Thursday, 26 November 2020

आर्य आगमन।

प्रसिद्ध विद्वान् राहुल सांकृत्यायन जी अपनी पुस्तक 'वोल्गा टू गंगा ' में आर्य वैदिकों को बाहर (वोल्गा के उत्तर से) का आया तो बताते हैं , बाल गंगाधर तिलक जी भी अपनी पुस्तक ' the artic home in vedas' में आर्य वैदिकों को बाहर (उत्तरी ध्रुव)का आया बताते हैं ।

गुरुकुल कांगड़ी विश्वविधालय के पूर्व उपकुलपति डॉक्टर सत्यकेतु विद्यालंकार  अपनी पुस्तक ' भारतीय संस्कृति और उस का इतिहास ' के पेज नंबर 12 में लिखते हैं " आर्यो की जो शाखाएं भारत में प्रविष्ट हुई , उसे इस देश में अनेक आर्यभिन्न जातियो के साथ युद्ध करने पड़े थे .आर्यो वैदिकों  ने इस देश में विकसित हुई पूर्ववर्ती सभ्यताओ के स्थान पर अपनी सत्ता स्थापित की ।वेदों में इन्हें दस्यु या दास कहा गया । दस्यु या दास लोगो को अनास( नासिका हीन या छोटी नाक वाले जिनकी भाषा अलग होती थी) अच्छे किलो में निवास करते थे उन से विजय प्राप्त करने के लिए आर्यो को घनघोर युद्ध करने पड़ते थे "।

धर्म ग्रंथो में भी इसके स्पष्ट संकेत मिलते हैं की आर्य वैदिक का मूल स्थान भारत नहीं था ।ऋग्वेद पूरा आर्य और अनार्यो के युद्ध से भरा पड़ा है जैसे की -

इंद्र ने शंबर के 99 नगरो को नष्ट किया ( ऋग्वेद मंडल 5 , सूक्त 29 , मन्त्र 6)
इंद्र ने वृत आदि असुरो को 81 बार मारा ( ऋग्वेद 1/53/9)
इंद्र ने 30 हजार राक्षसो को मारा ( ऋग्वेद 4/30/21)
इंद्र ने युद्ध करने आये सुश्रवा नाम के राजा और उसके साथ 20 राजाओ , अनुचरों को पराजित किया  ( ऋग्वेद 1/53/9)
इंद्र हमारी स्तुति जान के दस्यु के प्रति अस्त्र निक्षेप करो (1/103/3)

इसी प्रकार आर्यो -अनार्यो के युद्धों से ऋग्वेद का एक बहुत बड़ा भाग घेरे हुए है जिसमे आर्य वैदिक मुख्य निवासियो जिन्हें दस्यु /राक्षस / असुर कहा , उनसे युद्ध करते हैं और उनका संहार और हराते हैं ।

अब ये अनार्य कौन थे ?इसको स्पष्ट करते हुए दयानंद जी सत्यार्थ प्रकाश में कहते हैं "ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य द्विजो का नाम आर्य और शुद्रो का नाम अनार्य '( अष्टम समुल्लास )

प्रसिद्ध पुरात्तव विज्ञानी और इतिहासकार सर जान मार्शल ने सिंधु घाटी सभ्यता और वैदिक सभ्यता का तुलनात्मक अध्यन किया और निष्कर्ष निकाला -

1- आर्यो के जीवन में घोड़ो का बहुत अधिक महत्व था पर सिंधु घाटी के लोग इस से अपरचित मालुम होते है 
2- सिंधु घाटी के लोग हाथी और सिंह से परचित थे पर आर्य अपरचित 
3- सिंधु घाटी के लोग मूर्ति/ स्तूप पूजक थे जबकि वेदों में मूर्ति पूजा का विरोध है ( न तस्य प्रतिमास्ति)

ऋग्वेद में आर्य वैदिक द्वारा अपने आये रास्ते पर कब्जे का भी जिक्र करते हैं-

"जिस रास्ते से हमारे पितृ गए वह रास्ता अभी भी हमारे अधिकार में है ' ( ऋग्वेद मंडल 10,सूक्त 14 मन्त्र 2)

आर्य वैदिक  भारत में साथ नहीं आये थे बल्कि की अलग अलग समय में टुकड़ियों में आये थे और यंहा आने का जो मार्ग था ( तिब्बत आदि) वह उनके वंशजो को पता था । डी डी कोसंबी अपनी पुस्तक प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता में लिखते हैं कि आर्यो की पहली खेप सिन्धु सभ्यता के समय आई और उसे नष्ट किया।

  





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