञ कर चुका था,हर एक बेटे के साथ उनके बाप ने एक -एक सौ रथ और एक -एक सौ हाथी भी ब्राह्मणों को दान में दिए ( कुल मिलाकर दस अरब रथ और दस अरब हाथी हुए ) इस दक्षिणा के अलावा हर बेटे के साथ सौ -सौ युवती सुंदर लड़कियां भी दान में दीं ,जो बिलकुल सुंदर और जवान भी थीं ( मतलब दस अरब लड़कियां हो गई ) अब जरा विचारिए कि आजकल भी सारे विश्व की कुल आबादी लगभग अब लगभग ७ अरब ) है ,जबकि यह बहुत बढ़ी -चढ़ी आबादी है अगर दान में दी गई लड़कियों की संख्या 10 अरब थी ,तो बाकी इस देश की आबादी कितनी रही होगी अंदाजा लगाना मुश्किल है,उसपर भी सब लड़कियां तो दान में नहीं दी गई थीं.
खैर चलिए महाभारत की कथा अब आगे पढ़िए,महाराजा शशबिंदु ने हर कन्या के साथ एक -एक सौ रथ और एक एक सौ हाथी दान में दिए और एक -एक सौ घोड़े ,जो आभूषणों से लदे हुए थे,हर घोड़े के साथ हजार -हजार गौएं ( गाएं ) और पचास -पचास भेड़ें भी दान दी गईं ,अब आप लगाइए हिसाब कितनी तादात घोड़ों और भेड़ों की बनती है.
गप्प नबर दो : इसी अध्याय में लिखा है कि एक राजा हर रोज प्रातः जाग कर एक लाख साठ हजार गौएं ,दस हजार घोड़े और सोने की एक लाख मोहरें दान दिया करता था,इस पुण्य का काम वह लगातार 100 वर्षों तक करता रहा.
गप्प नंबर तीन : महाभारत के युद्ध में 13 लाख अक्षौहिणी सेना ,रथ ,हाथी शामिल थे,यह भी सफेद झूठ है,क्योंकि कुरुक्षेत्र के साथ अगर दो सौ मील इलाका और भी शामिल किया जाए ,तो भी इतनी फौज उसमें समा नहीं सकती.
गप्प नंबर चार : महाभारत के आदिपर्व के अध्याय 115 में वर्णित है -व्यास ने गांधारी को वरदान दिया कि तेरे सौ पुत्र होंगे चुनांचे गांधारी गर्भवती हुई ,परंतु दो वर्ष तक कोई बच्चा नहीं हुआ इतने में उसे खबर मिली कि कुंती को पुत्र जन्मा है,यह सुनकर गांधारी ने दोहत्थड़ मार-मार कर अपना पेट पीट लिया,ऐसा करने पर उसके पेट में से मांस का एक गोला निकल पड़ा,यह जानकर व्यास जी महाराज दौड़े -दौड़े उनके पास आए और एक सौ घी के घड़े सुरक्षित स्थान पर रखवा दिए और गांधारी के पेट से निकले गोले को ठंडे पानी से धुलवाना शुरू कर दिया,धुलते - धुलते उस गोले के ऊंगली की पोर के बराबर सौ टुकड़े हो गए,उन टुकड़ों को व्यास जी वहां रखे घी के सौ घड़ों में रखवाकर वापस चले गए. बाद में उन घड़ों में से सबसे पहले दुर्योधन निकला,तत्पश्चात एक के बाद एक ,दूसरा ,तीसरा और यहां तक कि सौ पुत्र निकल पड़े,फिर एक महीने के पश्चात एक कन्या निकली, अब जरा सोचिए ! कभी घी के घड़ों में मांस डालने से बच्चे पैदा हो सकते हैं ?
गप्प नंबर पांच : महाभारत के आदि पर्व के अध्याय 225 - 230 कुंभ - कोरव्य अध्याय तथा 249 - 251 में खांडव वन जलाने की कथा आती है, यह कथा हिंदू कथाकारों में बहुत प्रसिद्ध है ,जो कि इस प्रकार है - एक बार " अग्नि " ब्राह्मण के वेष में आकर कृष्णार्जुन से अपनी भूख शांत करने के लिए कुछ मांगने आई,उन्होंने पूछा , “ अग्नि देवता ! आपको कौन सा अन्न चाहिए ? " अग्नि बोली , “ मुझे अन्न नहीं चाहिए ,बल्कि यह खांडव वन खाने के लिए चाहिए चूंकि इंद्र उस बन की रक्षा करता है,इसलिए उसे में खा नहीं सकती क्योंकि जैसे ही मैं खांडव वन को खाना शुरू करती हूं , इंद्र ( देवता ) उस वक्त पानी बरसा देता है यह कथा सुनकर जनमेजय पूँछते हैं,वैशम्पाइन जी महाराज ! यह तो बतलाइए , आखिर अग्नि खांडव वन को क्यों जलाना चाहती है ? वैशम्पाइन बोले महाराज ! सुनो -श्वेतकि नाम के एक राजा को यज्ञ करने का बहुत शौक था,यज्ञ कराते कराते धुंओं से परेशान होकर ऋत्विज ( पुरोहित ) यज्ञ छोड़ कर भाग गए,उनकी जगह दूसरे पुरोहितों को लाकर राजा ने यज्ञ समाप्त किया,इसके बाद यज्ञ के शौकीन श्वेतकि राजा ने एक सौ वर्षों तक लगातार चलते रहने वाला यज्ञ आरंभ कर दिया,राजा ब्राह्मणों के पैरों पर पड़ा ,और उन्हें दान दिया . परंत ( शायद धुएं से आंखें अंधी होने के कारण ) श्वेतकि के सौ साल तक चलने वाले यज्ञ को कराने के लिए कोई भी ब्राह्मण परोहित तैयार नहीं हुआ,पुरोहितों ने राजा को साफ -साफ कह दिया कि हम पहले ही यज्ञ कराकर थक गए ( धुएं के कारण अंधे हो गए ) हैं,तुम रुद्र को बुलाकर उससे अपना यज्ञ पूरा करा लो. तब उस राजा ने कैलाश पर्वत पर जाकर घोर तपस्या ( तप ) की,ऐसा करने पर कैलाशपति शंकर महादेव ने प्रसन्न होकर । राजा को कहा कि कोई वर मांग लो, श्वेतकि ने कहा ,हे शिव शंकर ! अगर आप मुझ पर इतने प्रसन्न हैं ,तो मैं वर मांगता हूँ कि तुम ही मेरे दीर्घ यज्ञ के पुरोहित बनो,आप ही पुरोहित बन कर इसे संपूर्ण करो,लेकिन शंकर के लिए यज्ञ का पुरोहित बनना असंभव था ( शायद उसे अपने तीनों नेंत्रों के अंधा होने का डर लगा होगा ) शिवजी बोले कि मैं तुम्हारे यज्ञ का पुरोहित नहीं बन सकता,तुम लगातार 12 वर्ष तक घी की धारा हवन कुंड में डालकर अग्नि की पूजा करो ' श्वेतकि ने रुद्र ( शिव ) की आज्ञा मानकर ऐसा ही करना आरंभ कर दिया,ऐसा करने पर शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा ,मेरा ही अवतार दुर्वासा ऋषि अब तम्हारे इस यज्ञ का ऋत्विज ( पुरोहित ) बनेगा तदनुसार श्वेतकि ने यज्ञ की तैयारी की और वहां महादेव ने दुर्वासा को पुरोहित बना कर भेज दिया . यह यज्ञ बहुत बड़ा हआ,12 वर्ष तक घी की आहुतियां दी गईं, आहुतियां खा -खाकर अग्नि देवता को विकार ( बदहजमी का रोग ) हो गया,अग्नि देवता निस्तेज हो गया और उसे इस तरह घी की आहुतियां खाने से बहुत ग्लानि या नफरत हो गई। अग्नि देवता ने ब्रह्मदेव के पास जाकर अपने रोग का इलाज पूछा ब्रह्मदेव ने कहा ,12 वर्ष तक लगातार घी की आहुतियां खाने से तुम्हें यह रोग हुआ है,तुम घबराओ नहीं,खांडव वन के सब प्राणियों की चर्बी खाने से तुम्हारा यह रोग दूर होगा,अग्नि देवता ने खांडव वन जलाना शुरू कर दिया , लेकिन उस वन के प्राणी उस आग को बुझा देते थे,ऐसा उसने सात बार किया ,किंतु वह अपने इरादे में सफल नहीं हुआ,तब अग्निदेव क्रुद्ध होकर ब्रह्मदेव ( वैद्य या हकीम ) के पास फिर गया,ब्रह्मदेव ने उसे कृष्णार्जुन के पास भेज दिया, उसके बाद कृष्णार्जुन ने बड़ी भारी तैयारी करके खांडव वन को जलाकर भस्म करना आरंभ कर दिया,उस समय वहां के प्राणियों की जो दुर्दशा हुई और जैसा कि उन्होंने चीख - पुकार की ,उसका वर्णन अध्याय 223 में है,ऐसे घोर संकट के समय खांडव वन के सब प्राणी अपनी सहायता या शरण के लिए इंद्र के पास गए,इंद्र ने एकदम पानी बरसाया,वर्षा रोकने के लिए अर्जुन ने वाणों से आकाश ढांप दिया, उस समय तक्षक नाग कुरुक्षेत्र में था,उसका पुत्र अश्वसेन आग में फंस गया उसे बचाने के लिए उसकी मां उसे निगल गई और भागने लगी,अर्जुन ने वाण चलाकर उसका सिर काट डाला उसका पुत्र अश्वसेन उसके पेट से बाहर निकला,उसकी रक्षा करने के लिए इंद्र ने वायू प्रवाह छोड़ कर अर्जुन को बेहोश कर दिया तब अश्वसेन बच गया.
तस्मिन वने दह्यमाने षडग्निर्न ददाह च । ।
अश्वसेन मयं चैव चतुरः शाङ्गकांस्था । ।
अर्थात वन जलाए जाने के समय अश्वसेन मय और चार शारंग पक्षी के बच्चे -केवल ये छ : प्राणी अग्नि ने नहीं जलाए.
महाभारत की इस कथा को पढ़कर तीन बातें सामने आती हैं पहली यह कि इस कथा का कोई सिर -पैर ही नहीं दूसरी बेतुकी बात यह है कि आज तक कोई वैद्य ,हकीम या डॉक्टर घी खा - खाकर हुई बदहजमी का इलाज जानवरों या प्राणियों की चर्बी खाने से नहीं करता,जैसा कि ब्रह्मदेव रूपी वैद्यराज ने अग्निदेव को बताया,तीसरी बात यह है कि महाभारतादि,पुराणों में इंद्र को अर्जुन का पिता बताया गया है जबकि इस कथा में बेटा अर्जुन और बाप इंद्र परस्पर विरोध कर रहे हैं ,इंद्र खांडव वन की आग बुझाने के लिए वर्षा कर रहा है और बेटा अर्जुन तीर से आकाश को ढांप कर खांडव वन को जलाने पर तुला हुआ है,अतः ऐसी असंबद्ध कथाओं या गपोड़ - चौथों से भरे ग्रंथ महाभारत को हरगिज़ इतिहास ग्रंथ नहीं माना जा सकता " महाभारत में प्रारंभ से लेकर अंत तक लगभग एक लाख श्लोकों में न कोई क्रमबद्धता है ,न कोई वैज्ञानिकता है ,न कोई नैतिकता है ,न कोई आदर्श रूप है और न है कोई इतिहास का रूप " और न ही कोई काल,है तो बस बिना सिर -पैर के कोरी गप्प और गप्प।
भारत की गुलामी में गीता की भूमिका--13-14-15-16.
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पांडवों की माता कुंती ,राजा शूरसेन की पुत्री ,वासुदेव की बहन और श्रीकृष्ण की बुआ बताई जाती है ,परंतु महाभारत के ही सभापर्व 32 / 617 में मालव के निकट चंबल नदी के तट पर कुंतिभोज जनपद का उल्लेख है , जिसका राजा कुंतिभोज था महाभारत के ही द्रोण पर्व में उसे अर्जुन का मामा बताया गया है अतः कृष्ण और पांडवों की रिश्तेदारी कपोल -कल्पित है।
कुरु वंशावली में पांडवों से 18 पीढ़ी पहले कुरु के बांधव बिंद और अनुबिंद हुए ,जिनकी बहन मित्रबिंदा का हरण श्रीकृष्ण द्वारा बताया गया है,अतः श्रीकृष्ण पांडवों से 18 पीढ़ी पहले हुए थे , तो वे उनके ( पांडवों ) के समकालीन कैसे हो सकते है ? इसी प्रकार परीक्षित कुरु के पुत्र थे ,जो पांडवों से 16 पीढ़ी ऊपर हुए थे,अतः पांडवों द्वारा उन्हें राजा बनाना भी कपोल - कल्पित है।
कुरुक्षेत्र के छोटे से मैदान में चार लाख हाथी , चार लाख रथ ,बारह लाख घोड़े , पचपन लाख पैदल सैनिक जो 18 अक्षौहिणी सेना के भाग बताए गए हैं ,वे उस मैदान में भी नहीं समा सकते ,लड़ने की बात ही अलग है, महाभारत काल में तलवारों ,बंदूकों,गोला -बारूद का भी विकास नहीं हुआ था, अतः 18 दिन में इतनी बड़ी सेना तीर - कमानों से नष्ट होना भी असंभव बात थी।
महाभारत में दर्शित निम्न घटनाएं भी कपोल -कल्पित हैं-
( अ ) आदिपर्व अध्याय 129 में द्रोण का जन्म दोना से हुआ है.
( ब ) वनपर्व अध्याय 110 में ऋषि शृंग का जन्म मृगी से बताया गया है.
( स ) व्यास की मां सत्वती का जन्म मछली से बताया गया है.
( द ) राजा नहुष की शक्ल सर्प की बताना ,पर उसका युधिष्ठिर के साथ संवाद दिखाना, पूर्णतया काल्पनिक है.
महाभारत के आदि पर्व में कृष्ण द्वैपायन व्यास द्वारा संपादित कृति में श्लोकों की संख्या 8800 बताई गई है ,तब उसका नाम ' जय ' था, बाद में वैशम्पाइन ने उसमें आख्यान मिथक जोड़कर उसके श्लोकों की संख्या 24 ,000 कर दी और ' जय ' का नाम बदलकर ' भारत संहिता ' कर दिया,कालांतर में उग्रश्रवासौति ने उसमें और मिथक जोड़ दिए और श्लोकों की संख्या 96 ,244 कर दी तथा उसका नाम ' महाभारत ' कर दिया.
महाभारत के पूर्व संग्रह -अध्याय में पूरे ग्रंथ के अध्यायों ,विषयों और श्लोकों की संख्या दी है ,लेकिन उसमें व्यास की अनुक्रमिका के श्लोकों की संख्या 150 दी है ,लेकिन अब उसमें 272 श्लोक है, इसी प्रकार उसमें अनगीता और ब्राह्मण गीता के वर्तमान 36 अध्यायों का उल्लेख नहीं है.
महाभारत के नाम से मानी जाने वाली यह कृति किसी एक लेखक की नहीं है, इतिहास पुराण के नाम से कथा / कहानियां प्राचीन काल से प्रचलित रहीं हैं, कालांतर में उनमें वीर गाथाएं जोड़कर उनका नाम ' गाथा नाराशंसी ' कह दिया।
भारत की गुलामी में गीता की भूमिका-पृष्ठ -11-12-13.
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वेदों में दस राजाओं के युद्ध का वर्णन है और यही दस राजाओं का युद्ध -वर्णन बहुत बाद में महाभारत में वर्णित किया गया है महाभारत की कथा पूर्णतः काल्पनिक है ,मिथक है और कवियों की काल्पनिक उड़ान है महाभारत के कौरववंशी शांतनु को तो ऋग्वेद में भी देखा जा सकता है।
" हे अग्नि ! तुम समयानुसार कौरववंशी शांतनु को स्वर्ग में स्थित करो "
( ऋग्वेद- 10 - 98 - 11 )
महाभारत ऐतिहासिक घटना नहीं है,वह तो ऋग्वेद के ' दाशराज्ञ युद्ध ' की नकल है,पात्रों का वर्णन भी ऐतिहासिक नहीं है यूनानी कवि होमर की ' इलियड तथा ओडिसी ' की नकल पर भारत में दो महाकाव्यों का सृजन किया गया , जो ' रामायण ' तथा ' महाभारत के नाम से विख्यात हैं।
रामायण को लीजिए राजा दसरथ तीन विवाह करते हैं,पर पुत्र उत्पन्न नहीं कर पाते,इसीलिए शृंगी ऋषि को पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए बुलाया जाता है, यज्ञ के लिए पुराने और बूढ़े पंडितों की क्या कमी थी ,जो इस नवयुवक को बुलाया गया, लेकिन यह ' यज्ञ ' हवन न होकर नियोग द्वारा दसरथ की रानियों को गर्भवती करना था ,जो दसरथ करने में असमर्थ थे, फिर सीता के माता -पिता का कोई ठौर ठिकाना नहीं मिलता, कहा जात है कि वह राजा जनक को खेत में पड़ी मिली थी ,जैसे आजकल ' अवैध ' बच्चे सड़कों पर पड़े मिल जाते हैं.
अब महाभारत को लीजिए इसमें ऐसे -ऐसे महापुरुषों का चरित्र - चित्रण है कि जिसका कोई जवाब नहीं, यथा -सम्राट अकबर ने जब अपने दरबारी विद्वान को इसका फारसी अनुवाद करने को कहा और कुछ दिनों के बाद पूछा कि उसने इस ग्रंथ में क्या पाया,तो विद्वान को विवश होकर कहना पड़ा कि " जहां -पनाह ! वैसे तो यह सब ठीक है ,मगर इस ग्रंथ में उल्लिखित एक भी व्यक्ति हलालजादा (- वैध संतान ) नहीं है, सब के सब ऐसे ही पैदा हो गए हैं " उस विद्वान की यह उक्ति बहुत हद तक सही थी क्योंकि महाभारत के अधिकतर पात्रों के जन्म लेने में या तो नियोग का खुला हाथ था अथवा स्वच्छंद व्यभिचार व बलात्कार का।
धृतराष्ट्र ,पांडू और विदुर तीनों भाई विचित्रवीर्य की स्त्री से व्यास जी द्वारा पैदा होते हैं, अंध धृतराष्ट्र के सौ पत्रों का जन्म प्राकृतिक नहीं है , बल्कि वे सब रानी गंधारी के पेट से एक पिंड के रूप में ऐसे ही निकल पड़ते हैं, फिर पांडु के पांच पुत्र - युधिष्ठिर ,भीम ,अर्जुन ,नकुल और सहदेव पांच अन्य व्यक्तियों के नाम पर पैदा होते हैं कुंती का पुत्र कर्ण के बलात्कार की यादगार है। द्रोणाचार्य के बारे में कहा गया है कि वह एक दोने में पैदा हुए , जिसमें किसी का वीर्य पड़ा था
भारत की गुलामी में गीता की भूमिका- पृष्ठ-10-11.
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गीता में आधुनिक विज्ञान के विरोध में ढेर सारी बातें मिलती हैं,उदाहरण के लिए गीता में कहा गया है कि प्रजा ( लोगों ) को परमात्मा ने पैदा किया और कहा कि तुम यज्ञ किया करना, इससे तुम्हारी सब इच्छाओं की पूर्ति होगी- यथा-
सहयज्ञाः प्रजाः सृष्टवा पुरोवाच प्रजापतिः ।
अनेन प्रसविष्यध्वमेव वोस्त्विष्ट कामाधुक । । - गीता 3 / 10
गीताकार आगे कहता है कि यज्ञ से बादल पैदा होते हैं यथा -
पर्जन्यादन्न संभवः यज्ञाद् भवति पर्जन्यः - गीता 3 /14
गीताकार ने भारतीयों को भ्रमित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है, वह विज्ञान विरुद्ध बात कहता है कि ' शब्द ' आकाश में रहता है अर्थात ' शब्द ' आकाश के कारण उत्पन्न होता है, यथा -
शब्द : खे - गीता 7 / 8 "
यह बात विज्ञान के विरुद्ध है ' शब्द ' आकाश में न रहकर , वायु में रहता है, वायुशून्य किए पात्र में बिजली की घंटी रखकर जब बजाई गई , तो उससे कोई शब्द न निकला। यह बात प्राईमरी स्कूल के बच्चे भी जानते हैं कि जब पहले -पहल चांद पर मानव उतरा था, वहां उतरने वाले दोनों व्यक्ति आपस में बात नहीं कर सके थे , क्योंकि वहां हवा न होने के कारण जो कुछ वे बोलते थे , वह ध्वनि -शून्य होता था, बोलने वालों को भी अपने शब्द सुनाई न पड़ते थे, आकाश में ' शब्द ' वहीं सुनाई देता है ,जहां वायु है, जहां वायु नहीं ,आकाश में ' शब्द ' नहीं अतः आकाश में ' शब्द ' का रहना बताना विज्ञान के सिद्धांतों के विपरीत है और अपनी अज्ञानता का परिचय देना है- ”
( गीता की शव परीक्षा , सुरेंद्र कुमार शर्मा, पृष्ठ 140 )
भारत की गुलामी में गीता की भूमिका-पृष्ठ-2-3.
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भारत की गुलामी में गीता की भूमिका--
' महाभारत गप्पों का भंडार है क्या महाभारत में ये गप्पें भी इतिहास में शामिल है-
गप्प नंबर एक : यह गप्प महाभारत के आदि पर्व अध्याय 194 से 197 के आधार पर दी जा रही है -युद्ध के दौरान अर्जुन के बेटे अभिमन्यु का देहांत हो गया ,तो महाराज युधिष्ठिर बहुत दु:खी हुए,बहुत रोए इतने में व्यास जी उनके पास पहुंचे और नारद से कुछ वृत्तांत सुना कर तसल्ली देने लगे और एक वृत्तांत इस प्रकार सुनाया -महाराज ! महाराजा शशबिंदु की एक लाख रानियां थीं और हर एक रानी की पेट से एक हजार पुत्र जन्में ( कुल मिलाकर इस महाराजा के 10 करोड़ पुत्र हुए ) तब महाराज ने एक यज्ञ किया और उसमें अपना हर एक बेटा एक -एक ब्राह्मण को दान में दे दिया,हर एक बेटा सानें का एक कवच ( जिरह बक्तर ) पहना हुआ था,हर एक बेटा स्वयं बड़े -बड़े यज्ञ कर चुका था,हर एक बेटे के साथ उनके बाप ने एक -एक सौ रथ और एक -एक सौ हाथी भी ब्राह्मणों को दान में दिए ( कुल मिलाकर दस अरब रथ और दस अरब हाथी हुए ) इस दक्षिणा के अलावा हर बेटे के साथ सौ -सौ युवती सुंदर लड़कियां भी दान में दीं ,जो बिलकुल सुंदर और जवान भी थीं ( मतलब दस अरब लड़कियां हो गई ) अब जरा विचारिए कि आजकल भी सारे विश्व की कुल आबादी लगभग अब लगभग ७ अरब ) है ,जबकि यह बहुत बढ़ी -चढ़ी आबादी है अगर दान में दी गई लड़कियों की संख्या 10 अरब थी ,तो बाकी इस देश की आबादी कितनी रही होगी अंदाजा लगाना मुश्किल है,उसपर भी सब लड़कियां तो दान में नहीं दी गई थीं.
खैर चलिए महाभारत की कथा अब आगे पढ़िए,महाराजा शशबिंदु ने हर कन्या के साथ एक -एक सौ रथ और एक एक सौ हाथी दान में दिए और एक -एक सौ घोड़े ,जो आभूषणों से लदे हुए थे,हर घोड़े के साथ हजार -हजार
गौएं ( गाएं ) और पचास -पचास भेड़ें भी दान दी गईं ,अब आप लगाइए हिसाब कितनी तादात घोड़ों और भेड़ों की बनती है.
गप्प नबर दो : इसी अध्याय में लिखा है कि एक राजा हर रोज प्रातः जाग कर एक लाख साठ हजार गौएं ,दस हजार घोड़े और सोने की एक लाख मोहरें दान दिया करता था,इस पुण्य का काम वह लगातार 100 वर्षों तक करता रहा.
गप्प नंबर तीन : महाभारत के युद्ध में 13 लाख अक्षौहिणी सेना ,रथ ,हाथी शामिल थे,यह भी सफेद झूठ है,क्योंकि कुरुक्षेत्र के साथ अगर दो सौ मील इलाका और भी शामिल किया जाए ,तो भी इतनी फौज उसमें समा नहीं सकती.
गप्प नंबर चार : महाभारत के आदिपर्व के अध्याय 115 में वर्णित है -व्यास ने गांधारी को वरदान दिया कि तेरे सौ पुत्र होंगे चुनांचे गांधारी गर्भवती हुई ,परंतु दो वर्ष तक कोई बच्चा नहीं हुआ इतने में उसे खबर मिली कि कुंती को पुत्र जन्मा है,यह सुनकर गांधारी ने दोहत्थड़ मार-मार कर अपना पेट पीट लिया,ऐसा करने पर उसके पेट में से मांस का एक गोला निकल पड़ा,यह जानकर व्यास जी महाराज दौड़े -दौड़े उनके पास आए और एक सौ घी के घड़े सुरक्षित स्थान पर रखवा दिए और गांधारी के पेट से निकले गोले को ठंडे पानी से धुलवाना शुरू कर दिया,धुलते - धुलते उस गोले के ऊंगली की पोर के बराबर सौ टुकड़े हो गए,उन टुकड़ों को व्यास जी वहां रखे घी के सौ घड़ों में रखवाकर वापस चले गए.
बाद में उन घड़ों में से सबसे पहले दुर्योधन निकला,तत्पश्चात एक के बाद एक ,दूसरा ,तीसरा और यहां तक कि सौ पुत्र निकल पड़े,फिर एक महीने के पश्चात एक कन्या निकली, अब जरा सोचिए ! कभी घी के घड़ों में मांस डालने से बच्चे पैदा हो सकते हैं ?
गप्प नंबर पांच : महाभारत के आदि पर्व के अध्याय 225 - 230 कुंभ - कोरव्य अध्याय तथा 249 - 251 में खांडव वन जलाने की कथा आती है, यह कथा हिंदू कथाकारों में बहुत प्रसिद्ध है ,जो कि इस प्रकार है ---
एक बार " अग्नि " ब्राह्मण के वेष में आकर कृष्णार्जुन से अपनी भूख शांत करने के लिए कुछ मांगने आई,उन्होंने पूछा , “ अग्नि देवता ! आपको कौन सा अन्न चाहिए ? " अग्नि बोली , “ मुझे अन्न नहीं चाहिए ,बल्कि यह खांडव वन खाने के लिए चाहिए चूंकि इंद्र उस बन की रक्षा करता है,इसलिए उसे में खा नहीं सकती क्योंकि जैसे ही मैं खांडव वन को खाना शुरू करती हूं , इंद्र ( देवता ) उस वक्त पानी बरसा देता है यह कथा सुनकर जनमेजय पूँछते हैं,वैशम्पाइन जी महाराज ! यह तो बतलाइए , आखिर अग्नि खांडव वन को क्यों जलाना चाहती है ? वैशम्पाइन बोले महाराज ! सुनो -श्वेतकि नाम के एक राजा को यज्ञ करने का बहुत शौक था,यज्ञ कराते कराते धुंओं से परेशान होकर ऋत्विज ( पुरोहित ) यज्ञ छोड़ कर भाग गए,उनकी जगह दूसरे पुरोहितों को लाकर राजा ने यज्ञ समाप्त किया,इसके बाद यज्ञ के शौकीन श्वेतकि राजा ने एक सौ वर्षों तक लगातार चलते रहने वाला यज्ञ आरंभ कर दिया,राजा ब्राह्मणों के पैरों पर पड़ा ,और उन्हें दान दिया . परंत ( शायद धुएं से आंखें अंधी होने के कारण ) श्वेतकि के सौ साल तक चलने वाले यज्ञ को कराने के लिए कोई भी ब्राह्मण परोहित तैयार नहीं हुआ,पुरोहितों ने राजा को साफ -साफ कह दिया कि हम पहले ही यज्ञ कराकर थक गए ( धुएं के कारण अंधे हो गए ) हैं,तुम रुद्र को बुलाकर उससे अपना यज्ञ पूरा करा लो.
तब उस राजा ने कैलाश पर्वत पर जाकर घोर तपस्या ( तप ) की,ऐसा करने पर कैलाशपति शंकर महादेव ने प्रसन्न होकर । राजा को कहा कि कोई वर मांग लो, श्वेतकि ने कहा ,हे शिव शंकर ! अगर आप मुझ पर इतने प्रसन्न हैं ,तो मैं वर मांगता हूँ कि तुम ही मेरे दीर्घ यज्ञ के पुरोहित बनो,आप ही पुरोहित बन कर इसे संपूर्ण करो,लेकिन शंकर के लिए यज्ञ का पुरोहित बनना असंभव था ( शायद उसे अपने तीनों नेंत्रों के अंधा होने का डर लगा होगा ) शिवजी बोले कि मैं तुम्हारे यज्ञ का पुरोहित नहीं बन सकता,तुम लगातार 12 वर्ष तक घी की धारा हवन कुंड में डालकर अग्नि की पूजा करो ' श्वेतकि ने रुद्र ( शिव ) की आज्ञा मानकर ऐसा ही करना आरंभ कर दिया,ऐसा करने पर शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा ,मेरा ही अवतार दुर्वासा ऋषि अब तम्हारे इस यज्ञ का ऋत्विज ( पुरोहित ) बनेगा तदनुसार श्वेतकि ने यज्ञ की तैयारी की और वहां महादेव ने दुर्वासा को पुरोहित बना कर भेज दिया .
यह यज्ञ बहुत बड़ा हआ,12 वर्ष तक घी की आहुतियां दी गईं,
आहुतियां खा -खाकर अग्नि देवता को विकार ( बदहजमी का रोग ) हो गया,अग्नि देवता निस्तेज हो गया और उसे इस तरह घी की आहुतियां खाने से बहुत ग्लानि या नफरत हो गई
अग्नि देवता ने ब्रह्मदेव के पास जाकर अपने रोग का इलाज पूछा ब्रह्मदेव ने कहा ,12 वर्ष तक लगातार घी की आहुतियां खाने से तुम्हें यह रोग हुआ है,तुम घबराओ नहीं,खांडव वन के सब प्राणियों की चर्बी खाने से तुम्हारा यह रोग दूर होगा,अग्नि देवता ने खांडव वन जलाना शुरू कर दिया , लेकिन उस वन के प्राणी उस आग को बुझा देते थे,ऐसा उसने सात बार किया ,किंतु वह अपने इरादे में सफल नहीं हुआ,तब अग्निदेव क्रुद्ध होकर ब्रह्मदेव ( वैद्य या हकीम ) के पास फिर गया,ब्रह्मदेव ने उसे कृष्णार्जुन के पास भेज दिया,उसके बाद कृष्णार्जुन ने बड़ी भारी तैयारी करके खांडव वन को जलाकर भस्म करना आरंभ कर दिया,उस समय वहां के प्राणियों की जो दुर्दशा हुई और जैसा कि उन्होंने चीख - पुकार की ,उसका वर्णन अध्याय 223 में है,ऐसे घोर संकट के समय खांडव वन के सब प्राणी अपनी सहायता या शरण के लिए इंद्र के पास गए,इंद्र ने एकदम पानी बरसाया,वर्षा रोकने के लिए अर्जुन ने वाणों से आकाश ढांप दिया, उस समय तक्षक नाग कुरुक्षेत्र में था,उसका पुत्र अश्वसेन आग में फंस गया उसे बचाने के लिए उसकी मां उसे निगल गई और भागने लगी,अर्जुन ने वाण चलाकर उसका सिर काट डाला उसका पुत्र अश्वसेन उसके पेट से बाहर निकला,उसकी रक्षा करने के लिए इंद्र ने वायू प्रवाह छोड़ कर अर्जुन को बेहोश कर दिया तब अश्वसेन बच गया.
तस्मिन वने दह्यमाने षडग्निर्न ददाह च । ।
अश्वसेन मयं चैव चतुरः शाङ्गकांस्था । ।
अर्थात वन जलाए जाने के समय अश्वसेन मय और चार शारंग पक्षी के बच्चे -केवल ये छ : प्राणी अग्नि ने नहीं जलाए.
महाभारत की इस कथा को पढ़कर तीन बातें सामने आती हैं पहली यह कि इस कथा का कोई सिर -पैर ही नहीं दूसरी बेतुकी बात यह है कि आज तक कोई वैद्य ,हकीम या डॉक्टर घी खा - खाकर हुई बदहजमी का इलाज जानवरों या प्राणियों की चर्बी खाने से नहीं करता,जैसा कि ब्रह्मदेव रूपी वैद्यराज ने अग्निदेव को बताया,तीसरी बात यह है कि महाभारतादि,पुराणों में इंद्र को अर्जुन का पिता बताया गया है जबकि इस कथा में बेटा अर्जुन और बाप इंद्र परस्पर विरोध कर रहे हैं ,इंद्र खांडव वन की आग बुझाने के लिए वर्षा कर रहा है और बेटा अर्जुन तीर से आकाश को ढांप कर खांडव वन को जलाने पर तुला हुआ है,अतः ऐसी असंबद्ध कथाओं या गपोड़ - चौथों से भरे ग्रंथ महाभारत को हरगिज़ इतिहास ग्रंथ नहीं माना जा सकता " महाभारत में प्रारंभ से लेकर अंत तक लगभग एक लाख श्लोकों में न कोई क्रमबद्धता है ,न कोई वैज्ञानिकता है ,न कोई नैतिकता है ,न कोई आदर्श रूप है और न है कोई इतिहास का रूप " और न ही कोई काल,है तो बस बिना सिर -पैर के कोरी गप्प और गप्प...क्रमशः..
भारत की गुलामी में गीता की भूमिका--13-14-15-16.
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भारतीय इतिहास में शक्तिशाली राजा एवं आक्रमणकारियों का स्वागत होता रहा है और राजा लोग अपनी लड़कियां तक को व्याहते रहे हैं.
डॉ.सुरेन्द्र कुमार शर्मा अपनी कृति “ हिंदू इतिहास : हारों की दास्तान ” में पृष्ठ 22-23 पर लिखते हैं:
अथ चेतभिवर्तेत राज्यार्थी वलवत्तरः राष्ट्राणि हतवीर्याणि वा पुनः प्रत्युद्गम्यामिपूज्यः स्यादेतदत्र सुमंत्रितम् भूयासं लभसे क्लेशं या गौर्भवति दुर्दहा ,अथ या सुदुहा राजन् नैव तां वितुदन्तयपि।
( महाभारत ,शांति पर्व 67 / 6-7 )
अर्थात - यदि किसी कमजोर राजा पर कोई अधिक बलवान राजा हमला करे तो सबका कर्तव्य है कि आगे बढ़कर उसका स्वागत किया जाए, यही सुविचारित मत है क्योंकि यदि कोई गाय बिना ज्यादा मेहनत व श्रम करवाए चुप - चाप दूध दे दे तो उसे तंग नहीं किया जाता, मतलब आक्रामक के आगे घुटने टेक देने से कल्याण ही कल्याण है.
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' महाभारत गप्पों का भंडार है क्या महाभारत में ये गप्पें भी इतिहास में शामिल है-
गप्प नंबर एक : यह गप्प महाभारत के आदि पर्व अध्याय 194 से 197 के आधार पर दी जा रही है -युद्ध के दौरान अर्जुन के बेटे अभिमन्यु का देहांत हो गया ,तो महाराज युधिष्ठिर बहुत दु:खी हुए,बहुत रोए इतने में व्यास जी उनके पास पहुंचे और नारद से कुछ वृत्तांत सुना कर तसल्ली देने लगे और एक वृत्तांत इस प्रकार सुनाया -महाराज ! महाराजा शशबिंदु की एक लाख रानियां थीं और हर एक रानी की पेट से एक हजार पुत्र जन्में ( कुल मिलाकर इस महाराजा के 10 करोड़ पुत्र हुए ) तब महाराज ने एक यज्ञ किया और उसमें अपना हर एक बेटा एक -एक ब्राह्मण को दान में दे दिया,हर एक बेटा सानें का एक कवच ( जिरह बक्तर ) पहना हुआ था,हर एक बेटा स्वयं बड़े -बड़े यज्ञ कर चुका था,हर एक बेटे के साथ उनके बाप ने एक -एक सौ रथ और एक -एक सौ हाथी भी ब्राह्मणों को दान में दिए ( कुल मिलाकर दस अरब रथ और दस अरब हाथी हुए ) इस दक्षिणा के अलावा हर बेटे के साथ सौ -सौ युवती सुंदर लड़कियां भी दान में दीं ,जो बिलकुल सुंदर और जवान भी थीं ( मतलब दस अरब लड़कियां हो गई )।
अब जरा विचारिए कि आजकल भी सारे विश्व की कुल आबादी लगभग अब लगभग ७ अरब ) है ,जबकि यह बहुत बढ़ी -चढ़ी आबादी है अगर दान में दी गई लड़कियों की संख्या 10 अरब थी ,तो बाकी इस देश की आबादी कितनी रही होगी अंदाजा लगाना मुश्किल है,उसपर भी सब लड़कियां तो दान में नहीं दी गई थीं. खैर चलिए महाभारत की कथा अब आगे पढ़िए,महाराजा शशबिंदु ने हर कन्या के साथ एक -एक सौ रथ और एक एक सौ हाथी दान में दिए और एक -एक सौ घोड़े ,जो आभूषणों से लदे हुए थे,हर घोड़े के साथ हजार -हजार गौएं ( गाएं ) और पचास -पचास भेड़ें भी दान दी गईं ,अब आप लगाइए हिसाब कितनी तादात घोड़ों और भेड़ों की बनती है.
गप्प नबर दो : इसी अध्याय में लिखा है कि एक राजा हर रोज प्रातः जाग कर एक लाख साठ हजार गौएं ,दस हजार घोड़े और सोने की एक लाख मोहरें दान दिया करता था,इस पुण्य का काम वह लगातार 100 वर्षों तक करता रहा.
गप्प नंबर तीन : महाभारत के युद्ध में 13 लाख अक्षौहिणी सेना ,रथ ,हाथी शामिल थे,यह भी सफेद झूठ है,क्योंकि कुरुक्षेत्र के साथ अगर दो सौ मील इलाका और भी शामिल किया जाए ,तो भी इतनी फौज उसमें समा नहीं सकती.
गप्प नंबर चार : महाभारत के आदिपर्व के अध्याय 115 में वर्णित है -व्यास ने गांधारी को वरदान दिया कि तेरे सौ पुत्र होंगे चुनांचे गांधारी गर्भवती हुई ,परंतु दो वर्ष तक कोई बच्चा नहीं हुआ इतने में उसे खबर मिली कि कुंती को पुत्र जन्मा है,यह सुनकर गांधारी ने दोहत्थड़ मार-मार कर अपना पेट पीट लिया,ऐसा करने पर उसके पेट में से मांस का एक गोला निकल पड़ा,यह जानकर व्यास जी महाराज दौड़े -दौड़े उनके पास आए और एक सौ घी के घड़े सुरक्षित स्थान पर रखवा दिए और गांधारी के पेट से निकले गोले को ठंडे पानी से धुलवाना शुरू कर दिया,धुलते - धुलते उस गोले के ऊंगली की पोर के बराबर सौ टुकड़े हो गए,उन टुकड़ों को व्यास जी वहां रखे घी के सौ घड़ों में रखवाकर वापस चले गए. बाद में उन घड़ों में से सबसे पहले दुर्योधन निकला,तत्पश्चात एक के बाद एक ,दूसरा ,तीसरा और यहां तक कि सौ पुत्र निकल पड़े,फिर एक महीने के पश्चात एक कन्या निकली, अब जरा सोचिए ! कभी घी के घड़ों में मांस डालने से बच्चे पैदा हो सकते हैं ?
गप्प नंबर पांच : महाभारत के आदि पर्व के अध्याय 225 - 230 कुंभ - कोरव्य अध्याय तथा 249 - 251 में खांडव वन जलाने की कथा आती है, यह कथा हिंदू कथाकारों में बहुत प्रसिद्ध है ,जो कि इस प्रकार है ---
एक बार " अग्नि " ब्राह्मण के वेष में आकर कृष्णार्जुन से अपनी भूख शांत करने के लिए कुछ मांगने आई,उन्होंने पूछा , “ अग्नि देवता ! आपको कौन सा अन्न चाहिए ? " अग्नि बोली , “ मुझे अन्न नहीं चाहिए ,बल्कि यह खांडव वन खाने के लिए चाहिए चूंकि इंद्र उस बन की रक्षा करता है,इसलिए उसे में खा नहीं सकती क्योंकि जैसे ही मैं खांडव वन को खाना शुरू करती हूं , इंद्र ( देवता ) उस वक्त पानी बरसा देता है यह कथा सुनकर जनमेजय पूँछते हैं,वैशम्पाइन जी महाराज ! यह तो बतलाइए , आखिर अग्नि खांडव वन को क्यों जलाना चाहती है ? वैशम्पाइन बोले महाराज ! सुनो -श्वेतकि नाम के एक राजा को यज्ञ करने का बहुत शौक था,यज्ञ कराते कराते धुंओं से परेशान होकर ऋत्विज ( पुरोहित ) यज्ञ छोड़ कर भाग गए,उनकी जगह दूसरे पुरोहितों को लाकर राजा ने यज्ञ समाप्त किया,इसके बाद यज्ञ के शौकीन श्वेतकि राजा ने एक सौ वर्षों तक लगातार चलते रहने वाला यज्ञ आरंभ कर दिया,राजा ब्राह्मणों के पैरों पर पड़ा ,और उन्हें दान दिया . परंत ( शायद धुएं से आंखें अंधी होने के कारण ) श्वेतकि के सौ साल तक चलने वाले यज्ञ को कराने के लिए कोई भी ब्राह्मण परोहित तैयार नहीं हुआ,पुरोहितों ने राजा को साफ -साफ कह दिया कि हम पहले ही यज्ञ कराकर थक गए ( धुएं के कारण अंधे हो गए ) हैं,तुम रुद्र को बुलाकर उससे अपना यज्ञ पूरा करा लो. तब उस राजा ने कैलाश पर्वत पर जाकर घोर तपस्या ( तप ) की,ऐसा करने पर कैलाशपति शंकर महादेव ने प्रसन्न होकर । राजा को कहा कि कोई वर मांग लो, श्वेतकि ने कहा ,हे शिव शंकर ! अगर आप मुझ पर इतने प्रसन्न हैं ,तो मैं वर मांगता हूँ कि तुम ही मेरे दीर्घ यज्ञ के पुरोहित बनो,आप ही पुरोहित बन कर इसे संपूर्ण करो,लेकिन शंकर के लिए यज्ञ का पुरोहित बनना असंभव था ( शायद उसे अपने तीनों नेंत्रों के अंधा होने का डर लगा होगा ) शिवजी बोले कि मैं तुम्हारे यज्ञ का पुरोहित नहीं बन सकता,तुम लगातार 12 वर्ष तक घी की धारा हवन कुंड में डालकर अग्नि की पूजा करो ' श्वेतकि ने रुद्र ( शिव ) की आज्ञा मानकर ऐसा ही करना आरंभ कर दिया,ऐसा करने पर शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा ,मेरा ही अवतार दुर्वासा ऋषि अब तम्हारे इस यज्ञ का ऋत्विज ( पुरोहित ) बनेगा तदनुसार श्वेतकि ने यज्ञ की तैयारी की और वहां महादेव ने दुर्वासा को पुरोहित बना कर भेज दिया .
यह यज्ञ बहुत बड़ा हआ,12 वर्ष तक घी की आहुतियां दी गईं, आहुतियां खा -खाकर अग्नि देवता को विकार ( बदहजमी का रोग ) हो गया,अग्नि देवता निस्तेज हो गया और उसे इस तरह घी की आहुतियां खाने से बहुत ग्लानि या नफरत हो गई . अग्नि देवता ने ब्रह्मदेव के पास जाकर अपने रोग का इलाज पूछा ब्रह्मदेव ने कहा ,12 वर्ष तक लगातार घी की आहुतियां खाने से तुम्हें यह रोग हुआ है,तुम घबराओ नहीं,खांडव वन के सब प्राणियों की चर्बी खाने से तुम्हारा यह रोग दूर होगा,अग्नि देवता ने खांडव वन जलाना शुरू कर दिया , लेकिन उस वन के प्राणी उस आग को बुझा देते थे,ऐसा उसने सात बार किया ,किंतु वह अपने इरादे में सफल नहीं हुआ,तब अग्निदेव क्रुद्ध होकर ब्रह्मदेव ( वैद्य या हकीम ) के पास फिर गया,ब्रह्मदेव ने उसे कृष्णार्जुन के पास भेज दिया,उसके बाद कृष्णार्जुन ने बड़ी भारी तैयारी करके खांडव वन को जलाकर भस्म करना आरंभ कर दिया,उस समय वहां के प्राणियों की जो दुर्दशा हुई और जैसा कि उन्होंने चीख - पुकार की ,उसका वर्णन अध्याय 223 में है,ऐसे घोर संकट के समय खांडव वन के सब प्राणी अपनी सहायता या शरण के लिए इंद्र के पास गए,इंद्र ने एकदम पानी बरसाया,वर्षा रोकने के लिए अर्जुन ने वाणों से आकाश ढांप दिया, उस समय तक्षक नाग कुरुक्षेत्र में था,उसका पुत्र अश्वसेन आग में फंस गया उसे बचाने के लिए उसकी मां उसे निगल गई और भागने लगी,अर्जुन ने वाण चलाकर उसका सिर काट डाला उसका पुत्र अश्वसेन उसके पेट से बाहर निकला,उसकी रक्षा करने के लिए इंद्र ने वायू प्रवाह छोड़ कर अर्जुन को बेहोश कर दिया तब अश्वसेन बच गया.
तस्मिन वने दह्यमाने षडग्निर्न ददाह च । ।
अश्वसेन मयं चैव चतुरः शाङ्गकांस्था । ।
अर्थात वन जलाए जाने के समय अश्वसेन मय और चार शारंग पक्षी के बच्चे -केवल ये छ : प्राणी अग्नि ने नहीं जलाए.
महाभारत की इस कथा को पढ़कर तीन बातें सामने आती हैं पहली यह कि इस कथा का कोई सिर -पैर ही नहीं दूसरी बेतुकी बात यह है कि आज तक कोई वैद्य ,हकीम या डॉक्टर घी खा - खाकर हुई बदहजमी का इलाज जानवरों या प्राणियों की चर्बी खाने से नहीं करता,जैसा कि ब्रह्मदेव रूपी वैद्यराज ने अग्निदेव को बताया,तीसरी बात यह है कि महाभारतादि,पुराणों में इंद्र को अर्जुन का पिता बताया गया है जबकि इस कथा में बेटा अर्जुन और बाप इंद्र परस्पर विरोध कर रहे हैं ,इंद्र खांडव वन की आग बुझाने के लिए वर्षा कर रहा है और बेटा अर्जुन तीर से आकाश को ढांप कर खांडव वन को जलाने पर तुला हुआ है,अतः ऐसी असंबद्ध कथाओं या गपोड़ - चौथों से भरे ग्रंथ महाभारत को हरगिज़ इतिहास ग्रंथ नहीं माना जा सकता
भारत की गुलामी में गीता की भूमिका--13-14-15-16.
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गप्पेबाज़ी।
वृहद महाभारत में मूल श्लोक 8800 थे जोकि संजय को मालूम नहीं थे,ऐसी अवस्था में छोटे से छोटे बीज से जैसे बड़ा वृक्ष होता है ,वैसे ही महाभारत थोडे से जोकों से एक लाख श्लोकों का महाग्रंथबन गया,इसमें मूल श्लोक कौन से और प्रक्षिप्त कौन से है यह ढूंढ़कर निकालना किसी के लिए भी संभव नहीं,( भारतीय संस्कृति और अहिंसा , पृष्ठ 150 )दरअसल महाभारत कोई इतिहास - ग्रंथ नहीं है ,यह तो पुराण - ग्रंथ है ,जिसमें काल्पनिक कपोल - कथाओं की उड़ानें ज्यादा हैं,उदाहरण स्वरूप एक गर्भ के पिंड के 100 टुकड़े करके उनमें से 100 बच्चों ( कौरवों ) की उत्पत्ति इतिहास हो सकता है ? कभी नहीं ? कान से बच्चा होना ,मंत्रों से बच्चा होना आदि गपोड़े इतिहास हो सकता है क्या ? जिस प्रकार रामायण काल्पनिक है ,उसी प्रकार महाभारत भी काल्पनिक है, रामायण के बारे में प्रश्न पूछा जाता है ( 1 ) पंचवटी में जब रावण सीताहरण के लिए आया था ,उस समय रावण ने सीता से क्या कहा ? सीता ने रावण से क्या कहा ? इन दोनों की बातों को अथवा गतिविधियों को इन दोनों के अतिरिक्त किसने देखा था ? किसने सुना था.?.क्या वाल्मीकि वहां थे ? क्या तुलसीदास वहां थे ? क्या और कोई कवि या लेखक वहां थे ? अर्थात कोई नहीं,इसलिए यह सब कवियों की कल्पना मात्र है,वहां पर तो राम -लक्ष्मण भी नहीं थे, इसी प्रकार महाभारत के बारे में भी सवाल पूछे जाते हैं सवाल है कि
प्र . महाभारत का युद्ध कहां हुआ था ?
उ . कुरुक्षेत्र में
प्र . कुरुक्षेत्र कहां है ?
उ . करनाल जिला वर्तमान हरियाणा प्रांत में
प्र . युद्ध किसने देखा है ?
उ . संजय ने ( जो ज्ञानी थे )
प्र . संजय कहां थे ?
उ . हस्तिनापुर या इंद्रप्रस्थ में
प्र . हस्तिनापुर कहां है ?
उ . वर्तमान दिल्ली के आसपास प्र . हस्तिनापुर और कुरुक्षेत्र में कितनी दूरी है ?
उ . लगभग 60 -70 मील के बीच प्र . सुनने वाले कौन थे ?
उ . अंधे जिनकी बाहर और भीतर की दोनों आंखें नहीं थीं
प्र . उस समय इस कथा के लेखक कहां थे ?
उ . कोई नहीं जानता
इस तरह साफ है कि इनके सारे पुराण गप्पों से भरे हैं और वे लेखकों द्वारा पंद्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दी तक लिखे जाते रहे हैं,इनमें बुद्ध की निंदा , महावीर स्वामी की निंदा भरपूर मिलती है तथा ईसा मसीह , मोहम्मद साहब , सिकंदर , तैमूर लंग , बाबर हुमायूं , अकबर , केशव तानसेन , बीरबल , तुलसीदास , सूरदास , चरणदास , रैदास , मीरा , सलीम , शिवाजी , नादिरशाह , अंग्रेज (कलकत्ता राजधानी , वार्डीली तथा लार्ड वेकल तक का नाम है,जिनका भविष्य पुराण में विधिवत अवलोकन किया जा सकता है,जिसके आधार पर स्वतः सिद्ध हो जाता है कि महाभारत तथागत बुद्ध के बाद ही रचा गया इसमें ' एण्डूकानि ' अर्थात स्तुपों की पूजा का वर्णन है ,कहा जाता है कि व्यास के पुत्र शुकदेव ने राजा परीक्षित को महाभारत की कथा सुनाई थी , किंतु यह बड़ी जबर्दस्त पहेली है कि जब उस समय व्यास पुत्र शुकदेव थे ही नहीं ,तो राजा परीक्षित को यह कथा कैसे सुना दी ? यदि हम महाभारत पर ही विश्वास करें ,तो
महाभारत की युद्ध की समाप्ति के पश्चात भीष्म पितामह युद्ध क्षेत्र में शर - शैया ( वाणी की शैया ) पर पड़े थे ,जो कि शांति पर्व में दिया गया है,युधिष्ठिर ने भीष्म से वार्तालाप है ,मध्य में प्रश्न किया है-
कथं व्यासस्य धर्मात्मा शुको जज्ञे महातपाः ।
सिद्धिं च परमां प्राप्तस्तन्मे ब्रूहि पितामह । । 1 । ।
कस्यां चोत्पादयामास शुकं व्यासस्तपोधनः ।
न ह्यस्य जननी विद्म जन्म चाग्रयंमहात्मनः । । 2 । ।
महात्म्यमात्म योगं च विज्ञानं च शुकस्य ह ।
यथावदानुपूर्येण तन्मे ब्रूहि पितामह । । 5 । ।
( महाभारत शांति पर्व , अ . 323 )
अर्थ : युधिष्ठिर ने कहा , पितामह ! व्यासजी के यहां महातपस्वी और धर्मात्मा शुकदेवजी का जन्म कैसे हुआ तथा उन्होंने परम सिद्धि कैसे प्राप्त की ,यह मुझे बताइए ? तपस्या के धनी व्यासजी ने किस स्त्री के गर्भ से शुकदवेजी को उत्पन्न किया ? हमें उन महात्मा शकदेवजी का माता का नाम नहीं मालूम है और न हम उनके जन्म का वृतांत ही जानते हैं पितामह ! आप मुझे उनके शुकदेव का महात्म्य , आत्मयोग और विज्ञान यथार्थ रीति से क्रमशः बतलाइए - इस प्रश्न से यह प्रकट है कि शुकदेव युधिष्ठिर के समकालीन भी नहीं थे ,अन्यथा वे उनके विषय में सब कुछ जानते होते, शुकदेवजी कदाचित पांडवों के जन्म से बहुत पूर्व उत्पन्न होकर मृत्यु को प्राप्त हो चुके होंगे तथा उनके जीवन की घटनाएं पुरानी पड़ चुका होंगी,इसीलिए यधिष्ठिर को उनके विषय में जानने की आवश्यकता हुई होगी,युधिष्ठिर के प्रश्न के उत्तर में भीष्म पितामह ने शुकदेव के जन्म का हाल बताते हुए कहा कि -
मार्कण्डेयो हि भगवानेतदा ख्यातवान मम् ।
स देव चरितानीह कथयामास मे सदा । ।
( महाभारत शांति पर्व , अ . 323 / 24 )
अर्थ : भीष्म ने कहा कि मुझे मार्कण्डेय ऋषि ने यह वृतांत सुनाया था,वे मुझे सदा ही देवताओं का चरित्र सुनाया करते थे,मार्कण्डेय के कथन के आधार पर भीष्म ने कहा कि व्यासजी ने पुत्र प्राप्ति के लिए शिवजी की घोर आराधना की,शिवजी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया-
सलब्ध्वा परमं देवाद् वरं सत्यवती सुतः । ।
अरणी सहितेगृह्य ममन्थाग्नि चिकीर्षया । । 1 । । ।
अथ रूपं परं राजन् विभ्रतीं स्वेन तेजसा ।
घ्रताची नामाप्सरसमपश्यद् भगवानृषिः । । 2 । ।
भवित्वाच्चैव भावस्य घ्रताच्या वपुषाहतः ।
यत्नानि यच्छतस्तस्य मुनेरग्नि चिकीर्षया । । 7 । ।
अरण्यामेव सहसा तस्य शुक्रमवापतत् ।
सोऽविशंकेन मनसा तथैव द्विज सत्तमः ।
अरणी मन्मथ ब्रह्मर्षिस्तस्यां जज्ञे शुको नृप । । 8 । ।
शुक्रे निर्मश्य मानेस शुको जज्ञे महातपाः ।
परमर्षिमहा योगी अरणी गर्म संभव । । 9 । ।
( महाभारत शांति पर्व , अध्याय 324 )
अर्थ : राजन ! महादेवजी से उत्तम वर पाकर एक दिन सत्यवती नंदन व्यासजी अग्नि प्रकट करने की इच्छा से दो (अरंडी) अरणी काष्ट लेकर उनका मंथन करने लगे,नरेश्वर ! इसी समय व्यासजी ने वहां आई हुई घृताची नामक अप्सरा को देखा,जो अपने तेज से परम सुंदर रूप धारण किए हुए थी, होनहार होकर ही रहती है ,इसीलिए व्यासजी घृताची के रूप में आकृष्ट हो गए, अग्नि प्रकट करने की इच्छा से अपने काम के वेग को यत्नपूर्वक रोकते हए व्यासजी का वीर्य सहसा उस अरणी काष्ठ पर ही गिर पड़ा ,नरेश्वर ! उस समय भी द्विज श्रेष्ठ महर्षि व्यासजी निःशंक मन से दोनों अरणियों के मंथन में लगे रहे उसी समय अरणी से शुकदेवजी प्रकट हो गए ,अरणी के साथ - साथ शुक्र का भी मंथन हो जाने से महातपस्वी तथा महायोगी शुकदेवजी का जन्म हो गया,वे अरणी (अरंडी )के गर्भ से प्रकट हुए थे।
भारत की गुलामी में गीता की भूमिका-17-18-19-20-21.
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महाभारत कथा
अलग अलग ग्रंथ-किताबों की अलग-अलग कथा-कहानियों में अधिकांश देवी-देवताओं की तरहं अप्राकृतिक व असामाजिक तरीके से पैदा होने वालों की तरहं कृपि व कृपाचार्य के पैदा होने के मामले में भी दो कथा-कहानियां मिलती हैं-
01. प्रथम कहानी के अनुसार महर्षि शरद्वान की तप-स्याह भंग करने के लिए इंद्र ने #जानपदी नामक एक तवायफ (अप्सरा) भेजी थी। खूबसूरत हसीन और उसकी मादक अदाएं देखकर महर्षि शरद्वान अपना जप तप छोडकर उस पर फिदा हो गये थे। महर्षि शरद्वान व हसीना जानपदी के सहवास से जानपदी ने अपने गर्भ से जुडवा बच्चे पैदा किये।
शरद्वान व जानपदी ने अपना नाम बदनाम होने के डर से' अपने नवजात बच्चों को जंगल में फैंक दिया था। बच्चों का लालन-पालन भेड़िया ने अपना दूध पिलाकर किया। एक दिन हस्तिनापुर के राणा शांतनु ने जब बच्चों को जंगल में' लावारिस हालत में पडा देखा तो राणा इन बच्चों को उठाकर अपने महल में ले गया और उनका नाम 'कृप' तथा 'कृपि रखकर पालन पोषण किया ।
02. दूसरी कहानी के अनुसार शरद्वान गौतम घोर तपस्वी थे। उनकी तप-स्याह देखकर इंद्र चिंता में पड गया। इन्द्र ने उसकी तप-स्याह में अडचन पैदा करने के लिए 'जानपदी' नाम की एक तवायफ को उनके आश्रम में भेजा।
बला की खूबसूरत जानपदी की मादक अदाएं, मतवाली चाल व नाच गाना देखकर शरद्वान का' लंगोट में ही शीघ्रपतन हो गया। उसके वीर्य की पिचकारी सरकंडे ऊपर गिरी तो सरकंडे के दो भाग हो गये। वीर्य की बौछार सरकंडे पर गिरने से एक सरकंडे में एक कन्या और दूसरे सरकंडे के हिस्से में एक लडका पैदा हुआ। भेडियों वगैरह जानवरों ने उनका पालन-पोषण करते रहे । एक दिन जब राणा शांतनु ने दोनों बच्चों को वहाँ लावारिस हालत में पडे हुए, देखा तो वह दोनों बच्चों को उठाकर अपने घर ले गया और उनका 'कृपि और 'कृप' नाम रखकर' शांतनु ने उनका लालन-पालन किया।
कृप की बहन कृपी का विवाह कमंडल में पैदा होने वाले द्रोणाचार्य से हुआ और इनके मिलन से घोडे के मुंह वाला व पैदा होते ही घोडे की आवाज निकालने वाला अश्वथामा नाम का एक बेटा पैदा हुआ। जबकि कृप बड़े होकर कृप-आचार्य (कृपाचार्य) बने।
#द्रोणाचार्य के पैदा होने की कथा-कहानी*
03.. एक बार भरद्वाज मुनि एकांत जंगल में हवन कर रहे थे। जब वे गंगा नदी के किनारे मटरगस्ती कर रहे थे तो उसने छुपकर घृतार्ची नाम की एक तवायफ को नंगी हालत में स्नान करते हुए और जब वह नंगी हालात में' गंगा नदी से बाहर निकल रही थी' तब एकांत जंगल में खूबसूरत व एक जवान अकेली लडकी को देखकर भरद्वाज के मन में उस तवायफ के साथ सैक्स करने की इच्छा बढ गई। घृतार्ची को अपनी बाहों में पकडने से पहले ही भरद्वाज का वीर्य शीघ्रपतन होकर उसके लंगोट में' डिस्चार्ज होने लगा तो भरद्वाज ने अपना वीर्य अपने कमंडल (द्रोण) में भर लिया। उसी कमंडल में द्रोण पैदा हुआ।
इनके अलावा अनेक ऋषि मुनि मनुओं ने अपने अपने वीर्य का जोहर दिखाने में' कभी-भी पीछे नही रहे हैं। जिनमें प्रमुख ऋषि-मनु मुनि देव निम्नलिखित बताए गये हैं-
04. ऋषि पराशर व कुवांरी सत्यवती के अवैध सम्बन्ध से वेदव्यास पैदा हुआ। सत्यवती ने अपने खानदान की मूंछ कटने के डर से वेदव्यास को जंगल में लावारिस छोड दिया,
05. पवन व अंजनी के अवैध सम्बन्ध से बंदर के मुंह वाले हनुमान पैदा हुए और अंजना ने अपने खानदान की मूंछ कटने के डर से हनुमान को जंगल में लावारिस छोड दिया।
06. मालकिन पारवती के मन में मैल आने से और शिव की गैरहाजरी में' उसने अपने गण (नौकर) से सम्बन्ध बनाए तो गण के अंश से मलेश उर्फ गणेश पैदा हुए।
07. ऋष्यश्रष्यंग व बच्चे पैदा करने में लाचार दशरथ की तीन रानियों के सम्बंध से राम लक्ष्मण शत्रुघन व भरत पैदा हुए,
08. श्रृंग श्रृंगी उर्फ श्रृंग्य के बाप विभंडक ने जब उर्वशी नामकी हिरणी के साथ सहवास किया तब हरण के सींग पैर वाले श्रृंग श्रृंगी उर्फ श्रृंग्य पैदा हुआ जो दशरथ का जवाईं, दशरथ की बेटी का पति और राम एंड ब्रदर्स का जीजा था।
09. वेदव्यास और अम्बा अम्बिका व नौकरानी के नाजायज़ सम्बन्ध से धृतराष्ट्र, पांडु व विदुर पैदा करवाए गये। दूसरी कहानी में कृपाचार्य का नाम आता है और दोनों को अलग-अलग महाभारत के कवि (ऋषि-मुनि मनु वगैरह) माने जाते हैं।
10. ब्रह्मा के वीर्य की बौछारें जगह जगह और जानवरों पर गिरने से 86 हजार ऋषि मुनि मनु पैदा हुए,
11. घोडा (विष्णु) द्वारा घोडी (लक्ष्मी) के साथ सहवास करने से हैहय वंशीधारी राणा पैदा हुए और हयग्रीव के खानदान में अनेक राणा-राव-राजा हुए जिनमें रघुवंशी यदुवंशी कुरुवंशी पांडुवंशी आदि वंशधारी शामिल हैं।
12. विश्व-अमित्र व तवायफ मेनका के नाजायज़ शारीरिक सम्बन्ध से' भरतवंशी की मां शकुंतला पैदा हुई और शकुंतला व दुष्यंत के नाजायज़ सम्बन्ध से भरत पैदा हुआ।
13. भारत के सर्वप्रथम राणा वेन के बेटे महाराणा पृथु ने' गाय के साथ सहवास किया तो गाय ने खुश होकर, पृथु के बेटे को बछडे के रूप में मनु महादेव को पैदा किया।
इनके अतिरिक्त भारत में ऊंट को छोडकर मेंढक मछली चूहे से लेकर हाथी के मुंह वाले और अनेकों सिर, हाथ तथा अनेकों टांगों (पैर) वाले पैदा करने व होने वाले देवी देवताओं की इस देश में कमी नही है। इसी टैक्नोलॉजी के कारण ही भरत का भारत महान कहलाता है और बारत (भारत ) कुल (खानदान) कलंकित करने वाले देवी देवता ऋषि-मुनि मनुओं का स्थान बताया जाता है।
राम के भाई व शांतनु का बेट भरत का भारत देश विश्व गुरु बनने के साथ-साथ विश्व में पहले स्थान पर पहुँच गया है।
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महाभारत के युद्ध मे एक बात सोचने वाली है कि अगर दुर्योधन के कहने पर सात महारथियों ने अभिमन्यु को घेर कर मार डाला था, तो वह बड़ा अधर्म था! फिर जब घायल कर्ण, जिसके रथ का पहिया जमीन मे धंस गया था, और वह धनुष उठाने के स्थिति मे नही था, फिर भी अर्जुन ने उसका वध किया.. क्या यह धर्म था?
चोरी का बदला चोरी कभी धर्म हो सकता है?
कपट का बदला कपट कभी धर्म हो सकता है?
अगर कौरव अधर्मी थे, तो पाण्डव कैसे धर्मी हो गये यह बात सोचने वाली है!
हद तो तब है कि ये सारे अधर्म श्रीकृष्ण के ईशारे पर किये गये!
महाभारत के कर्णपर्व मे लिखा है कि कर्ण ने अर्जुन से निवेदन किया था कि ' हे अर्जुन! जो युद्ध से भागा हो, जिसके अस्त्र-शस्त्र गिर गये हो और जो घायल हो क्षत्रिय उस पर बाण नही चलाते, अतः तुम रूको... मै रथ का पहिया निकालकर तुमसे युद्ध करता हूँ '
ऐसी स्थित मे अर्जुन तो मान गया, पर कृष्ण ने उसे उकसाकर कर्ण का वध करवाया! कोई बतायेगा कि कृष्ण कौन से धर्म का पालन कर रहे थे?
जब स्वयं इतने बड़े महापुरुष अधर्म करने के लिये अर्जुन से कह रहें थे, तो फिर कृष्ण धर्मनिष्ठ कैसे हुये!
कृष्ण तो वेदों, उपनिषदों और शास्त्रों के ज्ञाता थे! मनुस्मृति-7/93 मे मनु ने लिखा है-
"नायुधव्यसनप्राप्तं नार्तं नातिपरिक्षतम् ।
न भीतं न परावृत्तं सतां धर्ममनुस्मरन् ।।"
अर्थात- जिसका आयुध टूट गया हो, शोकाकुल हो, अत्यन्त घायल हो, जो भयभीत हो, युद्ध से भागा हो, ऐसे शत्रु को शिष्ट क्षत्रिय का धर्म स्मरण कर न मारें।
क्या मनु का विधान भी कृष्ण भूल गये थे! मै सदैव कहता हूँ कि महाभारत कृष्ण की स्तुति और पाण्डवों के साथ सहानुभूति रखकर लिखी गयी पुस्तक है, अन्यथा पाण्डव तो कौरवों से भी अधिक अधर्मी थे!
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महाभारत का कटु यथार्थ
महर्षि वेदव्यास रचित महाकाव्य महाभारत को जहां अन्याय पर न्याय की, अधर्म पर धर्म की विजय का प्रतीक माना गया है वहीं इसे अशुभ, परिवार विनाशक ग्रंथ भी कहा जाता है इस में स्वार्थसिद्धि के प्रयासों के अलावा कुछ भी नहीं.
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रामायण और महाभारत ये 2 ऐसे महाकाव्य हैं जिन्हें वैदिक युग में लिखे जाने का गौरव प्राप्त है. इन में से हम यहां ‘महाभारत’ पर कुछ चर्चा कर रहे हैं. श्रीमद्भगवत गीता इसी ‘महाभारत’ का एक भाग है, जिसे हिंदू आत्मा व कर्म की महान दार्शनिक व्याख्या अपने में समेटे होने के कारण अत्यंत पवित्र मानते हैं. जहां तक महाभारत का प्रश्न है तो कहते हैं कि इस की रचना वेदव्यास ने की थी और इसे गणेश द्वारा लिपिबद्ध किया गया था. मोटे तौर पर इसे अर्थात महाभारत को अधर्म पर धर्म की, अनीति पर नीति की, अन्याय पर न्याय की और असत्य पर सत्य की विजय का प्रतीक माना जाता है.
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इसीलिए कहा जाता है कि महाभारत के अध्ययन से मनुष्य भवसागर से मुक्त होता है. इस को पढ़ने से मनुष्य को ब्रह्महत्या से मुक्ति प्राप्त होती है. ऐसा भी कहा जाता है कि अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष का वर्णन जोकि महाभारत में किया गया है, वह पुराणों में उपलब्ध नहीं है, अत: महाभारत को पढ़ने या सुनने से मोक्ष की इच्छा रखने वाले को मोक्ष, स्वर्ग की इच्छा रखने वाले को स्वर्ग, विजय की इच्छा रखने वाले को विजय तथा गर्भवती स्त्री को इच्छानुसार संतान प्राप्त होती है. मनुष्य की सारी कामनाएं पूरी होती हैं, उस का यश फैलता है और मृत्यु के बाद उस को परम गति प्राप्त होती है.
महाभारत की महत्ता को प्रसारित करने वाले कुछ श्लोक जो ‘महाभारत’ में मौजूद हैं, निम्न हैं :
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मातापितृ सहस्त्राणि पुत्र दाराशतानि च.
संसारेष्वनुभूतानि यांति यास्यंति चापरे. (1)
हर्षस्थानसहस्त्राणिभयस्थानि शतानि च.
दिवसे दिवसे मूढ़ामाविशन्तिन पंडितम.(2)
उर्ध्व बाहुविरोम्येष न च कश्र्चिच्वृदृणोति मे.
धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थ न सेव्यते. (3)
न जातुकमान्न लोभाद्धर्म त्यजेज्जीवितस्यापि हेतो:.
नित्यो धर्म: सुखदु:खे त्वनित्ये जीवो नित्यो हेतुरस्य त्वनित्य. (4)
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उपरोक्त श्लोकों का अर्थ है :
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इस विश्व में सहस्त्रों मातापिता हुए हैं, होते रहेंगे. इसी प्रकार स्त्रीपुरुष भी सैकड़ों हुए हैं, हो रहे हैं और होते रहेंगे. मूर्ख व्यक्तियों को हजारों बार खुशी व सैकड़ों बार विषाद होता है, किंतु पंडित जन हर्ष व विषाद नहीं करते. मैं दोनों भुजाओं को ऊपर उठा कर उच्च स्वर से कह रहा हूं कि धर्म से ही अर्थ और काम की सिद्धि होती है, फिर धर्म का सेवन क्यों नहीं करते? परंतु मेरी बात कोई सुनता ही नहीं. काम, भय और लोभ के कारण तथा जीवन के लिए धर्म को नहीं त्यागना चाहिए, क्योंकि धर्म नित्य है और सुखदुख अनित्य है. जीवन नित्य है किंतु जीव का कारण शरीर आदि अनित्य है. अत: इस महाभारत को जो व्यक्ति सावधानीपूर्वक पढ़ता है वह निश्चय ही परमसिद्धि को प्राप्त करता है.इस प्रकार हमें बारबार यह संदेश दिया गया है कि महाभारत का अध्ययन अर्थात रसपान हमें :
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ब्रह्महत्या से मुक्ति दिलाता है.
हमारे पितरों को तर्पण प्रदान करता है.
हमें मोक्ष हासिल कराता है.
हमारी स्वर्ग जाने की इच्छा को पूरा करता है.
हमें हमेशा विजयश्री प्रदान करता है.
इच्छानुसार संतान देता है.
मनोकामनाओं की पूर्ति करता है.
हमें यश प्रदान करता है.
हमें धार्मिक बना कर अर्थ व काम की सिद्धि प्रदान करता है.
हमें हर्ष व विषाद में संतुलित रखता है.
हमें परमज्ञान व परमसिद्धि प्रदान करता है.
यहां महाभारत अध्ययन, श्रवण व रसास्वादन के परिणामों पर अगर मनन किया जाए तो यह नतीजा निकल कर सामने आता है कि ‘लाखों रोगों की यह तो एक ऐसी अचूक दवा है जो अपनेआप में चमत्कारी है.’
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महाभारत के पढ़ने के जो लाभ बताए गए हैं और खुद महाभारत अपने पढ़ने की महत्ता को व्याख्यायित करता है, उस से तो यही लगता है कि सारा हिंदू धर्म एक ओर और महाभारत अकेला दूसरी ओर, फिर भी सब के बराबर है.
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दूसरी तरफ बहुप्रचलित अर्थों में महाभारत को अशुभ व परिवार- विनाशक ग्रंथ माना जाता है. ऐसा कहा भी जाता है कि जहां भी महाभारत का वाचन व परायण होता है वहां कुल का विनाश हो जाता है क्योंकि महाभारत आखिर कुल के नाश होने की ही तो कथा है. अगर थोड़ी देर को यह मान भी लिया जाए कि कुल के विनाश होने व परिवार में उत्पात होने की धारणा मनगढं़त है, तो भी इस के परायण से जुड़े लाभों की प्राप्ति पर यकीन करना किसी भी कोण से उचित प्रतीत नहीं होता है, क्योंकि न तो यह धार्मिक (केवल युद्ध का वर्णन है) ग्रंथ है, न ही मर्यादित या सांस्कृतिक ग्रंथ.
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महाभारत में साम, दाम, दंड, भेद से स्वार्थसिद्धि के प्रयासों के अलावा कुछ है ही नहीं. चाहे कौरव हों या पांडव सब के सब अनैतिक, अधर्मी, झूठे व पापी हो कर युद्ध जीतने की चेष्टा से संलग्न नजर आते हैं. इस पूरे ग्रंथ में न तो कहीं सत्य दिखाई देता है, न ही शील, न ही मर्यादा और न ही नैतिकता. तो फिर ऐसा ग्रंथ अपने पढ़ने वालों के लिए मोक्ष, यश, पुण्य लाभ, कामनापूर्ति, यशप्रदाय, पितर तर्पण व सद्गति कहां से ले कर आएगा?
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जब पूरे ग्रंथ में सदाचार की होली जलती दिखाई देती है, नारी का बारबार अपमान होता दिखता है और राज्य के लोभ में पड़े कौरवपांडव छल, कपट व झूठ का नंगा नाच करते हुए नजर आते हैं तो ऐसे में इस ग्रंथ को पावन, सत्य उद्घोषक, धर्मप्रचारक, न्याय संरक्षक व नीति उच्चारक मानना सिवा मूर्खता के और क्या है?
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अब हम यहां कुछ उन प्रसंगों की चर्चा करते हैं जो महाभारत की कथा के अभिन्न हिस्से हैं और जो घोर दुराचारी व पतनशील समाज की करनी प्रतीत होते हैं. उन पर दृष्टिपात करने से यह सहज में ही स्पष्ट हो जाता है कि महाभारत का धर्म, सत्य और नैतिकता से दूरदूर का रिश्ता नहीं है. ऐसे में इस के पठनपाठन और मनन से खास लाभ प्राप्ति का प्रश्न ही कहां उठता है? तो आइए, हम देखते हैं कि महाभारत कथा के वे कलंकपूर्ण प्रसंग क्या हैं :
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मल्लाह कन्या व अद्वितीय सुंदरी सत्यवती का बीच मझधार में ऋषि पाराशर द्वारा मोहित हो कर बलपूर्वक शीलभंग किया जाना और फिर अवैध पुत्र द्वैपायन व्यास की उत्पत्ति होना.
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पूर्व से ही शादीशुदा राजा शांतनु का सत्यवती से विवाह (वही सत्यवती जिस का पाराशर ने शीलभंग किया था) करने का निश्चय तथा भीष्म को पिता की वासना की खातिर आजीवन कुंआरे रहने की प्रतिज्ञा करने को विवश होना.
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भीष्म द्वारा बलपूर्वक अंबा, अंबिका व अंबालिका का अपहरण किया जाना और वह भी उस समय जब उन का स्वयंवर संपन्न होने जा रहा था.
नियोग क्रिया द्वारा (अवैध शारीरिक संसर्ग द्वारा) धृतराष्ट्र, पांडु व विदुर का जन्म होना. इस के लिए व्यास को चुना गया, जोकि खुद अवैध संतति थे.
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कर्ण व पांडवों की अवैध उत्पत्ति, क्योंकि कर्ण का जन्म तो उस समय हुआ था जब कुंती अविवाहित थी और पांडवों का जन्म कुंती व माद्री से उस समय हुआ जब पांडु पौरुषविहीन हो चुके थे.
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5 भाइयों की एक ही स्त्री (द्रौपदी) से शादी होना. इस से यह सिद्ध होता है कि पांडव औरत को भोग्या मानते थे.
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भीम व अर्जुन का अपनी पत्नी द्रोपदी से बेवफाई करते हुए अनेक स्त्रियों से विवाह करना.
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द्रौपदी को अपमानित करने के उद्देश्य से दुर्योधन द्वारा युधिष्ठिर को द्यूत क्रीड़ा के षड्यंत्र में फांसा जाना व युधिष्ठिर द्वारा अपनी पत्नी को दांव पर लगाना.
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द्रौपदी को दुशासन द्वारा भरी सभा में वस्त्रविहीन करने की चेष्टा. ऐसे में भीष्म, द्रोणाचार्य व कृपाचार्य जैसे महारथियों का शांत रहना अनैतिकता का प्रतीक है.
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धृतराष्ट्र द्वारा पुत्रमोह में लिप्त हो कर उस की सभी उचितअनुचित गतिविधियों का समर्थन करना.
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युद्ध के नियमों व मर्यादाओं को बलाए ताक रख कर अभिमन्यु का वध.
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शिखंडी की आड़ में भीष्म का वध किया जाना. वैसे स्वयं भीष्म से उन की मृत्यु का रहस्य पूछा जाना भी अमर्यादित था.
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द्रोणाचार्य, जोकि पांडवों के भी गुरु थे, का वध करने के लिए युधिष्ठिर द्वारा असत्य बोल कर उन्हें शोकमग्न किया जाना और बाद में धृष्टद्युम्न द्वारा उन का सिर धड़ से अलग कर दिया जाना.
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कर्ण का वध उस समय किया जाना, जब वह कीचड़ में से रथ के पहियों को निकाल रहा था.
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दुर्योधन का वध मल्लयुद्ध के नियमों के विरुद्ध किया जाना.
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भीम द्वारा दुशासन का रक्तपान किया जाना.
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इस प्रकार के अमर्यादित प्रसंगों से महाभारत लबालब भरा है जो यह जाहिर करता है कि महाभारत एक अनैतिक कथा से अधिक कुछ नहीं है. न तो इस में कहीं धर्म है, न सत्य, न आदर्श, न मर्यादा, न नीति और न शील. इसलिए इसे महिमामंडित किया जाना और इस के वाचन से विशिष्ट लाभों की प्राप्ति पर विश्वास करना सिवा मूर्खता के और कुछ नहीं है.
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अतीत में बी.आर. चोपड़ा द्वारा दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर इसे बड़ी भव्यता व धार्मिकता के साथ प्रसारित किया गया था और लोगों ने भी इसे बड़ी श्रद्धा व मनोयोग के साथ देखा, पर इस की वास्तविकता क्या है यह इस लेख में भलीभांति विश्लेषित कर दिया गया है. अत: महाभारत अधर्म, असत्य, अन्याय, अनीति से भरपूर एक ऐसा ग्रंथ है जिस के नायक (पांडव) भी उतने ही चरित्र व मर्यादा में गिरे हुए हैं जितने कि खलनायक (कौरव). और कृष्ण ने भी पांडवों को छलकपट व फरेब अपनाने को ही प्रोत्साहित किया है.
William Thomas
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भारत की गुलामी में गीता की भूमिका--
वृहद महाभारत में मूल श्लोक 8800 थे जोकि संजय को मालूम नहीं थे,ऐसी अवस्था में छोटे से छोटे बीज से जैसे बड़ा वृक्ष होता है ,वैसे ही महाभारत थोडे से जोकों से एक लाख श्लोकों का महाग्रंथबन गया,इसमें मूल श्लोक कौन से और प्रक्षिप्त कौन से है यह ढूंढ़कर निकालना किसी के लिए भी संभव नहीं,( भारतीय संस्कृति और अहिंसा , पृष्ठ 150 )दरअसल महाभारत कोई इतिहास - ग्रंथ नहीं है ,यह तो पुराण - ग्रंथ है ,जिसमें काल्पनिक कपोल - कथाओं की उड़ानें ज्यादा हैं,उदाहरण स्वरूप एक गर्भ के पिंड के 100 टुकड़े करके उनमें से 100 बच्चों ( कौरवों ) की उत्पत्ति इतिहास हो सकता है ? कभी नहीं ? कान से बच्चा होना ,मंत्रों से बच्चा होना आदि गपोड़े इतिहास हो सकता है क्या ? जिस प्रकार रामायण काल्पनिक है ,उसी प्रकार महाभारत भी काल्पनिक है, रामायण के बारे में प्रश्न पूछा जाता है ( 1 ) पंचवटी में जब रावण सीताहरण के लिए आया था ,उस समय रावण ने सीता से क्या कहा ? सीता ने रावण से क्या कहा ? इन दोनों की बातों को अथवा गतिविधियों को इन दोनों के अतिरिक्त किसने देखा था ? किसने सुना था.?.क्या वाल्मीकि वहां थे ? क्या तुलसीदास वहां थे ? क्या और कोई कवि या लेखक वहां थे ? अर्थात कोई नहीं,इसलिए यह सब कवियों की कल्पना मात्र है,वहां पर तो राम -लक्ष्मण भी नहीं थे, इसी प्रकार महाभारत के बारे में भी सवाल पूछे जाते हैं सवाल है कि
प्र . महाभारत का युद्ध कहां हुआ था ?
उ . कुरुक्षेत्र में
प्र . कुरुक्षेत्र कहां है ?
उ . करनाल जिला वर्तमान हरियाणा प्रांत में
प्र . युद्ध किसने देखा है ?
उ . संजय ने ( जो ज्ञानी थे )
प्र . संजय कहां थे ?
उ . हस्तिनापुर या इंद्रप्रस्थ में
प्र . हस्तिनापुर कहां है ?
उ . वर्तमान दिल्ली के आसपास प्र . हस्तिनापुर और कुरुक्षेत्र में कितनी दूरी है ?
उ . लगभग 60 -70 मील के बीच प्र . सुनने वाले कौन थे ?
उ . अंधे जिनकी बाहर और भीतर की दोनों आंखें नहीं थीं
प्र . उस समय इस कथा के लेखक कहां थे ?
उ . कोई नहीं जानता
" इस तरह साफ है कि इनके सारे पुराण गप्पों से भरे हैं और वे लेखकों द्वारा पंद्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दी तक लिखे जाते रहे हैं,इनमें बुद्ध की निंदा , महावीर स्वामी की निंदा भरपूर मिलती है तथा ईसा मसीह , मोहम्मद साहब , सिकंदर , तैमूर लंग , बाबर हुमायूं , अकबर , केशव तानसेन , बीरबल , तुलसीदास , सूरदास , चरणदास , रैदास , मीरा , सलीम , शिवाजी , नादिरशाह , अंग्रेज (कलकत्ता राजधानी , वार्डीली तथा लार्ड वेकल तक का नाम है,जिनका भविष्य पुराण में विधिवत अवलोकन किया जा सकता है,जिसके आधार पर स्वतः सिद्ध हो जाता है कि महाभारत तथागत बुद्ध के बाद ही रचा गया इसमें ' एण्डूकानि ' अर्थात स्तुपों की पूजा का वर्णन है ,कहा जाता है कि व्यास के पुत्र शुकदेव ने राजा परीक्षित को महाभारत की कथा सुनाई थी , किंतु यह बड़ी जबर्दस्त पहेली है कि जब उस समय व्यास पुत्र शुकदेव थे ही नहीं ,तो राजा परीक्षित को यह कथा कैसे सुना दी ? यदि हम महाभारत पर ही विश्वास करें ,तो
" महाभारत की युद्ध की समाप्ति के पश्चात भीष्म पितामह युद्ध क्षेत्र में शर - शैया ( वाणी की शैया ) पर पड़े थे ,जो कि शांति पर्व में दिया गया है,युधिष्ठिर ने भीष्म से वार्तालाप है ,मध्य में प्रश्न किया है-
कथं व्यासस्य धर्मात्मा शुको जज्ञे महातपाः ।
सिद्धिं च परमां प्राप्तस्तन्मे ब्रूहि पितामह । । 1 । ।
कस्यां चोत्पादयामास शुकं व्यासस्तपोधनः ।
न ह्यस्य जननी विद्म जन्म चाग्रयंमहात्मनः । । 2 । । महात्म्यमात्म योगं च विज्ञानं च शुकस्य ह ।
यथावदानुपूर्येण तन्मे ब्रूहि पितामह । । 5 । ।
( महाभारत शांति पर्व , अ . 323 )
अर्थ : युधिष्ठिर ने कहा , पितामह ! व्यासजी के यहां महातपस्वी और धर्मात्मा शुकदेवजी का जन्म कैसे हुआ तथा उन्होंने परम सिद्धि कैसे प्राप्त की ,यह मुझे बताइए ? तपस्या के धनी व्यासजी ने किस स्त्री के गर्भ से शुकदवेजी को उत्पन्न किया ? हमें उन महात्मा शकदेवजी का माता का नाम नहीं मालूम है और न हम उनके जन्म का वृतांत ही जानते हैं पितामह ! आप मुझे उनके शुकदेव का महात्म्य , आत्मयोग और विज्ञान यथार्थ रीति से क्रमशः बतलाइए - इस प्रश्न से यह प्रकट है कि शुकदेव युधिष्ठिर के समकालीन भी नहीं थे ,अन्यथा वे उनके विषय में सब कुछ जानते होते, शुकदेवजी कदाचित पांडवों के जन्म से बहुत पूर्व उत्पन्न होकर मृत्यु को प्राप्त हो चुके होंगे तथा उनके जीवन की घटनाएं पुरानी पड़ चुका होंगी,इसीलिए यधिष्ठिर को उनके विषय में जानने की आवश्यकता हुई होगी,
युधिष्ठिर के प्रश्न के उत्तर में भीष्म पितामह ने शुकदेव के जन्म का हाल बताते हुए कहा कि -मार्कण्डेयो हि भगवानेतदा ख्यातवान मम् ।
स देव चरितानीह कथयामास मे सदा । ।
( महाभारत शांति पर्व , अ . 323 / 24 )
अर्थ : भीष्म ने कहा कि मुझे मार्कण्डेय ऋषि ने यह वृतांत सुनाया था,वे मुझे सदा ही देवताओं का चरित्र सुनाया करते थे,मार्कण्डेय के कथन के आधार पर भीष्म ने कहा कि व्यासजी ने पुत्र प्राप्ति के लिए शिवजी की घोर आराधना की,शिवजी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया-
सलब्ध्वा परमं देवाद् वरं सत्यवती सुतः । ।
अरणी सहितेगृह्य ममन्थाग्नि चिकीर्षया । । 1 । । ।
अथ रूपं परं राजन् विभ्रतीं स्वेन तेजसा ।
घ्रताची नामाप्सरसमपश्यद् भगवानृषिः । । 2 । । भवित्वाच्चैव भावस्य घ्रताच्या वपुषाहतः ।
यत्नानि यच्छतस्तस्य मुनेरग्नि चिकीर्षया । । 7 । ।
अरण्यामेव सहसा तस्य शुक्रमवापतत् । सोऽविशंकेन मनसा तथैव द्विज सत्तमः । अरणी मन्मथ ब्रह्मर्षिस्तस्यां जज्ञे शुको नृप । । 8 । ।
शुक्रे निर्मश्य मानेस शुको जज्ञे महातपाः ।
परमर्षिमहा योगी अरणी गर्म संभव । । 9 । ।
( महाभारत शांति पर्व , अध्याय 324 )
अर्थ : राजन ! महादेवजी से उत्तम वर पाकर एक दिन सत्यवती नंदन व्यासजी अग्नि प्रकट करने की इच्छा से दो (अरंडी) अरणी काष्ट लेकर उनका मंथन करने लगे,नरेश्वर ! इसी समय व्यासजी ने वहां आई हुई घृताची नामक अप्सरा को देखा,जो अपने तेज से परम सुंदर रूप धारण किए हुए थी, होनहार होकर ही रहती है ,इसीलिए व्यासजी घृताची के रूप में आकृष्ट हो गए, अग्नि प्रकट करने की इच्छा से अपने काम के वेग को यत्नपूर्वक रोकते हए व्यासजी का वीर्य सहसा उस अरणी काष्ठ पर ही गिर पड़ा ,नरेश्वर ! उस समय भी द्विज श्रेष्ठ महर्षि व्यासजी निःशंक मन से दोनों अरणियों के मंथन में लगे रहे उसी समय अरणी से शुकदेवजी प्रकट हो गए ,अरणी के साथ - साथ शुक्र का भी मंथन हो जाने से महातपस्वी तथा महायोगी शुकदेवजी का जन्म हो गया,वे अरणी (अरंडी )के गर्भ से प्रकट हुए थे-- क्रमशः...
भारत की गुलामी में गीता की भूमिका-17-18-19-20-21.
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भारत की गुलामी में गीता की भूमिका-
महाभारत में वर्णित कथाएं ऐतिहासिक नहीं हैं,इन कथाओं में वेद -वेदांगों की कथाओं का संग्रह है,श्री एच.लाल ने इस संदर्भ में कुछ स्वाभाविक प्रश्न उठाए हैं ,वे कहते हैं -
1 . शांतनु की संतति कौरव - पांडवों का आधार एक मात्र है उसके अतिरिक्त उनके नाम किसी ब्राह्मण ग्रंथ ,संहिता ,इतिहास - पुराण में नहीं मिलते हैं ,जबकि महाभारत में गौड़ पात्रों के नाम निम्नलिखित ब्राह्मण ग्रंथों में हैं-
( क ) धृतराष्ट्र का नाम कठ संहिता 10 / 6 में आया है .
( ख ) वाल्दिक व गांधार के नाम शतपथ ब्राह्मण 12 / 9 / 3 / 3 में आए हैं.
( ग ) शकुनी का नाम ऐतरेय ब्राह्मण 6 / 24 में आया है.
( घ ) शिखंडी का नाम शतपथ ब्राह्मण 13 / 5 / 4 / 19 में आया है.
आश्चर्य की बात तो यह है कि परीक्षित और जनमेजय के नाम ब्राह्मण ग्रंथों में हैं, ऐतरेय ब्राह्मण जनमेजय को महान सम्राट व प्रबल यज्ञ - कर्ता बताता है , जिससे तक्षशिला और मथुरा के नाग राजाओं को हराकर उनके राज्यों पर अधिकार कर लिया था. 2 . पांडवों की माता कुंती ,राजा शूरसेन की पुत्री ,वासुदेव की बहन और श्रीकृष्ण की बुआ बताई जाती है ,परंतु महाभारत के ही सभापर्व 32 / 617 में मालव के निकट चंबल नदी के तट पर कुंतिभोज जनपद का उल्लेख है , जिसका राजा कुंतिभोज था महाभारत के ही द्रोण पर्व में उसे अर्जुन का मामा बताया गया है अतः कृष्ण और पांडवों की रिश्तेदारी कपोल -कल्पित है
3 . कुरु वंशावली में पांडवों से 18 पीढ़ी पहले कुरु के बांधव बिंद और अनुबिंद हुए ,जिनकी बहन मित्रबिंदा का हरण श्रीकृष्ण द्वारा बताया गया है,अतः श्रीकृष्ण पांडवों से 18 पीढ़ी पहले हुए थे , तो वे उनके ( पांडवों ) के समकालीन कैसे हो सकते है ? इसी प्रकार परीक्षित कुरु के पुत्र थे ,जो पांडवों से 16 पीढ़ी ऊपर हुए थे,अतः पांडवों द्वारा उन्हें राजा बनाना भी कपोल - कल्पित है.
4 . तथाकथित महाभारत काल में संसार में आवागमन के साधन विकसित नहीं थे ,न खाद्य सामग्री का उत्पादन विकसित हो पाया था ,अतः चीन ,मीडिया ,गांधार आदि को राजाओं द्वारा सेना के साथ महाभारत युद्ध में भाग लेना ,टेलीविजन पर विभिन्न राजाओं के आकर्षक वस्त्राभूषण ,महल ,मुकुट दर्शन भी कपोल -कल्पित हैं,कुरुक्षेत्र के छोटे से मैदान में चार लाख हाथी , चार लाख रथ ,बारह लाख घोड़े , पचपन लाख पैदल सैनिक जो 18 अक्षौहिणी सेना के भाग बताए गए हैं ,वे उस मैदान में भी नहीं समा सकते ,लड़ने की बात ही अलग है, महाभारत काल में तलवारों ,बंदूकों,गोला -बारूद का भी विकास नहीं हुआ था, अतः 18 दिन में इतनी बड़ी सेना तीर - कमानों से नष्ट होना भी असंभव बात थी,महाभारत में दर्शित निम्न घटनाएं भी कपोल -कल्पित हैं-( अ ) आदिपर्व अध्याय 129 में द्रोण का जन्म दोना से हुआ है. ( ब ) वनपर्व अध्याय 110 में ऋषि शृंग का जन्म मृगी से बताया गया है.
( स ) व्यास की मां सत्वती का जन्म मछली से बताया गया है. ( द ) राजा नहुष की शक्ल सर्प की बताना ,पर उसका युधिष्ठिर के साथ संवाद दिखाना,पूर्णतया काल्पनिक है.
7 . महाभारत के आदि पर्व में कृष्ण द्वैपायन व्यास द्वारा संपादित कृति में श्लोकों की संख्या 8800 बताई गई है ,तब उसका नाम ' जय ' था, बाद में वैशम्पाइन ने उसमें आख्यान मिथक जोड़कर उसके श्लोकों की संख्या 24 ,000 कर दी और ' जय ' का नाम बदलकर ' भारत संहिता ' कर दिया,कालांतर में उग्रश्रवासौति ने उसमें और मिथक जोड़ दिए और श्लोकों की संख्या 96 ,244 कर दी तथा उसका नाम ' महाभारत ' कर दिया.
8 . महाभारत में इतिहास की बातें कम और प्रमाद -प्रलाप के आख्यायन अधिक है, इसमें विभिन्न वर्गों के श्रोताओं को आकर्षित करने के लिए विभिन्न संपादकों ने तरह - तरह के मिथक जोड़ दिए हैं,कई घटनाएं जिन का युद्ध से कोई संबंध नहीं है ,कथा के भीतर कथाए बनाकर ,उन्हें जोड़कर एक आधारभूत चौखट खड़ी करके उसके विस्तार को अस्वाभाविक बना दिया गया है.
उदाहरण के लिए महाभारत के पूर्व संग्रह -अध्याय में पूरे ग्रंथ के अध्यायों ,विषयों और श्लोकों की संख्या दी है ,लेकिन उसमें व्यास की अनुक्रमिका के श्लोकों की संख्या 150 दी है ,लेकिन अब उसमें 272 श्लोक है, इसी प्रकार उसमें अनगीता और ब्राह्मण गीता के वर्तमान 36 अध्यायों का उल्लेख नहीं है.
9 - महाभारत के नाम से मानी जाने वाली यह कृति किसी एक लेखक की नहीं है, इतिहास पुराण के नाम से कथा / कहानियां प्राचीन काल से प्रचलित रहीं हैं,कालांतर में उनमें वीर गाथाएं जोड़कर उनका नाम ' गाथा नाराशंसी ' कह दिया,यूनानी महाकवि होमर के पूर्वजों ने दक्षिण यूरोप के इजियन द्वीप पर आक्रमण कर ट्राय पर अपना राज्य स्थापित कर लिया था और वहां के मूलनिवासियों की इजियन सभ्यता को नष्ट कर उन्हें गुलाम बना लिया था, इस वृतांत का कलात्मक विवरण अपने दो महाकाव्यों - इलियड तथा ओडिसी में दिया था,अतः भारत के उत्तर- पश्चिम भाग सिंध और पंजाब पर ईरानियों एवं यूनानियों का राज्य ईसा पूर्व छठी शताब्दी से ईसा पूर्व 305 तक रहा कालांतर में इन्हीं यवनों ,शकों व कुषाणों के वंशजों ने ' इलियड ' व ' ओडिसी ' देश काल के
अनुसार रूपांतर कर ' रामायण ' और ' महाभारत ' के रूप में रचना की,वास्तव में महाभारत के पांडव पात्र ईरानी -शक आक्रमणकारियों द्वारा भारत पर आक्रमण और शासन का प्रतिनिधित्व करते हैं जबकि कौरव पात्र भारत के मूलनिवासियों की पराजय और गुलामी का प्रतिनिधित्व करते हैं इस तथ्य को छिपाने के लिए कौरव के साथ विदेशी राजा और उनकी सेनाएं दिखाई गई है , जबकि इरानी पांडवों के साथ भारत के राजा दिखाकर तस्करों वाला चाल चली है.
" महाभारत में कुरु वंशावली ( 1 ) दृष्यंत - भरत - वितथ - मन्यु - हस्ती - विकंठा - अजमीढ़ - ऋक्ष - संवरण - कुरु ( प्रथम पीढ़ी ) - जन्हु - बारहवीं पीढ़ी में प्रतीक - शांतनु ( 15 वीं पीढ़ी ) - विचित्रवीर्य ( 16 वीं पीढी ) - पाण्डु ( 17वीं पीढ़ी ) - पांडव ( 18 वीं पीढ़ी ).
( 2 ) घृतराष्ट्र ( 17वीं पीढ़ी ) - दुर्योधन आदि कौरव ( 18वीं पीढ़ी ).
( 3 ) विंद और अनुविंद वंशावली विकुंठन - अजमीढ़ - वृहदिषु - सेनजित - विंद तथा अनुविंद ( कुरु के समकालीन अर्थात - कौरव पांडवों से 18 पीढ़ी पहले, कौरव पांडवों के समकालीन कृष्ण ने इसी विंद -अनुविंद की बहन मित्रविंदा का अपहरण 18 पीढ़ी पहले किया था ? )....क्रमशः....
भारत की गुलामी में गीता की भूमिका-पृष्ठ -11-12-13.
-------मिशन अम्बेडकर.
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भारत की गुलामी में गीता की भूमिका--
' महाभारत गप्पों का भंडार है क्या महाभारत में ये गप्पें भी इतिहास में शामिल है-
गप्प नंबर एक : यह गप्प महाभारत के आदि पर्व अध्याय 194 से 197 के आधार पर दी जा रही है -युद्ध के दौरान अर्जुन के बेटे अभिमन्यु का देहांत हो गया ,तो महाराज युधिष्ठिर बहुत दु:खी हुए,बहुत रोए इतने में व्यास जी उनके पास पहुंचे और नारद से कुछ वृत्तांत सुना कर तसल्ली देने लगे और एक वृत्तांत इस प्रकार सुनाया -महाराज ! महाराजा शशबिंदु की एक लाख रानियां थीं और हर एक रानी की पेट से एक हजार पुत्र जन्में ( कुल मिलाकर इस महाराजा के 10 करोड़ पुत्र हुए ) तब महाराज ने एक यज्ञ किया और उसमें अपना हर एक बेटा एक -एक ब्राह्मण को दान में दे दिया,हर एक बेटा सानें का एक कवच ( जिरह बक्तर ) पहना हुआ था,हर एक बेटा स्वयं बड़े -बड़े यज्ञ कर चुका था,हर एक बेटे के साथ उनके बाप ने एक -एक सौ रथ और एक -एक सौ हाथी भी ब्राह्मणों को दान में दिए ( कुल मिलाकर दस अरब रथ और दस अरब हाथी हुए ) इस दक्षिणा के अलावा हर बेटे के साथ सौ -सौ युवती सुंदर लड़कियां भी दान में दीं ,जो बिलकुल सुंदर और जवान भी थीं ( मतलब दस अरब लड़कियां हो गई ) अब जरा विचारिए कि आजकल भी सारे विश्व की कुल आबादी लगभग अब लगभग ७ अरब ) है ,जबकि यह बहुत बढ़ी -चढ़ी आबादी है अगर दान में दी गई लड़कियों की संख्या 10 अरब थी ,तो बाकी इस देश की आबादी कितनी रही होगी अंदाजा लगाना मुश्किल है,उसपर भी सब लड़कियां तो दान में नहीं दी गई थीं.
खैर चलिए महाभारत की कथा अब आगे पढ़िए,महाराजा शशबिंदु ने हर कन्या के साथ एक -एक सौ रथ और एक एक सौ हाथी दान में दिए और एक -एक सौ घोड़े ,जो आभूषणों से लदे हुए थे,हर घोड़े के साथ हजार -हजार
गौएं ( गाएं ) और पचास -पचास भेड़ें भी दान दी गईं ,अब आप लगाइए हिसाब कितनी तादात घोड़ों और भेड़ों की बनती है.
गप्प नबर दो : इसी अध्याय में लिखा है कि एक राजा हर रोज प्रातः जाग कर एक लाख साठ हजार गौएं ,दस हजार घोड़े और सोने की एक लाख मोहरें दान दिया करता था,इस पुण्य का काम वह लगातार 100 वर्षों तक करता रहा.
गप्प नंबर तीन : महाभारत के युद्ध में 13 लाख अक्षौहिणी सेना ,रथ ,हाथी शामिल थे,यह भी सफेद झूठ है,क्योंकि कुरुक्षेत्र के साथ अगर दो सौ मील इलाका और भी शामिल किया जाए ,तो भी इतनी फौज उसमें समा नहीं सकती.
गप्प नंबर चार : महाभारत के आदिपर्व के अध्याय 115 में वर्णित है -व्यास ने गांधारी को वरदान दिया कि तेरे सौ पुत्र होंगे चुनांचे गांधारी गर्भवती हुई ,परंतु दो वर्ष तक कोई बच्चा नहीं हुआ इतने में उसे खबर मिली कि कुंती को पुत्र जन्मा है,यह सुनकर गांधारी ने दोहत्थड़ मार-मार कर अपना पेट पीट लिया,ऐसा करने पर उसके पेट में से मांस का एक गोला निकल पड़ा,यह जानकर व्यास जी महाराज दौड़े -दौड़े उनके पास आए और एक सौ घी के घड़े सुरक्षित स्थान पर रखवा दिए और गांधारी के पेट से निकले गोले को ठंडे पानी से धुलवाना शुरू कर दिया,धुलते - धुलते उस गोले के ऊंगली की पोर के बराबर सौ टुकड़े हो गए,उन टुकड़ों को व्यास जी वहां रखे घी के सौ घड़ों में रखवाकर वापस चले गए.
बाद में उन घड़ों में से सबसे पहले दुर्योधन निकला,तत्पश्चात एक के बाद एक ,दूसरा ,तीसरा और यहां तक कि सौ पुत्र निकल पड़े,फिर एक महीने के पश्चात एक कन्या निकली, अब जरा सोचिए ! कभी घी के घड़ों में मांस डालने से बच्चे पैदा हो सकते हैं ?
गप्प नंबर पांच : महाभारत के आदि पर्व के अध्याय 225 - 230 कुंभ - कोरव्य अध्याय तथा 249 - 251 में खांडव वन जलाने की कथा आती है, यह कथा हिंदू कथाकारों में बहुत प्रसिद्ध है ,जो कि इस प्रकार है ---
एक बार " अग्नि " ब्राह्मण के वेष में आकर कृष्णार्जुन से अपनी भूख शांत करने के लिए कुछ मांगने आई,उन्होंने पूछा , “ अग्नि देवता ! आपको कौन सा अन्न चाहिए ? " अग्नि बोली , “ मुझे अन्न नहीं चाहिए ,बल्कि यह खांडव वन खाने के लिए चाहिए चूंकि इंद्र उस बन की रक्षा करता है,इसलिए उसे में खा नहीं सकती क्योंकि जैसे ही मैं खांडव वन को खाना शुरू करती हूं , इंद्र ( देवता ) उस वक्त पानी बरसा देता है यह कथा सुनकर जनमेजय पूँछते हैं,वैशम्पाइन जी महाराज ! यह तो बतलाइए , आखिर अग्नि खांडव वन को क्यों जलाना चाहती है ? वैशम्पाइन बोले महाराज ! सुनो -श्वेतकि नाम के एक राजा को यज्ञ करने का बहुत शौक था,यज्ञ कराते कराते धुंओं से परेशान होकर ऋत्विज ( पुरोहित ) यज्ञ छोड़ कर भाग गए,उनकी जगह दूसरे पुरोहितों को लाकर राजा ने यज्ञ समाप्त किया,इसके बाद यज्ञ के शौकीन श्वेतकि राजा ने एक सौ वर्षों तक लगातार चलते रहने वाला यज्ञ आरंभ कर दिया,राजा ब्राह्मणों के पैरों पर पड़ा ,और उन्हें दान दिया . परंत ( शायद धुएं से आंखें अंधी होने के कारण ) श्वेतकि के सौ साल तक चलने वाले यज्ञ को कराने के लिए कोई भी ब्राह्मण परोहित तैयार नहीं हुआ,पुरोहितों ने राजा को साफ -साफ कह दिया कि हम पहले ही यज्ञ कराकर थक गए ( धुएं के कारण अंधे हो गए ) हैं,तुम रुद्र को बुलाकर उससे अपना यज्ञ पूरा करा लो.
तब उस राजा ने कैलाश पर्वत पर जाकर घोर तपस्या ( तप ) की,ऐसा करने पर कैलाशपति शंकर महादेव ने प्रसन्न होकर । राजा को कहा कि कोई वर मांग लो, श्वेतकि ने कहा ,हे शिव शंकर ! अगर आप मुझ पर इतने प्रसन्न हैं ,तो मैं वर मांगता हूँ कि तुम ही मेरे दीर्घ यज्ञ के पुरोहित बनो,आप ही पुरोहित बन कर इसे संपूर्ण करो,लेकिन शंकर के लिए यज्ञ का पुरोहित बनना असंभव था ( शायद उसे अपने तीनों नेंत्रों के अंधा होने का डर लगा होगा ) शिवजी बोले कि मैं तुम्हारे यज्ञ का पुरोहित नहीं बन सकता,तुम लगातार 12 वर्ष तक घी की धारा हवन कुंड में डालकर अग्नि की पूजा करो ' श्वेतकि ने रुद्र ( शिव ) की आज्ञा मानकर ऐसा ही करना आरंभ कर दिया,ऐसा करने पर शिव बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने कहा ,मेरा ही अवतार दुर्वासा ऋषि अब तम्हारे इस यज्ञ का ऋत्विज ( पुरोहित ) बनेगा तदनुसार श्वेतकि ने यज्ञ की तैयारी की और वहां महादेव ने दुर्वासा को पुरोहित बना कर भेज दिया .
यह यज्ञ बहुत बड़ा हआ,12 वर्ष तक घी की आहुतियां दी गईं,
आहुतियां खा -खाकर अग्नि देवता को विकार ( बदहजमी का रोग ) हो गया,अग्नि देवता निस्तेज हो गया और उसे इस तरह घी की आहुतियां खाने से बहुत ग्लानि या नफरत हो गई
अग्नि देवता ने ब्रह्मदेव के पास जाकर अपने रोग का इलाज पूछा ब्रह्मदेव ने कहा ,12 वर्ष तक लगातार घी की आहुतियां खाने से तुम्हें यह रोग हुआ है,तुम घबराओ नहीं,खांडव वन के सब प्राणियों की चर्बी खाने से तुम्हारा यह रोग दूर होगा,अग्नि देवता ने खांडव वन जलाना शुरू कर दिया , लेकिन उस वन के प्राणी उस आग को बुझा देते थे,ऐसा उसने सात बार किया ,किंतु वह अपने इरादे में सफल नहीं हुआ,तब अग्निदेव क्रुद्ध होकर ब्रह्मदेव ( वैद्य या हकीम ) के पास फिर गया,ब्रह्मदेव ने उसे कृष्णार्जुन के पास भेज दिया,उसके बाद कृष्णार्जुन ने बड़ी भारी तैयारी करके खांडव वन को जलाकर भस्म करना आरंभ कर दिया,उस समय वहां के प्राणियों की जो दुर्दशा हुई और जैसा कि उन्होंने चीख - पुकार की ,उसका वर्णन अध्याय 223 में है,ऐसे घोर संकट के समय खांडव वन के सब प्राणी अपनी सहायता या शरण के लिए इंद्र के पास गए,इंद्र ने एकदम पानी बरसाया,वर्षा रोकने के लिए अर्जुन ने वाणों से आकाश ढांप दिया, उस समय तक्षक नाग कुरुक्षेत्र में था,उसका पुत्र अश्वसेन आग में फंस गया उसे बचाने के लिए उसकी मां उसे निगल गई और भागने लगी,अर्जुन ने वाण चलाकर उसका सिर काट डाला उसका पुत्र अश्वसेन उसके पेट से बाहर निकला,उसकी रक्षा करने के लिए इंद्र ने वायू प्रवाह छोड़ कर अर्जुन को बेहोश कर दिया तब अश्वसेन बच गया.
तस्मिन वने दह्यमाने षडग्निर्न ददाह च । ।
अश्वसेन मयं चैव चतुरः शाङ्गकांस्था । ।
अर्थात वन जलाए जाने के समय अश्वसेन मय और चार शारंग पक्षी के बच्चे -केवल ये छ : प्राणी अग्नि ने नहीं जलाए.
महाभारत की इस कथा को पढ़कर तीन बातें सामने आती हैं पहली यह कि इस कथा का कोई सिर -पैर ही नहीं दूसरी बेतुकी बात यह है कि आज तक कोई वैद्य ,हकीम या डॉक्टर घी खा - खाकर हुई बदहजमी का इलाज जानवरों या प्राणियों की चर्बी खाने से नहीं करता,जैसा कि ब्रह्मदेव रूपी वैद्यराज ने अग्निदेव को बताया,तीसरी बात यह है कि महाभारतादि,पुराणों में इंद्र को अर्जुन का पिता बताया गया है जबकि इस कथा में बेटा अर्जुन और बाप इंद्र परस्पर विरोध कर रहे हैं ,इंद्र खांडव वन की आग बुझाने के लिए वर्षा कर रहा है और बेटा अर्जुन तीर से आकाश को ढांप कर खांडव वन को जलाने पर तुला हुआ है,अतः ऐसी असंबद्ध कथाओं या गपोड़ - चौथों से भरे ग्रंथ महाभारत को हरगिज़ इतिहास ग्रंथ नहीं माना जा सकता " महाभारत में प्रारंभ से लेकर अंत तक लगभग एक लाख श्लोकों में न कोई क्रमबद्धता है ,न कोई वैज्ञानिकता है ,न कोई नैतिकता है ,न कोई आदर्श रूप है और न है कोई इतिहास का रूप " और न ही कोई काल,है तो बस बिना सिर -पैर के कोरी गप्प और गप्प...क्रमशः..
भारत की गुलामी में गीता की भूमिका--13-14-15-16.
--------मिशन अम्बेडकर.
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भारत की गुलामी में गीता की भूमिका--
वृहद महाभारत में मूल श्लोक 8800 थे जोकि संजय को मालूम नहीं थे,ऐसी अवस्था में छोटे से छोटे बीज से जैसे बड़ा वृक्ष होता है ,वैसे ही महाभारत थोडे से जोकों से एक लाख श्लोकों का महाग्रंथबन गया,इसमें मूल श्लोक कौन से और प्रक्षिप्त कौन से है यह ढूंढ़कर निकालना किसी के लिए भी संभव नहीं,( भारतीय संस्कृति और अहिंसा , पृष्ठ 150 )दरअसल महाभारत कोई इतिहास - ग्रंथ नहीं है ,यह तो पुराण - ग्रंथ है ,जिसमें काल्पनिक कपोल - कथाओं की उड़ानें ज्यादा हैं,उदाहरण स्वरूप एक गर्भ के पिंड के 100 टुकड़े करके उनमें से 100 बच्चों ( कौरवों ) की उत्पत्ति इतिहास हो सकता है ? कभी नहीं ? कान से बच्चा होना ,मंत्रों से बच्चा होना आदि गपोड़े इतिहास हो सकता है क्या ? जिस प्रकार रामायण काल्पनिक है ,उसी प्रकार महाभारत भी काल्पनिक है, रामायण के बारे में प्रश्न पूछा जाता है ( 1 ) पंचवटी में जब रावण सीताहरण के लिए आया था ,उस समय रावण ने सीता से क्या कहा ? सीता ने रावण से क्या कहा ? इन दोनों की बातों को अथवा गतिविधियों को इन दोनों के अतिरिक्त किसने देखा था ? किसने सुना था.?.क्या वाल्मीकि वहां थे ? क्या तुलसीदास वहां थे ? क्या और कोई कवि या लेखक वहां थे ? अर्थात कोई नहीं,इसलिए यह सब कवियों की कल्पना मात्र है,वहां पर तो राम -लक्ष्मण भी नहीं थे, इसी प्रकार महाभारत के बारे में भी सवाल पूछे जाते हैं सवाल है कि
प्र . महाभारत का युद्ध कहां हुआ था ?
उ . कुरुक्षेत्र में
प्र . कुरुक्षेत्र कहां है ?
उ . करनाल जिला वर्तमान हरियाणा प्रांत में
प्र . युद्ध किसने देखा है ?
उ . संजय ने ( जो ज्ञानी थे )
प्र . संजय कहां थे ?
उ . हस्तिनापुर या इंद्रप्रस्थ में
प्र . हस्तिनापुर कहां है ?
उ . वर्तमान दिल्ली के आसपास प्र . हस्तिनापुर और कुरुक्षेत्र में कितनी दूरी है ?
उ . लगभग 60 -70 मील के बीच प्र . सुनने वाले कौन थे ?
उ . अंधे जिनकी बाहर और भीतर की दोनों आंखें नहीं थीं
प्र . उस समय इस कथा के लेखक कहां थे ?
उ . कोई नहीं जानता
" इस तरह साफ है कि इनके सारे पुराण गप्पों से भरे हैं और वे लेखकों द्वारा पंद्रहवीं तथा सोलहवीं शताब्दी तक लिखे जाते रहे हैं,इनमें बुद्ध की निंदा , महावीर स्वामी की निंदा भरपूर मिलती है तथा ईसा मसीह , मोहम्मद साहब , सिकंदर , तैमूर लंग , बाबर हुमायूं , अकबर , केशव तानसेन , बीरबल , तुलसीदास , सूरदास , चरणदास , रैदास , मीरा , सलीम , शिवाजी , नादिरशाह , अंग्रेज (कलकत्ता राजधानी , वार्डीली तथा लार्ड वेकल तक का नाम है,जिनका भविष्य पुराण में विधिवत अवलोकन किया जा सकता है,जिसके आधार पर स्वतः सिद्ध हो जाता है कि महाभारत तथागत बुद्ध के बाद ही रचा गया इसमें ' एण्डूकानि ' अर्थात स्तुपों की पूजा का वर्णन है ,कहा जाता है कि व्यास के पुत्र शुकदेव ने राजा परीक्षित को महाभारत की कथा सुनाई थी , किंतु यह बड़ी जबर्दस्त पहेली है कि जब उस समय व्यास पुत्र शुकदेव थे ही नहीं ,तो राजा परीक्षित को यह कथा कैसे सुना दी ? यदि हम महाभारत पर ही विश्वास करें ,तो
" महाभारत की युद्ध की समाप्ति के पश्चात भीष्म पितामह युद्ध क्षेत्र में शर - शैया ( वाणी की शैया ) पर पड़े थे ,जो कि शांति पर्व में दिया गया है,युधिष्ठिर ने भीष्म से वार्तालाप है ,मध्य में प्रश्न किया है-
कथं व्यासस्य धर्मात्मा शुको जज्ञे महातपाः ।
सिद्धिं च परमां प्राप्तस्तन्मे ब्रूहि पितामह । । 1 । ।
कस्यां चोत्पादयामास शुकं व्यासस्तपोधनः ।
न ह्यस्य जननी विद्म जन्म चाग्रयंमहात्मनः । । 2 । । महात्म्यमात्म योगं च विज्ञानं च शुकस्य ह ।
यथावदानुपूर्येण तन्मे ब्रूहि पितामह । । 5 । ।
( महाभारत शांति पर्व , अ . 323 )
अर्थ : युधिष्ठिर ने कहा , पितामह ! व्यासजी के यहां महातपस्वी और धर्मात्मा शुकदेवजी का जन्म कैसे हुआ तथा उन्होंने परम सिद्धि कैसे प्राप्त की ,यह मुझे बताइए ? तपस्या के धनी व्यासजी ने किस स्त्री के गर्भ से शुकदवेजी को उत्पन्न किया ? हमें उन महात्मा शकदेवजी का माता का नाम नहीं मालूम है और न हम उनके जन्म का वृतांत ही जानते हैं पितामह ! आप मुझे उनके शुकदेव का महात्म्य , आत्मयोग और विज्ञान यथार्थ रीति से क्रमशः बतलाइए - इस प्रश्न से यह प्रकट है कि शुकदेव युधिष्ठिर के समकालीन भी नहीं थे ,अन्यथा वे उनके विषय में सब कुछ जानते होते, शुकदेवजी कदाचित पांडवों के जन्म से बहुत पूर्व उत्पन्न होकर मृत्यु को प्राप्त हो चुके होंगे तथा उनके जीवन की घटनाएं पुरानी पड़ चुका होंगी,इसीलिए यधिष्ठिर को उनके विषय में जानने की आवश्यकता हुई होगी,
युधिष्ठिर के प्रश्न के उत्तर में भीष्म पितामह ने शुकदेव के जन्म का हाल बताते हुए कहा कि -मार्कण्डेयो हि भगवानेतदा ख्यातवान मम् ।
स देव चरितानीह कथयामास मे सदा । ।
( महाभारत शांति पर्व , अ . 323 / 24 )
अर्थ : भीष्म ने कहा कि मुझे मार्कण्डेय ऋषि ने यह वृतांत सुनाया था,वे मुझे सदा ही देवताओं का चरित्र सुनाया करते थे,मार्कण्डेय के कथन के आधार पर भीष्म ने कहा कि व्यासजी ने पुत्र प्राप्ति के लिए शिवजी की घोर आराधना की,शिवजी ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दे दिया-
सलब्ध्वा परमं देवाद् वरं सत्यवती सुतः । ।
अरणी सहितेगृह्य ममन्थाग्नि चिकीर्षया । । 1 । । ।
अथ रूपं परं राजन् विभ्रतीं स्वेन तेजसा ।
घ्रताची नामाप्सरसमपश्यद् भगवानृषिः । । 2 । । भवित्वाच्चैव भावस्य घ्रताच्या वपुषाहतः ।
यत्नानि यच्छतस्तस्य मुनेरग्नि चिकीर्षया । । 7 । ।
अरण्यामेव सहसा तस्य शुक्रमवापतत् । सोऽविशंकेन मनसा तथैव द्विज सत्तमः । अरणी मन्मथ ब्रह्मर्षिस्तस्यां जज्ञे शुको नृप । । 8 । ।
शुक्रे निर्मश्य मानेस शुको जज्ञे महातपाः ।
परमर्षिमहा योगी अरणी गर्म संभव । । 9 । ।
( महाभारत शांति पर्व , अध्याय 324 )
अर्थ : राजन ! महादेवजी से उत्तम वर पाकर एक दिन सत्यवती नंदन व्यासजी अग्नि प्रकट करने की इच्छा से दो (अरंडी) अरणी काष्ट लेकर उनका मंथन करने लगे,नरेश्वर ! इसी समय व्यासजी ने वहां आई हुई घृताची नामक अप्सरा को देखा,जो अपने तेज से परम सुंदर रूप धारण किए हुए थी, होनहार होकर ही रहती है ,इसीलिए व्यासजी घृताची के रूप में आकृष्ट हो गए, अग्नि प्रकट करने की इच्छा से अपने काम के वेग को यत्नपूर्वक रोकते हए व्यासजी का वीर्य सहसा उस अरणी काष्ठ पर ही गिर पड़ा ,नरेश्वर ! उस समय भी द्विज श्रेष्ठ महर्षि व्यासजी निःशंक मन से दोनों अरणियों के मंथन में लगे रहे उसी समय अरणी से शुकदेवजी प्रकट हो गए ,अरणी के साथ - साथ शुक्र का भी मंथन हो जाने से महातपस्वी तथा महायोगी शुकदेवजी का जन्म हो गया,वे अरणी (अरंडी )के गर्भ से प्रकट हुए थे-- क्रमशः...
भारत की गुलामी में गीता की भूमिका-17-18-19-20-21.
-------मिशन अम्बेडकर.
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महाभारत इस महान ग्रन्थ में ऐसी-ऐसी गप्पे हांकी गई है कि कोई भी समझदार व्यक्ति इन्हें सत्य नही मान सकता
उदाहरण के लिए देखिये:---
(1) घृताची नामक अप्सरा को नग्नावस्था में देखकर भारद्वाज ऋषि का वीर्यपात हो गया जिसे उन्होंने दोने में रख दिया उससे द्रोणाचार्य पैदा हुवे।
(महाभारत,,आदिपर्व,अ०129)
(2) ऋषि विभाण्डक एक बार नदी में नहा रहे थे तभी उर्वशी को देखकर उनका वीर्य स्खलित हो गया नदी के उस वीर्य मिश्रित पानी को एक मृगी पी गई उसने एक मानव शिशु को जन्म दिया, यहीं श्रृंग ऋषि कहलाये
(महाभारत,, वनपर्व,अ० 110)
(3) राजा उपरिचर का एक बार वीर्यपात हो गया। उसने उसे दोने में डालकर एक बाज के द्वारा रानी गिरिका के पास भेजा। रास्ते में किसी दूसरे बाज ने उस पर झपट्टा मारा, जिससे वह वीर्य यमुना नदी में गिर गया और एक मछली ने निगल लिया इससे उस मछली ने एक लड़की को जन्म दिया। लड़की का नाम सत्यवती रखा गया जो महाऋषि व्यास की माँ थी
(महाभारत,, आदिपर्व,अ०166,15)
(4)महाऋषि व्यास हवन कर रहे थे और जल रही आग में से धृष्टधुम्न और द्रोपदी पैदा हुए
(महाभारत,, आदिपर्व,166,39-44)
(5) महाराज शशि बिंदु की एक लाख रानिया थी हर रानी के पेट से एक-एक हजार पुत्र जन्मे कुल मिलाकर राजा के 10 करोड़ पुत्र हुऐ तब राजा ने एक यज्ञ किया और हर पुत्र को एक-एक ब्राह्मण को दान कर दिया हर पुत्र के साथ सौ रथ और सौ हाथी दिए (कुल मिलाकर 10 करोड़ पुत्र,10 करोड़ ब्राह्मण,10 अरब हाथी,10 अरब रथ), इसके अलावा हर पुत्र के साथ 100-100 युवतियां भी दान दी
(महाभारत,, द्रोणपर्व,अ०65 तथा शांतिपर्व 108)
(6) एक राजा हर रोज प्रातः एक लाख साठ हजार गौएँ, दस हजार घोड़े और एक लाख स्वर्णमुद्राएँ दान करता था, यह काम वह लगातार 100 वर्षो तक करता रहा
(महाभारत,, आ०65,श्लोक 13)
(7) राजा रंतिदेव की पाकशाला में प्रतिदिन 2000 गायें कटती थी। मांस के के साथ-साथ अन्न का दान करते-करते रंतिदेव की कीर्ति अद्वितीय हो गयी
(महाभारत,, आ०208,वनपर्व,8-9)
(8) संक्रति के पुत्र राजा रंतिदेव के घर पर जिस रात में अतिथियों ने निवास किया उस रात इक्कीस हजार गायों का वध किया गया
(महाभारत,, द्रोण पर्व,अ०67,श्लोक 16)
(9) राजा क्रांति देव ने गोमेध यज्ञ में इतनी गायोँ को मारा कि रक्त,मांस, मज्जा से चर्मण्यवती नदी बह निकली
(महाभारत,, द्रोण पर्व अ०67,श्लोक,5)
यह है तुम्हारी प्राचीन सभ्यता जिस पर तुम गर्व करते हो???
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