Saturday, 28 November 2020

वाल्मीकि

ब्रह्मर्षि वाल्मीकि के बारे मे एक अफवाह उड़ायी गयी है कि वाल्मीकि जाति से "भंगी" थे।
अब यह अफवाह किस फायदे से उड़ायी गयी, यह तो कहना मुश्किल है, पर तमाम ग्रंथों के अध्ययन से यह पता चलता है कि वाल्मीकि भंगी तो नही थे

पहली बात तो वाल्मीकि जैसा कोई पात्र था भी या नही, यह भी एक प्रश्न हो सकता है, लेकिन यदि ऐसा कोई पात्र था तो वह एक विद्वान ब्राह्मण ही था।
पुराणों के अनुसार वाल्मीकि ब्रह्मर्षि थे, और किसी डाकू-लुटेरे का ब्रह्मर्षि बनना मुश्किल ही नही, नामुमकिन है।

वास्तव मे ये वाल्मीकि के डाकू-लुटेरे होने वाली कथा पद्मपुराण से आयी! इस कथा को तुलसीदास ने राम की महिमा का बखान करने के लिये मानस मे लिखकर घर-घर पहुँचा दिया।
तुलसी ने लिखा है-
"उल्टा नाम जपा जग जाना।
बाल्मीकि भये ब्रह्म समाना।।"
अर्थात- वाल्मीकि (डाकू-लुटेरा) भी राम का उल्टा नाम जपने से भी ब्रह्म के समान हो गया।

खैर.. अब हम वाल्मीकि की वास्तविकता का पता लगाने का प्रयत्न करते हैं।
वाल्मीकि रामायण उत्तरकाण्ड सर्ग-96 श्लोक-19 (चित्र-1) मे वाल्मीकि ने खुद ही राम को अपना परिचय देते हुये कहा है कि "हे रघुनन्दन! मै प्रचेता का दसवाँ पुत्र वाल्मीकि हूँ"

वाल्मीकि ने यहाँ खुद को किसी भंगी या डाकू-लुटेरे का पुत्र नही बताया है, बल्कि प्रचेता का पुत्र कहा है। अब सवाल यह होता है कि प्रचेता कौन थे?
प्रचेता को जानने के लिये मनुस्मृति का अध्ययन करना पड़ेगा। मनुस्मृति अध्याय-1/34-35 (चित्र-2-3)मे स्वयं ब्रह्मा मनु से कहते हैं कि-
"अहं प्रजाः सिसृक्षुस्तु तपस्तप्त्वा सदुश्चरम् ।
पतीन् प्रजानामसृजं महर्षीनादितो दश।।
मरीचिमत्र्यङ्गिरसौ पुलस्त्यं पुलहं क्रतुम् ।
प्रचेतसं वसिष्ठं च भृगुं नारदमेव च।।"

अर्थात- मैने अतिकठोर तप करके सृष्टि सृजन की इच्छा से दस महान ऋषियों को पैदा किया। मरीचि, अत्रि, अङ्गिरा, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, प्रचेता, वशिष्ठ, भृगु और नारद, ये उन दस ऋषियों के नाम हैं।

इन दोनो श्लोकों से स्पष्ट होता है कि प्रचेता ब्रह्मा के पुत्र थे और वाल्मीकि प्रचेता के। अर्थात, वाल्मीकि जन्म से भी ब्राह्मण ही थे और उनका जन्म एक ऋषि के घर मे हुआ था, न कि किसी लुटेरे के घर मे।

इसके अलावा भी वाल्मीकि की कथा स्कन्दपुराण मे भी मिलती है! स्कन्दपुराण आवन्त्यखण्ड अध्याय-286 (चित्र-3-5) मे वाल्मीकि की कथा निम्न प्रकार लिखी है-
प्राचीनकाल मे सुमति नामक एक भृगुवंशी ब्राह्मण थे, जिनका पुत्र अग्निशर्मा लुटेरा हो गया था। एक बार उसने जंगल मे सप्तऋषियों को लुटने के लिये घेर लिया! सप्तऋषियों ने उससे कहा तुम लोगो की हत्या करके अपने माता-पिता के लिये जो लूटपाट करते हो, क्या उसके पाप मे तुम्हारे माता-पिता भी भागीदार होंगे?
अग्निशर्मा ने जब यही बात अपने माता-पिता से पूँछा तो उसके माता-पिता ने यह कहकर पाप का भागीदार होने से मना कर दिया कि हमारा भरण-पोषण करना तुम्हारा कर्तव्य है।

इसके बाद अग्निशर्मा ने दुःखी होकर घोर तप किया! अग्निशर्मा ने ऐसा घोर तप किया कि उसके शरीर के ऊपर दीमकों मे अपनी बॉबी (वल्मीक) बना दी, और इसीलिये आगे चलकर उस (अग्निशर्मा) को "वाल्मीकि" नाम दिया गया।

इस कहानी मे भी अग्निशर्मा अर्थात वाल्मीकि को भृगुवंशी ब्राह्मण ही बताया गया है, न कि कोई भंगी।

मतलब स्पष्ट है कि वाल्मीकि को भंगी बताकर केवल और केवल भंगियों को सनातन धर्म से इमोशनली कनेक्ट किया गया, जबकि वाल्मीकि के भंगी होने का कहीं कोई प्रमाण नही है।

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