Wednesday, 7 October 2020

मानव उत्तपत्ति, पृथ्वी उत्पत्ति।

मानव उत्तपत्ति

शतपथ ब्राम्हण-ll-१-४-११- के हवाले से-
मूरति वै प्रजापति:इमाम जनमत
भुव इत्यन्तरिक्षश्र स्वरिति !
दवयेतावद्राज्ज्इदश्र सर्व
यावदिमें लोक:सर्वेंणेंवाधीयते !!
अर्थात-
भुवः कहकर प्रजापति नें खुद को पैदा कर लिया,भुवः कहकर उसनें इस सारी दुनियाँ को उतपन्न किया,उसने भुवः कहकर सर्वप्रथम वायु को उतपन्न कर दिया,स्वाहा कहकर आसमान को उत्पन्न कर दिया,इसी प्रकार भुवः कहकर उसनें सारी दुनियाँ को उत्पन्न कर दिया,भुवः कहकर उसने प्रजापति ब्राम्हण को पैदा कर दिया,भुवः कहकर उसने क्षत्रिय को पैदा कर दिया,वहीं स्वाहा कहकर उसनें वैश्य को पैदा कर दिया,और बाद में स्वाहा कहकर अन्य सभी को पैदा कर दिया,भुवः कहकर उसनें सारी ऋतुएं पैदा कर दीं,स्वाहा कहकर पशु उत्पन्न कर दिए,इस प्रकार भुवः व स्वाहा कहकर प्रजापति नें खुद के साथ समूची दुनियाँ का निर्माण कर दिया.

वहीं मानव की उत्पत्ति के बारे में इसी शतपथ ब्राम्हण में एक और निम्न गपोड़ी कथा भी दी गयी है- जितने गपोड़े ग्रंथ उतनी गपोड़ी रचनाएं-
देखिए-शतपथ ब्राम्हण -l-८-१-१-से १० तक-
एकबार मनुजी महाराज पानी में हाथ धोने के लिए गए-तो उनके हाथ में एक छोटी मछली आ गयी,वह मछली मनुजी महाराज से बोली-कि मुझे एक घड़े में सम्हाल कर रखो,जब मैं बड़ी हो जाऊं तो दूसरे घड़े में पानी भरकर उसमें डाल देंना,परंतु जब मैं उससे भी बड़ी हो जाऊं तो मुझे समुद्र में डाल देना,फिर एक बाढ़ आएगी,तब सारे जीव जंतु बह जाएंगे,तब सिर्फ तुम बचोगे,तब तुम एक नाव में बैठ जाना,और नाव का एक रस्सा मेरे सींग में बांध देना,तब मैं तुम्हें उत्तरी पहाड़ पर ले जाऊंगी- और एक दिन ऐसा ही हुआ अचानक बाढ़ आ गयी, बाढ़ में सभी जीव जंतु समाप्त हो गए तब केवल मनु जी महाराज बचे,जो अकेले रहकर ही धर्म कर्म करते रहे,उन्हें जब कामेक्षा हुई तो अपना वीर्य घी दूध जैसा समुद्र के पानी में डालते रहे,जिसमें से एक नारी उत्पन्न हो गयी,जिसका नाम उन्होंने इड़ा रख दिया,उसी से मानव की उत्पत्ति हुई.

गपोड़िये ग्रंथकारों की तैतरेय संहिता भी कुछ इसी तरह की कोरी गप्प आज भी परोसती है-जानने के लिए पढ़ें-तैतरेय संहिता -ll-6--7-1 तथा -l-7-1-3,एवम छान्दोग्य उपनिषद-lll-११-४ तथा -Vlll-15-1-
  
   सिंधुघाटी सभ्यता के सृजनकर्ता शूद्र और वणिक. पृष्ठ-152-153.
   

 

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क्या वेद 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 53 हज़ार साल से ज़्यादा पुराने हैं?
     
धरती पर मानव का आगमन कब हुआ?
स्वामी दयानंद जी ने सृष्टि का आदि 1 अरब 96 करोड़ 8 लाख 52 हज़ार 9 सौ 76 वर्ष पुराना बताया है और मनुस्मृति को सृष्टि के आदि में होना माना है।
ये दोनों ही बातें ग़लत हैं।

हमारी आकाशगंगा की आयु वैज्ञानिकों के अनुसार 13.2 अरब वर्ष से ज़्यादा है और इससे भी ज़्यादा आयु वाली आकाशगंगाएं सृष्टि में मौजूद हैं। धरती की उम्र भी लगभग 4.54 अरब वर्ष है। वैज्ञानिकों धरती पर 1 अरब वर्ष पहले तक भी किसी मानव सभ्यता का चिन्ह नहीं मिला।

देखिए वैज्ञानिक तथ्यों को प्रदर्षित करता एक चित्र, जिसमें वैज्ञानिकों ने दर्शाया गया है कि एक अरब छियानवे करोड़ वर्ष पहले धरती पर मनुष्य नहीं पाया जाता था।
 
स्वामी जी सृष्टि की उत्पत्ति का काल जानने में भी असफल रहे। ‘चारों वेद सृष्टि के आदि में मिले।’ स्वामी जी ने बिना किसी प्रमाण के केवल यह कल्पना ही नहीं की बल्कि उन्होंने ़ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, अथ वेदोत्पत्तिविषयः, पृष्ठ 16 पर यह भी निश्चित कर दिया कि वेदों और जगत की उत्पत्ति को एक अरब छियानवे करोड़ आठ लाख बावन हज़ार नौ सौ छहत्तर वर्ष हो चुके हैं।
स्वामी जी इस काल गणना को बिल्कुल ठीक बताते हुए कहते हैं-

‘…आर्यों ने एक क्षण और निमेष से लेके एक वर्ष पर्यन्त भी काल की सूक्ष्म और स्थूल संज्ञा बांधी है।’ (ऋग्वेदादिभाष्य., पृष्ठ 17)

यह बात सृष्टि विज्ञान के बिल्कुल विरूद्ध है।

आर्य ज्योतिषियों का फलित भी ग़लत और गणित भी ग़लत

स्वामी जी ज्योतिष के फलित को और उसके गणित को सही माना है। वह ज्योतिष की काल गणना पर विश्वास करके धोखा .. खा गए। बाद के वैज्ञानिक अनुसंधानों से पता चला कि जगत और मनुष्य की उत्पत्ति के विषय में आर्य ज्योतिषियों की काल गणना बिल्कुल ग़लत है। स्वामी जी कह रहे हैं कि आर्यों ने एक एक क्षण का हिसाब ठीक से सुरक्षित रखा है लेकिन हक़ीक़त यह है कि आर्यों ने सृष्टि की जो काल गणना की है, उसमें 11 अरब वर्ष से ज़्यादा की गड़बड़ है।



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------ आपने कभी यह विचार किया कि पृथ्वी इतनी बेडौल और ऊँची-नीची क्यों हैं?
------ आपने कभी यह सोचा कि पृथ्वी पर ये सफेद पहाड़ (बर्फ के पहाड़) कहाँ से आये?

            ..... इसका जवाब वैज्ञानिकों ने भले ही अपने तरीके से दिया हो, पर हजारों साल पहले महर्षि वाल्मीकि ने इसकी खोज रामायण मे की थी। 
वाल्मीकि ने रामायण बालकाण्ड सर्ग-36 (चित्र-1,2) मे लिखा है कि- "पूर्वकाल मे जब शिवजी ने पार्वती से विवाह करके अपनी रतिक्रीड़ा प्रारम्भ की तो लगातार सौ दिव्यवर्षों तक समागम करते ही रहे! इतने समागम करने बाद भी जब पार्वती को कोई गर्भ न हुआ तो देवताओं मे बड़ी बेचैनी हुई, और ब्रह्मा आदि दूसरे अन्य देवता उन्हे रोकने का उधोग करने लगे, क्योंकि देवता डर भी रहे थे कि इतने अधिक समय तक यदि समागम से शिवजी के तेज (वीर्य) से कोई महान प्राणी पैदा हो गया तो उसे रोकेगा कौन?
    ..... यही सोचकर सारे देवता शिव के पास गये और बोले कि हे महादेव! यह संसार आपके तेज (वीर्य) को धारण नही कर सकेगा, अतः अब आप क्रीडा से निवृत्त हो माँ पार्वती के साथ तप करो। 
           देवताओं की प्रार्थना पर शिवजी मान गये, और देवों से बोले कि देवताओ! उमा सहित यदि मैने अपने तेज से अपने वीर्य को धारण कर लिया, फिर भी यदि क्षुब्ध होकर मेरा वीर्य स्खलित हो गया तो उसे कौन धारण करेगा?
शिवजी की बात सुनकर देवता बोले कि हे देवेश्वर! यदि आपका वीर्य स्खलित हुआ तो उसे देवी पृथ्वी धारण कर लेगी।

देवताओं की बात सुनने के बाद शिवजी ने अपना तेज छोड़ दिया, जिससे वह सारी पृथ्वी पर फैल गया। फिर शिवजी के वीर्य के प्रभाव से पृथ्वी पर श्वेत पर्वत बन गये और सरकंडों के वन भी प्रकट हो गये।

               .... लेकिन पार्वती को यह बात बुरी लगी कि शिवजी ने देवताओं के अनुरोध पर क्रीड़ा को बीच मे ही छोड़ दिया और अपना वीर्य मेरे गर्भ के बजाय पृथ्वी पर ही स्खलित कर दिया है। फिर क्या था, पार्वती क्रोध से तिमतिमा गयी और देवताओ से बोली कि मैने पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से पति के साथ समागम किया था, परन्तु तुम लोगों ने मुझे रोक दिया। अतः मै भी तुम लोगों को श्राप देती हूँ कि तुम लोग भी संतानहीन हो जाओगे।

पार्वती ने इसके बाद पृथ्वी को भी श्राप दे दिया कि तुमने मेरे पति के तेज को धारण किया, अतः भूमे! अब से तेरा भी एक रूप नही रह जायेगा"

....अब इस कथा को क्या कहा जाये?
बेवकूफी, पाखण्ड, झूठ या अश्लील, जो भी हो पर धर्मग्रंथों मे ऐसी दकियानूसी कथाऐं भरी पड़ी हैं।
इन मूर्खतापूर्ण कथाओं के लिखने का क्या उद्देश्य था, यह तो कोई पुरोहित ही बता सकता है, पर ऐसी कथाऐं वास्तव मे प्रमाणिकता से जितनी दूर हैं, अश्लीलता के उतनी ही करीब हैं।




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