(2) ब्राह्मणों का इतिहास (इतिहास की नजर से)
जरथुस्त्र अवेस्ता भाषा और वैदिक संस्कृत भाषा में समानता
पारसियों का धर्मग्रंथ 'जेंद अवेस्ता' है,
जो अवेस्ता भाषा में लिखा गया है।
ऋग्वेद और अवेस्ता में बहुत से शब्दों की समानता है।
दोनों में अनेक मामलों में साम्य है। जैसे,
सार्वत्रिक बल 'ऋक्' (वैदिक)
तथा अवेस्ता का 'आशा',
पवित्र वृक्ष तथा पेय 'सोम' (वैदिक)
एवं अवेस्ता में 'हाओम',
मित्र (वैदिक), अवेस्तन और प्राचीन पारसी भाषा में 'मिथ्र'
भग (वैदिक), अव्स्तन एवं प्राचीन पारसी में 'बग'
वैदिक `असुर' ही अवेस्ता का `अहर' है।
ईरानी `मज्दा' का वही अर्थ है, जो वैदिक संस्कृत में `मेधा' का।
वैदिक `मित्र' देवता ही `अवेस्ता' का `मिथ्र' है।
वेदों का यज्ञ `अवेस्ता' का `यस्न' है।
पारसी धर्म की शिक्षा हैः हुमत, हुख्त, हुवर्श्त
जो संस्कृत में सुमत, सूक्त, सुवर्तन अथवा सुबुद्धि, सुभाष, सुव्यवहार हुआ
वस्तुत: यज्ञ, होम, सोम की प्रथाएं दोनों धर्म ग्रंथ में है। अवेस्ता में `हफ्त हिन्दु' और ऋग्वेद में `आर्याना' का वर्णन मिलता है
अवेस्ता में भारतीय प्रदेशों और नदियों के नाम भी हैं, जैसे हफ्तहिन्दु (सप्तसिन्धु), हरव्वेती (सरस्वती), हरयू (सरयू), पंजाब इत्यादि।
'जेंद अवेस्ता' में भी वेद के समान गाथा (गाथ) और मंत्र (मन्थ्र) हैं। इसके कई विभाग हैं जिसमें गाथ सबसे प्राचीन है
पारसी मत की पवित्र पुस्तक जिंद अवेस्ता से कई बाते वेदो मे ज्यों की त्यों ली गयी है। यहा मै कुछ उदाहरण द्वारा पारसी ओर वेदो की कुछ शिक्षाओ पर समान्ता के बारे मे लिखुगा-
इनकी प्रार्थ्नात की स्वर ध्वनि वैदिक पंडितो द्वारा गाए जाने वाले साम गान से मिलती जुलती है।
पारसियो के ग्रंथ जिन्द अवेस्था है यहा जिंद का अर्थ छंद होता है जैसे वेदो मे सावित्री छंद या छंदोग्यपनिषद आदि|
पारसी भी सनातन की तरह चतुर्थ वर्ण व्यवस्था को मानते है-
1) हरिस्तरना (विद्वान)-ब्राह्मण
2) नूरिस्तरन(योधा)-क्षत्रिए
3) सोसिस्तरन(व्यापारी)-वैश्य
4) रोजिस्वरन(सेवक)-शुद्र
1 पारसी धर्म मे वैदिक ॠषियो के नाम- पारसियो की पुस्तक अवेस्ता के यास्ना मे 43 वे अध्याय मे आया है ” अंड्गिरा नाम का एक महर्षि हुवा जिसने संसार उत्पत्ति के आरंभ मे अर्थववेद का ज्ञान प्राप्त किया।
पारसियो मे अग्नि को पूज्य देव माना गया है ओर वैदिक ॠति के अनुसार दीपक जलाना,होम करना ये सब परम्परा वेदो मे रखी गई है।
ऋग्वेद में कुछ शब्द जो कि ज्यों के त्यों जेदंअवेस्ता मे से ली गई है बस इनमे लिपि का अंतर है-
अवेस्ता जैद ओर वेद मंत्र मे समानता:-
अवेस्ता से वेद मे कुछ मंत्र लिए गए है जिनमे कुछ लिपि ओर शब्दावली का ही अंतर है,
सबसे पहले अवेस्ता का मंथ्र ओर फ़िर वेद का मंत्र व अर्थ-
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अह्मा यासा नमडंहा उस्तानजस्तो रफ़ैब्रह्मा(अवेशता
1/1/1) मर्त्तेदुवस्येSग्नि मी लीत्…………………उत्तानह्स्तो नमसा विवासेत ॥ ॠग्वेद 6/16/46॥ =
है मनुष्यो | जिस तरह योगी ईश्वर की उपासना करता है उसी तरह आप लोग भी करे।
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मिथ्र अहर यजमैदे।(मिहिरयश्त 135/145/1-2) -
यजामहे……।मित्रावरुण्॥ॠग्वेद 1/153/1॥
जैसे यजमान अग्निहोत्र ,अनुष्ठानो से सभी को सुखी करते है वैसे समस्त विद्वान अनुष्ठान करे।
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पहरिजसाई मन्द्रा उस्तानजस्तो नम्रैदहा(गाथा
13/4/8)
…उत्तानहस्तो नम्सोपसघ्………अग्ने॥ ॠग्वेद 3/14/5॥ =विद्वान लोग विद्या ,शुभ गुणो को फ़ैलाने वाला हो।
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अमैरताइती दत्तवाइश्चा मश्क-याइश्चा ( गाथा 3/14/5) -
देवेभ्यो……अमृतत्व मानुषेभ्य ॥ ॠग्वेद 4/54/2॥
=है मनु्ष्यो ,जो परमात्मा सत्य ,आचरण, मे प्रेरणा करता है ओर मुक्ति सुख देकर सबको आंदित करते है।
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19वी शताब्दी में अवस्ताई और वैदिक संस्कृत दोनों पर पश्चिमी विद्वानों की नज़र नई-नई पड़ी थी और इन दोनों के गहरे सम्बन्ध का तथ्य उनके सामने जल्दी ही आ गया। उन्होने देखा के अवस्ताई फ़ारसी और वैदिक संस्कृत के शब्दों में कुछ सरल नियमों के साथ एक से दुसरे को अनुवादित किया जा सकता था
और व्याकरण की दृष्टि से यह दोनों बहुत नज़दीक थे। अपनी 1892 में प्रकाशित किताब "अवस्ताई व्याकरण की संस्कृत से तुलना और अवस्ताई वर्णमाला और उसका लिप्यन्तरण" में भाषावैज्ञानिक और विद्वान एब्राहम जैक्सन ने उदहारण के लिए एक अवसताई के धार्मिक श्लोक का वैदिक संस्कृत में सीधा अनुवाद किया
मूल अवस्ताई
तम अमवन्तम यज़तम
सूरम दामोहु सविश्तम
मिथ़्रम यज़ाइ ज़ओथ़्राब्यो
वैदिक संस्कृत अनुवाद
तम आमवन्तम यजताम
शूरम धामसू शाविष्ठम
मित्राम यजाइ होत्राभ्यः
ऋग्वेद और अवेस्ता दोनों प्राचीनतम ग्रंथों में आर्य शब्द पाया जाता है।
भाषा के अतिरिक्त वेद और अवेस्ता के धार्मिक तथ्यों में भी पार्याप्त समानता पाई जाती है।
दोनों में ही एक ईश्वर की घोषणा की गई है। उनमें मन्दिरों और मूर्तियों के लिए कोई स्थान नहीं है।
इन दोनों में वरुण को देवताओं का अधिराज माना गया है।
वस्तुत: यज्ञ, होम, सोम की प्रथाएं दोनों धर्म में है। अवेस्ता में `हफ्त हिन्दु' और ऋग्वेद में `आर्याना' का वर्णन मिलता है
प्राचीन काल में दोनों देशों के धर्मो और भाषाओँ की भी एक-सी ही भूमिका रही है।
अवेस्ता भाषा और संस्कृत भाषा के शब्द की फोटो आप देखकर अंदाजा लगा सकते हैं दोनों के शब्दों में कितनी समानता है
दोनों धर्मों की भाषा में समानता तभी हो सकती है जब कोई यहां से वहां गया हो भारत के इतिहास में ईरानी आक्रमण का पता चलता है लेकिन भारत से ईरान में कोई गया हो इसका पता नहीं चलता
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(1) ब्राह्मणों का इतिहास
इतिहास की नजर से
सबसे पहले मैं उन लोगों का भ्रम दूर करना चाहूंगी
जिनका मानना है ब्राह्मण लोग यहूदी है और यहूदी ही मुस्लिम है
ईरानी,प्राचीन काल में यह प्राचीन फारसी (पारसी) के रूप में एक राजकीय भाषा थी और अवेस्ता के रूप में धार्मिक भाषा थी
ज़रथुश्त्र (अहुरा मज़्दा) के सन्देशवाहक थे। उन्होंने सर्वप्रथम दाएवों (बुरी और शैतानी शक्तिओं) की निन्दा की और अहुरा मज़्दा को एक, अकेला और सच्चा ईश्वर माना।
उन्होंने एक नये धर्म "ज़रथुश्त्री धर्म" (पारसी धर्म) की शुरुआत की और पारसी धर्मग्रन्थ अवेस्ता में पहले के कई काण्ड (गाथाएँ) लिखे।
ज़न्द अवेस्ता के अब कुछ ही अंश मिलते हैं। इसकी भाषा अवेस्तन भाषा है, जो संस्कृत भाषा से बहुत, बहुत मेल खाती है।
अहुर मज़्दा अवस्ताई भाषा में प्राचीन ईरानी धर्म के एक देवता का नाम है जिन्हें पारसी धर्म के संस्थापक ज़रथुश्त्र ने अजन्मा और सर्वज्ञ परमेश्वर बताया था।
इसके अलावा इनके लिए ओह्रमज़्द, होउरमज़्द, हुरमुज़, अरमज़्द और अज़्ज़न्दारा नाम भी प्रयोग किये जाते हैं। वे पारसी धर्म के सर्वोच्च देवता हैं और यस्न (पारसी पूजा विधि, जिसका संस्कृत सजातीय शब्द 'यज्ञ' है)
में इन्हें सर्वप्रथम और सर्वाधिक सम्बोधित किया जाता है। अहुर मज़्दा को प्रकाश और अच्छाई उनके ख़िलाफ़ शैतानी दाएवों (देवों) का अध्यक्ष है अंगिरा मैन्यु।
(1) हिंदू धर्म की तरह ही पारसियों में भी अग्नि को पवित्र माना जाता है तथा अग्नि की पूजा की जाती है। इनके मंदिर को आताशगाह या अग्नि मंदिर (फायर टेंपल) कहा जाता है।
(2) पारसी कम्युनिटी के लोग एक ईश्वर को मानते हैं जो 'आहुरा माज्दा' कहलाते हैं। ये लोग प्राचीन पैगंबर जरथुश्ट्र की शिक्षाओं को मानते हैं। पारसी लोग आग को ईश्वर की शुद्धता का प्रतीक मानते हैं और इसीलिए आग की पूजा करते हैं।
(3) इतिहासकारों का मत है कि जरथुस्त्र 1700-1500 ईपू के बीच हुए थे। जब हजरत इब्राहीम अपने धर्म का प्रचार-प्रसार कर रहे थे।....
(4) जिस भाषा के माध्यम का आश्रय लेकर जरथुस्त्र धर्म (पारस इरान) का मूल धर्म) का विशाल साहित्य निर्मित हुआ है उसे अवेस्ता कहते हैं।
(5) यहूदियों की धर्मभाषा 'इब्रानी' (हिब्रू) और यहूदी धर्मग्रंथ का नाम 'तनख' है, जो इब्रानी भाषा में लिखा गया है। इसे 'तालमुद' या 'तोरा' भी कहते हैं।
(6) सातवीं सदी में ईरान में इस्लाम आया। इससे पहले ईरान में जरथुस्त्र धर्म के अनुयायी रहते थे।
(7) जबकि यहूदी धर्म में ईश्वर की कोई प्रतिमा या तस्वीर नहीं है
लेकिन जरथुस्त्र धर्म में ईश्वर की प्रतिमा और तस्वीर है
(8) जरथुस्त्र धर्म में आग की पूजा होती है यहूदी लोग आग की पूजा नहीं करते
(9) इसलिए जरथुस्त्र और यहूदी धर्म के संस्थापक इब्राहिम को जोड़ना कोरी कल्पना है
जो लोग ब्रह्माणो को यहूदी कहते हैं या ब्रह्मणो को यहूदी धर्म से जोड़ देते है फिर यहूदी धर्म को इस्लाम धर्म से जोड़ देते है जो सरासर गलत बात है
इस्लाम धर्म का उदय ही यहूदी धर्म के विरोध में हुआ है
ये अलग बात है इस्लाम धर्म यहूदी धर्म मे अपने पूर्वजों के संबंधों को इनकार नहीं करता है
लेकिन यहूदी धर्म की कृतियों का भरपूर विरोध करता है
इसलिए यह यहूदी धर्म और मुस्लिम धर्म परस्पर एक दूसरे के विरोधी हैं
जो हमें पूरी दुनिया में एक दूसरे के कत्ल ओ गारत के रूप में दिखता है
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जरथुस्त्र अवेस्ता भाषा और वैदिक संस्कृत भाषा में समानता
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