Saturday, 17 October 2020

बलि

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नरमेधयज्ञ ( पुरुष बलि ) 

यजुर्वेद मे तीसवां  अध्याय तो पूरी तरह पुरुष मेध पर ही है ,महीधर ने इस अध्याय पर भाष्य करते हुए लिखा है कि इस यज्ञ मे 184 पुरुष प्रयोग मे लाए जाते थे । उन्हे यज्ञ के मंडप के स्तम्भो मे बांध दिया जाता था । फिर उनके चारो ओर अग्नि घुमायी जाती थी बाद मे  " वह ब्रम्हा के लिए "  "यह क्षेत्र के लिए है "  यह कह कर प्रत्येक को देवों के लिए चढ़ाया जाता था तत्पश्चात उन्हे स्तम्भो से खोल दिया जात था ( यजुर्वेद 30 /22  महीधर भाष्य )



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बताया गया है कि सभी अवसरों पर वैष्णवी तंत्र की आज्ञाओं का पालन करना चाहिए,और सभी देवताओं के प्रति बलि दी जानी चाहिए ,यथा...

चंडिका तथा भैरवी के लिए पक्षियों की बलि,कछुओं की बलि,मगरमच्छों की बलि,मछलियों की,नौ प्रकार के जानवरों की बलि,भैंसों की,वृषभों की,बकरों की,जंगली सुवरों की,गैंडों की,बारहसिंघों की,ग्वाना पच्छी की,जंगली हिरनों की,शेरों की,चीतों की,और आदमियों की,तथा बलि चढाने वाले का अपना खून भी बलि के लिए योग्य है बलि देने से राजकुमारों को परमानंद स्वर्ग और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है.

इस तरह से कहा जा सकता है कि तथाकथित हिन्दू धर्म और उसके देवी देवता पूर्णतया हिंसा पर आधारित होते हैं ऐसे में मानवीयता की कल्पना सहज की जा सकती है...

तथाकथित हिन्दू धर्म में जीव हत्या को पाखण्ड और अंधभक्ति के सहारे डर और भय पैदा कर हत्याएं कर सुनियोजित दमन किया गया है.जैसा कि विदित हो बलि प्रथा देवी देवताओं को खुश कर पूण्य और परलोक सुधारने के उद्देश्य से किया जाता रहा है जैसे..

मछली और कछुवे की बलि चढाने से देवी एक माह तक प्रसन्न रहती है,मगरमच्छ की बलि चढाने से तीन महीने,जंगली जानवरों की बलि से नौ महीने,जबकि जंगली वृषभ का रक्त देवी को एक वर्ष तक खुश रखता है ,बारहसिंघे और जंगली सुवर का बलिदान बारह वर्षों तक देवी को प्रष्न रखता है ,सरभस का रक्त देवी को पच्चीस वर्षों तक खुस रखता है और भैसे का रक्त सौ वर्षों तक देवी को खुश रखता है,लेकिन शेर और आदमी का बलिदान देवी को ऐसी प्रसन्नता प्रदान करता है जो एक हजार वर्ष तक चलती है,इन जानवरों का मांस भी इतने ही दिनों तक देवी को प्रसन्नता प्रदान करता है जितना कि उनका रक्त,बारहसिंघों का मांस देवी को पांच सौ वर्षों तक प्रसन्नचित बनाये रखता है रोहित मछली की बलि काली को तीन सौ वर्षों तक प्रसन्न बनाये रखती है.

ऐसी साफ़ बकरी जो चौबीस घंटो में केवल दो बार पानी पीती हो और जो बकरियों में श्रेष्ठ हो उसकी बलि देवताओं को दी जाने वाली श्रेष्ठ बलि मानी जाती है.ऐसा पक्षी जिसका कंठ नीला और सिर लाल तथा टाँगे काली हो उसकी बलि विष्णु को विशेष प्रिय है.

विधिवत दी गई नर बलि से देवी एक हजार साल तक प्रसन्न रहती है और तीन आदमियों की एक साथ बलि देने से देवी इक लाख वर्ष तक प्रसन्न रहती है.पवित्र धर्म ग्रंथों के पाठ द्वारा पवित्र बनाये गए रक्त की बलि अमृत के समान है सिर की बलि देने से चंडिका विशेष प्रसन्न होती है इसलिए जब भी विद्वजन बलि चढ़ाएं तो सिर और रक्त की ही बलि दें और जब यज्ञ करें तो उनके मांस की आहुति दें.

तथाकथित हिन्दू धर्म में देवी देवताओं को खुश रखने के लिए पशु,पक्षियों और इंसानों की बलि पर विशेष बल दिया गया है.और बताया गया है कि जो बलि देने वाला है उसे इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए कि देवी को खराब रक्त और मांस न चढ़ाया जाय अन्यथा देवी नाराज हो सकती है.कच्ची पक्की शराब देवी को उतने ही समय के लिए खुश रखती है जितने समय के लिए बकरी का बलिदान.

चन्द्रहास या गायत्री द्वारा पशु का जो बध किया जाता है वह सर्वश्रेष्ठ विधि मानी जाती है चाक़ू या छुरे के साथ दी जाने वाली बलि मध्यम दर्जे की बलि और फावड़े जैसी किसी चीज से दी जानेवाली बलि निक्रस्टतम विधि मानी जाती है .तीर जैसे हथियार से की गई बलि देवता स्वीकार नहीं करते हैं ,दुर्गा और कामाख्या देवी को बलि चढ़ाते समय वैदिक मंत्रों का उच्चार करना ही चाहिए.

जिस बर्तन में बलि का रक्त संचय किया जाय वह किसी की सामर्थ्य के अनुसार हो सकता है पर लोहे का नहीं होना चाहिए.

अश्वमेघ छोड़कर किसी भी अवसर पर घोड़े की बलि नहीं दी जानी चाहिए,इसी प्रकार गजमेघ को छोड़कर किसी भी अवसर पर हाथी की बलि नहीं दी जानी चाहिए,किसी ब्राम्हण को किसी शेर या चीते या अपने रक्त या शराब की बलि नहीं चढ़ानी चाहिए,यदि ब्राम्हण कोई बलि चढ़ाता है तो उसे ब्राम्हह्त्या जैसा पाप लगता है ,इसी प्रकार किसी क्षत्रिय को किसी बारहसिंघे की बलि नही चढ़ानी चाहिए,और यदि किसी शेर चीते या आदमी की बलि चढ़ाना आवश्यक ही हो तो मक्खन आदि पदार्थों से उसके स्थानापन्न बना लेने चाहिए तब बलि देनी चाहिए.

किसी आदमी की बलि देने के लिए राजा की आज्ञा लेना जरूरी है ,किसी विशेष अवसर या खतरों के समय नरबलि केवल राजा या उसके मंत्री ही दे सकते हैं नरबलि देने से पूर्व उसे एक दिन पहले अभिमंत्रित कर तैयार कर लेना चाहिए.
नरबलि देने वाले व्यक्ति को मन्त्रों और रस्सियों से बांधकर उसका सिर काट देना चाहिए और फिर देवी को अर्पित कर देना चाहिए.उक्त विधि विधान के साथ जो यज्ञों का कर्ता धर्ता बलि चढ़ाता है उसकी अधिक से अधिक इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है.

यही वह धर्म है जिसका कलि पुराण में खूब प्रचार प्रसार किया गया है.सदियों तक मनु के अनंतर अब भी यहाँ हिंसा तंत्रों की हिंसा नंगा नाच कर रही है जिसमे पशुओं की हिंसा ही नहीं नर बलि भी है .

कलि पुराण के खूनी परिच्छेद में वर्णित हिंसा भारत में प्रचुर मात्रा में फैली हुई थी,जहाँ तक पशु हिंसा की बात है तो कलकत्ते का काली मंदिर किसी कसाई खाने में तब्दील हो चुका है क्योंकि काली माई को प्रसन्न करने के लिए सैकड़ों बकरियों की रोज बलि चढ़ाई जाती है जो किसी पुराण पर किसी कलंक से कम नहीं है हालांकि आज कालीमाई मंदिर में नरबलि नही होती है पर एक समय यहाँ बकरे बकरियों की तरह नरबलि भी दी जाती थी,वैसे पशुबलि और नरबलि अब भी भारत के हर कोने में बदस्तूर चालू है.यहाँ एक बात गौर करने लायक है कि काली तो शिव की पत्नी है फिर शिव अहिंसक और काली हिंसक कैसे,यह बात विचारणीय है और वही बता सकते हैं जिन्होंने काली और शिव का निर्माण किया.

विष्णु पुराण के अनुसार ब्रम्हा ने खुद को स्वयंभू मनु माना था,जिसने अपने ही स्त्रीलिंग वाले शरीर को सतरूपा का भी नाम दिया था जिसे उसने अपनी ही पत्नी बनाया था,इसका मतलब तथाकथित ब्रम्हा उभयलिंगी था,या फिर ब्रम्हा ने अपनी ही बहन से विवाह किया था,अगर यह सत्य है तो कितने आश्चर्य की बात है,---खैर---इस ब्रम्हा और सतरूपा से दो लड़के और दो लड़कियां पैदा हुए,जिनके नाम प्रियव्रत और उत्तानपाद तथा प्रसूति और अकुति थे प्रसूति उसने दक्ष को दे दी और अकुति को कुलपिता रूचि को दे दी,अकुति से यज्ञ और दक्षिणा दो जुड़वां बच्चे पैदा हुए जो बाद में पति पत्नी बन गए(फिर वही भाई बहन की शादी)जिनके बाद में बारह बच्चे पैदा हुए,जो यम नाम के देवतागण हुए.
पहला मनु स्वयंभू था द्वितीय मनु देवतागण कहलाते थे,सप्तऋषि, ऊर्ज, स्तम्भ,प्रण, दत्तोली, रिसभ,निश्चर, अर्वरिवत,चैत्र, किम्पुरुष, और दूसरे और कई मनु के पुत्र हुए,इसके बाद चौथा ,पांचवां,छठा मनु चर्चित हुए.

एकबार मनु एकाग्रचित विराजमान थे तब बड़े बड़े ऋषि मुनि उनके पास पहुंचे और चारों वर्णो के बारे में उनसे पूंछा,तब मनु ने उत्तर दिया..कि..
यह विश्व अन्धकार की शक्ल में विराजमान था तब स्वयंभू मनु की नानाप्रकार के प्राणियों को जन्म देने की इच्छा हुई,तो उसने पहले पानी बनाया फिर उसमें बीज डाला,जो बाद में अंडे में बदल गया ,वह मनु स्वयं लोक के जनक के रूप में उस अंडे से पैदा हुआ,तदनंतर ऋषियों को जन्म दिया जो सृस्टि के स्वामी थे,जिनके नाम मरीच, अत्रि, अंगिरस,पुलस्त्य,पुलह,क्रतु,प्रचेतस,वशिष्ठ,भृगु और नारद.इन स्वयंभू मनु और इनकी संतानों के शासन में प्रजातंत्र नाम की कोई चीज नही थी,यही वजह है कि तथाकथित हिन्दू धर्म में शिक्षा और न्याय नाम की कोई चीज नही थी मनु का विधान केवल समाज को वर्णाश्रम के विभाजन की शिक्षा देता है और यही वजह है कि हिन्दू धर्म में प्रजातंत्र के लिए कोई जगह नहीं है.यह अप्रजातांत्रिक व्यवस्था जानबूझकर बनायी गयी थी इसका विभाजन है वर्णो में,जातियों में और फिर जातियों का भी जाति बहिस्कृतों में ,यह केवल सिद्धांत नहीं है,बल्कि ये डिग्रियां हैं हुकुमनामें हैं ये सब प्रजातंत्र के विरुद्ध खड़ी की गई दीवारें हैं.
                      

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