Thursday, 26 November 2020

खेतिहर नरकगामी।


 संक्षिप्त भविष्यपुराण (गीताप्रेस) उत्तरपर्व, अध्याय-214 (पृष्ठ-386) मे एक कथा लिखी है... कथानुसार एक बार नारद ने विष्णु से जिद किया कि आप मुझे अपनी माया के दर्शन कराइये।

विष्णु ने नारद की बात मान ली, और दोनो ब्राह्मण का वेष बनाकर धरती पर आये। दोनो विदिशा नामक एक नगरी मे गये, जहाँ एक सीरभद्र नामक वैश्य निवास करता था। उस वैश्य ने ब्राह्मण-रूपधारी नारद और विष्णु का खूब आदर-सत्कार करते हुये विनती किया कि 'हे महात्मन्! यदि आप उचित समझे तो हमारे घर भोजन ग्रहण करें'

उस वैश्य की विनय सुनने के बाद ब्राह्मणरूपी विष्णु ने उसे आशिर्वाद दिया की तुम्हारे अनेकों पुत्र/पौत्र हो, और व्यापार तथा खेती मे खूब सफलता मिले।
उक्त आशिर्वाद देकर, बिना भोजन किये ही विष्णु और नारद वैश्य के घर से चले गये! अब दोनो उसी नगरी मे थोड़ी दूर स्थित एक ब्राह्मण के घर आ पहुँचे। ब्राह्मण ने भी दोनो ही मेहमानों का खूब सेवा-सत्कार किया और भोजनादि करवाया, पर जब विष्णु उस ब्राह्मण के घर से जाने लगे तो उन्होने ब्राह्मण को आशीष देते हुये कहा कि "परमेश्वर करें कि तुम्हारी खेती निष्फल हो जाये"

विष्णु के इस अजीब व्यवहार को नारद समझ नही पाये, और उन्होने ब्राह्मण के घर से थोड़ी दूर जाते ही विष्णु से पूँछा कि "हे भगवन्! आपने वैश्य के घर भोजन भी नही किया, फिर भी उसे आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी खेती मे वृद्धि हो, और ब्राह्मण के घर भोजन करने के बाद भी उसकी खेती निष्फल हो जाने का श्राप दे दिया"। प्रभु, आखिर ये क्या रहस्य है?

तब विष्णु ने नारद से कहा- हे नारद! साल भर मछली पकड़ने से जितना पाप होता है, उतना ही पाप एक दिन हल जोतने से होता है। वह सुरभद्र वैश्य अपने पुत्र/पौत्रों के साथ इसी कार्य मे लगा है, अतः वह अपने परिवार सहित नर्क मे जायेगा! इसीलिये हमने उसके घर न विश्राम किया और न ही भोजन किया, लेकिन ब्राह्मण के घर विश्राम और भोजन दोनो किया, इसीलिये उसे ऐसा श्राप दिया जिससे वह इस पाप से बचकर मुक्ति को प्राप्त करे।

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