Saturday, 28 November 2020

बोद्धधर्म अमरीका में, बोद्धधर्म से प्रेणना।

अमेरिका में बौद्ध सभ्यता!

आचार्य चतुरसेन शास्त्री ने अपनी पुस्तक "बुद्ध और बौद्ध धर्म "में प्रोफेसर फायरमेन के हवाले से बताया है कि 14 सौ साल पहले बौद्ध भिक्षु अमेरिका पहुँचे थे और वहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार किए थे।

चीन के प्राचीन ग्रंथों में जो " फुसम" नामक देश का वर्णन है ,वह मेक्सिको है। ह्वेनसांग ने लिखा है कि 5 वीं शती में सुंगवंशीय राजा थामिन के शासनकाल में 5 बौद्ध- भिक्षु काबुल से फुसम ( मेक्सिको ) गए थे और वहाँ उन्होंने बौद्ध धर्म का प्रचार किए। आगे ह्वेनसांग ने फुसम देश के फल, धातु और आचार- विचार के बारे में लिखा है जो अमेरिका के मूल निवासियों तथा मेक्सिको की सीमा पर रहनेवाले लोगों से मिलता- जुलता है।

चतुरसेन शास्त्री ने बताया है कि ये 5 बौद्ध- भिक्षु रूस की उत्तरी सीमा पर कामश्चारका प्रायद्वीप से पैसिफिक-  महासागर को पार कर एलास्का की ओर से अमेरिका पहुँचे थे और फिर दक्षिण की ओर से मेक्सिको गए थे। इसीलिए मैक्सिको के मूल निवासियों की सभ्यता बौद्ध सभ्यता से मेल खाती है।

मैक्सिको में पुरोहित को " ग्वाते- मोट- निज " कहते हैं, वह गोतम का रूप है। और भी जैसे - शाकारापेक , शाकापुलाश। ये सब शाक्य शब्द से मिलते हैं। पालेस्के में एक प्राचीन बुद्ध की मूर्ति है , जिसे वे "शाकामोल " कहते हैं । शाकामोल अर्थात शाक्यमुनि।


*आचार्य चतुरसेन*

ईसा मसीह के जन्म से पहले भारत के सम्राट अशोक ने फ़िलिस्तीन में बौद्ध-धर्म प्रचारकों को भेजा था। मसीह के समय में भी, बौद्ध-भिक्षु वहाँ उपस्थित थे। मसीह के उपदेश और जीवन पर बौद्ध धर्म की इतनी गहरी छाप पड़ने का कारण ही यही था। बाइबल में, बौद्ध सिद्धांतों का मिलना, रोमन कैथॉलिक लोगों का पजाक समुदाय धर्मानुष्ठान, रीति-नीति सभी बौद्ध-धर्म का अनुकरण मात्र है। 
.
जर्मन पंडित Arthur Schopenhauer ने यह बात स्वीकार की है। एक रूसी ग्रंथकार Nicolas Notovitch को तिब्बत में एक ग्रंथ मिला था, उससे पता लगा कि मसीह ने स्वंय *भारत और तिब्बत में रहकर बौद्ध-धर्म का अनुशीलन किया था*। 


■■■


*बी॰ आर॰ अंबेडकर*

आप ईसाइयों के चर्च में जाइए। वहाँ क्या होता है? हर हफ्ते वहाँ लोग इकट्ठे होते हैं। वे प्रार्थना करते हैं, फिर पादरी उन्हें “बाइबल” के उपदेश देता है। वह उन्हें याद दिलाता है कि यीशु मसीह ने उन्हें क्या संदेश दिया है। 
.
आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि *बाइबल की 90% से अधिक शिक्षाएँ बौद्ध धम्म से नकल की गई हैं*। - 


■■■

*आचार्य रजनीश (ओशो)*

जब भी कोई सत्य के लिए प्यासा होता है, अनायास ही वह भारत आने के लिए उत्सुक हो उठता है। अचानक पूरब की यात्रा पर निकल पड़ता है। और यह केवल आज की ही बात नहीं है। यह उतनी ही प्राचीन बात है, जितने पुराने प्रमाण और उल्लेख मौजूद हैं। आज से 2500 वर्ष पूर्व, सत्य की खोज में *पाइथागोरस* भारत आया था। *ईसा मसीह भी भारत आए थे*. 
.
*ईसा मसीह के 13 से 30 वर्ष की उम्र के बीच का बाइबिल में कोई उल्लेख नहीं है।* और यही उनकी लगभग पूरी जिंदगी थी, क्योंकि 33 वर्ष की उम्र में तो उन्हें सूली पर ही चढ़ा दिया गया था। तेरह से 30 तक (17 सालों) का हिसाब बाइबिल से गायब है! इतने समय वे कहां रहे? आखिर बाइबिल में उन सालों को क्यों नहीं रिकार्ड किया गया? उन्हें जानबूझ कर छोड़ा गया है, कि ईसायत मौलिक धर्म नहीं है, कि ईसा मसीह जो भी कह रहे हैं वे उसे भारत से लाए हैं. यह बहुत ही विचारणीय बात है। वे एक यहूदी की तरह जन्में, यहूदी की ही तरह जिए और यहूदी की ही तरह मरे। स्मरण रहे कि वे ईसाई नहीं थे, उन्होनें तो ईसा और ईसाई, ये शब्द भी नहीं सुने थे। फिर क्यों यहूदी उनके इतने खिलाफ थे? यह सोचने जैसी बात है, आखिर क्यों ? न तो ईसाईयों के पास इस सवाल का ठीक-ठाक जवाबा है और न ही यहूदियों के पास। क्योंकि इस व्यक्ति ने किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। ईसा उतने ही निर्दोष थे जितनी कि कल्पंना की जा सकती है. 
.
पर उनका अपराध बहुत सूक्ष्म था। पढ़े-लिखे यहूदियों और चतुर रबाईयों ने स्पष्ट देख लिया था कि वे पूरब से विचार ले रहे हैं, जो कि गैर यहूदी हैं। वे कुछ अजीबोगरीब और विजातीय बातें ले रहे हैं। और यदि इस दृष्टिकोण से देखो तो तुम्हें समझ आएगा कि क्यों वे बार-बार कहते हैं- ''अतीत के पैगंबरों ने तुमसे कहा था कि यदि कोई तुम पर क्रोध करे, हिंसा करे तो आंख के बदले में आंख लेने और ईंट का जवाब पत्थर से देने को तैयार रहना। लेकिन मैं तुमसे कहता हूं कि अगर कोई तुम्हें चोट पहुंचाता है, एक गाल पर चांटा मारता है तो उसे अपना दूसरा गाल भी दिखा देना।'' यह पूर्णत: गैर यहूदी बात है। उन्हों ने ये बातें गौतम बुद्ध और महावीर की देशनाओं से सीखी थीं. ईसा जब भारत आए थे-तब बौद्ध धर्म बहुत जीवंत था, यद्यपि बुद्ध की मृत्यु हो चुकी थी। गौतम बुद्ध के पांच सौ साल बाद जीसस यहां आए थे। पर बुद्ध ने इतना विराट आंदोलन, इतना बड़ा तूफान खड़ा किया था कि तब तक भी पूरा मुल्क उसमें डूबा हुआ था। बुद्ध की करुणा, क्षमा और प्रेम के उपदेशों को भारत पिए हुआ था. 
.
जीसस कहते हैं कि ''अतीत के पैगंबरों द्वारा यह कहा गया था।'' कौन हैं ये पुराने पैगंबर?'' वे सभी प्राचीन यहूदी पैगंबर हैं: इजेकिएल, इलिजाह, मोसेस,- '' कि ईश्वर बहुत ही हिंसक है और वह कभी क्षमा नहीं करता है!? '' यहां तक कि प्राचीन यहूदी पैगंबरों ने ईश्वर के मुंह से ये शब्द भी कहलवा दिए हैं कि '' मैं कोई सज्जन पुरुष नहीं हूं, तुम्हारा चाचा नहीं हूं। मैं बहुत क्रोधी और ईर्ष्यालु हूं, और याद रहे जो भी मेरे साथ नहीं है, वे सब मेरे शत्रु हैं।'' पुराने टेस्टारमेंट में ईश्ववर के ये वचन हैं, और ईसा मसीह कहते हैं, '' मैं तुमसे कहता हूं कि परमात्मा प्रेम है।'' यह ख्याल उन्हें कहां से आया कि परमात्मा प्रेम है? 
.
*गौतम बुद्ध की शिक्षाओं के सिवाए दुनिया में कहीं भी परमात्मा को प्रेम कहने का कोई और उल्लेख नहीं है।* उन 17 वर्षों में जीसस इजिप्त, भारत, लद्दाख और तिब्बत की यात्रा करते रहे। यही उनका अपराध था कि वे यहूदी परंपरा में बिल्कुल अपरिचित और अजनबी विचारधाराएं ला रहे थे। न केवल अपरिचित बल्कि वे बातें यहूदी धारणाओं के एकदम से विपरीत थीं। तुम्हें जानकर आश्चकर्य होगा कि अंतत: उनकी मृत्यु भी भारत में हुई! और ईसाई रिकार्ड्स इस तथ्य को नजरअंदाज करते रहे हैं। यदि उनकी बात सच है कि जीसस पुनर्जीवित हुए थे तो फिर पुनर्जीवित होने के बाद उनका क्यां हुआ? आजकल वे कहां हैं ? क्योंकि उनकी मृत्यु का तो कोई उल्लेख है ही नहीं । 

*जैन और बौद्ध धर्म की अहिंसा को ईसा मसीह ने जी कर दिखाया*। 

लगता है ईसाई धर्म पर उन्हीं लोगों का कब्जा है जिन लोगों ने मसीह को सूली पर लटकाया।

■■■■■

येशू मसीह, तथागत बुद्ध के अनुयायी उपासक थे । हाल ही में,  BBC की एक  डाक्यूमेंट्री में यह निष्कर्ष निकाला गया  है कि "येशु मसीह तथागत  बुद्ध के उपासक थे, और उन्होंने अपना कुछ समय भारत में बुद्ध धम्म को जानने एवं परम ज्ञान ध्यान साधना के लिए व्यतीत किया था.।
        
यीशु मसीह सभी ईसाइयों की श्रद्धा भाज्य है। कई कथाएं दंतकथाएँ उनके बारे में सारी दुनियाँ में प्रचलित है। येशु मसीह ने अपने जीवन काल में प्रेम एवं करुणा की सीख सारी दुनिया को दी ।
             
बाइबिल के अनुसार जीसस ऑफ़ नाज़रेथ के  नाम से प्रसिद्ध येशु मसीह का जन्म  फिलिस्तान के एक छोटेसे कस्बे बेथलहेम में इसवी पूर्व 04, मे हुआ था। इनकी माता का नाम मरियम था ।  इनके पिता का नाम यूसुफ था जो बढ़ई का कार्य करते थे । वहां के क्रूर राजा हेरोद की डर की वजह से यूसुफ गलीलिया छोड़कर यहूदिया प्रांत के बेथलेहेम नामक नगरी में जाकर रहने लगे, वहाँ ईसा का जन्म हुआ। शिशु को राजा हेरोद के अत्याचार से बचाने के लिए यूसुफ मिस्र भाग गए। हेरोद 4 ई.पू. में चल बसे अत: ईसा का जन्म संभवत: 4 ई.पू. में हुआ था। हेरोद के मरण के बाद यूसुफ लौटकर नाज़रेथ गाँव में बस गए।   बाइबिल (इंजील) में उनके 13 से 29 वर्षों के बीच का कोई ‍ज़िक्र नहीं मिलता। 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने यूहन्ना (जॉन) से पानी में डुबकी (दीक्षा) ली। डुबकी के बाद ईसा पर पवित्र आत्मा आया। 40 दिन के उपवास के बाद ईसा लोगों को शिक्षा देने लगे।

यहूदियों के कट्टरपन्थी रब्बियों (धर्मगुरुओं) ने ईसा का भारी विरोध किया। उन्हें ईसा में मसीहा जैसा कुछ ख़ास नहीं लगा। उन्हें अपने कर्मकाण्डों से प्रेम था। ख़ुद को ईश्वरपुत्र बताना उनके लिये भारी पाप था। इसलिये उन्होंने उस वक़्त के रोमन गवर्नर पिलातुस को इसकी शिकायत कर दी। रोमनों को हमेशा यहूदी क्रान्ति का डर रहता था। इसलिये कट्टरपन्थियों को प्रसन्न करने के लिए पिलातुस ने ईसा को क्रूस (सलीब) पर मौत की दर्दनाक सज़ा सुनाई।

 उनकी उम्र के 13 से 29 साल उन्होंने कहाँ बिताये इस विषय में बाइबल  या अन्य किसी पाश्चिमात्य ऐतिहासिक दस्तावेजों में कोई ठोस उल्लेख नहीं है।
          
मसीह के जिंदगी के इन 16 वर्षों के काल को "The Lost Years" इस संज्ञा से भी जाना जाता है। इस  16 वर्ष के काल के बारे में खोजबीन चलती रही, सन 1887 में इस विषय में कुछ तथ्य सामने आये। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में, निकोलस नोतोविच नामक एक रूसी डॉक्टर ने भारत, तिब्बत और अफगानिस्तान का दौरा किया। उस प्रवास काल के दौरान उन्हें जो अनुभव हुए, उन्होंने उसे " The Unknown Light Of Christ" नामक एक किताब में शब्दबद्ध किया जो सन 1894 में प्रकाशित हुई। 
          
प्रवास के दौरान, सन 1887 के दौरान नोतोविच, अपघात ग्रस्त हो गए थे , जिस वजह से उनका एक पैर  बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया था। उस दौरान उन्होंने ने ल्हासा के एक  बौद्ध मठ जिसे हेमिस मठ के नाम से जाना जाता है, वहाँ शरण ली थी। उस मठ में उन्हें कुछ तिब्बती भाषा में लिखे गए दस्तावेजों का अध्ययन करने का मौका मिला, जो मसीह के बारे में थे। उन्होंने इन दस्तावेजों का भाषांतरण किया, यह दस्तावेज मसीह के उन खोये हुए सालों पर प्रकाश डालते हैं। 
       
नोतोविच ने पाया की , मसीह 13 साल की उम्र से लेकर 29 वर्ष तक भारत में बौद्ध धर्म ग्रंथों का अध्ययन करते रहे , तपस्या करते रहे। और भारतीय विद्वानों ने उन्हें "भगवान का पुत्र" कह के पहली बार संबोधा था। 
      
जब 1887 में उस मठ में नॉतोविच थे, तो एक लामा ने नोथोविच को  मसीह को प्राप्त हुए असीम परम् ज्ञान के बारे में बताया। 

लामा ने  नॉतोविच से कहा "  येशु मसीह महान प्रेषित थे।वह २२ बुद्धों में एक थे । वे दलाई लामा से भी बड़े हैं क्योंकि उनमे भगवान का अंश स्थित हैं । उन्होंने आपको भी ज्ञान दिया है, और उन्होंने हर व्यक्ति को अच्छे और बुरे के बीच अंतर करने के लिए सिखाया है। उनके नाम और उनके कार्य का वर्णन हमारे पवित्र ग्रंथों में किया है।
         
उनके कार्य के बारे में जानकर हमे बड़ी ख़ुशी हुई. साथ ही जिस तरह से रोमन लोगों ने उन्हें सूली पर लटकाकर मृत्युदंड दिया वह जानकर हम बड़े शोकाकुल हुए। 
नोस्टोविच के सिद्धांत के मुताबिक, 
यह दस्तावेज  बखूबी से उन 16 सालो के बारे में बताते है जिन्हे "The Lost Years" के नाम से जाना जाता है।

जब एक महान बुद्ध या लामा की तरह एक पवित्र व्यक्ति जीवन समाप्त करता है, तो  बुद्धिमान भिक्खू  ग्रह, सितारों और अन्य संकेतों की पहचान करते हैं और उनका अगला जन्म जहाँ होगा उस जगह तक पहुँच जाते है।जब वह बच्चा थोड़ा बड़ा हो जाता है, तो उसे बुद्ध ज्ञान की दीक्षा दी जाती है।
      
शोधकर्ताओं के अनुसार "The Three Wise Men" इस प्रसिद्द कथा का आधार यही है। ऐसी मान्यता है की 13 साल की उमर में येशु को भारत लाया गया और उन्हें दीक्षा दी गयी। जिस दौरान उन्हें दीक्षा मिली उस समय बुद्ध धर्म का उदय हो के लगभग 500 साल गुजर चुके थे और ईसाई धर्म का उदय भी नहीं हुआ था। 
        
एक वरिष्ठ लामा ने IANS नामक समाचार एजेंसी को बताया, "येशु मसीह भारत आये और उन्हें कश्मीर में बुद्ध दीक्षा मिली। बुद्ध के करुणा एव प्रेम के संदेशों से उन्होंने प्रेरणा ली। 
       
दुक्पा बौद्ध संप्रदाय एवम  हेमिस मठ के प्रमुख, ग्वालेंग रुक्पा भी  इस कहानी की पुष्टि करते है । इन 224 छंदों को अन्य लोगों द्वारा भी भाषांतरित किया गया हैं। रूसी दार्शनिक और वैज्ञानिक निकोलस रोरिच ने भी  इस मठ में वर्ष 1942 में वास्तव्य किया था, और इन दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद वह भी इसी निष्कर्ष पर पहुंचे थे। उन्होंने इस विषय में आगे कहा है की,  मसीह ने भारत की वाराणसी जैसी कई नगरियों में वास्तव्य किया। सभी लोग उनसे प्रेम करते थे, मसीह का व्यवहार  सभी के प्रति बेहद समता भरा एवं करुणामय था। मसीह ने अपने वास्तव्य में काफी लोगों को धर्म के प्रति मार्गदर्शन किया। जीसस क्राइस्ट ने भारत के शहर जैसे जगन्नाथ पुरी, वाराणसी और राजघाट में धम्म दान दिया और लोगों को अज्ञान से मुक्त होने में सहायता की।  इस  वजह से वह कुछ लोगों के रोष का कारण बने। तत पश्चात उन्होंने करीबन 6 साल हिमालय में वास्तव्य किया , जिस दौरान वह साधना में रत रहे। 
           

हॉलजर केर्स्टन नामक एक जर्मन अभ्यासक ने भी इस बात की पुष्टि की है। "Jesus Lived In India" नामक  किताब में उन्होंने इस विषय विस्तृत जानकारी दी है। उन्होंने कहा हैं "मसीह कुछ व्यापारियों के साथ में भारत वर्ष में सिंध नामक प्रान्त में पहुंचे। वहीं पर पहली बार वह बुद्ध से रूबरू हुए, तत पश्चात उन्होंने पाँच नदियों के प्रदेश यानी पंजाब में भ्रमण किया। अपने जीवन का कुछ समय उन्होंने जगन्नाथ पूरी में जैन मुनियों के साथ भी बिताया।  इस विषय में उन्होंने बीबीसी पर एक डॉक्यूमेंट्री भी प्रदर्शित की है जिसका नाम है "Jesus Was A Buddhist Monk".  

       
शोधकर्ता ने इस डॉक्यूमेंट्री में बताया है, कि सूली पर चढ़ाये जाने की सजा से यीशु मसीह को रिहा कर दिया गया था, वह फिर से भारत वापस आये । क्योंकि वे इस क्षेत्र को बहुत पसंद करते थे। मृत्यु को चकमा देकर वह अफगानिस्तान में पहुँचे और वहाँ पर स्थित यहूदी लोगों के साथ अपना कुछ जीवन व्यतीत किया। यह यहूदी लोग भी, यहूदीराजा नेबुकद्नेज़र के उत्पीड़न से बच निकले थे और अफगानिस्तान चले आये थे।
          
इसके अलावा, कश्मीर घाटी के स्थानीय लोग यह भी कहते हैं कि 30 साल की उम्र में येशु यहाँ लौट आये और उन्होंने अपना सारा जीवन इसी कश्मीर घाटी में बहुत खुश और शांतिपूर्ण ढंग से व्यतीत किया। 80 साल की पकी उम्र में उन्होंने देह छोड़ा। इस सिद्धांत को अगर सच माने तो , येशु ने अपनी जवानी के 16 साल और मृत्युदण्ड से छूटने के बाद के करीबन 45 साल, कुल मिलाकर 60 वर्ष भारत और तिब्बत में व्यतीत किये। कई लोगों का मानना है की उनकी समाधी श्रीनगर में रोजबाल मंदिर में स्थित है।

Source : 

!! नमो बुद्धाय !! जय भीम !! जय भारत !!

No comments:

Post a Comment

मूत्र द्वार।

तेरे मुत्र द्वार को में खोल देता हूं जैसे झिल का पानी बन्ध को खोल देता है । तेरे मूत्र मार्ग को खोल दिया गया है जैसे जल से भरे समुद्र का मार...