Friday, 9 October 2020

अवतारवाद।

अवतारवाद

  माया विमोहिता मन्दाः प्रवदन्ति मनीषिणाः । 
  करोति स्वेच्छया विष्णुःअवतारानने कशः ।। 47 ।।  
  मन्दोऽपि दुःख गहने गर्मवासेऽति संकटे । 
  न करोति मतिं विद्वान्कथं कुर्यात्स चक्रभृत ।। 48 ।। 
  कौशल्या देवकी गर्भ विष्टा मलसमांकुले । 
  स्वेच्छया प्रवदंत्यद्धागतो हि मधुसूदनः ।। 49 ।। 
  बैकुन्ठ सदनं त्यक्तवा गर्भवासे सुखं नु किम । 
  चिन्ता कोटि समुत्थाने दुखदे विष सम्मिते ।। 50 ।। 
          ( देवी भागवत 5-1 ) 
अर्थात: माया से विमोहित मूर्ख लोग कहते हैं कि भगवान स्वेच्छा से अनेक अवतार लेता है,मूर्ख से मूर्ख तथा विद्वान मनुष्य भी गर्भवास के अति गहन दु:ख एवं संकट में रहना पसंद नहीं करता है तो फिर भगवान ही उसे क्यों कर पसंद करेगा,लोग कहते हैं कि भगवान स्वेच्छा से गर्भ में आता है।

बैकुंठ का भला आनंद छोड़कर करोड़ों चिंताओं को पैदा करने वाले विष्टा और मल से भरे हुए गर्भवास में ,जो विष जैसा दु:खदाई है ,सुख ( आराम ) ही क्या रखा है ? 

  श्रीमद्भागवत समीक्षा-डा. श्री राम आर्य -पृष्ठ-67 C
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