भारत में ब्राह्मणों में दो तरह का झूठ फैलाया
(1) अनपढ़ जाहिलों के लिए
(2) पढ़े-लिखे और जानकार लोगों के लिए
यही थ्योरी ब्राह्मणों ने हर जगह हर किसी पर लागू की गौतम बुद्ध के साथ भी यही किया गया
अनपढ़ और जाहिल लोगों से कहा गया बुद्ध विष्णु के अवतार हैं
और पढ़े-लिखे जानकार समझदार लोगों से कहा गया गौतम बुद्ध वेदों के विरोधी थे
गौतम बुद्ध ने यग प्रथा मे होने बाली बलि प्रथा का विरोध किया गौतम बुद्ध ने वेदों का पुरजोर विरोध किया और अपना अलग बौद्ध धर्म बनाया
यह पोस्ट अनपढ़ जाहिल आैर पढ़े लिखे जानकार समझदार दोनों लोगों के लिए है
(1) अनपढ़ जाहिलो के लिए
क्या बुद्ध विष्णु के अवतार हैं
चलिए वेदों से मालूम कर लेते हैं सच क्या है
बुद्ध को विष्णु का अवतार मानना उचित नहीं है.
तर्क यह है कि किसी भी पुराण में उनके विष्णु अवतार होने का कोई उल्लेख नहीं मिलता है…
… कल्किपुराण के पूर्व के अग्नि पुराण (49/8-9) में बुद्ध प्रतिमा का वर्णन मिलता है:-
“भगवान बुद्ध ऊंचे पद्ममय आसन पर बैठे हैं. उनके एक हाथ में वरद तथा दूसरे में अभय की मुद्रा है.
वे शान्तस्वरूप हैं. उनके शरीर का रंग गोरा और कान लंबे हैं. वे सुंदर पीतवस्त्र से आवृत हैं.” वे धर्मोपदेश करके कुशीनगर पहुंचे और वहीं उनका देहान्त हो गया. कल्याण पुराणकथांक (वर्ष 63) विक्रम संवत 2043 में प्रकाशित. पृष्ठ संख्या 340 से उद्धृत.
इस वर्णन में यह कहीं नहीं कहा गया कि वे विष्णु अवतार हैं.
हिन्दुओं के अठारह महापुराणों तथा उपपुराणों में बुद्ध के अवतार होने की गणना नहीं है।
और ना ही चारों वेदों में बुद्ध के अवतार का कोई जिक्र है
हालांकि कल्कि पुराण में उनके अवतार होने का उल्लेख मिलता है।
अब सवाल यह उठता है कि कल्कि पुराण कब लिखा गया? यह विवाद का विषय हो सकता है।
कल्कि पुराण में बुद्ध को विष्णु के 23वें अवतार के रूप में चित्रित किया जाता रहा है।
अब मेरा सवाल यह है कल्कि पुराण में कौन से बुद्ध को विष्णु का अवतार कहा गया है
बुद्ध किसी का नाम नहीं है बुद्ध एक उपाधि है
बौद्ध साहित्य में अब तक 58 से भी ज्यादा बुद्ध हुए हैं
जिनमें कुछ के नाम इस प्रकार हैं
बौद्ध साहित्य इतिहास पर नजर डालें तो पाएंगे कि
प्रवीण बुद्ध
निपुण बुद्ध
अभिज्ञ बुद्ध
कुशल बुद्ध
मैत्रेय बुद्ध
गौतम बुद्ध
कश्यप बुद्ध
शक्र बुद्ध
अर्यमा बुद्ध
शाक्यसिंह बुद्ध
क्रतुभुक बुद्ध
कृती बुद्ध
सुखी बुद्ध
शशांक बुद्ध
निष्णात बुद्ध
सत्व बुद्ध
शिक्षित बुद्ध
सर्वग्य बुद्ध
सुनत बुद्ध
रुरु बुद्ध
मारजित् बुद्ध,
प्रबुद्ध बुद्ध
इनमें वर्तमान कलियुग में तीन बुद्ध हुए हैं।
भगवान् बुद्ध, सिद्धार्थ बुद्ध और गौतम बुद्ध दरअसल ये तीनों ही अलग-अलग हैं।
भगवान् बुद्ध 2102-1982 ईपू में हुए तो
सिद्धार्थ बुद्ध 1887-1807 ईपू में
गौतम बुद्ध 563-483 ईपू में हुए।
कश्यप बुद्ध, ककुच्छंद बुद्ध और कनकमुनि बुद्ध के जन्मस्थान पर जाने का यात्रा - विवरण
चीनी इतिहासकार फाहियान ने अपनी पुस्तक के इक्कीसवें खंड में लिखा है
अब आप खुद बताओ आप किस बुद्ध को विष्णु का अवतार कहोगे
आप जिस किसी भी बुद्ध का नाम लेंगे इससे यह साबित हो जाएगा कल्कि पुराण उसी के वक्त में लिखा गया
अगर आपने सबसे पहले बुद्ध का नाम लिया तो आप सिंधु घाटी की सभ्यता में पहुंच जाएंगे
आपको भारत का इतिहास दोबारा लिखना पड़ेगा
आपकी जानकारी के लिए बता दूं सिंधु घाटी की सभ्यता में सिंधु लिपि मिली है संस्कृत भाषा नहीं मिली
इसलिए कल्कि पुराण होने का तो सवाल ही नहीं उठता
बौध्द साहित्यों में बृहमा विष्णु महेश नौ देवियां यानी लक्ष्मी सरस्वती दुर्गा किसी का भी जिक्र नहीं है।तो बुद्ध कैसे विष्णु अवतार हुऐ।
अगर बुद्ध विष्णु के अवतार थे *तो किसी भी हिन्दू मंदिर में गौतम बुद्ध की प्रतिमा क्यों नहीं होती ?*
कोई भी हिन्दू धर्म के ठेकेदार ने *अपने बच्चे का नाम "तथागत"या "महात्मा बुद्ध" क्यों नहीँ रखा?*
आचार्य सत्यनारायण गोयन्का (बुद्ध अनुयाई)और कंचिकामकोटी पीठ के तत्कालीन शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती (हिन्दू महासभा)ने
11नवम्बर 1999 सारनाथ में सयुक्त रूप से घोषणा की थी कि बुद्ध विष्णु के अवतार नही थे।
अब भी अगर जाहिलो की समझ में ना आए तो क्या करें
(2) पढ़े लिखे जानकार और समझदार लोगों के लिए
कहते हैं बुद्ध ने वेदों का विरोध किया बुद्ध ने बलि प्रथा का विरोध किया
बुद्ध ने वैदिक सभ्यता का विरोध किया इसीलिए अपना एक अलग बौद्ध धर्म बनाया
चलिए इसकी भी जांच कर लेते हैं
अगर गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म चलाया तो बौद्ध स्तूप गौतम बुद्ध बाद ही बने होंगे
और वेदों का विरोध अगर गौतम बुद्ध ने किया तो वेद गौतम बुद्ध से पहले ही रहे होंगे
और होना भी यही चाहिए वरना किसका विरोध कैसा विरोध
पूरी दुनिया का इतिहास बताता है हर भाषा अपना साहित्य लिखती है
और बाद में आने वाली भाषाएं पहले की भाषा का साहित्य अपनी भाषा में लिखती है
गौतम बुद्ध के वक्त प्राकृत भाषा और पाली भाषा थी
बौद्ध साहित्य प्राकृत भाषा और पाली भाषा का मिला जुला रूप है
आइए भाषाओं का इतिहास भी देख ले
प्राकृत भाषा ने संस्कृत का कोई साहित्य नहीं लिखा
पाली भाषा ने भी संस्कृत का कोई साहित्य नहीं लिखा
लेकिन आश्चर्य संस्कृत भाषा ने प्राकृत भाषा और पाली भाषा का साहित्य अपनी यानी संस्कृत भाषा में लिखा है
दुनिया की भाषाओं के साहित्यक इतिहास के मुताबिक
(1)प्राकृत भाषा
(2)पाली भाषा
(3) संस्कृत भाषा
इस हिसाब से संस्कृत भाषा तीसरे नंबर की साबित होती है
पुरातात्विक दृष्टिकोण से वैदिक साहित्य से बौद्ध साहित्य प्राचीन है।
इस हिसाब से तो प्राकृत भाषा और पाली भाषा के साहित्य मे संस्कृत का लिखा तो मिलना मुश्किल है
चलिए एक बार फिर वेदो को देखते हैं
आश्चर्यजनक किंतु सत्य
वेद खुद बुद्ध और स्तूप के होने की गवाही दे रहे हैं
नामुमकिन यह कैसे मुमकिन है के ऋग्वेद में बुद्ध और बौद्ध स्तूप का जिक्र हो
फिर तो इसका सीधा सा मतलब है जब बौद्ध धर्म था तभी वेद लिखे गए
यह बात मैं नहीं कह रहा हूं ऋग्वेद ने खुद बुद्ध और बौद्ध स्तूप होने की गवाही दी है
कहते हैं बुद्ध ने बलि प्रथा का विरोध किया
जहाँ यज्ञ होगा, वही बलि- प्रथा होगी, जरूरी नहीं है।
बलि की परंपरा केल्ट लोगों में थी,
स्लाविक लोगों में थी,
जर्मैनिक लोगों में थी।
क्या ये सभी लोग यज्ञ कर रहे थे?
बलि की परंपरा मेसोपोटामिया में थी,
फोनीशिया में थी,
अफ्रीका में थी।
क्या ये सभी देश यज्ञ कर रहे थे?
भारत के अनेक आदिम समाज में,
ट्राइब्स में,
यहाँ तक कि सिंधु घाटी की सभ्यता के सीलों पर बलि का दृश्यांकन है।
क्या ये सभी यज्ञ कर रहे थे?
बुद्ध ने बलि का विरोध किया, जीव हिंसा का विरोध किया,
इसका कतई मतलब यह नहीं है कि वे वैदिक यज्ञ का विरोध कर रहे थे।
ये अग्नि - होम वाला वैदिक यज्ञ, जिसे अवेस्ता में यश्न कहा गया है, बुद्ध के बाद भारत में आया है।
बुद्ध ने यज्ञ में दी जाने वाली बलि प्रथा का विरोध किया
ऐसा इसलिए कहा जाता है कि वेदों को गौतम बुद्ध से प्राचीन साबित किया जा सके
गौतम बुद्ध ने वैदिक साहित्य का विरोध नहीं किया था
बल्कि वैदिक साहित्य ही गौतम बुद्ध के विरोध में लिखा गया है।
जो था ही नहीं उसका विरोध कोई कैसे कर सकता है।
यह ऋग्वेद के प्रथम मंडल, सूक्त 24, छठवां अनुवाक का श्लोक संख्या 7 है।
२६०.अबुध्ने राजा वरुणो वनस्योर्ध्वं स्तूपं ददते पूतदक्षः। नीचीना स्थुरुपरि बुध्न एषामस्मे अन्तर्निहिताः केतवः स्युः॥७॥
पवित्र पराक्रम युक्त राजा वरुण(सबको आच्छादित करने वाले) दिव्त तेज पुञ्ज सूर्यदेव को आधारहित आकाश मे धारण करते है। इस तेज पुञ्ज सूर्यदेव का मुख नीचे की ओर और मूल ऊपर की ओर है। इसले मध्य मे दिव्य किरणे विस्तीर्ण होती चलती हैं॥७॥
इतिहासकार भाषा विज्ञानी राजेंद्र सिंह के के मुताबिक ऊपर की गई व्याख्या गलत है भाषा विज्ञान के हिसाब से सही व्याख्या इस तरह होगी
यह अर्थ सायण भाष्य पर आधारित है और गलत है। लगभग अनुवादकों ने ऐसा ही अर्थ किया है।
अर्थ करते वक्त संदर्भ को देखना जरूरी होता है। जैसा कि आप देख रहे हैं
कि वरुण राजा की उपाधि अबुध्ने है। मतलब कि वरुण बौद्ध विरोधी राजा थे।
आगे स्तूप को उलटने की बात है। इसीलिए स्तूप का मुख नीचे और मूल ऊपर है।
श्लोक में यह भी है कि स्तूप में बुद्ध निवास करते हैं -
बुध्न अन्तर्निहिताः। अब इसके आगे के श्लोक पर ध्यान दीजिए,
जिसमें वरुण के इस कार्य की प्रंशसा है। कारण कि वरुण हृदय को कष्ट पहुँचाने वालों ( बौद्ध ) के विनाशक हैं।
बुद्ध के वास का वर्णन है मगर वह वास प्रतीकात्मक रूप से स्तूप से संबंधित करके वर्णित है,विरोधी वरूण के द्वारा स्तूप के उलटने अर्थात् बुद्ध के विचार पर आधारित संस्कृति सभ्यता को खत्म करने से संबंधित श्लोक का वर्णन है,
ॠग्वेद में स्तूप का वर्णन है, स्तूप में बुद्ध के वास का भी वर्णन है।
बताइए कौन-सा पुराना है बुद्ध या वेद?
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ॠग्वेद में स्तूप का वर्णन है, स्तूप में बुद्ध के वास का भी वर्णन है। बताइए कौन-सा पुराना है बुद्ध या वेद?
स्तूप ....बुध्न एषामस्मे अन्तर्निहिताः अर्थात इसमें बुद्ध अन्तर्निहित हैं।
यह ऋग्वेद के प्रथम मंडल, सूक्त 24, छठवां अनुवाक का श्लोक संख्या 7 है।
इसमें राजा वरुण को अबौद्ध( अबुध्ने ) राजा भी कहा गया है। पूरा का पूरा अर्थ एक दूसरे से जुड़ा हुआ है।
वेद सिंधु सभ्यता के काफी बाद की रचना है जबकि जबकि सिंधु घाटी स्थल पर स्तूप मिले हैं जिन्हें अक्सर कुषाण कालीन कहा जाता है।
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