बाइबल की बकवास,,,,, (६)
____________________________
◙ बाईबल में यीशु की एक भविष्यवाणी की समीक्षा
* बेकग्राउन्ड / भूमिका:
बाईबल के पुराने करार (Old Testament) में Jonah नामक एक पुस्तक सम्मिलित है, जिसमें योना (Jonah) नामक एक पयगम्बर / नबी / प्रोफेट की कहानी है. उसमें लिखा है कि एक दिन योना एक जलयान में यात्रा कर रहे थे. मार्ग में तूफान आने पर नाविकों ने योना को समुद्र में फेंक दिया. तब प्रभु के आदेश पर एक बडा मच्छ योना को निगल जाता है. योना "तीन दिन और तीन रात तक" उस मच्छ के पेट में पडा रहता है. योना मच्छ के पेट में अपने प्रभु परमेश्वर से प्रार्थना करता है और अन्त में प्रभु परमेश्वर के आदेश पर वह मच्छ पयगम्बर योना को समुद्र के तट पर उगल देता है. (Jonah 1:1-17)
* यीशु की एक भविष्यवाणी:
कहा जाता है कि यीशु की मृत्यु के पश्चात उनके शव को एक कब्र में रखा गया था, जहाँ से वे कुछ समय पश्चात पुनर्जीवित होकर गायब हो गए थे. इस सम्बन्ध में स्वयं यीशु के वचनों (Mathew 12:39-40) को ईसाईयों द्वारा एक भविष्यवाणी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है. यीशु कहते है कि “यह पीढी दुष्ट है; अपने प्रभु के प्रति निष्ठावान नहीं है. यह पीढी चिन्ह (sign) मांग रही है, परंतु इसे नबी योना के चिन्ह के अतिरिक्त अन्य कोई चिन्ह नहीं दिया जाएगा". यीशु आगे कहता है, “For just as Jonah was three days and three nights in the belly of the sea monster, so for three days and three nights the Son of Man will be in the heart of the earth” अर्थात् “जैसे योना तीन दिन और तीन रात तक उस समुद्री जीव के पेट में रहा था, उसी प्रकार मानव-पुत्र भी *तीन दिन और तीन रात* तक भूमि के भीतर रहेगा”. (Mathew 12:40)
◆ इस सम्बन्ध में बाईबल के इन वचनों और घटनाक्रम पर ध्यान देना अत्यन्त जरूरी है:
* ...सुबह में नौ बजे यीशु को क्रूस पर चढाया गया. (Mark 15:25)
* ...दोपहर होने पर समस्त देश में अन्धकार छा गया, और यह अन्धकार तीन बजे तक रहा. (Mark 15:33)
* ...लगभग तीन बजे यीशु ने उच्च स्वर में कहा, "Eloi, Eloi, lema sabachthani?" अर्थात् "My God, my God, why have you forsaken me?" अर्थात् “मेरे प्रभु, मेरे प्रभु, तुने मुझे क्यों छोड दिया?” (Mark 15:34) और अंत में यीशु ने प्राण त्याग दिया. (Mark 15:37)
* ...अब संध्या हो गई थी, यह “विश्राम दिन” (Sabbath/शनिवार) के “पूर्वतैयारी का दिन” (शुक्रवार) था. (Mark 15:42)
* ...पिलात (Pilate) ने यूसुफ को यीशु का शव दे दिया. यूसुफ ने मलमल के कपडे में यीशु के शव को लपेटकर चट्टान में खुदी हुई कबर में उसको रख दिया और कबर के द्वार पर एक भारी पत्थर लुढका कर लगा दिया. (Mark 15:45-46)
* ...विश्राम दिन समाप्त होने पर मरियम मगदलीनी, जेम्स की माता मरियम, और सलोमी ने सुगन्धित द्रव्य मोल लिए ताकि वे जाकर यीशु के शरीर पर लगा सके. (Mark 16:1)
* ...सप्ताह के पहले दिन (अर्थात् रविवार को) सवेरे सवेरे जब सूर्य उदय ही हुआ था तब वे कबर के पास गई. (Mark 16:2)
* ...पर कबर पर पहुंचकर देखा कि कबर के द्वार से पत्थर हटा हुआ था (Mark 16:4)
* ...कबर के भीतर प्रवेश करने पर पाया कि सफेद वस्त्र पहने हुए एक युवक दाहिनी ओर बैठा था. (Mark 16:5)
* ...पर उस युवक ने उन स्त्रीयों से कहा, आश्चर्यचकित मत हो, तुम यीशु को ढूंढ रही हो. वह जीवित हो उठे है; वह यहाँ नहीं है... (Mark 16:6)
* ...सप्ताह के पहले दिन (अर्थात् रविवार को) प्रातःकाल जी उठने पर यीशु ने सर्वप्रथम मरियम मगदलीनी को दर्शन दिया... (Mark 16:9)
यीशु स्वयं यहूदी थे, और यहूदी परम्परा के अनुसार “विश्राम दिन” (Sabbath) कहते है शनिवार को. विश्राम दिन से पूर्व तैयारी का दिन अर्थात् शुक्रवार, और सप्ताह का पहला दिन अर्थात् रविवार. यहूदी और ईसाई परम्परा के अनुसार परमेश्वर यहोवा ने रविवार से शुक्रवार तक छ: दिनों में सृष्टि की रचना की और सप्ताह के सातवें / अन्तिम दिन (शनिवार को) थक कर विश्राम किया. प्रारम्भ में ईसाई लोग भी शनिवार को “विश्राम दिन” (Sabbath) मनाकर पूजा-अर्चना करते थे, पर कालान्तर में यहूदीयों से अलग अस्तित्व के रूप में, और विशेषकर यीशु के कबर में से जी उठने (resurrection) के कारण सप्ताह का पहला दिन रविवार प्रार्थना-आराधना के लिए विशेष महत्वपूर्ण हो गया. (देखें Acts 20:7, 1 Corinthians 16:2, आदि)
अब इस पूरे घटनाक्रम पर पुन: दृष्टिपात कर विचार कीजीए...
(1) विश्राम दिन के पूर्वतैयारी के दिन (अर्थात् शुक्रवार के दिन) दोपहर तीन बजे के पश्चात यीशु ने प्राण त्याग दिए और उसी दिन सन्ध्या के पश्चात शव को कब्र में रखा गया.
(2) दुसरा दिन (अर्थात् शनिवार) “विश्राम दिन” होने से कुछ नहीं हुआ.
(3) अगले दिन अर्थात् रविवार को जब सूर्य अभी उदय ही हुआ था और महिलायें कबर पर पहुंची उससे पहले यीशु कबर में नहीं थे, अर्थात् पुनर्जीवित हो उठे थे !!
संक्षेप में कहा जाए तो यीशु शुक्रवार की रात्री से लेकर अधिकतम रविवार की प्रातःकाल तक कब्र में रहे. “अधिकतम” शब्द इस लिए कि शनिवार के दिन तो कबर पर पहरा लगा दिया गया था. विश्राम/ शनिवार के दिन महापुरोहितों और फरीसियों ने पिलात के पास जाते है और कहते है, “Sir, we remember what that impostor said while he was still alive, 'After three days I will rise again’.” अर्थात् “हमें याद है कि जब वह ढोंगी (यीशु) जीवित था तब उसने कहा था, ‘तीन दिन के पश्चात में मैं पुन:जीवित हो उठुंगा’.” अत: आज्ञा दिजिए कि तीन दिन तक कबर पर पहरा दिया जाए, कहीं ऐसा न हो कि उसके चेलें उसके सव को चुरा ले जाए और लोगों से कहने लगें, ‘वह मृतकों में से जीवित हो उठा है’. यदि ऐसा हुआ तो यह अन्तिम धोखा पहले धोखे से भी बुरा होगा. और इस तरह उन लोगों ने कबर के मुंह पर मुहर (seal) लगाकर वहाँ पहरेदारों को बिठा दिया और कबर को सुरक्षित कर दि गई थी. (देखें Mathew 27:62-65).
इस तरह शुक्रवार की रात्री से लेकर रविवार की सुबह तक कुल मिलाकर होते है – दो रात्री और एक दिन. (1) शुक्रवार की रात्री (2) शनिवार का दिन, और (3) शनिवार की रात्री, जिनका योग होगा लगभग छ्त्तीस घण्टे !!
अब कहाँ गई योना (Jonah) की तरह "तीन दिन और तीन रात" (अर्थात् बहत्तर घण्टे, छ्त्तीस का दो गुना) तक भूमि के भीतर रहने की भविष्यवाणी? अब कोई ईसाई / मसीही भाई/बहन कुछ मेथेमेटिकल कसरत करके इस पहेली को सुलझा देंगे तब हमारी जिज्ञासा शांत होगी. यदि योना के तीन दिन और तीन रात तक मच्छ के पेट में रहने की Mathew 12:40 वाली अविश्वसनीय और अन्धविश्वासपूर्ण बकवास वास्तव में स्वयं यीशु ने कही थी (अर्थात यीशु की मृत्यु के सालों बाद सुसमाचार/Gospel लिखने वाले लेखक ने ये शब्द बलात् यीशु के मुख में नहीं डाले थे) तो इससे हास्यास्पद और दुर्भाग्यपूर्ण बात और कोई नहीं हो सकती!! और यदि योना वाली घटना वास्तव में घटी थी और यीशु ने भी उसे सत्य मानकर “तीन दिन और तीन रात तक” भूमि के भीतर रहने की भविष्यवाणी की थी तो स्पष्ट है कि वह भविष्यवाणी सही सिद्ध नहीं हुई थी!!
_____________________________________________
जीसस के बारे मे पादरी गैंग दो बातें बहुत प्रचारित करती हैं-
--पहली की वे ईश्वर के पुत्र थे!
--दूसरी की वे बहुत दयालु थे!
सबसे पहले हम पहली बात पर नजर डालते हैं। जैसा कि बाइबल मैथ्यू-3/17 मे लिखा है कि बाइबल के परमेश्वर (यहोवा) ने स्वयं आकाशवाणी करके कहा कि "यह (जीसस) मेरा पुत्र हैं, और मै इससे अत्यन्त प्रसन्न हूँ"
अब सवाल यह है कि परमेश्वर तो सर्व-शक्तिमान और समर्थवान होता है! यदि उसे चमत्कृत ढ़ंग से एक पुत्र पैदा ही करना था तो कुंवारी मरियम के गर्भ पैदा करने के बजाये किसी पुरुष के पेट से पैदा कर देता। इससे और भी बड़ा चमत्कार होता, और लोग मरियम पर संदेह की दृष्टि भी न डालते। अब एक कुंवारी लड़की के गर्भ से पैदा करने से हानि यह हुई कि लोगों को यह "चमत्कार कम, व्यभिचार अधिक" लगता है।
आखिर जो परमेश्वर पलक झपकते ही पूरा ब्रह्माण्ड बना सकता है, उसे एक पुत्र पैदा करने के लिये किसी महिला का सहारा क्यों लेना पड़ा?
जीसस का खुद को ईशपुत्र बताना ही उनकी मौत का भी सबसे बड़ा कारण था! आज ही नही, उस दौर मे भी लोग उन्हे ईशपुत्र नही मानते थे।
वैसे जीसस सम्भवतः जिसके पुत्र हो सकते थे, मै उसका नाम तो नही लिखूँगा, पर बाइबल को पढ़ने वाला हर इंसान इसका अंदाजा लगा सकता है। New testament (Luke) मे भी जीसस के गुमनाम पिता की तरफ ईशारा किया गया है! कुरान-3/37 मे भी इसके संकेत मिलते हैं, और तो और हदीस मे साफ लिखा है कि किस इंसान को मरियम के साथ सम्बन्ध बनाने के अपराध मे यहूदियों ने मार डाला था।
इस सबके बावजूद भी जीसस खुद को ईश्वर का पुत्र ही घोषित करते रहे। यही बात यहूदियों को बहुत नागवर लगती थी।
जब येरुसलम के गर्वनर पोण्टियास पॉलेट (पिलातुस) ने यहूदियों से कहा कि इसका (जीसस) अपराध इतना भी बड़ा नही है कि इसे मृत्युदंड दिया जाये, तब यहूदियों ने पिलातुस से कहा-
"हमारी भी एक व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने योग्य है, क्योंकि उसने अपने-आपको परमेश्वर का पुत्र बताया है।"
(यूहन्ना-19/7 चित्र-1)
अब आश्चर्य की बात है कि जिस बात को दो हजार साल पहले जीसस के समकालीन यहूदियों ने मानने से इनकार कर दिया था, धूर्त पादरी वही बात आज विज्ञान के युग मे भी हमे मनवाने का प्रयास करते हैं।
अब आते हैं पादरियों की दूसरी कहानी कि जीसस बड़े दयालु थे, तो इसी बाइबल मे जीसस ने अपने चेलों से कहा है कि "तुम अपने कपड़े बेचकर तलवार खरीद लो"
अब जाहिर सी बात है कि जीसस तलवार सब्जी काटने के लिये तो खरीदवा नही रहे थे।
पादरी कहते हैं कि जीसस इतने दयालु थे कि जिन लोगों ने उन्हे क्रॉस पर लटकाया, उनके लिये भी वह ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे।
असल मे बाइबल Luke-23/34 मे लिखा है कि "यीशु ने कहा, हे पिता! इन्हे क्षमा कर, क्योंकि ये नही जानते कि ये क्या कर रहे हैं"
इस वचन का भरपूर प्रचार करके पादरी कहते हैं कि जीसस कितने बड़े दयावान थे! लेकिन इसी बाइबल (ल्यूक-19/27 चित्र-2) मे जीसस ने कहा है "परन्तु मेरे उन दुश्मनों को जो नही चाहते थे कि मै उन पर राज करूँ, उनको यहाँ लाकर मेरे सामने मार डालो।"
जीसस की दयालुता का पता इससे भी चलता है कि वे यह तो कहते ही थे कि मै केवल यहूदियों के मार्गदर्शन के लिये आया हूँ, साथ ही गैर यहूदियों को "कुत्ता" भी कहकर सम्बोधित करते थे।
बाइबल (मैथ्यू-15/23-27 चित्र-3) की कथानुसार एक बार एक सामरी (गैर-यहूदी) महिला मे जीसस से अपनी पुत्री के लिये प्रार्थना करने को कहा!
पहले तो जीसस ने अनसुना कर दिया, लेकिन जब उनके चेलों ने निवेदन किया तब जीसस ने कहा कि "लड़को (यहूदियों) की रोटी लेकर कुत्तों (गैर-यहूदियों) के आगे डालना उचित नही"
यह सुनकर वह सामरी महिला जीसस के पैरों मे गिरकर बोली "हे प्रभु! कुत्ते भी तो मालिक का वही चूरचार खाते हैं जो उनके स्वामियों की मेज पर से गिरते हैं।"
इतना गिड़गिड़ाने के बाद तब कहीं जाकर दयालु ईशपुत्र को दया आयी।
वास्तव मे आज भारत मे भी जो लोग ईसाई बनकर बहुत जीसस-जीसस का जाप कर रहे हैं, जीसस की नजरों मे उनकी भी वही इज्जत है जो उस सामरी महिला की थी।
■■■
कल 'श्रीमान परमेश्वर के एकलौते बेटे जीसस' का जन्मदिन है! इतने दिनों मे परमेश्वर ने ले-देकर एक बेटा भी पैदा किया तो उसे भी विधर्मियों के हाथों मरने के लिये छोड़ दिया था।
वैसे जो ईसाई जीसस को परमेश्वर के पुत्र होने का दावा करते हैं, वे कभी यह नही बताते कि परमेश्वर ने अपने पुत्र की रक्षा आखिर क्यों नही की?
क्या जीसस 'नालायक पुत्र' थे?
आमतौर पर ईसाई कहते हैं कि जीसस हम मानवों के लिये क्रास पर चढ़ गये, पर यह भी सरासर झूठ है।
बाइबल (मैथ्यू-27/46-50, चित्र-1) मे लिखा है कि जब जीसस को क्रास पर लटकाया गया, तब वे अपने पिता (यहोवा) से कह रहे थे कि आपने मुझे क्यों छोड़ दिया। अर्थात जीसस अपने प्रभु से अपनी जान बचाने के लिये प्रार्थना कर रहे थे और बाद मे जोर से चिल्लाकर उन्होने अपने प्राण त्याग दिये।
मतलब साफ था कि जीसस मृत्यु से बहुत डरते थे! अगर इनकी तुलना एक बार नास्तिक सरदार भगतसिंह से करें तो भगतसिंह ने खुशी-खुशी फांसी के फंदे के चूमकर मौत को गले लगा लिया था।
ईसाइयों का सबसे बड़ा झूठ तो इसके बाद शुरू होता है, जब वे कहते हैं कि जीसस मृत्यु के बाद तीन दिनों के अन्दर ही फिर जी उठे थे।
यह झूठी कहानी भी केवल इसलिये गढ़ी गयी ताकि जीसस को ईशपुत्र घोषित किया जा सके, जबकि बाइबल मे जैसा लिखा है, उससे तो लगता है कि यह कहानी पूर्ण-फर्जी है।
असल मे जीसस जब जीवित थे तो वे अपने चेलों को एक अन्य नबी 'योना' की कहानी बताते थे, जिस कहानी मे योना तीन दिन मछली के पेट मे रहने के बाद यहोवा की कृपा से पुनः बाहर आ जाते हैं। यह कहानी बाइबल के योना नामक अध्याय मे लिखी है!
इसी कहानी के आधार पर जीसस भी कहते थे कि यदि मै मर गया तो तीन दिन के भीतर ही पुनः कब्र से बाहर आ जाऊँगा। (मैथ्यू-12/39-40, चित्र-8)
जब पिलातुस ने जीसस को मौत की सजा सुनाई तब उसके कुछ सैनिकों ने पिलातुस से कहा कि हे महाराज! वह धूर्त (जीसस) कहता था कि मै तीन दिन के भीतर पुनः जीवित हो जाऊँगा, कहीं यह बात सत्य न हो जाये।
तब पिलातुस ने अपने सैनिकों से कहा था कि उसकी कब्र पर पहरा दो। अब यदि सैनिक कब्र पर पहरा दे रहे थे तो सब्त की अगली सुबह ही मरियम कैसे कब्र पर गयी और जीसस कैसे कब्र से बाहर आये?
यह कहानी भी बाइबल (मैथ्यू-27/62-66, चित्र-2) मे साफ लिखी है। मतलब जीसस के पुनः जीवित होने की कथा भी सरासर झूठ है।
वैसे जीसस को ईशपुत्र तो दूर एक महामानव कहना भी उचित नही होगा क्योंकि जीसस हमेशा खुद को श्रेष्ठ और दूसरों को तुच्छ समझते थे।
जीसस ने (जॉन-10/8, चित्र-3) मे कहा है कि मै ही सबसे अच्छा चरवाहा (मार्गदर्शक) हूँ। मुझसे पहले जितने (नबी) आये थे, वे सब चोर-डाकू थे।
साफ था कि जीसस खुद अपने ही पूर्वजों का भी सम्मान नही करते थे, वैसे भी मै बाइबल को घृणित बातों का एक गुच्छा मात्र ही समझता हूँ।
उदाहरण के लिये बाइबल के कुछ आदेश नीचे लिख रहा हूँ-
यहोवा आदेश देते हैं कि मनुष्य के मल पर भोजन बनाओ! (यहेजकेल-4/15, चित्र-4)
मूसा (Moses) कहते हैं कि जितनी भी स्त्रियों का विवाह हुआ है उन्हे मार डालो, और जो कुवाँरी हैं, उन्हे पकड़कर मौज-मस्ती करो। (गिनती-31/17-18, चित्र-5)
मूसा कहते हैं कि जो सब्त (यहूदियों का शनिवार और ईसाइयों का रविवार) के दिन काम करे, उसे जान से मार डालो! (निर्गमन-35-2, चित्र-6)
दरअसल यहूदी मान्यता के अनुसार यहोवा ने छः दिन (रविवार से शुक्रवार) मे पूरी दुनिया बनाई, और सातवे दिन (शनिवार) को आराम किया। प्रारम्भ मे ईसाई भी शनिवार को ही सब्त मानते थे, परन्तु बाद मे जीजस के पुनः जीवित होने वाले दिन (रविवार) को सब्त मान लिया, और इसीलिये ईसाई रविवार को छुट्टी रखते हैं।
यहोवा कहते हैं कि मै तुम पर तलवार चलवाऊँगा और तुम्हारे पूजा के स्थानों का नाश करूँगा, तुम्हारी वेदियाँ उजड़ेगी और सूर्य की मूर्तियां तोड़ दी जायेगी! (यहेजकेल-6/3-4, चित्र-7)
इसके अलावा बाइबल के एक और बड़े नबी याकूब (Jacob) एक महिला को बहला-फुसलाकर उससे दुष्कर्म करते हैं। (2- Samuel-11/2-25)
याकूब का बेटा भी अपनी ही सगी बहन का बालात्कार करता है। (2-Samuel-13/1-25)
अब जरा आप ही लोग विचार करो कि बाइबल कितनी ज्ञानवर्धक किताब है, और इसी प्रदूषित किताब को ईसाई मिशनरी वाले आदिवासी इलाकों मे जाकर बांटते हैं, तथा उन भोले-भाले अनपढ़ आदिवासियों को भरमाने के लिये 'चंगई सभा' (ईसाई मिशनरी वाले आदिवासी इलाके मे जाकर भूत-प्रेत और रोग निवारण के लिये झाड़-फूंक करते हैं, और बाद मे आदिवासियों को डराते हैं कि तुम ईसाई बनो नही बनोगे तो परमेश्वर नाराज होगा और तुम्हारा बेटा मर जायेगा, तुम्हारे पति का ऐक्सीडेंट हो जायेगा, आदि..) लगाकर उनका धर्म-परिवर्तन (आदिवासियों का कोई धर्म नही होता, वे अपने लोक-देवताओं जैसे-बूढ़ादेव, बड़ादेव, बुढ़ियामाई और बरमदेव को पूजते हैं, पर मिशनरी वाले उन्हे बहलाकर ईसाई बना देते हैं) करते हैं।
■■■
◆◆◆
बाइबल की बकवास,,,,, (३)
________________________
प्रभु के आदेश से एक बड़ा सा मगरमच्छ योना को निगल गया। योना तीन दिन और तीन रात उस मगरमच्छ के पेट मे पड़ा रहा। योना ने मगरमच्छ के पेट मे से अपने प्रभु परमेश्वर से प्राथना की। प्रभु परमेष्वर ने मगरमच्छ को आदेश दिया, मगरमच्छ ने योना को समुद्र के किनारे उगल दिया।
[ योना 1:17 - 2:1,10 ]
यीशु ने उनसे कहा
में तुमसे सच कहता हूं, यदि तुममें राय के दाने बराबर भी विश्वास हो तो तुम इस पहाड़ से कहोगे, यहां से हट जाओ तो वह पहाड़ हट जाएगा और तुम्हारे लिए कुछ भी असंभव नही होगा। [ मति 17:20 ]
उस रात प्रभु परमेश्वर का दूत बाहर निकला और असीरियाई सेना के पड़ाव में एक लाख पच्चीस हज़ार सैनिकों का कत्ल कर दिया। जब प्रातः काल जल्दी जब वह (कत्ल किये गए एक लाख पच्चीस हज़ार सैनिक) उठे तो देखा वे सब मुर्दा थे।
[ किंग 19:36 ]
बाइबल की बकवास,,,,, (२)
_______________________
जब यीशु दूसरे तट पर गदेरियों के प्रदेश आये तब उन्हें भूतप्रेत से जकड़े हुए दो मनुष्य मिले। वे कब्रो के बीच से निकलकर आये थे। भूतों ने निवेदन किया, यदि आप हमें निकल ही रहे है तो हमे सुवरों के ज़ुण्ड में भेज दीजिये। यीशु ने उन भूतों से कहा जाओ। वे निकलकर सुवरों के ज़ुण्ड में समा गए। वह सारा ज़ुण्ड कगार से झील की और जपटा और पानी मे डूब मरा। [ मति- 8: 28-32 ]
यीशु ने उन्हें अनुमति देदी। अशुद्ध आत्माएं निकालकर सुवरों के ज़ुण्ड में समा गई और दो हज़ार का वह विशाल सुवरों का ज़ुण्ड कगार से झील की और जपटा और पानी मे डूब गया।
[ मरकुस- 5: 13 ]
बाइबल की बकवास,,,,, (१)
_______________________
तब यीशु ने जन समूह को घास पर बैठने की आज्ञा दी, यीशु ने पांच रोटी और दो मछली ली और आकाश की ओर देखकर आशीष मांगी फिर यीशु ने रोटियां तोड़कर शिष्यों को दी और शिष्यों ने लोगो को। सबने भोजन किया और तृप्त हुए। शिष्यों ने बचे हुए टुकड़ो से भरी बारह टोकरियां उठाई। भोजन करने वाले पुरुष, स्त्रियां, बालक के अतिरिक्त संख्या लगभग पांच हज़ार थी। [ मति- 14. 19,20,21 ]
यीशु ने उनसे पूछा कितनी रोटियां है तुम्हारे पास?
वे बोले सात और कुछ मोटी मछलियां। यीशु ने जन समूह को जमीन पर बैठने की आज्ञा दी, तत्पश्चात उन्होंने सात रोटी और मछलियां ली और धन्यवाद करके तोड़ी और शिष्यों को दी शिष्यों ने जन समूह को। सबने भोजन किया और तृप्त हुए। शिष्यों ने बचे हुए टुकड़ो से भरी सात टोकरियां उठाई। भोजन करने वाले स्त्री, बच्चों के अतिरिक्त चार हज़ार पुरुष थे। [ मति- 15. 34,35,36,37,38 ]
■■■
आखिर वृक्ष सुखाया क्यो !!!
_________________________
बाइबिल [मति - 21. 18,19]
यहाँ ईसा मसीह और उसके कुछ चेले चपाटे सुबह किसी दूसरे नगर से अपने नगर की और आ रहे थे, तब उनको भूख लगी, ईसा ने सड़क के किनारे एक अंजीर का पेड़ देखा और पेड़ के पास गए, उन्होंने देखा पेड़ पर सिर्फ कुछ पत्ते ही बचे है, फ़ल बिलकुल ही नही है, उसी समय ईसा ने अंजीर के पेड़ को श्राप (बद्दुआ) दिया की आज के बाद तुझ में फ़ीर क़भी फल (अंजीर) नही लगेंगे, और तुरंत अंजीर का पेड़ सुख गया।
बाइबिल में ईसा मसीह को ईश्वर (सृष्टि कर्ता) का पुत्र बताया गया है, ईश्वर के पास जितनी भी शक्ति है, वहँ सारी शक्ति ईश्वर ने अपने पुत्र ईसा को भी दी है, सृष्टि के उद्धार के लिए, पूरी बाइबिल में ईसा के चमत्कार ठूस ठूस के भरे है, जैसे किसी कोढ़ी को छूने मात्र से ठीक कर देना, चार रोटी से चार हज़ार लोगो को पेट भर कर खाना खिलाना, पानी पर चलना वगैरा.. वगैरा...
अब सवाल यहँ उठता है कि जब ईसा इतना चमत्कारी था, ईश्वर ने सृष्टि के उद्धार के लिए उसे पृथ्वी पर भेजा तो उसने उस अंजीर के पेड़ को श्राप देकर पूरी तरह सूखा क्यों दिया, उसे भूख लगी ही थी तो अपने चमत्कार से अंजीर के पेड़ पर फ़ल भी तो लगा सकता था! बादमे उसी अंजीर को खाकर और खिलाकर अपनी और अपने चेले चपाटों की भूख भी मिटा सकता था! वो भी नही करना था तो आगे प्रस्थान कर के कही और ख़ाने का बंदोबस्त कर लेते, उल्टा उसने पेड़ पर जो थोड़े बहोत पत्ते लगे थे उसे भी सूखा दिया, थोड़े पत्ते जो किसी जानवर को खाने को काम आते पेड़ को पूरी तरह सुखाकर जानवरो को भी भूखे रहने पर मजबूर कर दिया।
ईसा में पेड़ को सुखाने का सामर्थ्य था तो पेड़ को और ताज़ा कर, ढेरों पत्ते और अंजीर लगवाने का सामर्थ्य तो था, ऐसा कर के वो खुद का पेट भरता, अपने चेलों का पेट भर पाता, रास्ते मे आने जाने वालों के लिए हमेसा के लिए फ़ल का बंदोबस्त कर देता ताकि राहगीर फ़ल से अपना भूखा पेट भरते, उस पेड़ को घना कर के जानवरों के खाने का बंदोबस्त कर देता, रास्ते में आने जाने वाले राहगीर और जानवरों के लिए गर्मियों में छाव के जरिये आराम करने का बंदोबस्त कर देता, पेड़ को हरा भरा कर देता तो वातावरण भी शुद्ध रहता, और भी अनगिनत फायदे थे पेड़ के, बजाय उनके ईसा ने पेड़ को सुखाकर प्रकृति, वातावरण, पशु पक्षी, इंसानो का बहोत बड़ा नुकसान कर दिया, ऐसे ईसा को हम अनपढ़ और ज़ाहिल ही कह सकते है सृष्टि का उद्धार करने वाला नही।
#बबूला_भक्ता
■■■
गाली बाज़ ईसा मसीह
____________________________
बाइबिल [ मति 15: 21 to 28 ]
ईसा और उसके चेले सुर और सैदा नाम के प्रदेश में जा रहे होते है। तभी अचानक एक गैर यहूदी औरत ईसा को देखकर पुकारती है, ए दाऊद के बेटे मुझ पर रहम कर। मेरी बेटी को एक बुरी आत्मा बहोत परेसान कर रही है। ये सुनकर भी ईसा ने उस औरत को कोई ज़वाब नही दिया। ईसा के चेलों ने ईसा के पास आकर कहा इस औरत को यहाँ से दूर कर दे क्योंकि ये बहोत चिल्ला रही है और हमारे पीछे पीछे आ रही है।
तब ईसा ने कहा में सिर्फ इस्राएल के घराने की खोई हुई भेड़ो (यानी यहूदी) के लिए परमेश्वर द्वारा भेजा गया हूं। फिर भी वह गैर यहूदी औरत आकर ईसा के चरणों मे गिरकर गिड़गिड़ाने लगी प्रभु मेरी सहायता करो।
तब ईसा मसीह कहता है, बच्चों की रोटी लेकर कुत्तों के आगे फेंकना ठीक नही अर्थात.. (ईसा सिर्फ यहूदियों को इंसान कह रहा है और गैर यहूदियों को कुत्ता (जानवर) में इंसानो को ठीक करूँगा कुत्तों को नही)
यह सुनकर उस औरत ने ईसा को कहा कुत्ते भी तो अपने मालिक के मेज से गिरा हुआ चूर-चुरा खाते है, अर्थात.. औरत का कहना है हम कुत्ते है, कुत्ते भी तो मालिक का जूठा फेंका हुआ ही सही उनके जैसा ही खाते है, तब जब औरत ने अपने आपको कुत्ता कहा तब ईसा ने औरत की बेटी को ठीक किया।
◆◆◆◆
ईसा मसीह और शराब का अड्डा
___________________________
बाइबिल [ यूहन्ना 2: 1 to 10 ]
ईसा मसीह और उसके कुछ चेले चपाटे गलील नाम के स्थान पर थे, साथ मे ईसा की माँ कुँवारी मरियम भी उन्ही के साथ थी, उन सभी को वहाँ किसी यहूदी की शादी में न्योता मिला था तो सभी शादी में उपस्थित हुए थे।
शादी में महेमनो को शराब पिलाई जा रही थी वह ख़त्म हो गई, ये बात ईसा की माँ कुँवारी मरियम के कानों तक पहोंची, कुँवारी मरीयम ने ये बात ईसा मसीह को कही, ईसा ने कुँवारी मरियम को माँ कहने की बजाय ए औरत संबोधित करते हुए कहा तुजे मुझसे क्या लेना देना, मेरे चमत्कार दिखाने का वक़्त अभी नही आया।
नॉट- (ईसा ने कुँवारी मरियम को माँ कहने की बजाए ए औरत कहकर संबोधित किया, सायद ईसा कुँवारी मरियम को अपनी माँ नही मानता हो ये जानकर की में बिन बाप के जन्मा हु, ऐसा विवरण बाइबिल में और जगह भी मिलता है कभी कोई और पोस्ट में जानेंगे)
फिर भी कुँवारी मरियम ने वहाँ हाज़िर सेवको को आदेश दिया कि ईसा जैसा कहे वैसा करो, ईसा ने मजबूरी में ही सही सेवकों को कहा छे (6) मिट्टी के मटके रखो और उनमें पानी भर दो। सेवकों ने इस ही किया, ईसा ने आदेश दिया कि अब मटके में से पानी निकालकर सभी महेमनो को पिलाओ, जैसे ही शादी में उपस्थित महेमनो ने पानी चखा पानी शराब बन गया था, वो भी उत्तम प्रकार की शराब।
शराबियों ने दूल्हे को बुलाकर बहोत तारीफ़ की, की तूने बहोत अच्छी शराब पिलाई, इसके बाद ईसा और उनके चेले वहाँ से प्रस्थान कर चल देते है, यहाँ ईसा के शराब पीने का उल्लेख नही मिलता, पर हम अंदाज़ा लगा सकते है कि ईसा ने भी शराब पी होगी, क्योंकि ईसाइयों में शराब पीना सुन्नत है, ईसाई परिवारों में औरतो सहित साथ मे बैठकर शराब पीने का चलन देखने मिलता है, ईसाइयों के शुभ प्रसंगों में शराब पिलाई जाती है, चर्च में भी के ईसाई शराब लेकर जाते है।
ये ईसा का अपने जीवन का पहला ही चमत्कार था।
बाइबिल में है कि परमेश्वर ने ईसा को संसार का उद्धार करने के लिए भेजा था, अब यहाँ सवाल ये उठता है, शादी में शराब ख़त्म हो गई थी, तो चमत्कार के ज़रिए पानी को शराब बनाकर लोगो को क्यो पिलाई? शराब पिलाक़र लोगो को नशे की आदत लगाकर कोनसा उद्धार किया, ना जाने अभी तक संसार के कितने लोगों के घर, परिवार, कुल, समाज, बर्बाद और नष्ट हो गए इस शराब की वजह से आज भी हो रहे है।
चमत्कार दिखाना ही था, लोगो का उद्धार करना ही था, अपने को परमेश्वर का पुत्र साबित करना ही था तो उस शादी में लोगो को हिदायत देता की अच्छा हुआ शराब ख़त्म हो गई, ये पीना बहोत बुरी चीज़ है, इससे दूर रहना ही बहेतर है, आगे से कोई भी शराब को नही पीना, फिर पानी से भरे मटके में कुछ जड़ीबूटी डालकर औषधि बनाकर लोगो को पिला देता की उनमें से जिसको जो भी रोग हो ठीक हो जाए, चमत्कार के नाम पर इस तरह भी तो लोगो का उद्धार कर सकता था....!!!
#Expose_Church
#Expose_Missionaries
#Expose_Christianity
#Church_Crimes
#बबूला_भक्ता
■■■
कल 'श्रीमान परमेश्वर के एकलौते बेटे जीसस' का जन्मदिन है! इतने दिनों मे परमेश्वर ने ले-देकर एक बेटा भी पैदा किया तो उसे भी विधर्मियों के हाथों मरने के लिये छोड़ दिया था।
वैसे जो ईसाई जीसस को परमेश्वर के पुत्र होने का दावा करते हैं, वे कभी यह नही बताते कि परमेश्वर ने अपने पुत्र की रक्षा आखिर क्यों नही की?
क्या जीसस 'नालायक पुत्र' थे?
आमतौर पर ईसाई कहते हैं कि जीसस हम मानवों के लिये क्रास पर चढ़ गये, पर यह भी सरासर झूठ है।
बाइबल (मैथ्यू-27/46-50, चित्र-1) मे लिखा है कि जब जीसस को क्रास पर लटकाया गया, तब वे अपने पिता (यहोवा) से कह रहे थे कि आपने मुझे क्यों छोड़ दिया। अर्थात जीसस अपने प्रभु से अपनी जान बचाने के लिये प्रार्थना कर रहे थे और बाद मे जोर से चिल्लाकर उन्होने अपने प्राण त्याग दिये।
मतलब साफ था कि जीसस मृत्यु से बहुत डरते थे! अगर इनकी तुलना एक बार नास्तिक सरदार भगतसिंह से करें तो भगतसिंह ने खुशी-खुशी फांसी के फंदे के चूमकर मौत को गले लगा लिया था।
ईसाइयों का सबसे बड़ा झूठ तो इसके बाद शुरू होता है, जब वे कहते हैं कि जीसस मृत्यु के बाद तीन दिनों के अन्दर ही फिर जी उठे थे।
यह झूठी कहानी भी केवल इसलिये गढ़ी गयी ताकि जीसस को ईशपुत्र घोषित किया जा सके, जबकि बाइबल मे जैसा लिखा है, उससे तो लगता है कि यह कहानी पूर्ण-फर्जी है।
असल मे जीसस जब जीवित थे तो वे अपने चेलों को एक अन्य नबी 'योना' की कहानी बताते थे, जिस कहानी मे योना तीन दिन मछली के पेट मे रहने के बाद यहोवा की कृपा से पुनः बाहर आ जाते हैं। यह कहानी बाइबल के योना नामक अध्याय मे लिखी है!
इसी कहानी के आधार पर जीसस भी कहते थे कि यदि मै मर गया तो तीन दिन के भीतर ही पुनः कब्र से बाहर आ जाऊँगा। (मैथ्यू-12/39-40, चित्र-8)
जब पिलातुस ने जीसस को मौत की सजा सुनाई तब उसके कुछ सैनिकों ने पिलातुस से कहा कि हे महाराज! वह धूर्त (जीसस) कहता था कि मै तीन दिन के भीतर पुनः जीवित हो जाऊँगा, कहीं यह बात सत्य न हो जाये।
तब पिलातुस ने अपने सैनिकों से कहा था कि उसकी कब्र पर पहरा दो। अब यदि सैनिक कब्र पर पहरा दे रहे थे तो सब्त की अगली सुबह ही मरियम कैसे कब्र पर गयी और जीसस कैसे कब्र से बाहर आये?
यह कहानी भी बाइबल (मैथ्यू-27/62-66, चित्र-2) मे साफ लिखी है। मतलब जीसस के पुनः जीवित होने की कथा भी सरासर झूठ है।
वैसे जीसस को ईशपुत्र तो दूर एक महामानव कहना भी उचित नही होगा क्योंकि जीसस हमेशा खुद को श्रेष्ठ और दूसरों को तुच्छ समझते थे।
जीसस ने (जॉन-10/8, चित्र-3) मे कहा है कि मै ही सबसे अच्छा चरवाहा (मार्गदर्शक) हूँ। मुझसे पहले जितने (नबी) आये थे, वे सब चोर-डाकू थे।
साफ था कि जीसस खुद अपने ही पूर्वजों का भी सम्मान नही करते थे, वैसे भी मै बाइबल को घृणित बातों का एक गुच्छा मात्र ही समझता हूँ।
उदाहरण के लिये बाइबल के कुछ आदेश नीचे लिख रहा हूँ-
यहोवा आदेश देते हैं कि मनुष्य के मल पर भोजन बनाओ! (यहेजकेल-4/15, चित्र-4)
मूसा (Moses) कहते हैं कि जितनी भी स्त्रियों का विवाह हुआ है उन्हे मार डालो, और जो कुवाँरी हैं, उन्हे पकड़कर मौज-मस्ती करो। (गिनती-31/17-18, चित्र-5)
मूसा कहते हैं कि जो सब्त (यहूदियों का शनिवार और ईसाइयों का रविवार) के दिन काम करे, उसे जान से मार डालो! (निर्गमन-35-2, चित्र-6)
दरअसल यहूदी मान्यता के अनुसार यहोवा ने छः दिन (रविवार से शुक्रवार) मे पूरी दुनिया बनाई, और सातवे दिन (शनिवार) को आराम किया। प्रारम्भ मे ईसाई भी शनिवार को ही सब्त मानते थे, परन्तु बाद मे जीजस के पुनः जीवित होने वाले दिन (रविवार) को सब्त मान लिया, और इसीलिये ईसाई रविवार को छुट्टी रखते हैं।
यहोवा कहते हैं कि मै तुम पर तलवार चलवाऊँगा और तुम्हारे पूजा के स्थानों का नाश करूँगा, तुम्हारी वेदियाँ उजड़ेगी और सूर्य की मूर्तियां तोड़ दी जायेगी! (यहेजकेल-6/3-4, चित्र-7)
इसके अलावा बाइबल के एक और बड़े नबी याकूब (Jacob) एक महिला को बहला-फुसलाकर उससे दुष्कर्म करते हैं। (2- Samuel-11/2-25)
याकूब का बेटा भी अपनी ही सगी बहन का बालात्कार करता है। (2-Samuel-13/1-25)
अब जरा आप ही लोग विचार करो कि बाइबल कितनी ज्ञानवर्धक किताब है, और इसी प्रदूषित किताब को ईसाई मिशनरी वाले आदिवासी इलाकों मे जाकर बांटते हैं, तथा उन भोले-भाले अनपढ़ आदिवासियों को भरमाने के लिये 'चंगई सभा' (ईसाई मिशनरी वाले आदिवासी इलाके मे जाकर भूत-प्रेत और रोग निवारण के लिये झाड़-फूंक करते हैं, और बाद मे आदिवासियों को डराते हैं कि तुम ईसाई बनो नही बनोगे तो परमेश्वर नाराज होगा और तुम्हारा बेटा मर जायेगा, तुम्हारे पति का ऐक्सीडेंट हो जायेगा, आदि..) लगाकर उनका धर्म-परिवर्तन (आदिवासियों का कोई धर्म नही होता, वे अपने लोक-देवताओं जैसे-बूढ़ादेव, बड़ादेव, बुढ़ियामाई और बरमदेव को पूजते हैं, पर मिशनरी वाले उन्हे बहलाकर ईसाई बना देते हैं) करते हैं।
■■■
जीसस के बारे मे पादरी गैंग दो बातें बहुत प्रचारित करती हैं-
--पहली की वे ईश्वर के पुत्र थे!
--दूसरी की वे बहुत दयालु थे!
सबसे पहले हम पहली बात पर नजर डालते हैं। जैसा कि बाइबल मैथ्यू-3/17 मे लिखा है कि बाइबल के परमेश्वर (यहोवा) ने स्वयं आकाशवाणी करके कहा कि "यह (जीसस) मेरा पुत्र हैं, और मै इससे अत्यन्त प्रसन्न हूँ"
अब सवाल यह है कि परमेश्वर तो सर्व-शक्तिमान और समर्थवान होता है! यदि उसे चमत्कृत ढ़ंग से एक पुत्र पैदा ही करना था तो कुंवारी मरियम के गर्भ पैदा करने के बजाये किसी पुरुष के पेट से पैदा कर देता। इससे और भी बड़ा चमत्कार होता, और लोग मरियम पर संदेह की दृष्टि भी न डालते। अब एक कुंवारी लड़की के गर्भ से पैदा करने से हानि यह हुई कि लोगों को यह "चमत्कार कम, व्यभिचार अधिक" लगता है।
आखिर जो परमेश्वर पलक झपकते ही पूरा ब्रह्माण्ड बना सकता है, उसे एक पुत्र पैदा करने के लिये किसी महिला का सहारा क्यों लेना पड़ा?
जीसस का खुद को ईशपुत्र बताना ही उनकी मौत का भी सबसे बड़ा कारण था! आज ही नही, उस दौर मे भी लोग उन्हे ईशपुत्र नही मानते थे।
वैसे जीसस सम्भवतः जिसके पुत्र हो सकते थे, मै उसका नाम तो नही लिखूँगा, पर बाइबल को पढ़ने वाला हर इंसान इसका अंदाजा लगा सकता है। New testament (Luke) मे भी जीसस के गुमनाम पिता की तरफ ईशारा किया गया है! कुरान-3/37 मे भी इसके संकेत मिलते हैं, और तो और हदीस मे साफ लिखा है कि किस इंसान को मरियम के साथ सम्बन्ध बनाने के अपराध मे यहूदियों ने मार डाला था।
इस सबके बावजूद भी जीसस खुद को ईश्वर का पुत्र ही घोषित करते रहे। यही बात यहूदियों को बहुत नागवर लगती थी।
जब येरुसलम के गर्वनर पोण्टियास पॉलेट (पिलातुस) ने यहूदियों से कहा कि इसका (जीसस) अपराध इतना भी बड़ा नही है कि इसे मृत्युदंड दिया जाये, तब यहूदियों ने पिलातुस से कहा-
"हमारी भी एक व्यवस्था है और उस व्यवस्था के अनुसार वह मारे जाने योग्य है, क्योंकि उसने अपने-आपको परमेश्वर का पुत्र बताया है।"
(यूहन्ना-19/7 चित्र-1)
अब आश्चर्य की बात है कि जिस बात को दो हजार साल पहले जीसस के समकालीन यहूदियों ने मानने से इनकार कर दिया था, धूर्त पादरी वही बात आज विज्ञान के युग मे भी हमे मनवाने का प्रयास करते हैं।
अब आते हैं पादरियों की दूसरी कहानी कि जीसस बड़े दयालु थे, तो इसी बाइबल मे जीसस ने अपने चेलों से कहा है कि "तुम अपने कपड़े बेचकर तलवार खरीद लो"
अब जाहिर सी बात है कि जीसस तलवार सब्जी काटने के लिये तो खरीदवा नही रहे थे।
पादरी कहते हैं कि जीसस इतने दयालु थे कि जिन लोगों ने उन्हे क्रॉस पर लटकाया, उनके लिये भी वह ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे।
असल मे बाइबल Luke-23/34 मे लिखा है कि "यीशु ने कहा, हे पिता! इन्हे क्षमा कर, क्योंकि ये नही जानते कि ये क्या कर रहे हैं"
इस वचन का भरपूर प्रचार करके पादरी कहते हैं कि जीसस कितने बड़े दयावान थे! लेकिन इसी बाइबल (ल्यूक-19/27 चित्र-2) मे जीसस ने कहा है "परन्तु मेरे उन दुश्मनों को जो नही चाहते थे कि मै उन पर राज करूँ, उनको यहाँ लाकर मेरे सामने मार डालो।"
जीसस की दयालुता का पता इससे भी चलता है कि वे यह तो कहते ही थे कि मै केवल यहूदियों के मार्गदर्शन के लिये आया हूँ, साथ ही गैर यहूदियों को "कुत्ता" भी कहकर सम्बोधित करते थे।
बाइबल (मैथ्यू-15/23-27 चित्र-3) की कथानुसार एक बार एक सामरी (गैर-यहूदी) महिला मे जीसस से अपनी पुत्री के लिये प्रार्थना करने को कहा!
पहले तो जीसस ने अनसुना कर दिया, लेकिन जब उनके चेलों ने निवेदन किया तब जीसस ने कहा कि "लड़को (यहूदियों) की रोटी लेकर कुत्तों (गैर-यहूदियों) के आगे डालना उचित नही"
यह सुनकर वह सामरी महिला जीसस के पैरों मे गिरकर बोली "हे प्रभु! कुत्ते भी तो मालिक का वही चूरचार खाते हैं जो उनके स्वामियों की मेज पर से गिरते हैं।"
इतना गिड़गिड़ाने के बाद तब कहीं जाकर दयालु ईशपुत्र को दया आयी।
वास्तव मे आज भारत मे भी जो लोग ईसाई बनकर बहुत जीसस-जीसस का जाप कर रहे हैं, जीसस की नजरों मे उनकी भी वही इज्जत है जो उस सामरी महिला की थी।
■■■
ईश्वर वास्तव मे क्या है, क्या नही है, यह अभी भी खोज का विषय है!
अभी तक तो कोई भी पुख्ता प्रमाण से यह नही कह सकता कि ईश्वर है ही, क्योंकि प्रत्येक धर्म के ग्रंथो मे ईश्वर की व्याख्या अलग-अलग तरीके से की गयी है!
वैसे मै पूरे विश्वास से यह कह सकता हूँ कि जो परम आस्तिक है, उन्हे कभी ईश्वर मिलेगा भी नही, क्योंकि उन्होने मन ही मन यह मान लिया है कि ईश्वर है, बस उनकी खोज वही समाप्त हो गयी! नास्तिकों ने ईश्वर के अस्तित्व को स्वीकारा ही नही, अतः उनकी खोज अभी भी चालू है!
खैर हम जरा बाइबल के ईश्वर यहोवा के गुणों पर चर्चा करते हैं!
बाइबल के निर्गमन (20:4/5) मे परमेश्वर यहोवा अपने धर्म प्रचारक मूसा (Moses) को दस आज्ञाऐं देते है, जिनमे वे एक आज्ञा मे मूसा से कहते हैं कि-
"तू किसी मूर्ति को दण्डवत न करना, और न ही उसकी उपासना करना, क्योंकि मै तेरा परमेश्वर यहोवा जलन वाला परमेश्वर हूँ, और जो मुझसे बैर रखते हैं, मै उनके बेटों, पोतों और परपोतों को भी पितरों का दण्ड देता हूँ"
अब यह आज्ञा कितनी विचारणीय बात है कि यहाँ ईश्वर (यहोवा) खुद ही कह रहा है कि 'मै जलन वाला परमेश्वर हूँ'
जरा सोचों कि जलन करने वाला भला ईश्वर कैसे हो सकता है!
जलन एक विकार है, और क्या ईश्वर के अन्दर विकार आ सकता है, अगर जिसके अन्दर विकार है, वह भला भगवान कैसे हो सकता है!
दूसरी बात यहोवा ने कहा कि मै पितरों का दण्ड बेटों, पोतों और परपोतों को भी देता हूँ!
यह भला ईश्वर कैसा न्याय है कि गलती दादा करे, और सजा पोता भुगते!
बाइबल भी निश्चित ही मादक पदार्थ खाकर लिखी गयी किताब है, और मै शुरू से कहता आया हूँ कि ईसाइयों का ईश्वर यहोवा 'सनकी प्रवृत्ति' का है!
अब पादरियों से यह सवाल पूँछना चाहिये कि आपका परमेश्वर जब खुद जलन करता है, तो वह किसी का कल्याण क्या करेगा?
जलन उसी को होती है, जिसका मन साफ नही होता, और मलीन मन वाला कभी पूज्यनीय नही होता!
खैर बाइबल (निर्गमन-22:18) मे थोड़ा और आगे बढ़ते हैं तो यहोवा का सनकपन भी बाहर निकल आता है! यहोवा 'नैतिक और धार्मिक नियम' समझाते हुये कहते हैं कि- "तू जादू-टोना करने वाली को जीवित मत छोड़ना"
यूरोप मे अठारहवीं सदी तक Witch hunting नामक खूनी खेल होता था, जहाँ औरतों को Witch (चुडैल) बताकर जिन्दा जला दिया जाता था!
यह कृत्य सनकी यहोवा के इसी उपदेश का नतीजा था!
अगले आदेश मे यहोवा मुसलमानों के अल्लाह की तरह जिहादी फरमान देते हुये कहते हैं-
"जो कोई यहोवा को छोड़ किसी और देवता के लिये बलि करे, उसका सत्यानाश किया जाये"
अब यहोवा के इस आदेश पर क्या लिखा जायें, मै तो बाइबल पढ़कर स्तब्ध हूँ, और पढ़े-लिखे ईसाइयों की बुद्धि पर भी तरस आता है!
■■■
पुराण, कुरान और मनुस्मृति जैसी धार्मिक किताबें पढ़ने के बाद मेरा दिमाग पहले ही सुन्न पड़ गया था, अब बाईबल पढ़ने से और भी कोमा मे जा रहा है..
सचमुच धार्मिक किताबों मे इतना कचड़ा भरा है कि अच्छे-खासे तार्किक इंसान को बीमार बना दे! अभी मैने बाईबल पढ़ना शुरू ही किया था कि ईसाइयों का पाखण्ड सामने आने लगा!
बाईबल (उत्पत्ति-3:14/15/16) मे लिखा है कि यहोवा परमेश्वर ने आदम और उनकी पत्नि हौव्वा को 'अदन' नामक स्वर्ग मे रखा था, जहाँ हौव्वा ने एक सांप के बहकावे मे आकर उस वृक्ष का फल खा लिया, जिसे खाने से परमेश्वर ने मना किया था!
फिर क्रोध मे आकर परमेश्वर ने हौव्वा को श्राप दिया कि- "मै गर्भवती होने पर तेरे दुःख और पीड़ा को अत्यधिक बढ़ाऊँगा, और तू सदैव अपने पति के अधीन रहेगी"
अब देखो इन पाखण्डी ईसाइयों के परमेश्वर को, अगर हौव्वा ने परमेश्वर का कहना नही माना तो परमेश्वर ने हौवा के साथ-साथ तमाम स्त्रियों को श्राप दे दिया, और वो बेचारी आज तक प्रसव पीड़ा झेलती है, और पति के अधीन है!
भला ऐसा अन्यायी कोई परमेश्वर हो सकता है, जिसे क्रोध आये और वह श्राप भी दे!
यहोवा परमेश्वर यही नही रुके, उन्होने उस सांप को भी श्राप दिया कि- "तू सारे घरेलू पशुओं और बनैले पशुओं मे शॉपित है, तू पेट के बल चलेगा और जीवन भर मिट्टी चाटेगा!
यहोवा परमेश्वर ने अपने श्राप को आगे बढ़ाते हुये कहा कि इस स्त्री (हौव्वा) के वंश और तेरे वंश के बीच मै बैर उत्पन्न कर दूँगा, वो तेरे वंश का सिर कुचलेंगे, और तेरा वंश उनकी एड़ी मे डसेगा"
ये है इन ईसाइयों की 'पोपलीला', अब तनिक सोचो कि अगर परमेश्वर ने सांप को श्राप न दिया होता तो क्या सांप हमारी तरह दौ पैर से चलते, या श्राप से पहले किस तरह से चलते थे?
दूसरी बात आज जितने भी सांप लोगों को डसते है, सबका जिम्मेदार ईसाइयों का वो सनकी परमेश्वर है, जो सदैव श्राप देने के लिये आतुर था!
भला ऐसे बेवकूफ परमेश्वर को पूजना कहाँ की बुद्धिमानी है....
अगर मेरी मित्रसूची मे कोई ईसाइयत को मानता हो तो जवाब जरूर दे!
वैसे बाईबल पढ़कर मै इतना तो जान ही गया कि भारत के पंडे, अरब के मुल्ले और येरुसलम/इटली के पादरी, ये तीनो एक ही ब्राण्ड का गांजा पीते थे, क्योंकि तीनों ने ही अवैज्ञानिक और अव्यवहारिक बातें लिखी है!
■■■
जो पादरी (Priest) दिन भर लोगों को आशिर्वाद मे "God bless you, God bless you" रटते रहते हैं, क्या सही मे इनका गॉड Bless (आशिर्वाद) देता हैं?
अगर पादरियों का कच्चा-चिट्ठा समझना हो तो बाइबल के पन्ने पलटते जाओ, और एक बार आपने पूरी बाइबल पढ़ ली तो मै विश्वास से कहती हूँ कि कोई भी पादरी आपसे बहस नही करेगा!
पादरियों के God (ईश्वर) को ही बाइबल के पहले भाग (Old testament) मे 'यहोवा' कहा गया है! वास्तव मे बाइबल का पहला भाग यहूदियों की धार्मिक किताब 'तौरात' है, और इसी तौरात पर लगभग 80% कुरान भी आधारित है!
हालाकिं तौरात यहोवा (ईश्वर) को कुरान के अल्लाह की तरह निराकार तो नही मानती, क्योंकि उत्पत्ति-18 मे साफ लिखा है कि यहोवा इब्राहिम के साथ बैठकर बछड़े का मांस खाते थे!
खैर अब आते है असल मुद्दे पर..
तौरात मे एक और महापुरुष का नाम आता है जिन्हे 'लूत' कहते हैं!
लूत को मुसलमान भी अपना नबी मानते हैं और कुरान मे भी इनका जिक्र है!
कुरान का मानना है कि पूर्वकाल मे लोग पुरुष-मैथुन करने लगे थे, अर्थात लोग समलैंगिक (Homosexual) हो गये थे, तब अल्लाह ने हजरत लूत को नबी बनाया और उनके माध्यम से इन कुप्रथा को बन्द करवाया!
कुरान मे इसका वर्णन भी है---
कुरान-7/80-81 मे लिखा है--
"और हमने लूत को भेजा। जब उसने अपनी क़ौम से कहा। क्या तुम स्पष्ट निर्लज्जता के कर्म करते हो जो तुमसे पहले संसार में किसी ने नहीं किया। तुम महिलाओं को छोड़कर पुरुषों से अपनी इच्छापूर्ति करते हो। बल्कि तुम सीमा से आगे बढ़ने वाले लोग हो।"
कुरान-27/54-55 मे लिखा है--
"और लूत को जब उसने अपनी क़ौम से कहा, क्या तुम अश्लीलता करते हो और तुम देखते हो। क्या तुम पुरुषों के साथ वासना तृप्ति करते हो, महिलाओं को छोड़कर, बल्कि तुम लोग नासमझ हो।"
कुरान-26/165-166 मे भी लिखा है--
"क्या तुम संसार वालों में से पुरुषों के पास जाते हो। (166) और तुम्हारे पालनहार ने तुम्हारे लिए जो पत्नियाँ पैदा की हैं उनको छोड़ते हो, बल्कि तुम सीमा का उल्लंघन करने वाले लोग हो।"
इन आयतों से यह साफ है कि लूत के जमाने मे लोग पुरुष-गुदा मैथुन करते थे, जिसे लूत ने बन्द करवाया!
अब जरा लूत की भी जीवनी सुने--
तौरात उत्पत्ति-19/12-37 मे लूत के बारे मे लिखा है कि लूत ने शराब पीकर अपनी दो सगी बेटियों से सम्भोग किया और बच्चे पैदा किये!
ईसाइयों का मानना है कि लूत ने यह कुकर्म शराब के नशे मे किया, तो आखिर उस समय लूत का परमेश्वर यहोवा कहा था?
क्यों यहोवा परमेश्वर ने अपने नबी को ऐसे कुकर्म करने से नही बचाया?
दूसरी बात लूत की बड़ी बेटी ने जब पहली रात मे लूत को शराब पिलाकर कुकर्म करवाया तब भी लूत नही सम्भले और अगली रात उनकी छोटी बेटी ने भी उनसे अपना मुँह काला कर लिया!
जरा सोचो कि यहोवा का प्यारा नबी शराब के नशे मे धुत होकर अपनी ही पुत्रियों के सम्भोग करता रहा और यहोवा ने उफ् तक नही की!
लूत आये थे अपनी कौम को समलैंगिकता के पाप से बचाने, और खुद ही पुत्री-मैथुन का पाप कर बैठे...
हांलाकि यह घटना बाइबल मे है, पर चालाक अरबियों ने इसे कुरान मे नही लिखा! तौरात को कॉपी करके अरबियों ने कुरान बना लिया और बाद मे कह दिया कि तौरात मे मिलावट हो गयी है!
खैर अब यहोवा के एक और नबी की बात करते हैं, इन महापुरुष का नाम यहूदा (Juda) है, और इन्ही यहूदा के नाम पर यहूदी (Jews) धर्म बना है!
यहूदा के तीन बेटे थे एर, ओनान और शेला! बड़े बेटे एर का विवाह 'तामार' नामक महिला से हुआ था, पर एर यहोवा के नियम नही मानता था, इसलिये यहोवा ने उसे मार दिया और तामार विधवा हो गयी!
फिर एक दिन यहूदा ने अपने दूसरे बेटे ओनान से कहा कि- 'तू अपनी भाभी तामार के पास जा और उससे सम्भोग करके संतान पैदा कर तथा अपना देवर धर्म निभा'
यहाँ यह सोचने वाली बात है कि हिन्दुओं मे अगर 'नियोग' होता था तो यहूदी भी करते थे, और यहूदा ने अपने बेटे ओनान को उसकी भाभी से नियोग करने के लिये ही भेजा था!
खैर ओनान ने अपने पिता यहूदा की बात नही मानी और भूमि पर ही अपना वीर्य गिराकर वापस आ गया! इससे परमेश्वर यहोवा फिर नाराज हो गये और उन्होने ओनान को भी मार दिया!
कुछ दिनों बाद यहूदा कि बहू तामार अपना मुँह ढ़ककर यहूदा के पास आयी, और यहूदा उसे पहचान न सका तथा उससे सहवास करके एक संतान पैदा कर दी!
यह पूरा वृतात्त बाइबल उत्पत्ति-38/1-29 मे लिखा है!
अब जरा सोचो कि यहूदा का बड़ा बेटा एर यहोवा के नियम नही मानता था इसलिये यहोवा ने उसे मार दिया!
मझला बेटा अपनी भाभी से कुकर्म नही किया इसलिये यहोवा ने उसे भी मार दिया, और जब अन्त मे खुद यहूदा अन्जाने मे तामार से मुँह काला कर रहे थे तब यहोवा ने यहूदा को नही बताया कि यह तुम्हारी ही बहू है!
असल मे ये सारे लोग कुकर्मी थे, जो अपनी बहू और बेटियों से कुकर्म करते थे, फिर जब इनके चमचो ने इनकी जीवनी लिखनी शुरू कि तब इनकी इज्जत बचाने के लिये पर्दापोशी की गयी कि "वो नशे मे थे, उन्हे होश नही था! जो भी हुआ वह अन्जाने मे हुआ"
अरे भाई! जब ये लोग हमेशा ईश्वर के सम्पर्क मे थे, तो जब लूत की बेटियों ने और यहूदा की बहू ने छल से इनसे सहवास कर रही थी तब ईश्वर इन्हे सचेत करने क्यों नही आया?
ये सब पादरियों की मूर्ख बनाने की कोशिश मात्र है, ऐसी चीजे उठाकर धूर्त पादरियों के मुँह पर मारो...
■■■
कुरान-5/46 मे अल्लाह सुब्हानहु व तआला ने फरमाया है कि तौरात और इन्जील किताबें भी मैने ही उतारी थी!
तौरात यहूदियों की किताब है, जिसे उनके धर्म प्रवर्तक मूसा (Moses) पर उतारी गयी! यहूदियों का मानना है कि उनके ईश्वर (यहोवा) ने मूसा को तौरात दी थी!
यहूदी तौरात के अनुसार ही जीवनचर्या करते हैं, और इजरायल का संविधान भी तौरात पर ही आधारित है!
कुरान लगभग 80% तौरात की ही कापी-पेस्ट है, और बाईबल का Old testament भी तौरात ही है! अर्थात 80% बाइबल भी तौरात ही है! अब रही बात इन्जील की तो, यह बाइबल के New testament का ही नाम है! इन्जील एक नही, लगभग चार है, जिसे यीशु (Jesus) की मृत्यु के बाद उनके चेलों जैसे मत्ती (Matthew), मरकस (Mark), यहून्ना (John) और लूका (Luke) आदि ने लिखी! उसके अध्यायों के नाम भी इन्ही के नाम पर है!
मतलब यह साफ है कि अल्लाह का यह दावा (इन्जील हमने उतारी) सरासर झूठ है!
सवाल यह है कि अल्लाह ने आखिर कौन सी इंजील उतारी!
जीसस की मृत्यु के बाद क्या अल्लाह ने उनके चेलों को इंजील दिया?
कुरान और तौरात मे लगभग सारी बातें मेल खाती है, पर शादी-ब्याह और तलाक की शर्ते एकदम उलट है!
तौरात व्यवस्था विवरण-24:1-4 मे अल्लाह तलाक के बारें मे कहते हैं कि यदि पुरुष स्त्री को तलाक देना चाहे तो त्यागपत्र लिखकर उसके हाथ मे दे, और घर से निकाल दे!
जबकि अल्लाह ने कुरान-2/228 मे तीन महीने मे तीन तलाक वाला लम्बा प्रोसेस बताया है!
दूसरी बात तौरात का कहना है कि अगर पुरुष ने महिला को तलाक दे दिया, और उस महिला ने किसी दूसरे पुरुष से शादी कर ली, तो वह महिला अशुद्ध हो गयी, और उसका पहला पति दुबारा से चाहकर भी उसे अपनी पत्नि नही बना सकता, जबकि कुरान का आदेश ठीक इसके विपरीत है! कुरान-2/230 मे अल्लाह ने हुक्म दिया है कि अगर एकबार महिला का तलाक हो गया तो वह महिला तब तक हलाल (वैध) नही है, जब तक किसी दूसरे मर्द से ब्याह न कर ले, फिर यदि दूसरा मर्द उसे तलाक दे दे, तो दोनो पुनः शादी कर सकते है!
मतलब तौरात मे जो अशुद्ध है, कुरान मे वही शुद्धिकरण है!
आगे भी कुरान और तौरात आपस मे टकराते है! तौरात के इसी अध्याय के 27:20-22 मे लिखा है कि जो अपनी सौतेली माता, और सौतेली बहन से सम्बन्ध करे वह शॉपित है, जबकि कुरान-4/23-24 मे बहुत ही साफ लिखा है कि मुसलमान केवल अपनी दूध की साझीदार बहने और वही माँ जिसने दूध पिलाया है, उसी से ब्याह नही कर सकता, बाकी सब वैध है!
कुरान-33/37 मे तो मुँहबोली बहुओं से भी शादी कर लेने का आदेश है!
अब सवाल यह है कि अगर दोनो किताब अल्लाह की है, परमेश्वर यहोवा और अल्लाह एक ही हैं, तो इतना बड़ा अन्तर कैसे?
No comments:
Post a Comment